निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) 2023 कब है?
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 31 मई 2023, बुधवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 1 जून 2023 सुबह 5.51 मिनट से सुबह 8.32 मिनट तक
निर्जला एकादशी तिथि (Nirjala Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 30 मई 2023 मंगलवार दुपहर 1.07 मिनट से
समाप्ति – 31 मई 2023 बुधवार दुपहर 1.45 मिनट तक
और पढ़े – अचला / अपरा एकादशी व्रत कथा – Achala / Apara Ekadashi Vrat Katha in Hindi
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत कथा
निर्जला एकादशी(Nirjala Ekadashi) के महात्मय की तरह ही उसकी की कथा भी रोचक और दिव्य है। इस कथा में महर्षि वेदव्यास ने पांडवो को चारो पुरुषार्थ जैसे अर्थ, धर्म काम और मोक्ष को प्रदान करने वाले एकादशी व्रत के लिए संकल्प करवाया था।
तब घर्मराज युधिष्ठिर ने महर्षि वेदव्यास से कहा –
“हे मुने…!! आप सर्वज्ञ है। आपके द्वारा ही हमें चारो पुरषार्थ की शिक्षा मिली है। हम आज आपके श्री मुख से एकादशी व्रत के महात्मय की कथा सुनने के इछुक है। आप हमें ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी व्रत के बारे में बताने की कृपा करें।”
तब महर्षि वेदव्यास ने कहा – “हे वत्स, में तुम्हारे आदर भाव से अति प्रसन्न हूँ। एकादशी व्रत सभी अन्य व्रतों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ व्रत है। एकादशी तिथि भगवान श्रो हरि के सबसे अधिक प्रिय तिथि है। पद्मपुराण में भगवान श्री हरि ने सभी एकादशी व्रत के महात्मय के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है किंतु एकादशी व्रत के कुछ नियम है जो भी जन पूर्ण श्रद्धा भाव से अगर एकादशी का व्रत करता है तो उसे उसकी इच्छा से अधिक फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत हर जन को पूर्ण विधि विधान से करना चाहियें। इस व्रत में एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय होने से द्वादशी तिथि के सूर्योदय होने तक अन्न ग्रहण करना वर्जित है। द्वादशी तिथि के दिन प्रातः सूर्योदय होने से पूर्व यजमान को उठाना होता है और फिर गंगाजल या गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करके अपनी दैनिक पूजा और आराधना के कार्य समाप्त करने के प्रश्चात घर में शुद्ध और सात्विक भोजन बना कर निमंत्रित ब्राह्मणों को पहले भोजन अर्पित कर उन्हें उचित दक्षिण देके पूर्ण संतुष्ट करने के प्रश्चात ही स्वयंम भोजन करना चाहिये। यही इस व्रत का पूर्ण विधान है।”
एकादशी व्रत की विधि सुन भीमसेन बोले –
“हे कृपाश्रेष्ठ, आपके श्री मुख से एकादशी व्रत की विधि सुन कर में अत्याधिक यह व्रत करने हेतु प्रेरित हो गया हूं। राजा युधिष्ठिर, माता कुंती, भार्या द्रोपदी, अनुज अर्जुन, नकुल और सहदेव इस पतितपावन एकादशी व्रत पर कभी भोजन ग्रहण नही करते और मुजसे भी यही आग्रह करते है कि में भी भोजन ना करू किंतु मेरा हर बार उनसे यहीं निवेदन रहता है कि “मुजसे भूख नहीं सही जाती”।
भीमसेन की बात सुन एक हल्के स्मित के साथ व्यासजी ने कहा –
“हे वत्स, में तुम्हारी स्तिथि को भली भांति समजता हूँ किन्तु अगर तुम नरक को दूषित समजते हो और तुम्हे स्वर्गलोक अति प्रिय है तो इस अवस्था में तुम्हे दोनों पक्षो की एकादशी तिथि को भोजन का त्याग करना सर्वथा उचित है।”
भीमसेन बोले – “हे मुने..!! आपकी बात सर्वथा उचित है किंतु में आपसे सत्य कह रहा हूँ। में एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं कर सकता तो फिर में पूरा दिन भूखा रह कर कैसे कोई व्रत पूर्ण कर पाऊंगा। मेरे उदर में “वृक” नामक अग्नि हमेंशा प्रज्वलित रहती है अतः जभी में अधिक भोजन ग्रहण करता हूं तभी यह शांत और तृप्त हो पाती है। इसी कारणवश है मुनिश्रेठ..!! में पूरे वर्ष में केवल एक बार ही व्रत कर सकता हूँ। अतः हे मुने..!!! मुज़े कोई ऐसा एक व्रत बताने की कृपा करें जिससे मेरी स्वर्गलोक में निवास करने की इच्छा भी पूर्ण हो और में कल्याण का भागी भी बन सकू। में आपके परामर्श का यथोचित पालन पूर्ण रूप से करूँगा।
