श्रावण संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सम्पूर्ण – Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Sampurn In Hindi

श्रावण संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)

श्रावण संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 24 जुलाई 2024, बुधवार को है।

श्रावण संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)

श्रावण संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 24 जुलाई 2024, बुधवार को रात्रि के 09 बजकर 47 मिनट (09:47 PM) पर है।

श्रावण संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)

प्रारंभ – 24 जुलाई 2024 बुधवार को सुबह 7 बजकर 30 मिनट (07:30 AM) से
समाप्त – 25 जुलाई 2024 गुरूवार को सुबह 4 बजकर 39 मिनट (04:39 AM) तक

Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi

श्रावण संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)

संकष्टि गणेश चतुर्थी का व्रत प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। एक समय की बात है जब ऋषिगन विस्मयता से पूछते है की – “हे स्कन्दकुमार..!! शोक, दरिद्रता, कुष्ठ आदि रोगों से विकलांग, राज्य से निष्काशित राजा, सदैव दरिद्र रहनेवाले, धनहीन, समग्र उपद्रवों से पीड़ित, विद्याहीन, संतानहीन, घर से बेघर लोग, शत्रुओं से पीड़ित, रोगियों और सदैव कल्याण की कामना करने वाले लोगो के दुःख दूर हो इस लिए क्या उपाय करना चाहिए, जिससे उनके दुखो का निवारण हो और उनका कल्याण हो। अगर हे श्रेष्ठ आप इसका उपाय जानते है तो हमे बताने की कृपा करे।

स्वामी कार्तिकेय ने सभी ऋषियों की प्राथना सुनी और एक मंद स्मित के साथ वो बोले – “हे मुनिजन..!!! आपने जो प्रश्न मुझे किआ है उसके निवारण हेतु में आपको एक शुभफल दायक व्रत बताता हुँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनिए।

इस व्रत की महिमा अपर्मपार है। जो भी मनुष्य या प्राणी इस (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है वो अपने जीवन काल में सभी संकतो से मुक्त हो जाता है। यह व्रत महापुण्यकारी है, इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी कार्यों में निश्चितरूप से सफलता मिलती है। खास कर के जो भी महिला इस व्रत को करती है उसे अखंड सौभाग्य और सुन्दर संतान की प्राप्ति होती है।

श्रावण श्री गणेश संकष्टी चतुर्थी (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत कथा:

द्वापरयुग में महाराज युधिष्ठिर ने भी यह व्रत किया हुआ है। जब राजा युधिष्ठिर अपने राज्य से निष्काषित होने के बाद वन में अपने भाइयो सांग भ्रमण कर रहे थे, तब उन्होंने ने भगवान श्री कृष्ण से इस महान व्रत जी कथा का श्रावण किया था। अपनी समस्या के समाधान हेतु भगवान श्रीकृष्ण को जब राजा युधिष्ठिर ने जो प्रश्न किया था उसे आप सब भी ध्यानपूर्वक सुने।

युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा – “हे मधुसूदन..!! हम अभी जिस विकट समस्या से जुज रहे है उस समस्या से बाहर निकल ने मार्ग बतालिए है दयानिधान। आप सर्वग्य है। आपसे कुछ भी नहीं छुपता है अतः आप हमें इस कष्टदाई स्तिथि से बाहर निकालिये है प्रभु।

स्कन्दकुमार आगे की कथा का विवरण करते हुए कहते है – “जब महाराज युधिष्ठिर विनम्र भाव से हठ बारम्बार अपनी समस्या से बाहर निकल ने का मार्ग भगवान श्रीकृष्ण से पूछने लगे तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुख पर मंद स्मित लेट हुए कहा “हे धर्मराज, सभु मनुष्यों एवं प्राणियों का उद्धार करने वाला और उनकी समस्त मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला यह एक गुप्त व्रत है। मैने अभी टक्कर इस व्रत के विषय में किसीको भी नहीं बताया है। अतः आप इसे ध्यानपूर्वक सुनियेगा –

