पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Parshva / Parivartani Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी 2023 कब है? (Parshva / Parivartani Ekadashi kab hai?)

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 25 / 26 सितम्बर 2023, सोमवार / मंगलवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 26 सितम्बर 2023 दोपहर 1.40 मिनट से दोपहर 4.04 मिनट तक

पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी तिथि (Parshva / Parivartani Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 25 सितम्बर 2023 सोमवार सुबह 7.55 मिनट से
समाप्ति – 26 सितम्बर 2023 मंगलवार सुबह 5.00 मिनट तक

Parivartani Ekadashi

पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी का महात्मय (Parshva / Parivartani Ekadashi Ka Mahatmay)

भगवान श्री हरि के श्री मुख से अजा एकादशी का महत्व और कथा का श्रवण कर सभी पांडव कृतार्थ हो गए। अभी धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में जानने की इच्छा जताई और कहा –

युधिष्ठिर – “हे केशव..!!! आपके श्री मुख से भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली अजा एकादशी की कथा और महात्मय सुन हम तृप्त हो गए। हे प्रभु अभी हम भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी का महात्मय सुनना चाहते है। इस एकादशी का क्या नाम है? इस एकादशी का क्या विधिविधान है? इस एकादशी व्रत से किस पुण्यफल की प्राप्ति होती है?”

धर्मराज के वचन सुन भगवान श्रीकृष्ण बोले –

श्रीकृष्ण – “हे धर्मराज, तुमने बड़ा ही उत्तम विचार प्रगट किया है। अतः में तुम्हें इस कष्टदाई संसार में पुण्य, मोक्ष और स्वर्ग को प्रदान करनेवाली और सभी पापो का नाश करनेवाली ऐसी वामन एकादशी का महात्म्य सुनाने जा रहा हु इसे ध्यानपूर्वक सुनना।”

भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी को कई नामों से जाना जाता है, इस एकादशी को पद्म एकादशी, जयंती एकादशी, परिवर्तिनी एकादिशी, जल झूलनी एकादशी और वामन एकादशी के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीलोक में पापियों के पाप का नाश करने में इस से बढ़कर कोई और व्रत नहीं है। इस पद्म एकादशी के दिन जो भी मनुष्य मेरे वामन स्वरूप की पूजा करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते है और उसकी सभी मनोकामनाएं सिद्ध हो जाती है। इस एकादशी के पर्व पर जो भी मनुष्य यज्ञ का अनुष्ठान करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है। जो भी मनुष्य अपने जीवनकाल में मोक्ष की मनोकामना रखता है उसे इस एकादशी का व्रत निश्चितरूप से करना चाहिए।

इस एकादशी की महिमा अपार है। जो भी मनुष्य अपनी पूर्ण श्रद्धा के साथ भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी का व्रत और पूजन करता है उसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों के पूजन का फ़ल प्राप्त होता है। अतः इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। एक राजन, इस एकादशी के दिन भगवान श्री हरि करवट लेते है इसी लिए इस एकादशी को “परिवर्तिनी एकादशी” भी कहा जाता है।

भगवान श्री हरि के श्री मुख से निकले वचन सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर बोले –

युधिष्ठिर – “हे कृपानिधान, मुझे अतिशियोक्ति हों रही है आप किस प्रकार सोते और करवट लेते है? और आपने अपने वामन स्वरूप में राजा बलि को किस प्रकार बंधा था क्या लीला रची थी में वह जानने को अति उत्सुक हूं। आप जब शयन अवस्था में हो तो मनुष्य का क्या कर्तव्य है वह मुझे आप विस्तार पूर्वक बताएं।”

पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Parshva / Parivartani Ekadashi Vrat Katha)

धर्मराज युधिष्ठिर के वचन सुन प्रभु श्री कृष्ण बोले –

श्रीकृष्ण – “है राजन, आपके प्रश्नों के उत्तर में मैं आपको सब पापों का नाश करने वाली पतितपावनी परिवर्तिनी एकादशी(Parivartani Ekadashi) की कथा सुनाने जा रहा हूं अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना।

त्रेतायुग में दैत्य राज बली का राज हुआ करता था। वह मेरा परम भक्त था। वह विविध वेद मंत्रों द्वारा मेरा पूजन किया करता था, वह नित्य ब्राह्मणों का पूजन और यज्ञ अनुष्ठान किया करता था। किंतु वह देवराज इंद्र का परम शत्रु था, इसी कारणवश उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया था।

