कामिका एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Kamika Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) 2023 कब है?

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 13 जुलाई 2023, गुरूवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 14 जून 2023 सुबह 6.00 मिनट से सुबह 8.41 मिनट तक

कामिका एकादशी तिथि (Kamika Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 12 जुलाई 2023 बुधवार शाम 5.59 मिनट से
समाप्ति – 13 जुलाई 2023 गुरूवार शाम 6.24 मिनट तक

Kamika Ekadashi

कामिका एकादशी महात्मय (Kamika Ekadashi Mahatmay)

श्रीमद पद्म पुराण के अनुसार पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर ने जब श्रीहरि के श्री मुख से देवशयनी एकादशी की कथा सुनी वह तृप्त हो गए और कहने लगे –

युधिष्ठिर – “है मधुसूदन..!!! आपके श्री मुख से देवशयनी एकादशी की कथा सुन में तृप्त हो गया हूं अब में आपके श्री मुख से श्रावण माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी की कथा सुनने लालायित हो गया हूँ। इस एकादशी का क्या नाम है? इस एकादशी की पूजन विधि? और पुण्यफ़ल प्राप्ति कैसे होती है? आप मुजे विस्तार में बताने की कृपा करें।”

श्रीकृष्ण – “है धर्मराज, श्रावण माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी की “कामिका एकादशी”(Kamika Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। अभी में तुम्हे इस पतितपावन एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हूँ अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना। एक समय इस एकादशी की पावन कथा सुनने के मन देवर्षि नारदजी को भी हुआ था और उन्हें यह कथा स्वयं भीष्म पितामह ने सुनाई थी।

एक बार जब नारदजी पृथ्विलोक पर भ्रमण करते हुए हस्तिनापुर नगरी में आये। वँहा उन्होंने गंगापुत्र भीष्म से भेंट की। गंगापुत्र भीष्म से भेंट कर उनकी इच्छा प्रभु श्रीहरि की पावन एकादशी की कथा सुनने का हुआ। उन्होंने गंगापुत्र भीष्म से अपनी इच्छा व्यक्त की और भीष्म पितामह ने इच्छा का स्वीकार करते हुए कहा –

भीष्म – “हे देवर्षि, आपने बहुत ही सुंदर इच्छा प्रगट की है। प्रभु श्रीहरि की कथा सुनना एवं सुनाना बड़े ही भाग्य का अवसर होता है। अतः है देवर्षि में आपको श्रवण माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली कामिका एकादशी  का महत्व और कथा सुनाने जा रहा हूँ उसे ध्यानपूर्वक सुनयेगा।”

इस व्रत में स्वयं गदा, चक्र, पद्म धारी श्री विष्णु की पूजा की जाती है। इस पावन एकादशी की कथा के श्रवण मात्रा से वाजपेयी यज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है। इस व्रत में जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धाभाव से भगवान श्री विष्णु का पूजन करता है उसे गंगा स्नान से भी अधिक पुण्यफ़ल की प्राप्ति होती है।

भगवान श्री विष्णु की श्रावण माह में श्रद्धापूर्वक की जानेवाली पूजा का फ़ल वन, समुद्र सहित पृथ्वी को दान करके मिलनेवाले फ़ल से भी अधिक होता है।

चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के अवसर पर केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो पुण्यफ़ल कि प्राप्ति होती है उसी फ़ल की प्राप्ति श्री हरि की इस कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) के दिन भगवान श्री हरि के पूजन मात्र से हो जाती है।

संसार में सबसे अधिक पुण्यफ़ल की प्राप्ति भगवान श्री हरि के श्रद्धापूर्वक पूजन करने से ही प्राप्त होती है अतः श्रावण माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली कामिका एकादशी का व्रत हर मनुष्य को श्रद्धापूर्वक करना चाहिये।

व्यतिपात में जो फ़ल गंडकी नदी में स्नान करने से प्राप्त होती है वही फ़ल श्रावण माह में भगवान श्री हरि की पूजा से मिलता है।

जो भी मनुष्य श्रावण माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) का व्रत और भगवान श्री विष्णु का श्रद्धापूर्वक पूजन करता है उन्हें सभी देव, किन्नर, पितृ और नाग आदि के पूजाफल के बराबर होता है। अतः सभी मनुष्य जो पाप से डरते है उन्हें इस व्रत का विधि विधान पूर्वक अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये।

कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) का व्रत सभी पापों को सहज नष्ट कर देता है, संसार में इससे अधिक पापों को नष्ट करने वाला दूजा और कोई व्रत नहीं है।

संसाररूपी सागर और पापों में फंसे सभी व्यक्तियों को कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) का यह व्रत अचूक करना चाहिये।

जो कोई भी व्यक्ति अपनी पूर्ण श्रद्धा से तुलसीदल का प्रयोग भगवान श्री विष्णु की पूजा अर्चना करने में करता है वह मनुष्य इस संसाररूपी सागर में रहते हुए भी इस प्रकार अलग रहता है जिस प्रकार से तालाब में एक कमल का पुष्प पानी से अलग रहता है।

