इंदिरा एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Indira Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

इंदिरा एकादशी 2023 कब है? (Indira Ekadashi kab hai?)

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 10 अक्तूबर 2023, मंगलवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 11 अक्तूबर 2023 सुबह 6.31 मिनट से सुबह 8.52 मिनट तक

इंदिरा एकादशी तिथि (Indira Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 09 अक्तूबर 2023 सोमवार दोपहर 12.36 मिनट से
समाप्ति – 10 अक्तूबर 2023 मंगलवार दोपहर 3.08 मिनट तक

Indira Ekadashi

इंदिरा एकादशी का महात्मय (Indira Ekadashi Ka Mahatmay)

पार्श्व एकादशी की कथा का श्रवण कर अभी युधिष्ठिर भगवान श्री हरि से कहने लगे – “हे केशव, आपके श्री मुख से में भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली पार्श्व एकादशी का महात्म्य और कथा का श्रवण कर अथाह तृप्ति की अनुभूति कर रहा हूं और आपसे अश्विन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में जानने को इच्छुक हुं। इस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है? इस एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का व्रत किस विधि विधान से करना चाहिए और इस व्रत के फल स्वरूप मनुष्य को किस पुण्य की प्राप्ति होती है मुझे विस्तार से कहने की कृपा करें।

धर्मराज के वचन सुन भगवान श्री कृष्ण कहने लगे –

श्री कृष्ण – “हे राजन, अश्विन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी सर्वपाप नाशनी और पूर्वजों को अधोगति से मुक्ति दिलाने वाली हैं। इस एकादशी के श्रवण मात्र से मनुष्य को वाजपेई यज्ञ का फ़ल प्राप्त होता है अतः इस व्रत की कथा को बड़े ही ध्यान से सुनना।”

इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha)

प्राचीनकाल में सतयुग के समय में इंद्रसेन नामक एक प्रतापी राजा अपनी महिष्मति नगरी में अपनी प्रजा का पालन पोषण करते हुए शासन करता था। राजा धर्म काज में निपुण और परम विष्णु भक्त थे। राजा के शाशनकाल में सभी प्रजा धन धान्य से समृद्ध थी और राजा भी अपने पुत्र, पौत्र और प्रजा के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करता था। एक दिन जब राजा अपने दरबार में  सुखपूर्वक सभा का संबोधन कर रहे थें, तभी आकाशमार्ग से देवर्षि नारदजी का उनके दरबार में आगमन हुआ। देवर्षि नारदजी को अपने दरबार में आता हुआ देख राजा के साथ सभी दरबार में उपस्थित गण खड़े हो कर उन्हे नतमस्तक प्रणाम करते है। राजा इंद्रसेन उनका उचित स्वागत कर उन्हें उच्च स्थान पर विराजमान करते है और उनके वहा आने का प्रयोजन पूछते है।

राजा के पूछने पर देवर्षि नारद भी उन्हें प्रश्न पूछते है –

देवर्षि नारदजी – “हे राजन..!! में आपके आदर सत्कार से अति प्रसन्न हूं। किंतु क्या आपके सभी सातों अंग कुशलपूर्वक तो है ना? आपकी बुद्धि धर्म काज में और वुष्णुभक्ति में तो प्रवत है ना??”

देवर्षि नारदजी के ऐसे वचन सुन राजा इंद्रसेन अत्यंत विचलित हो उठे और उन्होंने कहा –

इंद्रसेन – “हे देवर्षि..!! आपकी कृपा से सभी धर्म काज कुशल मंगल हो रहे है और भगवान श्री हरि की कृपा से में भी सह कुशल और स्वस्थ हूं। आप कृपा कर आपके आने का प्रयोजन बताएं।”

राजा की वाणी सुन देवर्षि बोले –

देवर्षि नारद – “हे राजन..!! यदि आप मेरे प्रश्नों से चकित नहीं हुए तो मेरे इस कथन से अवश्य होंगे। एक दिन में ब्रह्मलोक से यमलोक की और भ्रमण कर रहा था। यमलोक जा कर यमराज द्वारा स्वचारु आदर सत्कार ग्रहण कर मेने धर्मशील और धेमकाज में प्रवीण सत्यवान धर्मराज की प्रसंशा की। यमराज को उसी भव्य सभा में मेने परम ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पूज्य पिताजी को एकादशी व्रत के भंग के कारण वांहा उपस्थित देखा। उनसे भेंट होने पर उन्होंने तुम्हारे लिए एक संदेशा भेजा है वह में तुम्हे कह रहा हुं। पूर्व जन्म में किसी अगम्य विध्न के कारण मुझसे एकादशी व्रत भंग हो गया और उसी कारण वश आज में यमराज के निकट वास कर रहा हूं अतः हे पुत्र अगर तुम मेरे निमित्त अश्विन माह के कृष्णपक्ष को आने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत करो तो मुझे विष्णुलोक की प्राप्ति हो सकती है।

