अजा एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Aja Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

अजा एकादशी(Aja Ekadashi) 2023 कब है?

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 10 अगस्त 2023, रविवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 11 अगस्त 2023 सुबह 6.21 मिनट से सुबह 8.50 मिनट तक

अजा एकादशी तिथि (Aja Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 09 अगस्त 2023 शनिवार शाम 7.17 मिनट से
समाप्ति – 10 अगस्त 2023 रविवार रात्रि 9.28 मिनट तक

Aja Ekadashi

अजा एकादशी का महात्मय (Aja Ekadashi Ka Mahatmay)

भगवान श्री हरी से एकादशी व्रत की कथा तथा महात्मय सुनकर सभी पांडव भक्ति से परिपूर्ण हो गये थे। तभी कुंतीपुत्र अर्जुन बोले –

अर्जुन – “हे केशव, आपके श्री मुख से श्रावण  माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली पुत्रदा एकादशी की कथा सुन में धन्यता का अनुभव कर रहा हूँ। अतः अभी में आपसे भद्रापद माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी की कथा सुनने को इच्छुक हुँ। हे मधुसूदन इस एकादशी का क्या नाम है? इस एकादशी व्रत का क्या विधान है? इस एकादशी व्रत के अनुष्ठान से किस पुण्यफ़ल की प्राप्ति होती है हमें विस्तारपूर्वक बताये।

श्रीकृष्ण – “है पार्थ, तुमने बड़ा ही उत्तम विचार प्रगट किया है। भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को अजा एकादशी (Aja Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी का व्रत करने मात्र से सभी पापो का नाश होता है। इस एकादशी व्रत के माध्यम से मनुष्य के इसलोक और परलोक दोनों का उद्धार हो जाता है। इस एकादशी व्रत के जैसा संसार में और कोई व्रत नहीं है।

अजा एकादशी व्रत कथा (Aja Ekadashi Vrat Katha)

हे पार्थ..!! अभी में तुम्हे इस पतितपावनी एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हूं अतः तुम इसे बड़े ध्यानपूर्वक सुनना। प्राचीनकाल में भगवान श्री रघुकुल शिरोमणि श्री राम के वंशज राजा हरिश्चंद्र हुए थे। राजा अपने जीवनकाल में अपनी सत्यनिष्ठा और प्रामाणिकता के लिए प्रसिद्ध थे।

राजा हरिश्चंद्र अपने शाशनकाल में अपने वचन और कर्म से अपनी प्रजा एवं तीनों लोको में प्रसिद्धि के पात्र बन चुके थे।

अतः इसी कारण वश देवताओं ने एक बार उनकी इन्ही सत्यनिष्ठा की परीक्षा लेनी चाही।
एक रात राजा हरिश्चंद्र ने अपने स्वप्न में देखा की ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना सारा राज पाठ दान में दे दिया है। राजा यह स्वप्न देख बड़े ही विचलित हो गए। उन्होंने प्रातः उठ कर अपनी पत्नी से यह स्वप्न का वृतांत सुनाना चाहा किंतु उसी क्षण उनके द्वार पर महर्षि विश्वामित्र पधार चुके थे। उन्होंने दरबार में आकर राजन से कहा –

विश्वामित्र – “हे राजन, मुझे यंहा देख आप चकित जरूर हुए होंगे। यदि नहीं तो आप मेरे इन वचनों से अवश्य हो जायेंगे। हे राजन, आप एक सत्यनिष्ठ राजा है अतः आपने जो अपने स्वप्न में मुझे जो अपना राज्य दान स्वरूप दिया है में उसे ही लेने आया हुं।”

महर्षि विश्वामित्र की बात सुन सभी दरबारी आश्चर्यचकित हो उठे। किंतु जब राजा हरिश्चंद्र ने महर्षि विश्वामित्र के वचन को सार्थक करते हुए उन्हें स्वतः ही अपना संपूर्ण राज्य सौंप दिया। इतना ही नहीं उन्हें दान के लिए दक्षिणा देने हेतु अपने पूर्व जन्म के कर्मफल से प्राप्त हुई सौभाग्य लक्ष्मी समान पत्नी और तेजस्वी पुत्र सहित खुद का भी दान कर दिया। राजा हरिश्चंद्र को एक डोम ने दान स्वरूप प्राप्त किया हुआ था जो श्मशान भूमि में मनुष्यों के दाहसंस्कार का कार्य करवाता था।

स्वताः वो एक चांडाल के दास बन गए थे। उन्होंने उस चांडाल के यहां कफन लेने का काज किया, अपने जीवनकाल में उन्होंने कभी इतना भ्रष्ट काज किया नहीं था किंतु अपने सत्यनिष्ठ व्रत की प्रतिष्ठा के लिए उन्होंने इस कार्य को भी एक स्मित के साथ निभाया।

इसी कार्य को करते कई वर्ष बीत गए, अपने इस नीच कर्म को देख अब उन्हें बड़ा दुःख होने लगा था। अब वह इस नीच कर्म से मुक्ति प्राप्त करने के उपाय ढूंढने लगे। अब वह सदैव इसी चिंता में डूबे रहते की कैसे इस नीच कर्म से मुक्ति प्राप्त की जाए? वह ऐसा क्या करें की उन्हें इस नीच कर्म से मुक्ति मिले?

एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र अपनी इन्हीं चिंता में डूबे हुए थे की महर्षि गौतम उनके समक्ष आये। महर्षि गौतम को अपने सम्मुख पा कर राजा बड़े हर्षित हुए और उन्हें प्रणाम किया किंतु अपने मुख पर छाये हुए चिंता के बादल को ढक ना सके। अतः महर्षि ने खुद ही उनसे पूछा –

महर्षि गौतम – “हे वत्स, तुम परम प्रतापी हो। तुमने अपनी सत्यनिष्ठा के बल से स्वयं भगवान श्री हरि का भी मन मोह लिया है। किंतु आज इस मुख पर यह चिंता कैसी??”

महर्षि गौतम के वचन सुन वह अपने आप को रोक ना सके और उन्होंने अपना सारा वृतांत उनके समक्ष कह दिया।

राजा हरिश्चंद्र का वृतांत सुन वह भी दुखी हो गए और उन्होंने कहा –

महर्षि गौतम – “हे राजन, तुम्हारा वृतांत सुन मैं भी भावुक हो गया हूं। अतः में तुम्हारी समस्या का निदान देते हुए एक उपाय सुना रहा हूं इसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना। भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी (Aja Ekadashi) का व्रत तुम्हे तुम्हारे इस पाप कर्म से मुक्ति दिलाने में सर्वथा उत्तम है। इस एकादशी को अजा एकादशी (Aja Ekadashi) भी कहा जाता है। अतः तुम इस एकादशी पर भगवान श्री हरि का ध्यान धरते हुए अपनी पूर्ण श्रद्धा से इस व्रत का अनुष्ठान करो और रात्रि जागरण कर प्रातः शुद्ध जल से स्नान कर के आमंत्रित ब्राह्मणों को सात्विक भोजन करवाने के पश्चात खुद भोजन कर व्रत का समापन करना। अपने इस पुण्यकर्म के प्रभाव से तुम्हे निश्चित्तरूप से अपने इस पाप कर्म से मुक्ति प्राप्त होगी।”

महर्षि गौतम इतना कह कर अलोप हो गए। महर्षि के कथन अनुसार राजा हरिश्चंद्र ने पूरे विधिविधान से भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली अजा एकादशी (Aja Ekadashi) का व्रत किया और रात्रि जागरण कर प्रातः ब्राह्मणों को भोजन करवाने के पश्चात खुद भोजन कर व्रत का समापन किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र सभी पापो से मुक्त हो गए। उनके इस व्रत का प्रभाव इतना प्रबल था की स्वर्गलोक में नगाड़े बजने लगे थे। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश राजा हरिश्चंद्र को अपने समक्ष खड़े दिखने लगें। उन्होंने अपने मृत पुत्र को जीवित और पत्नी को राजसी परिधान में आभूषणों से परिपूर्ण देखा।

व्रत के पुण्यफल से राजा हरिश्चंद्र को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई। वास्तव में यह देवताओं द्वारा उनकी परीक्षा ली गई थीं, अजा एकादशी (Aja Ekadashi) व्रत के प्रभाव से देवताओं द्वारा रची गई माया का अंत हो गया और अंत समय में राजा हरिश्चंद्र अपने पूरे परिवार समेत स्वर्गलोक को प्रस्थान हो गए।

हे पार्थ, यह सब अजा एकादशी (Aja Ekadashi) के व्रत के प्रभाव से ही संभव हो  सका था। अतः जो भी मनुष्य अपनी पूरी श्रद्धा से अजा एकादशी (Aja Ekadashi) का व्रत करता है वह अपने सारे पापो से मुक्त हो जाता है। जो भी इस व्रत का विधिविधान से अनुष्ठान करता है और रात्रि जागरण करता है उसके सारे कष्ट नष्ट हो जाते है और अंत समय में उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इस अजा एकादशी(Aja Ekadashi) की कथा का जो भी मनुष्य श्रवण करता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है।

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