प्राचीनकाल में सतयुग में महाराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने भगवान शिव से विवाह हेतु गहन वन में जाके घोर तपस्या की थी। परंतु अपनी घोर साधना में लीन भगवान शिव देवी पार्वती की तपस्या से प्रभावित हो कर वंहा प्रगट नहीं हुए, अतः शैलपुत्री माता पार्वती ने अनंत काल से विद्यमान भगवान श्री गणेश जी का आवाहन किया।

माता पार्वती के आवाहन से भगवान श्री गणेश उसी क्षण प्रगट हुए। अपने समक्ष श्री गणेश को पाते ही माता पार्वती कहने लगी, “मेरे अखंड और कठोर तपस्या करने पर भी मेरे प्रिय भगवान शिव को में प्राप्त ना कर सकी, अतः हे कष्ट नाशक आप मुझे उस व्रत का ज्ञान करवाइये जिसे स्वयं देवर्षी नारदजी ने कहा है, जो परम कष्टनाशक है जो सबकी मनोकामना पूर्ण करता है जो आपका ही व्रत है। देवी पार्वती की बात सुनकर कष्टविनाशक भगवान श्री गणेश उस व्रत का वर्णन करने लगे।

गणेशजी ने उच्च स्वर में कहा – “हे हिमालयनंदिनी, अत्यंत पुण्यफलदाई और समस्त कष्टों को हरने वाले व्रत को कीजिये। इस व्रत को करने मात्र से आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण होंगी और जो कोई भी इस व्रत को पुरे श्रद्धाभाव स्वागत करेगा उसे सभी कार्यों में सफलता मिलाना निश्चित है। इस व्रत में श्रावण की कृष्ण चतुर्थी (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi) पर चंन्द्रोदय होने पण भगवान श्री गणेश का पूजन करना चाहिये। उस दिन आपको संकल्प करना है की जब तक चंन्द्रोदय नहीं होगा तब तक में भोजन ग्रहण नहीं करुँगी। सर्वप्रथम में श्री गणेश का चंन्द्रोदय होने पर पूजन करुँगी उसके बाद ही भोजन करुँगी। ऐसा मन में निश्चय कर लेना है। उसके बाद सफ़ेद तिल के जल से आपको स्नान करना है। और मेरा पूजन करना है, उसीके साथ आपने सामर्थ्य के अनुसार सोना, चांदी, ताम्बे या मिट्टी के कलश में जल भर कर उस पर मेरी प्रतिमा स्थापित करनी है।

मूर्ति को वस्त्रलंकार से सुशोभित करना है और उस पर अष्टदल से आकृति बनानी है और उसी मूर्ति को स्थापित करना है। उसके बाद षोडशोपचार विधि से श्रद्धापूर्वक उनका पूजन करना है। मूर्ति का ध्यान मन में धारते हुए कहना है – “हे एकदन्त, चारभुजा वाले, लाल रंग वाले, त्रिनेत्र वाले, नीलवर्ण वाले, प्रसन्न मुख और शोभा के भंडार श्री गणेश जी में आपका पूर्ण श्रद्धाभाव से ध्यान धर्ता या धरती हुँ। हे लम्बोदर मैं आपका आवाहन करती हुँ। आपको प्रणाम करती हुँ। यह आपका लिये आसन है।

हे वक्रटूण्ड यह आपके लिये पाध्य है। हे गजानन यह आपके लिये अर्ध्य है। हे शिवनन्दन यह आपके लिये स्नान हेतु जल है। हे विघ्नहर्ता यह आपके लिये आँचमनीय जल है। हे सुशोभित यह आपके लिये वस्त्र है। हे गजानन, यह आपके लिये यज्ञनोपावित है। हे गणनाथ! यह आपके लिये रोली-चन्दन है। हे शुर्पकर्ण! यह आपके लिये पुष्प है।