स्वर्गलोक से अपना आधिपत्य खो लेने से सभी देवतागण बहोत चिंतित थे। वो सभी एक जगा एकत्रित हो कर मेरे पास अपनी याचना ले कर गए। उसे समय में शयन मुद्रा में लीन था। तब उन्होंने मेरी स्तुति का पठन कर मुझे प्रसन्न किया और मेरे जागृत होने पर अपनी संपूर्ण व्यथा सुनाई।

राजा बलि मेरा परम भक्त था और इसी कारणवश में उसे दंडित नहीं करना चाहता था। अतः मेने मेरा चोथा स्वरूप वामनरूप धरा और राजा बलि को जीत लिया।

भगवान श्री विष्णु द्वारा उनके वामन रूप धर कर राजा बलि को जीतने की बात सुन राजा युधिष्ठिर बड़े ही उत्सुक हो गए और कहा –

युधिष्ठिर – “हे केशव..!! आपने वामनरूप धर किस प्रकार राजा बलि को जीता? आप हमे इसकी संपूर्ण कथा सुनने की कृपा करे।”

श्रीकृष्ण – “अवश्य क्यों नहीं…!!! मेने अपना वामनरूप धर राजा बलि के क्षेत्र में एक ब्रह्मिण याचक के वेश में आ पहुंचा। मेरा स्वरूप इतना मोहक था की सभी लोग मुझे कुछ क्षण के लिए देखते ही रह गए। राजा बलि उस समय अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे उनके संग असुर गुरु शुक्राचार्य भी उपस्थित थे। में एक याचक के रूप में उनकी यज्ञ स्थली पर आ पहुंचा और भिक्षा की याचना करने लगा। मेरा शरीर एक किशोर युवक को भांति था। राजा बलि एक सच्चा दानवीर था अपने द्वार पर आए किसी भी याचक को खाली हाथ कभी नहीं जाने देता था। मुझे देख वह एक स्मित के साथ अपनी यज्ञ स्थली से खड़ा हो कर मेरे सम्मुख आ गया और कहा –

बली – “हे किशोर ब्रह्मिण, तुम्हारी छवि अदभुत जान पड़ती है। में महाबली राक्षस राज बली हूं और मैंने स्वर्गलोक पर भी अपना आधिपत्य स्थापित किया है तीनों लोक में मुझ जैसा बलशाली राजा तुम्हें ढूंढने पर भी प्राप्त नहीं होगा। में आज विश्व विजय अश्वमेध यज्ञ करने जा रहा हूं आज तुम बड़े ही शुभ अवसर पर आए हो आज तुम्हारे ख़ाली भंडार स्वर्ण, मानेक, मोतियों से भर जायेंगे। तुम मेरे दरबार में एक भिक्षुक की भांति आए हो बोलो क्या मांगना चाहते हो?? क्या चाहिए तुम्हे??”

किशोर – “हे महाबली राजन, आप सर्व शक्तिमान है। आप के राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध है। में एक साधारण ब्राह्मण हूं। कहा जाता है एक भिक्षुक को उतनी ही भिक्षा मंगानी चाहिए जितना उसमे सामर्थ्य हो। अतः मुझे आप मेरे तीन पग भूमि प्रदान करें हे दानवीर।”

ब्राह्मण कुमार की बात सुन राजा बलि जोर जोर से हंसने लगे और अपने अहंकार में चूर हो कर बोले –

बली – “बस तीन पग भूमि…!! तुम तो मेने सोचा था उससे अधिक भोले निकले हे ब्राह्मण कुमार। बस तीन पग भूमि… हा हा हा..!!”

राजा बली ने तुरंत आपने हाथ में जल ले कर उच्च स्वर में यह संकल्प कर लिया –

बली – “में स्वर्गाधिपति.. महाबली बली.. आज तीनों लोको के सभी देवताओं को साक्षी मान कर इस भिक्षुक ब्राह्मण कुमार को तीन पग भूमि देने का संकल्प करता हूं।”

तीनों लोको में उनके संकल्प की ध्वनि गूंजने लगीं। किंतु कुछ क्षण बाद एक आकाशवाणी हुई..!!

