मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)
मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 18 नवम्बर 2024, सोमवार को है।
मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)
मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 18 नवम्बर 2024, सोमवार को रात्रि के 07 बजकर 41 मिनट (07:41 PM) पर है।
मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)
प्रारंभ – 18 नवम्बर 2024 सोमवार को शाम 6 बजकर 55 मिनट (06:55 PM) से
समाप्त – 19 नवम्बर 2024 मंगलवार को शाम 5 बजकर 28 मिनट (05:28 PM) तक
मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)
एक समय की बात है जब पार्वती जी ने महा गणपति के सम्मुख पूछा की अगहन कृष्ण चतुर्थी (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi) संकटा कहलाती है उस दिन किस गणेश की पूजा किस रीत से करनी चाहिए?
माता पार्वती के प्रश्न के उत्तर में महागणपति ने कहा – “है..!! हिमालयनंदिनी..!! अगहन (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi) में पूर्वोक्त रीति से गजानन नामक गणेश की पूजा अति शुभ रहती है। पूजन के पूर्ण होने पर प्रभु गजानन को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। दिन भर व्रत का अनुष्ठान कर के पूजन के बाद ब्राह्मण को भोज करवाना चाहिए। उसके बाद जौ, तील, चावल, चीनी और घृत का एक शाकला बनाकर हवन करवाना चाहिए। इस हवन के माध्यम से यजमान अपने शत्रु को वशीभूत कर सकता है। इस कथन को सार्थकता प्रदान करने हेतु एक प्राचीन इतिहास में तुम्हे सुनता हूं।
यह त्रेता युग की बात है। जहां दशरथ नामक एक परम प्रतापी राजा हुए थे। राजा दशरथ को आखेट अति प्रिय था। एक बार आखेट की खोज में राजा ने श्रवण कुमार नामक एक ब्राह्मण कुमार पर शब्दभेदी बाण चला कर उसकी हत्या कर दी थी। जिसके परिणाम स्वरूप उस ब्राह्मण कुमार के अंधे माता पिता ने राजा को मरते समय एक कठोर शार्प दिया, “जिस प्रकार हम आज पुत्रशोक में तड़प तड़प कर अपने प्राण त्याग रहे है उसी प्रकार एक समय तू भी पुत्रशोक में अपने प्राण त्यागेगा।”
राजा को मिले इस श्राप के चलते वो बड़े चिंतित हुए। राजा ने अपने अंतिम काल में पुत्र आशा से ग्रसित हो कर पुतेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान किया। जिसके फल स्वरुप भगवान श्री हरी राजा दशरथ के घर श्री राम स्वरूप में अवतरित हुए। और माता लक्ष्मी जानकी रूप में अवतरित हुई।
अपनी रानी कैकई से वचन बद्ध हो कर राजा दशरथ को अपने परम आज्ञाकारी पुत्र राम को पुत्रवधू सीता और पुत्र लक्ष्मण सहित वनवास को भेजना पड़ा। अपने वनवास काल में भगवान श्री राम ने खर दूषण सहित अनेक पराक्रमी राक्षसों का संहार किया। जिससे क्रोधित हो कर रावण ने छल से माता सीता का अपहरण किया। अपनी भार्या सीता से बिछड़ कर उनकी खोज में भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण सहित पंचवटी को त्याग कर दक्षिण की और प्रस्थान कर गए। वही आगे जाके वो ऋषिमुख पर्वत आ पहुंचे और वनरराज सुग्रीव से मित्रता की वहीं उन्हें हनुमान जैसा परम भक्त और सखा भी मिला। सीता माता की खोज करने हेतु पृथ्वी की सभी वानर प्रजाति को एकत्रित किया गया और अलग अलग टुकड़ी में बांटा गया। दक्षिण की और हनुमान और अंगत जैसे परम वीर वानरों की टुकड़ी को भेजा गया। चलते चलते वो समुद्र तट तक आ पहुंचे लेकिन अब उन्हें आगे का मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था। जिससे हताश हो कर टुकड़ी नायक अंगत वही अपनी वानर सेना के साथ आमरण उपवास पर बैठ गए। जिसे देख वही बैठा एक विशालकाय गिद्ध मुस्कुराने लगा तब सभी ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की। व्यथा में इस गिद्ध को अपने भाई जटायु का नाम सुनाई दिया और फिर वो भात्र प्रेम वश अपना परिचय देते हुए कहेने लगा – “है वानरों, आप कोन हो और आप मेरे भाई जटायु का नाम क्यों स्मरण कर रहे हो?” तब वानर सेना नायक अंगत ने उन्हें सारी वार्ता स्पष्ट की। तब उस गिद्ध ने कहा, “है परम वीर वानरों, मेरा नाम संपाती है। जटायु मेरा अनुज है। आप जिस माता सीता की खोज के लिए निकले है में जानता हु की वो इस समय कहा है। वो इस समय इस समुद्र के उस पार लंका नगरी में स्थित अशोक वाटिका में एक वटवृक्ष के नीचे गहरी चिंता में बैठी हुई है।”
गिद्ध राज के ये वचन सुन सभी वानर चिंता में डूब गए। उन्हें अब पता तो चल गया था की सीता माता कहा है लेकिन उन तक भगवान श्री राम का संदेश कैसे पहुंचाया जाय, इस विशालकाय समुद्र को कौन वानर लांघ कर उस लंका नगरी में जाने को सक्षम है? जिसके उत्तर में गिद्ध राज संपाति ने कहा – “हे वीर वानरों, चिंता ना करे, माता सीता तक भगवान श्री राम का संदेश पहुंचाने के लिए केवल एक वानर आप सभी मैसे सक्षम है। वही प्रतापी वानर इस विशालकाय समुद्र को लांघ कर उस पार जा सकता है।” सभी वानरो ने तब गिद्ध राज से कहा कृपया आप उस वानर का नाम हमे बताने की कृपा करे। तब गिद्ध राज संपाति ने पवनपुत्र हनुमानजी का नाम लिया। हनुमानजी ने अपना नाम सुन चिंता में आ गए और गिद्धराज से पूछने लगे। है गिद्धों में श्रेष्ठ संपाती आपको ऐसा क्यों लगता है में ही इस कार्य के लिए उपयुक्त हुं। मेरा मार्गदर्शन करे। उत्तर में संपाती ने कहा – “है पवनपुत्र, इन सभी वानरो में केवल आप ही इस कार्य करने में सक्षम हो। किंतु इस कार्य को करने के लिए आपको भगवान श्री गणेश की आराधना करनी अति आवश्यक है। आपको यह कार्य निर्विघ्न संपन्न करना हो तो आपको भगवान श्री गणेश की संकट चतुर्थी का अनुष्ठान करना होगा। जिसके फल स्वरुप आप निर्विघ्न हो कर इस कार्य को बड़ी सहजता से पूर्ण कर सकेंगे। यही नहीं आप शत्रु पर पूर्ण विजय भी प्राप्त कर सकेंगे।” गिद्ध राज की बात सुन पवनपुत्र हनुमानजी ने विध्न विनाशक संकट चतर्थी (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत का अनुष्ठान किया। और इस व्रत के प्रभाव से वह क्षणभर में समुद्र लांघ कर लंका नगरी में पहुंच गए और निर्विघ्न अपना कार्य संपन्न करके पुनः प्रभु श्री राम के समक्ष उपस्थित हो गए।
कहा जाता है इस पूरे लोक में इस व्रत से अतिरिक कोई और व्रत सुखदाई नही है। भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को भी यही व्रत करने की सलाह दी थी। इस (Margshirsh Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत के प्रभाव से आप क्षणभर में अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते है और इस सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी बन सकते है। भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा का पालन करते हुए धर्मराज युधिष्ठिर ने इस व्रत का अनुष्ठान किया और अंतः उन्होंने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी बने।
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