पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सम्पूर्ण – Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Sampurn In Hindi [2025]

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 07 दिसम्बर 2025, रविवार को है।

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 07 दिसम्बर 2025, रविवार को रात्रि के 08 बजकर 02 मिनट पर है।

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)

प्रारंभ – 07 दिसम्बर 2025 रविवार को शाम 06 बजकर 24 मिनट से (06:24 PM)
समाप्त – 08 दिसम्बर 2025 सोमवार को शाम 04 बजकर 03 मिनट तक (04:03 PM)

Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi
Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)

पौष माह में आने वाली गणेश चतुर्थी व्रत (Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi) का एक विषेश महत्त्व है। जो भी श्री गणेश उपासक इस व्रत का अनुष्ठान करता है विघंविनाशक श्री गणेश उसके सभी कष्ट हर लेते है। गणेशजी के व्रत का अनुष्ठान करने से पूर्व व्रत धारक श्री गणेश उपासक को आपने दोनों हाथो में पुष्प लिए भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करनी चाहिए एवं गणेश चतुर्थी के इस विशेष पर्व पर भगवान गणेश की संकट नाशिनी कथा का पठन या श्रावण अवश्य करना चाहिए। संकट चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की कथा का पठन और भगवान के दर्शन का विशेष महत्त्व है।

पौष माह की श्री गणेश चतुर्थी व्रत (Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi) कथा के अनुसार एक समय की बात है जब अहंकारी रावण ने स्वर्ग के सभी देवता को परास्त करके जीत लिया था और अपने अहंकार में चूर हो कर संध्या वेला को जब वो अपनी नित्य संध्या में व्यस्त ऐसे महाबली बाली को पीछे से पकड़ लिया तब वानरराज महाबली बाली ने, रावण को आपनी बगल में दबाकर उसे अपनी नगरी किष्किन्धा पूरी को ले गए थे। रावण महाबाली बाली के बाहुपाश में फ़सा हुआ तिलमिला रहा था। अपनी नगरी में पहोच कर बाली ने उसे एक खिलौना समाज कर अपने परम तेजस्वी पुत्र अंगद को सौप दिया और अंगद भी आपने पिता द्वारा दिए गए खिलोने को बड़े ही चाव से खिलौना समज कर उसके साथ खेलने लगा।

अंगद रावण को खिलौना समज कर उसे एक मजबूत रस्सी से बांध कर उसे पुरे नगर में इधर उधर घुमाने लगे जिससे रावन को अतिशय कष्ट का सामना करना पड़ा और उन्हें बहोत दुःख और दर्द की पीड़ा होने लगी। दर्द से व्याकुल हो उठे रावन ने एक दिन आपने पितामह ऋषि पुलस्त्यजी का आवाहन किया। अपने पुत्र का आवाहन पाते ही वो रावन का मनोमन स्मरण करने लगे और देखा की वो बड़ी दयनीय स्थिति में किसी वृक्ष के साथ बंधा हुआ है। रावन की ऐसी दुर्दशा देख महर्षि पुलत्स्यजी गहन विचार में पड़ गए की आखिरकार पुत्र रावन की इस दशा का कारन क्या है? कुछ क्षण पश्चात उन्हें ये ज्ञात हो गया की जब भी कोई अहंकार के मद में आके कोई अनिष्ट कार्य करता है फिर वो देव हो दानव हो या फिर मनुष्य सभी की दशा यही होती है। अपनी पुत्र की ये दशा का विवरण पाते ही वो तुरंत रावन के पास आ पहुंचे और कहा –

पुलस्त्यजी – “बोलो पुत्र रावन, मुझे क्यों याद किया है तुमने?”
रावन – “पितामह, मैं आपको मेरी दशा देख कर यह पता चल ही गया होगा की मेने आपको क्यों याद किया हुआ है। मेरी रक्षा करे है पितामह, इस नगरी के नगवासी मुझे अत्यंत कष्ट दे रहे है और मुझे धिक्कार रहे है।”

रावण की करुण वाणी सुन महर्षि पुलत्स्य बोले – “पुत्र तुम डरो नहीं, तुम इस बंधन से जल्द ही मुक्त हो जाओगे। इसके लिए तुम्हे परम पूज्य श्री गणेश जी का विघ्नविनाशक व्रत करना होगा। पूर्व काल में जब वृत्रासुर के वध से छुटकारा पाने के लिए इन्द्रदेव ने भी इसी व्रत का अनुष्ठान किया था। मुझे भी यही लगता है की अब भगवान गणेश जी ही तुम्हे इस विघ्न से छुटकारा दिला सकते है।”

अपना वचन सुना कर वो वह अंतर्ध्यान हो गए। अब आपने पिता के वचनों अनुसार रावन ने श्री गणेश जी की आराधना करनी शुरू कर दी और बड़े ही श्रद्धाभाव से पौष माह में आने वाली गणेश चतुर्थी का व्रत किया, जिसके पूण्य फल स्वरुप वो बाली के इस बंधन से मुक्त हो गया और पुनः अपने राज्य को प्राप्त किया।

मान्यता अनुसार जो कोई श्री गणेश उपासक पौष माह के कृष्ण पक्ष को आनेवाली चतुर्थी (Pausha Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत का पुरे भक्तिभाव से अनुष्ठान करता है वो अपने जीवन में विकट से विकट परिस्थिति को भी सहजता पूर्ण पार कर लेता है।

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