माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सम्पूर्ण – Magh Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Sampurn In Hindi

माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Magh Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)

माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 29 जनवरी 2024, सोमवार को है।

माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Magh Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)

माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 29 जनवरी 2024, सोमवार को रात्रि के 09 बजकर 10 मिनट (09:10 PM) पर है।

माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Magh Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)

प्रारंभ – 29 जनवरी 2024 सोमवार को सुबह 6 बजकर 10 मिनट (06:10 AM) से
समाप्त – 30 जनवरी 2024 मंगलवार को सुबह 08 बजकर 54 मिनट (08:54 AM) तक

Magh Sankashti Ganesh Chaturthi

माघ संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Magh Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)

माह या माघ महीने के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को माघ संकट चतुर्थी (Magh Sankashti Ganesh Chaturthi) या तिल कूट चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस चतुर्थी पर भगवान गणेश की आराधना और व्रत अनुष्ठान करने से संतान प्राप्ति और संतान से जुडी सभी समस्याओ का नाश होता है और भगवन श्री गणेश की असीम कृपा प्राप्त होती है। तों आइये हम इस तिल कूट चाटर्थी की कथा का पठन करें।

तिलकुल चतुर्थी व्रत कथा –

एक समय की बात है एक नगर में जेठानी और देवरानी रहा करते थे। जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब। देवरानी भगवान गणेश की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़िया काट कर नगर में बेच कर अपना घर गुजरान चला रहा था और अक्सर बीमार ही रहता था। वही देवरानी जेठानी के घर काम करने जाया करती थी। वो उसके घर झाड़ू पोछा इत्यादि काम किया करती थी और बदले में जेठानी उसे बचा हुआ खाना और पुराने कपडे दिया करती थी। बस इस तरह देवरानी का घर चल रहा था।

इसी बिच माघ महीने की तिलकुट्टा चौथ का समय आ गया। देवरानी ने व्रत किया बाजार से पाँच आने का गुड़ और तिल लाके उसका तिलकुट्टा बनाया और छिंके में रख दिया। भगवान श्री गणेश की तिल चौथ की कथा/कहानी सुनी और सोचा की अब चाँद निकलने पर सबसे पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कोई आहार करुँगी।

कथा का श्रवण कर वो जेठानी के घर चली गई। वहां खाना बना कर जेठानी के बच्चों को कहने लगी। बच्चों चलो आओ और खाना खालो। बच्चे बोले नहीं आज माँ ने सूबे से कुछ नहीं खाया है जब तक वो नहीं खायेगी हम भी नहीं खाएंगे। बच्चे जिद करने लगे थे। फिर उसने जेठ जी से कहा तों उन्होंने ने भी कह दिया मैं अकेला कैसे खाऊ अब तों सब साथ में ही खाना खाएंगे जब चाँद निकलेगा। और तब जेठानी भी वहां आ गई और कहने लगी आज तों किसीने भी खाना नहीं खाया है तों में तुम्हे खाना कैसे दे दू। एक काम कर तू कल सूबे आके बचा हुआ खाना ले के जाना।

वहां देवरानी के घर सभी आस लगाये बैठे थे की आज तों त्यौहार है आज तों कुछ अच्छे पकवान खाने को मिलेंगे। देवरानी का पति और उसके बच्चे बड़ी अतुरता से देवरानी के आने का इंतज़ार करने लगे। अब देवरानी आई और उसने सारी बात बताई तब बच्चे बहोत निराश हुए और कहते हुए रोने लगे की आज तों पकवान तों दूर हमें रोटी तक खाने को नहीं मिलने वाली। वही देवरानी का पति भी उस पर गुस्सा हो गया और कहने लगा की – “इतना काम करने पर भी तुम्हे वो दो वक्त की रोटी भी नहीं दे सकते तों काम क्यों करती हो।” और गुस्से में आके उसने अपनी पत्नी को कपडे धोने के धोवाने से मारा। धोवाना हाथ से छूट कर गिर गया तों पाटे से मारा। वह बिचारी बिना कुछ कहे रोते रोते भगवान गणेश जी का नाम लेते हुए बस जल ग्रहण कर के सो गई।

उस रात भगवान गणेश उसके सपने में आये और बोले – “धोवने मारी, पाटे मारी, अब सो रही है या जाग रही है?”