हे शिवसूत! यह आपके लिये धुपबत्ती है। हे विराट! यह आपके लिये दीपक है। हे देव! यह आपके लिये लड्डू का नैवेध्य है। हे सर्वदेव यह आपके लिये फल है। हे विघ्नविनाशक यह आपके समक्ष मेरा नतमस्तक प्रणाम है। प्रणाम करने के बाद आपको उनसे क्षमा प्रार्थना करनी है। इस प्रकार से षोडशोपचार रित से भगवान श्री गणेश का पूजन करना चाहिये और नाना प्रकार के प्रसादो को बना कर उनको भोग लगाना चाहिये।

हे देवी! आपको शुद्ध देशी घी में 15 लड्डूओ को बनाना है और उनका सर्वप्रथम भोग भगवान श्री गणेश को लगाना है। ततपरश्चात उन में से 5 लड्डू को ब्राह्मणो को खिलाना है। अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्रह्मणों को दक्षिणा दे कर चंन्द्रोदय होने पर आपको जल से उन्हें अर्ध्य देना है। उसके बाद पाँच लड्डूओ का स्वयं भोग करना है।

तदउपरांत हे देवी! आप सर्व तिथिओ में श्रेठ हो। गणेशजी की परम प्रियतमा हो। हे चतुर्थी (Shravan Sankashti Ganesh Chaturthi) हमारे द्वारा दिए गये अर्घ को ग्रहण करो, आपको वंदन है। निम्न प्रकार से आपको चंद्र को अर्ध को प्रदान करना है: हे निशाकार! हे क्षिरसागर से उत्पन्न हुए लक्ष्मी के भाई। रोहिणी सहित के शशि! मेरे दिए गये अर्ध को आप ग्रहण करें।

उसके बाद आपको श्री गणेश को इस प्रकार प्रणाम करना है- हे गजानन आप सम्पूर्ण इच्छाओ को पूर्ण करने वाले हो आपको मेरा प्रणाम है। हे समस्त विघ्नों के नाशक आप मेरी अभीलाषा पूर्ण करें। तत्पश्चात आपको ब्राह्मण देव की प्रार्थना करनी है। हे दिव्यराज! आपको मेरा नमस्कार है, आप देव स्वरुप है। गणेशजी की प्रसन्नता हेतु हम आपको लड्डू का भोग अर्पण कर रहे है। आप कृपा करके हमारा उद्धार करें और लक्षिणा सहित इन पाँच लड्डूओ का भोग स्वीकार करें। हम आपको प्रणाम कर रहे है।

इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाकर गणेशजी से प्रार्थना करें। यदि आपमें इन सब कार्यों को करने का सामर्थ्य ना हो तों अपने भाई बंधुओ के साथ दहि एवं पूजन में उपयोग में लिये गये पदार्थ का भोजन करें।

भगवान गणेश की प्रार्थना कर के उनकी मूर्ति का विसर्जन करें। अपने परम पूज्य गुरु को दक्षिणा और वस्त्रलंकार एवं अन्न के साथ मूर्ति को दे दे। इस प्रकार से आप मूर्ति का विसर्जन करें – “हे देवो में परम श्रेष्ठ, गणेश जी! अब आप अपने स्थान को प्रस्थान कीजिये और इस व्रत पूजा का फल हमें प्रदान करें।

अतः हे पार्वती, इस प्रकार से गणेश जी का पूजन जीवन भर करना चाहिये। अगर जीवन भर ना कर सके तों 21 वर्ष तक ये व्रत करना चाहिये। यदि इतना भी संभव ना हो तों एक वर्ष तक 12 महीने इस व्रत को करें। अगर इतना भी ना कर सके तों वर्ष के एक माह तों इस व्रत का अनुष्ठान तों अवश्य करें और श्रावण चतुर्थी को इस व्रत का उद्यापन करें।

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