अथ श्री रविवार व्रत कथा । श्री सूर्यदेव व्रत कथा सम्पूर्ण (Shri Ravivar Vrat Katha | Shri Suryadev Vrat Katha Sampurn)

रविवार सभी ग्रहो में सर्वोपरी ऐसे भगवान श्री सूर्यनारायण को समर्पित है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और कई जातक रविवार व्रत कथा (Ravivar Vrat Katha) का अनुष्ठान भी करते है। जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और अपने शत्रुओ पर विजय पाने के लिये रविवार का व्रत बड़ा ही उत्तम माना गया है। जो भी जातक रविवार का व्रत करता है और कथा सुनता है उसे भगवान श्री सूर्यनारायण की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उसे समाज में मान सन्मान, धन यश और उत्तम स्वास्थय प्रदान होता है।

रविवार व्रत कथा की पूजन विधि (Ravivar Vrat Katha Poojan Vidhi)

– भगवान श्री सूर्यनारायण का व्रत  एक वर्ष या 30 रविवार तक या फिर हो सके तो कम से कम 12 रविवारो तक करना चाहिये।
– व्रत अनुष्ठान करने से पहले जातक को रविवार को प्रातः सूर्योदय हो ने से पहले उठ जाना चाहिये साथ ही शौच स्नान आदि क्रियाओ से निवृत होके लाल रंग के वस्त्र धारण कर लेने चाहिये।
– उसके बाद अपने घर के किसे पवित्र स्थान पर भगवान श्री सूर्यनारायण की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र की स्थापना करें।
– तत्परश्चात विधि विधान से भगवान श्री सूर्यनारायण की गंध और पुष्प आदि से पूजन करें।
– पूजन संपन्न हो जाने के बाद उनकी कथा सुने।
– कथा संपन्न हो जाने के बाद उनकी आरती करें।
– आरती संपन्न होने पर भगवान श्री सूर्यनारायण का स्मरण करते हुए “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:” इस मंत्र का 12 या 5 अथवा 3 बार मला करें।
– जप पूर्ण होने के बाद एक पात्र में शुद्ध जल ले उसमे लाल चन्दन,  लाल पुष्प, अक्षत और दूर्वा डाल कर भगवान सूर्य को अर्ध्य दे।
– भगवान को अर्ध्य देने के प्रश्चात भोजन में केवल सात्विक भोजन खाये। भोजन में दलिया, गेंहू की रोटी,  दूध, घी, दंही और शक्कर का सेवन करें।
– रविवार के दिन नमक का प्रयोग ना करें।

Ravivar Vrat Katha

रविवार व्रत की पौराणिक कथा (Shri Ravivar Vrat Katha)

प्राचीन काल में एक वृद्धा रहा करती थी। वो भगवान सूर्यनारायण की परम भक्त थी और रविवार का व्रत किया करती थी। वो हर रविवार को सूर्योदय से पहले उठा करती थी। स्नान आदि अपने नित्य कर्म से निवृत हो कर वो अपने घर के आंगन को पवित्र गाय के गोबर से लीपा करती थी और फिर बड़े ही श्रद्धाभाव से भगवान सूर्य का पूजन किया करती थी। उसके बाद वो भगवान श्री सूर्यनारायण की कथा सुनती थी। कथा सुनने के बाद वो भगवान सूर्य को सात्विक भोजन का भोग लगाया करती थी और खुद भी दिन में मात्र एक बार भोजन कर के भगवान सूर्य का व्रत संपन्न करती थी। भगवान श्री सूर्यनारायण की कृपा से वृद्धा को किसी भी प्रकार की चिंता या कष्ट नहीं था। यही नहीं उसका घर धीरे धीरे भगवान श्री सूर्यनारायण की कृपा से भर रहा था।

उस वृद्धा को दिन प्रतिदिन सुखी होते हुए देख उसकी पड़ोसन उससे जलने लगी थी। वृद्धा ने कोई गाय पाल नहीं रखी थी अतः वो अपनी पड़ोस में बँधी हुई गाय का गोबर लाके अपने घर को लीपा करती थी। पड़ोसन ने जलन के मारे अपने आंगन में बँधी हुई गाय को अपने घर लाके बाँध दिया। जब रविवार आया और वृद्धा को गाय का गोबर ना मिलाने की वजह से वो अपना घर नहीं लिप सकी। आंगन को ना लिप पाने के कारण उस दिन उस वृद्धा ने भगवान सूर्यनारायण को भोग नहीं लगाया और स्वयं भी कुछ नहीं खाया। सूर्यास्त हो ने पर वृद्धा भूखी प्यासी सो गई।

प्रातः काल जब उसकी आँख खुली तो उसने अपने आंगन में एक सुन्दर गाय और उसके बछड़े को देखा, वो यह दृश्य देख कर चौंक गई। उसने तुरंत जाके गाय को अपने आंगन में बांधा और उसके लिये चारा लाकर उसे खिलाया। जब पड़ोसन ने वरुद्ध के आँगन में एक गाय को बंधा हुआ देखा तो वो उससे और जलने लगी। तभी गाय ने वृद्धा के आंगन में सोने का गोबर किया, यह देख कर तो पड़ोसन की आंखे फटी की फटी रह गई।