रोते रोते वो बोली – “कुछ सो रही हुँ और कुछ जाग रही हुँ।”

फिर गणेश जी ने कहा – “मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दे।”

देवरानी बोली – “में क्या दू..!! मेरे घर में तों अन्न का एक दाना भी नहीं है। जेठानी मुझे रोज बचा हुआ खाना देती थी आज तों वो भी नहीं है। मेरे घर में सब भूखे सोये हुए है। बस उस छिंके में तिलकुट्टा पड़ा हुआ है वही है। जाओ और खा लो।”

तिलकुट्टा खाने के बाद गणेश जी फिर बोले – “धोवने मारी, पाटे मेरी अब मुझे नीमटाई लगी है, कहा नीमटे..!!”

वाह बोली – “ये रहा मेरा घर आपकी जहा इच्छा हो वहां नीमट लो..!!!”

तब गणेश जी छोटे बच्चे की आवाज़ में बोले – “अब कहा पॉछु..!!!”

नींद में मग्न देवरानी को अब गुस्सा आने लगा था की कब से ये मुझे तंग किये जा रहे है और उसने कहा – “यहाँ मेरे सिर पर पॉछो, और कहा पोछोगे..!!”

अब सूबा हुई और देवारानी और सभी देख कर चौक गये। उन्होंने देखा की सारा घर हिरे मोतियों से जगमगा रहा है। गणेश जी जहा अपना हाथ पोंछ कर गये थे वो हिरे की टिक्की और बिंदी से जगमगा रहा था। देवरानी उस दिन जेठानी के घर काम करने नहीं गई थी। बड़ी देर हो गई लेकिन देवरानी का पत्ता ना पा कर जेठानी ने अपने बच्चो को देवरानी को लाने भेजा। जेठानी ने सोचा की कल शायद मेने देवरानी को खाना नहीं दिया इसलिए वो बुरा मान गई है। बच्चे देवरानी के घर पहुचे और आवाज़ देने लगे – “चाची चलो, माँ ने बुलाया है घर का सारा काम पड़ा है।” अब देवरानी ने कहा – “अब इसकी कोई जरूरत नहीं है, हमारे घर में सब भरपूर है गणेश जी की कृपा से..!!”

बच्चो ने घर जा कर सारा वृतांत अपनी माँ को सुनाया और बोले – “चाची का घर तों हिरे मोतियों से जगमगा रहा था।”

बच्चो की बात सुनकर जेठानी दौड़ी दौड़ी देवरानी के घर जा पहुंची और सब देख कर चौक गई और बड़े अचरज से पूछने लगी – “अरी, ये तों बता ये सब हुआ कैसे..!!” देवरानी ने भोले मन से उस रात वापस घर आके जो कुछ भी हुआ वो हूबहू कह डाला। लालच की मारी जेठानी अपने घर आई और अपने पति से कहने लगी – “सुनो, मुझे इस कपडे धोने के धोवने और पाटे से मारो..!!” उसका पति बोला – “हे भाग्यवान..!! तुम्हारा दिमाग़ तों ठिकाने पर है। ये क्या बोल रही हो तुम..!! मेने आज तक तुम पर हाथ भी उठाया है कभी। में तुम्हे इस धोवने और पाटे से कैसे मार सकता हुँ?”

