भाद्रपद संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सम्पूर्ण – Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Sampurn In Hindi

भाद्रपद संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)

भाद्रपद संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 22 अगस्त 2024, गुरूवार को है।

भाद्रपद संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)

भाद्रपद संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 22 अगस्त 2024, गुरूवार को रात्रि के 08 बजकर 51 मिनट (08:51 PM) पर है।

भाद्रपद संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)

प्रारंभ – 22 अगस्त 2024 गुरूवार को दोपहर 1 बजकर 46 मिनट (01:46 PM) से
समाप्त – 23 अगस्त 2024 शुक्रवार को सुबह 10 बजकर 38 मिनट (10:38 AM) तक

Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi

भाद्रपद संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)

सर्व संकट हारिणी संकट चतुर्थी हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस चतुर्थी के दिन पार्वती नंदन भगवान श्री गणेश जी का श्रद्धा पूर्वक पूजन किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी संकतो से मुक्ति प्राप्त करता है। भाद्रपद को आने वाली संकट चतुर्थी में भगवन गणेश के एकदंत स्वरुप की पूजा करना अति शुभ माना गया है। तो चलिए भाद्रपद को आने वाली भाद्रपद संकट गणेश चतुर्थी (Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi) की कथा को आरंभ करते है।

एक समय की बात है, पूर्वकाल में सभी राजा ओ में श्रेठ ऐसे राजा नल हुए थे और उनकी रूपवती भार्या का नाम दमयंती था। श्राप वश राजा नल को अपना राजपाठ खोना पड़ा और अपनी पत्नी से भी वियोग सहना पड़ा था। तब महर्षि शरभंग के परामर्श से रानी दमयंती ने इस महा संकट विनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत किया और अपने पति को प्राप्त किया था।

श्रापग्रस्त राजा नल के ऊपर विपत्तियों का पहाड़ अचानक से टूट पड़ा। एक दिन डाकुओ ने राजा के महल में जाके सारा धन, गजशाला से हाथी, घुडशाला से घोड़े चुरा लिए थे तथा पुरे राज महल को अग्नि से जला दिया था। वंही राजा नल भी अपना राजपाठ जुए में हार चुके थे।

असहाय राज नल अपनी पत्नी के संग वन में प्रस्थान कर चुके थे। श्राप के प्रभाव से राजा नल और रानी दमयंती का भी वियोग हो गया था। अब दोनों एक दुसरे के वियोग में वन में अकेले देशाटन कर रहे थे।

तभी वन में विचरण करते हुए एक दिन रानी दमयंती को महर्षि शरभंग के दर्शन हुए। महर्षि शरभंग तब अपनी योग साधना में लीन थे। रानी दमयंती अत्यंत पीड़ा में महर्षि शरभंग के समक्ष उपस्थित हो गई और उन्हें मन ही मन प्रार्थना करने लगी। तभी महर्षि अपनी साधना से बहार आये और रानी दमयंती को अपने समक्ष पाया और मंद स्मित से उनकी और देखने लगे। जैसे ही रानी ने महर्षि को देखा वो उनके चरणों में गिर कर विलाप करने लगी और प्रार्थना करने लगी की ‘हे प्रभु! आप सर्वग्य है, आपसे कुछ नहीं छुपा है। में अपने प्राणप्रिय पति के वियोग में यहाँ वन वन भटक रही हु। में कब अपने पति को प्राप्त कर पाऊँगी यहाँ बताने की कृपा करे हे मुनिश्रेठ!

रानी दमयंती की करूँ वाणी सुन कर महर्षि ने कहा – “हे परम पतिव्रता, आप चिंता ना करे श्रापवश ही आपको इस कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ रहा है। अतः आप भाद्रपद के कृष्णपक्ष को आने वाली परम संकट नाशिनी चतुर्थी (Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi) के दिन भगवान गणेश जी के एकदंत स्वरुप की पूजा करे। और पूरा दिन आहार लिए बिना और रात्रि को चन्द्रमा के दर्शन कर के अपने व्रत का समापन करे। अगर आप ये व्रत पूर्ण श्रद्धाभाव और भक्ति से करेंगी तो आपको आपके पति अवश्य प्राप्त होंगे।

महर्षि शरभंग के परामर्श से रानी दमयंती ने भाद्रपद को आने वाली संकट चतुर्थी (Bhadrapad Sankashti Ganesh Chaturthi) का व्रत किया और तब से सतावे माह में ही उनको अपने पति और पुत्र प्राप्त हुए। इस व्रत के प्रभाव से राजा नल ने पुनः अपने सारे सुख और वैभव परत किये। सभी विघ्न को नाश करने वाला और सुख देने वाला यह एक सर्वोतम व्रत है।

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