हे देवर्षी..!! स्वयं भगवान श्री हरि के श्री मुख से यह कहा गया है कि जो भी मनुष्य अपनी अध्यात्म विद्या से जो भी फ़ल को प्राप्त करता है उससे कहीं अधिक फ़ल कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) के व्रत करने से मिल जाता हैं। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को कभी यमराज के दर्शन नहीं हो पाते और उन्हें नर्क के कष्ट भी नहीं भोगने पड़ते। वह स्वतः ही स्वर्ग का अधिकारी बन जाता है।
आभूषण जड़ित बछड़ा सहित गौदान करने से जो फ़ल प्राप्त होता है वहीं फ़ल कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) के व्रत के माध्यम से प्राप्त हो जाता है।

जो भी मनुष्य तुलसीदल से भगवान श्री हरि का पूजन करते है उससे प्राप्त होता फ़ल एक बार स्वर्ण और चार बार चांदी के दान करने के बराबर होता है। इससे यहीं तारण निकलता है कि प्रभु रत्न, मानेक, स्वर्ण, चांदी से अतिरिक्त तुलसीदल से अधिक प्रसन्न होते है।

जो कोई भी मनुष्य तुलसीदल से प्रभु श्री हरि विष्णु का पूजन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते है। अतः हे देवर्षि में पापनाशनी एवं भगवान के सबसे निकट ऐसी श्री तुलसीजी को शाष्टांग नमन करता हूं।

कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) की महिमा अनंत है, जो कोई मनुष्य कामिका एकादशी का व्रत करते हुए रात्रि जागरण करके दिन दान करते है उनके पुण्यों को लिखने में स्वयं चित्रगुप्त भी असमर्थ रहते है। एकादशी व्रत के दिन जो भी मनुष्य भगवान के समक्ष दीप प्रज्वलित करते है उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते है।

एकादशी व्रत के दिन जो भी मनुष्य तिल या घी का दीपक जलाते है उन्हें सूर्यलोक में सहस्त्रों दीपक का प्रकाश प्राप्त होता है।

कामिका एकादशी व्रत कथा (Kamika Ekadashi Vrat Katha)

एक नगर में एक वीर क्षत्रिय रहता था। एक दिन की बात है किसी अगम्य कारणवश उसकी हाथापाई एक ब्राह्मिण कुमार के साथ हो गई और परिणाम स्वरूप ब्राह्मिण कुमार की मृत्यु हो गई। अपने हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए ब्राह्मिण कुमार की अंतिम क्रिया उस क्षत्रिय ने करनी चाही किंतु वँहा उपस्थित विद्वान पंडितो में उस क्षत्रिय को ऐसा करने से रोक दिया और कहाँ तुम पर ब्राह्मण हत्या का पाप है इस लिए तुम इस ब्राह्मिण कुमार की अंतिम क्रिया में शामिल नहीं हो सकते अतः तुम्हे सबसे पहले अपने ब्रह्म हत्या के पाप का निवारण करना होगा तभी जा कर हम तुम्हारे घर आकर भोजन कर पाएंगे।

ब्रह्मीणो की इस प्रतिक्रिया पर क्षत्रिय ने पूछा –

क्षत्रिय – “हे ब्राह्मिण देवता आपकी बात सर्वथा उचित है। मुजसे जो आवेश में आकर पाप हुआ है वह निश्चित ही क्षमा योग्य नहीं है किंतु में प्राश्चित की अग्नि में जल रहा हूं। मेरा आपसे निवेदन है कि आप मुजे इस अकारण हुए पाप से मुक्ति दिलाने का कोई उपाय बताये।

ब्रह्मीणो – “हे क्षत्रिय कुमार, हम तुम्हारे दीन वचन से प्रभावित हुए है। अतः हम तुम्हे इस ब्रह्म हत्या जैसे महा पाप से मुक्ति दिलाने का उपाय बता रहे है अतः तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनना। श्रावण माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी के दिन भगवान श्री हरि का व्रत रख कर उनका पूजन करके ब्रह्मीणो को सात्विक भोजन करवा कर उन्हें उचित दक्षिणा से संतुष्ट कर उनका आशीष प्राप्त करने से ब्रह्म हत्या जैसे इस महापाप से तुम्हें मुक्ति मिल सकती है।”

ब्रह्मीणो के बताये गये मार्ग से अति प्रसन्न हो कर क्षत्रिय कुमार ने बड़े ही श्रद्धाभाव से भगवान श्री हरि का व्रत किया और ब्रह्मीणो को भोजन करवा कर उचित दक्षिणा से संतुष्ट करते हुए आशीष भी प्राप्त किया। एकादशी की रात्रि को भगवान श्री हरि का ध्यान करते हुए उसे भगवान श्री हरि विष्णु के दर्शन प्राप्त हुए और भगवान ने उसे आशीष प्रदान करते हुए कहा – “हे वत्स, में तुम्हारी भक्ति और एकादशी तिथि पर किए गये मेरे पूजन और व्रत से अति प्रसन्न हूँ अतः में तुम्हें इस ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त करता हु।

यह कामिका एकादशी(Kamika Ekadashi) का व्रत सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलानेवाला अमोघ व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य ब्रह्म हत्या जैसे महापाप से भी मुक्ति प्राप्त कर सकता है और अपने अंत समय में भगवान श्री हरि के धाम चला जाता है। इस कामिका एकादशी के व्रत कथा का श्रवण या पाठ करने मात्र से मनुष्य को स्वर्ग लोक की प्राप्ति है।

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