महर्षि व्यास – “हे कुंतीसूत…!! हे बलश्रेष्ठ..!! तुम्हारा निवेदन सुन में अहोभावित हो गया हूं.. अतः अब मेरे वचन ध्यानपूर्वक अवश्य सुनना। ज्येष्ठ माह में जब सूर्य वृष राशि में हो या मिथुन राशि में, शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी का निर्जल व्रत तुम्हारे लिए सर्वथा उचित और कल्याणकारी होगा। केवल कुल्ला या आचमन ग्रहण करने हेतु तुम मुख में जल का प्रयोग कर सकते हो, किन्तु उसके अलावा किसी भी परिस्थिति में जल को मुख में ग्रहण करना व्रत को निष्फल बनाने के बराबर होगा।”
एकादशी के दिन सूर्योदय होने से दूसरे दिन द्वादशी को सूर्योदय होने तक सभी व्रत धारक को जल का त्याग करना होगा तभी व्रत की पूर्ति हो पाएगी। उसके प्रश्चात द्वादशी तिथि को प्रातःकाल में पवित्र जल से स्नान करके ब्राह्मण देवता को विधिपूर्वक जल और स्वर्ण का दान करना सर्वथा उचित माना गया है। इस प्रकार सभी कार्य करने के बाद जितेंद्रिय ब्राह्मणों के संग भोजन करना चहिये।
पूरे वर्ष में जितनी भी एकादशी तिथि होती होती है, उन सभी एकादशी के व्रत का पुण्यफ़ल एक मात्र इस निर्जला एकादशी का व्रत करने से प्राप्त हो जाता है इस बात में कोई दो मत नहीं है। हे वत्स, कमलपुष्प, शंख, चक्र और गदा धारी श्री हरि ने अपने श्री मुख से मुजे यह कहा था कि अगर कोई मनुष्य अपने सारे मोह त्याग कर एकमात्र मेरी शरण मे आ जाये और एकादशी के व्रत को निराहार हो कर करे तो उसे में सभी पापकर्म से मुक्त करता हूँ।
निर्जला एकादशी को पूर्ण श्रद्धा से इस व्रत का पालन और श्रीहरि विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस व्रत के करने से संसार मे व्रतधारी स्त्री हो या पुरुष अगर उसने मेरु पर्वत के समान भी पाप क्यों ना किये हो उसके सारे पापकर्म नष्ट हो जाते है।
इस निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को अपनी मृत्यु के समय विशालकाय, विकराल आकृति और अंधकारमय दिखाने वाले भयंकर दण्ड और पाशधारी यमदूत से भयभीत होनी के आवश्कता कभी नहीं होती क्योंकि उन्हें तो पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाव वाले, हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत उन्हें भगवान विष्णु के धाम में ले जाने आते है।
जो भी मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन दान, जप, स्नान, होम जो कुछ भी अपनी शक्ति अनुसार करता है उसे उसका अक्षय पुण्यफ़ल प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी का व्रत जो भी मनुष्य पूरे विधिविधान से भगवान श्रीहरि में पूरी श्रद्धा रख कर करता है उसे परम वैष्णवपद की प्राप्ति हो जाती है। किन्तु जो भी मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है वह पाप का भागी बनाता है। इस पृथ्विलोक मे वह चांडाल के समान है और मृत्यु के प्रश्चात वो दुर्गति को प्राप्त होता है।
यंही नहीं जो भी मनुष्य ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी तिथि पर उचित दान करता है उसे परम पद की प्राप्ति सहज हो जाती है। और जिस मनुष्य ने अपने जीवनकाल में ब्रह्महत्या, मदिरा सेवन, पर स्त्री गमन, चोरी या गुरुद्रोह जैसे कठोर पाप किये हो और वह अगर इस एकादशी का व्रत करता है तो उसे इन सब पापो से मुक्ति प्राप्त होती है।
अतः हे कुंतीपुत्र..!! निर्जला एकादशी के शुभ दिन सभी स्त्री पुरुषों के लिए विशिष्ट दान और कर्तव्य निर्धारित है तुम हुए भी सुनो – “सागरतल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और आराधना कर जलमय धेनु का दान करना चाहिये या फिर धृतमई धेनु या प्रत्यक्ष धेनु का दान करना सर्वथा उत्तम माना गया है।
