कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)
कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 20 अक्टूबर 2024, शनिवार को है।
कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)
कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 20 अक्टूबर 2024, शनिवार को रात्रि के 08 बजकर 01 मिनट (08:01 PM) पर है।
कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)
प्रारंभ – 20 अक्टूबर 2024 शुक्रवार को सुबह 6 बजकर 46 मिनट (06:46 AM) से
समाप्त – 21 अक्टूबर 2024 शनिवार को सुबह 4 बजकर 16 मिनट (04:16 AM) तक
कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)
एक समय की बात है जब माता पार्वती ने महागणपति की उपासना की और उनसे प्रश्न पूछा की – “है लंबोदर, कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi) को गणेश के किस स्वरूप की पूजा अर्चना किस प्रकार करनी चाहिए??”
अपनी माता के मधुर वचन सुन महागणपति ने कहा कि – “कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi) को “संकटा” नाम से जाना जाता है। हर मनुष्य को इस दिन भगवान गणेश के “पिंग” स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। भगवान गणेश के “पिंग” स्वरूप का पूजन पूर्वोक्त रीति से करना अति शुभ माना गया है इस व्रत में व्रतधारक को एक ही बार भोजन करना चाहिए व्रत और पूजन के पूर्ण होने के पश्चात ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए और उन्हें उचित दक्षिणा देकर प्रसन्न करना चाहिए और स्वयं भी मौन धारण कर भोजन करना चाहिए।
हे देवी..! अब मैं आपको इस व्रत का महात्म्य बताने जा रहा हूं कृपया ध्यान पूर्वक श्रवण कीजिएगा। कार्तिक कृष्ण संकट चतुर्थी (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi) को घी और उड़द मिलाकर हवन मैं आहुति देनी चाहिए। ऐसा करने मात्र से मनुष्य को सर्व सिद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा एक समय की बाद है और वृतासुर नमक एक असुर हुआ करता था, जिसने त्रिभुवन पर अपना वर्चस्व स्थापित किया हुआ था और सभी देवों को परतंत्र कर दिया था। देवताओं को अपने-अपने गुरुओं से निष्कासित किया कर दिया था इस अवस्था में देवता यहां वहां मारे मारे घूम रहे थे एक समय की बात है सभी देवताओं ने इंद्र के नेतृत्व में एकत्रित होकर भगवान श्री हरि को अपनी व्यथा सुनाने समुद्रतट पर जा पहुंचे वहां भगवान श्री विष्णु चतुर्भुज शंख और गला धारण किए हुए शयन मुद्रा में लीन थे। सभी देवतागन अत्यंत दिन भाव से भगवान श्री हरी की प्रार्थना करने लगे, तभी भगवान विष्णु ध्यान मुक्त हुए और उन्होंने अपने सामने सभी देवतागण को पाया। सभी देवतागण भगवान श्री हरी ने चरणों में वंदन करते हुए अपनी पूरी व्यथा कहने लगे। तब भगवान विष्णु ने कहा – “वो दैत्य, समुद्रद्विप में बसने के कारण, निरापद होकर उच्छृंखल और बलशाली हो गया है। पितामह ब्रह्मा जी की तपस्या कर के किसी भी देव से ना मरने का उसने वर प्राप्त किया हुआ है। अतः इस परिस्थिति में आपको महर्षि अगस्त्य के पास जा कर उनकी आराधना करनी चाहिए। वो अपने तपोबल से पुरे समुद्र को पिने की क्षमता रखते है। अतः जब वो पुरे समुद्र को पी जायेंगे तब दैत्यगन अपने पिता के पास चले जायेंगे। तब आप सब सुखपूर्वक स्वर्ग में निवास कर सकेंगे। इस प्रकार आप सबका कल्याण महर्षि अगस्त्य की सहायता से ही पूर्ण होगा।
भगवान श्री हरी विष्णु की बात सुन कर सभी देवगण निर्विलंब महर्षि अगस्त्य के आश्रम जा पहुचे और उनकी स्तुति करने लगे। स्तुति से प्रसन हो कर महर्षि अगत्स्य ने उनको दर्शन दिए और पूरी बात सुनी और कहा – “है देवगण, आपको अब डरने की कोई आवश्कता नहीं है, आपके सभी मनोरथ निश्चय ही पूर्ण होंगे।”
महर्षि से आश्वस्त हो के सभी देवतागण अपने अपने लोक की ओर प्रस्थान हो गए। इधर महर्षि को चिंता होने लगी की इस लाख योजन के विशाल काय समुद्र का पान में कैसे कर पाउँगा? तब उन्होंने भगवान श्री गणेश का स्मरण किया और उनकी कृपा प्राप्त करके सर्व विध्न विनाशक संकट चतुर्थी (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi) का व्रत पूर्ण श्रद्धाभाव से विधि पूर्वक संपन्न किया। तिन माह तक व्रत करने के बाद महर्षि से भगवान श्री गणेश प्रसन्न हुए। इसी व्रत के प्रभाव से महर्षि अगस्त्य जी ने विशाल के समुद्र को सहज ही पान कर के सुखा डाला था।
इसी व्रत के प्रभाव से धनुर्धर अर्जुन ने निवात-कवच आदि सम्पूर्ण दैत्यों को पराजीत कर दिया था।
भगवान श्री गणेश की वाणी सुन माता पार्वती अत्यंत हर्षित और प्रसन्न हुई और बोली – “मेरा पुत्र विश्ववंध और सर्व सिद्धियों का प्रदाता है।”
श्री कृष्ण कहते है – “हे महाराज युधिष्ठिर ! आप भी इस चतुर्थी (Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi) का व्रत पूर्ण श्रद्धाभाव से कीजिये। इसके प्रभाव से आप शीघ्र ही आपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त कर पाएंगे और अपना राज्य पुनः पा सकेंगे।’
भगवान श्री कृष्ण के आदेशानुसार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्री गणेश जी व्रत पूर्ण श्रद्धा से संपन्न किया। इस व्रत के प्रभाव से उन्होंने अपने सभी शत्रुओ पर विजय प्राप्त की और एक अखंड राज्य की स्थापना की। इस व्रत की केवल कथा का श्रवण करने मात्र से ही हजारो अश्वमेध और सेकंडो वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है साथ ही साथ पुत्र, पौत्रादि की वृद्धि भी अवश्य होती है।
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