देवशयनी एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Devshayani Ekadashi Vrat Katha In Hindi

देवशयनी एकादशी(Devshayani Ekadashi) 2023 कब है?

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 29 जून 2023, गुरूवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 30 जून 2023 सुबह 8.20 मिनट से सुबह 8.37 मिनट तक

देवशयनी एकादशी तिथि (Devshayani Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 29 जून 2023 मंगलवार सुबह 3.18 मिनट से
समाप्ति – 30 जून 2023 बुधवार सुबह 2.42 मिनट तक

Devshayani Ekadashi

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देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) की कथा

हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार पूरे भारतवर्ष में विभिन्न व्रत अनुष्ठान प्रचलित है किंतु एकादशी व्रत कथा का महात्मय सबसे अधिक और सभी पापो को हर लेने वाला है। अगर मनुष्य अपने जीवनकाल में एकादशी व्रत का पूर्ण विधिविधान के साथ अनुकरण करे तो उसका जीवन मंगलमय और अतः वह मोक्ष का भागी बनाता है।

धर्मराज युधिष्ठिर जब प्रभु के श्री मुख से योगिनी एकादशी का महात्मय और कथा सुन तृप्त हुए और वह केशव से आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बार मे पूछने लगे –

युधिष्ठिर – “है मधुसूदन..!! आपके श्री मुख से आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली योगिनी एकादशी का महात्मय सुन में भावविभोर हो गया अतः आप अब मुजे आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में बताये। इस एकादशी को इस नाम से जाना जाता है? इस एकादशी का क्या महात्मय है? मुजे विस्तारपूर्वक समजाये..!!”

श्रीकृष्ण – “हे कुंतीनंदन..!! आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी पर में अपनी शयनमुद्रा में क्षीरसागर में शयन करता हु और आनेवाली देवोत्थानी एकादशी के पर्व पर जागृत अवस्था में आता हूँ। अब में तुम्हे इस दिव्य एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हु जो परमपिता ब्रह्माजी ने नारदजी को कही थी उसी कथा का वर्णन में तुमसे करने जा रहा हूं अतः इसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना।”

एक समय की बात है जब देवर्षि नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता दिखाई परिणामस्वरूप परमपिता ब्रह्माजी ने पुत्र नारद का कथन सुनते हुए उसे एक कथा सुनाई –

ब्रह्माजी – “हे नारद, तुमने आज मुजे एक उत्तम प्रयोजन से इस एकादशी के विषय मे जानने की जो उत्सुकता दिखाई है उससे में बहोत प्रसन्न हूँ। अतः में तुम्हे आज एक कथा सुनाने वाला हु इसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना। इस कथा के माध्यम से तुम इस एकादशी का महत्व पूर्ण रूप से जान और समज पाओगें।

एक समय की बात है, सतयुग में एक मांधाता नामक प्रतापी राजा हुआ करते थे। उनका राज्य सुखी और समृद्ध था। किंतु राजा मांधाता को इस बात की कोई सुद्ध नहीं थी कि आनेवाले समय मे उनके राज्य में क्या घटित होनेवाला हैं।

आनेवाला समय राजा मांधाता के लिए कठिन चुनोतियाँ ले के आनेवाला था। लगातार तीन वर्षो तक पूरे राज्य में वर्षा ना होने के कारण अकाल की स्थिति आन पड़ी। इस अकाल में सभी वर्ग के लोग त्राहित हो उठे। आकाल के कारण धर्म काज के लिये किये जानेवाले यज्ञ, पिंडदान, कथा, व्रत, हवन में बाधा आने लगीं। प्रजा जब अकाल रूपी मुसीबत आन पड़ी हो तो उनका मन कैसे किसी धर्मकाज मे लग सकता है भला। प्रजा का हर वर्ग राजा के दरबार मे जाकर अपनी वेदना व्यक्त करने लगे।

राजा मांधाता पहले से ही स्तिथि से अवगत थे। उन्हें अब यह समज नहीं आ रहा था कि उनके किस पाप कर्मों की सज़ा विधाता उनसे इस प्रकार ले रहा है? फिर उन्होंने ने सोचा इस समस्या का कोइना कोइ हल तो अवश्य होगा और उसीको ढूंढने वह वन को ओर अपनी सेना को लेकर चल दिये।

वन में विचरण करते करते एक दिन राजा परम पिता ब्रह्माजी के पुत्र ऋषि अंगिरा जी के आश्रम पधारे और ऋषि अंगिरा से भेंट कर उन्हें साष्टांग नमस्कार किआ। महर्षि का आदर सत्कार और आशिर्वाद ले कर उनके हाल चाल पूछे। ऋषि अंगिरा राजा मांधाता के सत्कार से प्रसन्न हो कर उनके वँहा आने का प्रयोजन पूछने लगे।