वो अपने पति की एक भी ना सुनी और जिद करने लगी। मजबूरन उसके पति को उसे पीटना पड़ा।

उसने रात को सोने से पहले ढेर सारा घी डाल कर चूरमा बनाया और छिंके में रख कर सो गई और विनायक गणेश जी का ध्यान करने लगी। उस रात भगवान गणेश जी उसके स्वप्न में आये और कहने लगे – “मुझे भूख लगी है में क्या खाऊ..!!” जेठानी बड़े अहंकार से कहने लगी – “हे गणेश जी महाराज, मेरी देवरानी ने तों आपको सूखे तिल का कुट्टा खिलाया था। मेने तों झरते घी का चूरमा बना कर छिंके में रखा हुआ है यही नहीं साथ में मेने फल और मेवे भी रखे हुए है। आपको जो मन करें वो खाओ..!!”

अब बालरूप गणेश जी ने कहा – “अब में निपटू कहा..!!!”

तब जेठानी बोली – “मेरी देवरानी के घर तों टूटी फूटी झोपड़ी थी, मेरा तों ये कंचन महल है। आपको जंहा निपटना है वहां निपटो..!!”

फिर गणेश जी ने कहा – “अब पोछू कहा..!!!”

तब जेठानी बोली – “मेरे ललाट पर एक बड़ी सी बिंदी लगा कर पोंछ लो..!!”

घन की लालची जेठानी अब पूरी रात सुबह के इंतेज़ार में खोई रही। उसे लग रहा था मेरा भी घर हीरे मोतियों से भर जायेगा। अब वो सूबा जल्दी उठ गई और अपना घर देख कर फुट फुट कर रोने लगी। उसका घर हिरे जवारात से नहीं बल्कि गंदगी से भरा हुआ था। चारो तरफ गंदगी ही फैली हुई थी। उसके सिर पर हिरे की बिंदी की जगा गंदगी बिखरी हुई थी। पूरा घर बदबू मार रहा था। वो चक्कर खा के गिर गई और भगवान गणेश जी को कहने लगी – “हे गणेश महाराज जी, ये आपने क्या कर दिया..!!! मुजसे रूठें और उस निर्धन देवरानी पर टूटे..!!” अब जेठानी गुस्से में अपने घर की सफाई करने में झूट गई लेकिन वो जितना साफ करने की कोशिश करती घर उतना ही गन्दा हो रहा था। जब जेठानी के पति ने यह सब देखा तों वो भी उस पर गुस्सा हुआ और बोला – “लालची औरत, तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा..!!” और वो गुस्से में आके वहां से चले गये। अब जेठानी ने निराश हो कर चौथ गणेश जी से ही मदद की विनती करने लगी। गणेश जी वहां प्रगट हुए और कहने लगे – “अपनी गरीब देवरानी से तुझे जो जलन थी ये उसी का फल है। अब जब तू अपने घन मेसे आधा उसे सौप देगी तब जाके ये सब साफ होगा..!!”

अब लालची जेठानी ने अपना आधा घन देवरानी से बाँट दिया लेकिन उसके चूल्हे के निचे कीमती मोहरो की एक हांडी गाड़ी हुई थी, उसने सोचा इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है इसे में यही रहने देती हुँ और उसने वो हांडी नहीं बाँटी। अब वो फिर से गणेश जी से कहने लगी – “हे गणेश जी महाराज, अब ये सब अपना बिखराव समेटो..!!! अब गणेश जी बोले – “हे लालची औरत, अपने चूल्हे के निचे गाड़ी हुई हांडी से ले के ताक में रखी हुई दो सुई के भी दो हिस्से कर तब जाके यह माया में समेटूंगा।” अब जेठानी ने हार मन कर चूल्हे के निचे गाड़ी हुई हांडी और ताक में रखी दो सुई भी आधी बाँट दी। इस प्रकार गणेश जी ने अपने बाल स्वरुप में आके जेठानी को सबक सिखाया। हे गणेश जी महाराज, जैसे आपने देरानी पर अपनी कृपा की वैसे ही इस कथा को कहने वाले, सुनने वाले और हुंकारा भरने वाले सभी पर अपनी कृपा करना, किन्तु उस लालची जेठानी की तरह किसी और को सज़ा मत देना। बोलो श्री तिलकुट गणेश संकट चौथ की जय..!!!

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