ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)
ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 26 मई 2024, रविवार को है।
ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)
ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 26 मई 2024, रविवार को रात्रि के 10 बजकर 16 मिनट पर है।
ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)
प्रारंभ – 26 मई 2024 रविवार को शाम 6 बजकर 06 मिनट से
समाप्त – 27 मई 2024 सोमवार को शाम 4 बजकर 53 मिनट तक
ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी महात्मय (Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi Mahatmay)
एक दीन माता पार्वती ने गणेशजी से पूछा – “हे पुत्र..!! में ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली चतुर्थी(Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi) के विषय में जानने को अति उत्सुक हुँ। क्या तुम मुझे उस चतुर्थी को किस नाम से जाना जाता है वो बताओगे। उस चतुर्थी पर व्रत करने का क्या विधान है और उसकी क्या कथा है? वह भी मुझे बताओ।
माता पार्वती की बात सुन भगवान श्री गणेशजी बोले – “हे माता..!! ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली चतुर्थी(Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi) को “एकदन्त संकट चतुर्थी” के नाम से प्रसिद्ध है। इस व्रत का अनुष्ठान जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धाभाव से करता है उसकी सभी मनोकामनायें सिद्ध हो जाती है। इस व्रत में मनुष्य को रात्रि में चंद्र दर्शन करते हुए चंद्र को जल अर्पित करना चाहिये और उसके पश्चात मेरी विधि विधान से पूजा करने के बाद भोजन करना चाहिये। इस व्रत अनुष्ठान के फल स्वरुप मेरे भक्त के, में सारे कष्ट हर लेता हुँ और उसके सभी कार्यों में आनेवाले विध्न को दूर करता हुँ। अब में आपको इस व्रत की कथा सुनाने जा रहा हुँ अतः आप इसे ध्यानपूर्वक सुनियेगा।
ज्येष्ठ संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)
सतयुग काल में एक परम प्रतापी पृथु नामक राजा हुए। राजा इतने महान थे की उन्होंने सौ यज्ञ संपन्न किये हुए थे। उन्हीं के राज्य में दयादेव नामक एक ब्राह्मण रहा करते थे। उन्हें वेद शास्त्र में निपुण ऐसे चार पुत्र थे। उन्होंने अपने चारो पुत्रो का विवाह गृहसूत्र के वैदिक विधान से कर दिया था।
एक दीन उनकी चार पुत्रवधुओ में से सबसे ज्येष्ठ पुत्रवधु ने अपनी सास से कहा – “हे सासुमा..!! में अपने बाल्यकाल से ही संकटनाशक श्री गणेशजी का व्रत करते आई हुँ। मेने अपने पितृगृह में ही इस पुण्यदायक व्रत का अनुष्ठान किया था। अतः हे कल्याणी! आप मुझे इस शुभ फल दायक व्रत का अनुष्ठान करने की अनुमति प्रदान करें।
अपनी पुत्रवधु की बात सुन कर उसके ससुरजी कहने लगे – “हे बहु..!! तुम सभी बहुओ में श्रेठ और ज्येष्ठ हो। तुम्हे यहाँ किसी प्रकार का कष्ट नहीं है और ना ही तुम भिक्षुणी हो। अतः तुम ऐसी स्तिथि में किस कारण से व्रत अनुष्ठान करना चाहती हो? हे सौभाग्यवाती! यह समय तुम्हारे उपभोग का है। यह गणेशजी कौन है? फिर तुम्हे और करना ही क्या है?”
अपने ससुर के आग्रह से पुत्रवधु ने श्री गणेश के संकटनाशक व्रत का त्याग किया और अपने घरसंसार में लीन हो गई।
कुछ समय पश्चात ज्येष्ठ वधु गर्भणी हुई और दश माह के बाद उसे एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। उसकी सास उसे बारम्बार व्रत करने से रोकती रही और उसके व्रत अनुष्ठान में बाधा उत्पन्न करने लगी।
व्रत भंग होने के फलस्वरुप भगवान गणेशजी उस पर कुपित हुए और पुत्र के विवाह मंगल के दीन वर वधु के सुमंगली के समय उसके पुत्र का अपहरण कर लिया। इस अनहोनी घटना के कारण पुरे मंडप में हड़कंप मच गया। सभी आपस में बाते करने लगे की लड़का आखिरकार काहा गया? किसने उसका अपहरण कर लिया? बारातियों द्वारा मिलने वाले इस समाचार को सुन कर उसकी माता बहोत व्याकुल ओ गई अपने ससुरजी दयादेव से रो-रो कर उच्चे स्वर में कहने लगी। “हे ससुरजी, आपने मेरे गणेश चतुर्थी व्रत को छुड़ावा कर महापाप किया है, यह उसीका फल है की आज मेरे पुत्र का अपहरण हो गया है। अपनी पुत्रवधु के मुख से ऐसे वचन सुन ब्राह्मण दयादेव बहोत दुखी हुए। साथ ही साथ अपने पति के अपहरण की बात सुन होनेवाली पुत्रवधु भी बहोत दुखी हुई। अपने पति के वियोग में दुखी पुत्रवधु प्रति माह भगवान श्री गणेशजी की संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी।
एक समय की बात है, भगवान गणेशजी एक वेदज्ञ और दुर्लभ ब्राह्मण का वेश धारण कर उस पुत्रवधु की परीक्षा लेने हेतु भिक्षा मांगते हुए उसके द्वार पर पधारे।
ब्राह्मण वेश धारी भगवान श्री गणेश ने उच्च स्वर में कहा – “हे पुत्री..!!! मुझे भिक्षा स्वरुप इतने भोजन का दान दो की मेरी क्षुधा तृप्त हो जाये।”
उस ब्राह्मण की बात सुन कर उस धर्मपरायण स्त्री ने सर्व प्रथम उस ब्राह्मण का विधिवत पूजन किया। पूर्ण श्रद्धाभाव से भोजन कराने के पश्चात उस ब्राह्मण को वस्त्र अलंकार अर्पित किये।
कन्या की सेवा से संतुष्ट हो कर ब्राह्मण ने उच्च स्वर में कहा – “हे कल्याणी..!! में तुम्हारे सेवा भाव से अत्यंत प्रसन्न हुँ। अब तुम अपनी इच्छा के अनुकूल मुजसे वरदान प्राप्त कर सकती हो। मैं ब्राह्मण वेशधारी गणेश हुँ और तुम्हारी परीक्षा लेने हेतु यहाँ आया हुँ।”
ब्राह्मण की बात सुन कन्या तुरंत नतमस्तक हो कर उनसे निवेदन करने लगी – “हे विघ्नेश्वर!! यदि आप मेरी सेवा से प्रसन्न है तो मुझे मेरे पति के दर्शन करवा दीजिये। कन्या की याचना सुन कर गणेशजी ने कहा – “हे मधुरभाषनी..!! जैसा तुम चाहती हो वही होगा। तुम्हारा पति तुम्हे अवश्य मिलेगा।”
कन्या को इस प्रकार मनोवांछित वर प्रदान कर भगवान गणेश जी अंतर्ध्यान हो गये।
कुछ ही समय पश्चात कन्या का पति पुनः अपने घर वापस आ गया। यह देख सभी बहुत प्रसन्न हुए। सभी स्वजनों की उपस्थिति में विवाह कार्य विधि विधान से संपन्न किया गया। इस प्रकार जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धाभाव से भगवान श्री गणेशजी की ज्येष्ठ माह की संकट चतुर्थी(Jyeshtha Sankashti Ganesh Chaturthi) का व्रत अनुष्ठान करता है उसकी सभी मनोकामनायें सिद्ध होती है।
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