इतना सुनकर राजा इंद्रसेन द्रवित हो उठे वह अपने पूज्य पिता की इस दशा को देख दुखी हुए किंतु उनको इस परिस्थिति से उगार ने का उपाय सुन तुरंत देवर्षि नारदजी से कहा –

इंद्रसेन – “हे देवर्षि..!!! मेरे पूज्य पिता के संदेश वाहक बनने के लिए में आपका कोटि कोटि धन्यवाद करता हूं। कृपया आप ही मुझे इस परम पावन इंदिरा एकादशी की विधि और विधान बताने की कृपा करे।

देवर्षि नारदजी – “हे राजन..!! में तुम्हें इस पतित पावन इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) व्रत की विधि और विधान सुना रहा हु इसे ध्यानपूर्वक सुनना। अश्विन माह के कृष्णपक्ष की दशवी तिथि के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठ कर मनुष्य को अपनी सभी काज जैसे स्नान आदि पूर्ण कर पुनः दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। पश्चात अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर एक बार भोजन करना चाहिए। प्रातः काल एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्नान आदि पूर्ण कर स्वच्छ परिधान धारण कर प्रभु श्री हरि सम्मुख बैठ कर हाथ में जल लिए यह संकल्प करना चाहिए “में आज संपूर्ण भोगों का त्याग करूंगा और निराहार रह कर इस पावन इंदिरा एकादशी का व्रत करूंगा। हे पुण्डलिकाक्ष..!! हे केशव..!! में आज आपकी शरण में आया हूं , आप मेरी रक्षा कीजिए। इस प्रकार नियमपूर्वक भगवान श्री हरि की शालिग्राम की मूर्ति समक्ष अपने श्राद्ध की विधि को संपन कर निमंत्रित ब्राह्मणों को उचित फलाहार करवा कर उन्हे दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें। पितरों के श्राद्ध में अगर कोई भोजन या अन्न बच जाए तो उसे सुंधकर माता गौ को दान करें और अबिल, गुलाल, अक्षत, धूप, दीप आदि से भगवान श्री विष्णु का पूजन करें।

रात्रि पहर में भगवान श्री हरि की मूर्ति समक्ष उनका गुणगान गाते हुए जागरण करे। त्ततपश्चात द्वादशी तिथि के दिन प्रातःकाल होने पर भगवान श्री हरि का पूजन कर ब्राह्मणों को सात्विक भोजन अर्पित करें। और फिर अपने स्वजन और बांधवों के साथ भोजन ग्रहण कर व्रत का समापन करें।

हे राजन..!! यदि तुम इस विधि विधान से आलस्य रहित हो कर पूर्ण श्रद्धा के साथ इस इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) का व्रत अनुष्ठान करोगे तो निश्चित रूप से तुम्हारे पिता स्वर्गलोक को प्रयाण करेंगे। इतना कह कर देवर्षि नारद अंतर्ध्यान हो गए।

नारदजी के कथनानुसार राजा इंद्रसेन से अपने सभी बांधव और सेवको सहित इस परम पाप नाशनी इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) का व्रत अनुष्ठान किया। इस व्रत के प्रभाव से स्वयं देवलोक से उन पर पुष्प वर्षा होने लगी और उनके पिता गरुड़ पर बिराजमान हो कर श्री विष्णुलोक में प्रयाण कर गए। आगे जाके राजा इंद्रसेन भी एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा से करते हुए अंतकाल में अपने पुत्र को अपना राजपाठ सौंप कर स्वर्गलोक की और प्रस्थान हो गए।

अतः हे युधिष्ठिर..!! इस इंदिरा एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य अपने सभी पापो से मुक्ति पता है और अंत काल में मेरे वैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।

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