हे मूर्ख बली…!! अपने अहंकार में चूर हो कर तूने अपना आज सर्वस्व लूटा दिया है। तुम्हारे द्वार पर खड़े यह ब्राह्मण कुमार और कोई नहीं परम ब्रह्म परमात्मा श्री विष्णु है। तुमने इन्हे तीन पग भूमि दे कर बहोत बड़ी भूल की है। आकाश में हुई आकाशवाणी से सभी उपस्थित दैत्यगण चौंक गए। कुछ ही क्षण में भगवान वामन अवतार ने अपना शरीर एक विशालकाय शीला के रूप में विस्तृत कर दिया। उनका स्वरूप इतना विशाल था की उन्होंने  अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी और दूसरे पैर से संपूर्ण स्वर्गलोक नाप लिया था। चारो और हाहाकार मच गया था। राजा बलि भगवान श्री हरि के इस स्वरूप को देख उनके समक्ष नतमस्तक हो गए और अपने अहंकार रूपी बर्ताव के लिए उनसे क्षमा याचना की। राजा बलि के इस वर्तन से उपस्थित असुरगुरु शुक्राचार्य राजा बलि से क्रोधित हो कर कहा –

शुक्राचार्य – “हे मूर्ख बली..!! अपने परम शत्रु ऐसे छली और कपटी विष्णु से क्षमा याचना कर रहे हो। तुम मूर्ख हो.. और तुम जैसा मूर्ख शिष्य मेरे कृपा के योग्य नहीं है अतः में इसी क्षण तुम्हारा परित्याग करता हूं।”

शुक्राचार्य अपना वचन सुना कर वह से चले गए। और तब प्रभु श्री वामन अवतार विष्णु ने अपने उच्च स्वर में कहा – “हे दानवीर राजा बलि, मेने अपने दोनो पैरो से पृथ्वी और स्वर्गलोक दोनो को नाप लिया है अतः अब तुम इनके अधिपति नहीं रहे किंतु अभी भी मुझे एक पैर भूमि देना शेष रह गया है। सो है दानवीर कहो यह एक पैर में कहा रखू।”

भगवान वामन अवतार के वचन सुन राजा बलि विचलित हो गए क्यों की उनके आधिपत्य में जितनी भी भूमि थी वो तो प्रभु पहले से ही ले चुके थे कुछ क्षण सोच कर राजा बलि बोले।

राजा बलि – “हे प्रभु, आप की इस लीला से में पूर्ण रूप से अहंकार विहीन हो गया हूं। मेने अपना सबकुछ आपको समर्पित कर दिया है और अब में स्वयं को आपको समर्पित करने जा रहा हूं। अतः आप अपना तीसरा पैर मेरे शीश पर रखने की कृपा करें है प्रभु।”

राजा बलि के वचन सुन वामन अवतार श्री हरि अति प्रसन्न हुए और कहा – “तथास्तु..!!” और अपना तीसरा पैर राजा बली के शीश पर रख दिया और उसीके साथ ही राजा बलि अपने समस्त राज्य समेत पाताल लोक में चले गए। राजा बलि की समर्पण भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान वामन अवतार ने उन्हें कलयुग के अंत तक पाताललोक का अधिपति बनने का वर दिया। और कहा – “हे दानवीर बली, में तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं और में तुम्हे यह वर देता हु की में तुम्हारे सदैव निकट रहूंगा।” विरोचन पुत्र बली ने भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के दिन आपने आश्रम में मेरी मूर्ति की स्थापना किया थीं। और इसी प्रकार दूसरी की स्थापना क्षीरसागर में शेषनाग के पष्ट पर हुई थी।

हे राजन..!! इस एकादशी(Parivartani Ekadashi) के पर्व पर भगवान श्री हरि विष्णु शयन करते हुए करवट लेते है, अतः तीनों लोको के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन किया जाता है। इस दिन तांबा, चावल, चांदी और दही का दान देना अति उत्तम माना जाता है। रात्रि जागरण करने से भगवान श्री हरि की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

जो भी मनुष्य पूरी विधिविधान से इस एकादशी व्रत का अनुष्ठान करते है वह सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा की भांति प्रकाशन मान होते है और उन्हें यश की प्राप्ति होती है। इस एकादशी(Parivartani Ekadashi) व्रत का पठन एवं श्रवण करने वाले मनुष्य को सहस्त्र अश्वमेध यज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है।

और पढ़े –

Leave a Comment