अगर आप भगवान शनिदेव के उपासक है और आपकी राशि में शनिदेव की साड़े साती चल रही है तो आपको “श्री शनिवार व्रत कथा” का पठन जरूर करना चाहिए, इससे आपके जीवन में चल रही बाधा ए कई अंश तक कम हो जाएँगी।

जब गाय ने गोबर किया तब वृद्धा उसके पास नहीं थी मोके का फायदा उठाते हुए पड़ोसन ने उस गोबर को उठाया और अपने घर में चली गई तथा अपनी गाय का गोबर उसके स्थान पर रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गोबर किया करती थी और पड़ोसन उस वृद्धा के उठने से पहले वो गोबर उठा कर ले जाया करती थी और अपनी गाय का गोबर वहाँ राख आती थी।

कई दिन हो चुके थे किन्तु वृद्धा को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला था। वृद्धा अपने नित्य कर्मनुसार रविवार को भगवान सूर्यनारायण का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। जब सूर्यनारायण ने पड़ोसन की चालाकी देखि तो वो उस पर बड़े क्रोधित हुए और एक तेज़ आंधी चलाई। तेज़ आंधी के कारण वृद्धा ने अपनी गाय को अपने घर में लाके बाँध लिया। प्रातः जब वो उठी तो उसने सोने का गोबर गिरा हुआ पाया वो उसे देख कर बड़ी आश्चर्य में पड़ गई।

उस रोज के बाद वृद्धा अपनी गाय को अपने घर में ही बाँधा करती थी। सोने के गोबर के कारण वृद्धा कुछ ही दिनों में बहुत धनी हो गई। वृद्धा को धनी होते हुए देख पड़ोसन जल भून के राख़ हो गई। अब उसने अपने पति को समजा बुजा कर नगर के राजा के पास भेज दिया। पड़ोसन के पति की बात सुन कर राजा दंग रह गया और उसने वृद्धा के घर जाने का निश्चय किया। वृद्धा के घर जाने पर राजा ने सुन्दर गाय को बंधा हुआ देख वो बड़ा प्रसन्न हुआ और प्रातः जब उस गाय ने सोने का गोबर किया तब तो उसके होश उड़ चुके थे। राजा ने उसी क्षण बिना विलम्ब किये वृद्धा से वो गाय ले ली और अपने राज महल में ले गया।

गाय के चले जाने पर वृद्धा बहोत ही निराश हुई और वो भगवान सूर्यनारायण को प्रार्थना करने लगी। उधर भगवान सूर्यनारायण को भूखी प्यासी वृद्धा को इस तरह प्रार्थना करते हुए देख उस पर बड़ी करुणा आई। उन्होंने रात्रि को राजा के स्वप्न में जाके उसे कहा – “हे राजन! तुमने जिस वृद्धा से उसकी गाय और बछड़ा छिना है उसे वो आदर सहित लौटा दो अन्यथा तुम पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा, तुम्हारा सर्वस्व नष्ट हो जायेगा।” सूर्य भगवान की स्वप्न में मिली चेतावनी से भयभीत हो के राजा ने प्रातः उठ कर वृद्धा को उसकी गाय और बछड़ा लौटा दिया।

राजा ने वृद्धा को अपने राज कोष से बहुत सा धन देके उससे अपने इस कर्म के लिये क्षमा मांगी। इतना ही नहीं राजा ने वृद्धा की पड़ोसन और उसके पति को उनकी उस दुष्टता के लिये दंड भी दिया। राजा ने अपने दरबार में ये घोषणा की आज से नगर के सभी स्त्री-पुरष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से नगर के सभी लोगो के घर धन धान्य से भर गये। पुरे राज्य में चारो और खुशहाली छा गई। सभी लोग सुखी और समृद्ध जीवन व्यापन करने लगे और उनके शारीरिक कष्ट भी दूर हो गये।

श्री सूर्य देव की आरती (Shri Surya Dev Ki Aarti)

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।
षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥

जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।
निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥

करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।
निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥

हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव।
जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥

श्री रविवार की आरती
कहुं लगि आरती दास करेंगे,
सकल जगत जाकि जोति विराजे।

सात समुद्र जाके चरण बसे,
काह भयो जल कुंभ भरे हो राम।

कोटि भानु जाके नख की शोभा,
कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।

भार अठारह रामा बलि जाके,
कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।

छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे,
कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।

अमित कोटि जाके बाजा बाजें,
कहा भयो झनकारा करे हो राम।

चार वेद जाके मुख की शोभा,
कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम।

शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,
नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।

हिम मंदार जाके पवन झकोरें,
कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम।

लख चौरासी बंध छुड़ाए,
केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।

रविवार व्रत का फल (Ravivar Vrat Ka Fal)

– जो मनुष्य रविवार व्रत करता है उसके सभी पापो का नाश हो जाता है।
– जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धाभाव से भगवान श्री सूर्यनारायण का व्रत करती है उनका बांजपन दूर हो जाता है।
– जो भी मनुष्य पूर्ण विधि विधान के साथ सूर्यनारायण का व्रत करता है उसे निश्चितरूप से मोक्ष प्राप्त होता है।
– जो भी मनुष्य रविवार का व्रत करता है उसके जीवन धन धान्य से परिपूर्ण हो जाता है और उसके सारे कष्ट दूर हो जाते है और उसे लम्बा और निरोगी आयुष्य प्रदान होता है।

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