ऋषि अंगिरा का वचन सुन राजा मांधाता उन्हें कहने लगे –

मांधाता – “हे मुनिश्रेठ..!! आप से क्या छिपा है भला, आप सर्वग्य है किंतु आप मुजसे ही समग्र परिस्थिति का वृतांत सुनना चाहते है तो सुने। मेने अपने जीवनकाल में सभी धर्मों का पालन उचित रूप से किआ है किंतु आज मेरे राज्य की दशा दुर्भिक्ष के समान हो गई है। आखिरकार किस कारण वश यह परिस्थिति का निर्माण हुआ है में जानने में असमर्थ हु। अतः है मुनिवर में आज आपके आश्रम में इस समस्या का समाधान लेने आया हूं। आप मुझ पर दया करके इन परिस्थिति में से हमे उगार ने की कृपा करें।”

राजा मांधाता की व्यथा सुन महर्षि अंगिरा बोले –

महर्षि अंगिरा – “है राजन..!! यह बात आप अवश्य जान ले सर्व युगों में सबसे उत्तम युग सतयुग है। अतः इस युग के प्रभाव से छोटे से छोटा पाप भी बड़े भयंकर परिणाम ला सकता है। इस युग में धर्म आपने चारों चरणों मे व्याप्त रहता हैं। इस युग के विधान अनुसार ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी और वर्ण को तपस्या करने का अधिकार प्राप्त नहीं है किंतु में अपनी दिव्यदृष्टि से देख रहा हूं कि एक शुद्र अपने निवासस्थान पर तपस्या कर रहा है। यहीं वह कारण हैं जिस के समाधान हेतु आप मेरे आश्रम में पधारे है। उसी शुद्रवर्णी मनुष्य के तपस्या करने से आपके राज्य में वर्षा नहीं हो पा रही है। अतः जब तक वह शुद्रवर्णी काल के मुख को नही प्राप्त होता तब तक आपके राज्य की सुख, शांति और समृद्धि पुनः पहले की तरह नहीं हो पायेगी। इस कारणवश आपको उस शुद्र का वध करना अति अनिवार्य जान पड़ता है।”

ऋषि अंगिरा के वचन सुन राजा अब एक दुविधा में थे एक निरपराध शुद्र तपस्वी का वध करना उन्हें नीति संगत ना लगा और उन्होंने कहा –

राजा मांधाता – “हे मुनिश्रेठ..!!! में क्षमाप्राथि हूं आप के वचन सुन में एक दुविधा में पड़ गया हूं, सच कहूँ मुजे एक निरपराध तपस्वी को मृत्युदंड देना और वो भी इस लिए क्योंकि वो एक शुद्र है और उसे इस युग की गरिमा अनुसार तप करना वर्जित है यह मुजे तर्क संगत नहीं लगता। अतः मेरा आपसे सादर निवेदन है कि आप इस समस्या का कोई और उपाय बताने की कृपा करें।”

राजा के वचन सुन महर्षि अंगिरा के मुख पर एक मंद मुश्कान छलकने लगी, और वो बोले –

महर्षि अंगिरा – “हे राजन, तुम धन्य हो.. में तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। अपने राज्य के हर जीव मात्रा की रक्षा करना एक आदर्श राजा का परम कर्तव्य होता है। मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ। तुम्हारी अपने प्रजा के प्रति जो निष्ठा और समर्पण भावना है उसीके चलते में तुम्हे तुम्हारी समस्या का समाधान बता रहा हूं सो है राजन आप ध्यानपूर्वक सुनना। इस समस्या से अब आपको भगवान श्री हरि ही उगार सकते है। आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी का व्रत जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धा से करता है उसकी सभी मनोकामना फ़लित होती है। अतः है राजन आप इस व्रत का संकल्प ले इसी व्रत के प्रभाव से आपके राज्य में वर्षा का पुनः आगमन अवश्य होगा।”

महर्षि अंगिरा के परामर्श से राजा अति प्रसन्न हुए और आपने नगर वापस लौट आये और आनेवाली पद्म एकादशी को उन्होंने सभी वर्णों के साथ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभावस्वरूप राज्य में मुशलधार वर्षा का आगमन हुआ और पुनः पूरा राज्य धन धान्य से परिपूर्ण हो गया।

ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी का एक विशिष्ट महात्मय है और जो भी मनुष्य इस एकादशी का व्रत पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धाभाव से करता है उसकी सारी मनोकामनाये पूर्ण होती है।

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