द्वादशी के दिन उचित दक्षिणा और विभिन्न मिष्ठानों द्वारा ब्राह्मणों को संतुष्ट करना चाहिये। ऐसा करने से ब्राह्मण देवता निश्चितरूप से संतुष्ट होते है और उनकी संतुष्टि पर भगवान श्रीहरि व्रतधारी मनुष्य को मोक्ष प्रदान करते है। जिस भी मनुष्य ने पूर्ण श्रद्धाभाव से शम, दम और दान में लीन हो कर भगवान श्री हरि की पूजा और रात्रि जागरण करते हुए इस पापनाशिनी निर्जला एकादशी का व्रत किआ हो वह अपने साथ अपनी पूर्व सो पीढ़ियों और आनेवाली सो पीढ़ियों को भगवान श्री हरि के परमधाम पहुंचा देता है इसमें लेश मात्र भी श संशय नहीं है।
हर मनुष्य को अपने जीवनकाल में निर्जला एकादशी का व्रत अचूक करना चाहिए और उचित दान करना अति अनिवार्य है। यँहा निर्जला एकादशी के दिन गौ, जल, वस्त्र, अन्न, सुंदर आसान, छाता और कमंडल का दान किआ जाता हैं। जो भी व्रतधारी सुपात्र और श्रेष्ठ ब्राह्मण गन को पादुका का दान करता है वह स्वर्णविमान में बैठ कर निश्चितरूप से स्वर्गलोक को जाता है।
यंही नहीं जो भी मनुष्य इस एकादशी व्रत का पठन या श्रवण करता है वह स्वर्गलोक में निवास करता है। चतुर्दशी युक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के दिन जो भी मनुष्य श्राद्ध करके जिस फ़ल को प्राप्त करता है वही फ़ल उसे इस निर्जला एकादशी के व्रत के प्राप्त होता है।
सर्वप्रथम हर मनुष्य को दन्तधावन करते हुए यह प्रण लेना चाहिए कि – “में भगवान श्री हरि की प्रसन्नता हेतु इस एकादशी को निराहार रह कर, आचमन के अतिरिक्त अपने मुख में जल ग्रहण नहीं करूंगा।”
द्वादशी के दिन सर्वेश्वर भगवान श्री हरि का गंध, धूप, सुंदर वस्त्र और पुष्प से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प लेते हुए निम्नलिखित वाक्य का उच्चारण करना चाहिये –
“संसार रूपी सागर से हमे तारने वाले है प्रभु श्री हरि, इस जल के घड़े का दान करने से हमें परमगति की प्राप्ति करवाइये।”
हे महाबली भीमसेन..!! ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी के दिन निर्जल व्रत करना चाहिये। इस दिन श्रेठ ब्राह्मणों को आमंत्रित कर उनका पूजन करके उन्हें जल और शक्कर का दान के साथ साथ जल के घड़े का दान करना अति उत्तम माना जाता है। इस दान के फ़ल स्वरूप मनुष्य श्री हरि के अधिक निकट पहुंच जाता है और परम आनंद की अनुभति करता है।
ततप्रश्चात द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को आमंत्रित कर उन्हें सात्विक भोजन अपर्ण करने के बाद स्वयं भोजन करना चहिये। जो भी मनुष्य इस प्रकार विधि विधान पूर्वक इस पापनाशिनी निर्जला एकादशी का व्रत करता है उसे परम पद की प्राप्ति होती है।
महर्षि वेदव्यासजी के श्री मुख से यह वचन सुनकर महाबली भीमसेन भी इस व्रत को करना आरंभ कर देते है। उस समय से इस लोक में इस एकादशी को भीम एकादशी / पाण्डव एकादशी / निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता हैं।
ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की इसी एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने माता रुक्मणि का हरण किआ था अतः इस एकादशी को रुक्मणि हरण एकादशी भी कहा जाता हैं।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का महत्व
हिन्दू धर्म मे यह एक एकादशी एक मात्र ऐसी है जिसके करने मात्र से पूरे सालभर आनेवाली एकादशी के फल प्राप्त हो जाते है। निर्जला एकादशी को भीम एकादशी भी कहा जाता है। क्योंकि एकादशी भीम ने निर्जल हो कर की थी। ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है।
निर्जला एकादशी को बड़े ही संयम से किआ जाता है क्योंकि इस एक मेव एकादशी में जल पीना भी वर्जित माना गया है। इस एकादशी को पूरी श्रद्धा से करने वाला मनुष्य अपने पूरे जीवनकाल मे सुख और समृद्धि प्राप्त करता है और अपने अंत समय मे उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।