आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)
आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 21 सितम्बर 2024, शनिवार को है।
आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)
आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 21 सितम्बर 2024, शनिवार को रात्रि के 08 बजकर 37 मिनट (08:37 PM) पर है।
आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)
प्रारंभ – 20 सितम्बर 2024 शुक्रवार को रात 9 बजकर 15 मिनट (09:15 PM) से
समाप्त – 21 सितम्बर 2024 शनिवार को शाम 6 बजकर 13 मिनट (06:13 PM) तक
आश्विन संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)
एक समय की बात है जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा – “हे प्रभु! अश्विन माह के कृष्ण पक्ष को आने वाली संकट चतुर्थी (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi) को किस गणेश की पूजा की जाती है? उनका किस प्रकार पूजन किया जाता है आप मुझे विस्तार पूर्वक बताइये में जानने को उत्सुक हुँ। तब भगवान श्री हरी ने हर्षित होके युधिष्ठिर से कहा – “हे धर्मराज, एक बार माता पार्वती ने भी पुत्र गणेश से यही प्रश्न किया था की “हे पुत्र, अश्विन माह में आने वाली कृष्ण चतुर्थी को किस गणेश का पूजन और व्रत किया जाता है, यह व्रत करने से किस पुण्यफल की प्राप्ति होती है, उसकी कथा सुनने को में उत्सुक हुँ, मुझे विस्तार पूर्वक सुना।”
माता पार्वती के वचन सुन कर गनेह जी ने कहा – “हे माता! जो भी मनुष्य अपने जीवनकाल में सिद्धि की कामना रखता है उसे अश्विन माह में आने वाली संकट चतुर्थी (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi) की पूजा पूर्वोक्त विधि से करनी चाहिये।
श्री कृष्ण – बाणासुर कथा
अश्विन माह को के कृष्ण पक्ष को आनेवाली संकट चतुर्थी को कृष्ण और बाणासुर की कथा के अनुसार एक समय की बात है जब बाणासुर की पुत्री उषा ने अपनी सुषुप्तावस्था में अनिरुद्ध को अपने स्वप्न में देखा। स्वप्न में अनिरुद्ध से विरह होने पर वो इतनी व्याकुल हो गई की उसके चित्त को किसी प्रकार की शांति नहीं मिल पा रही थी। प्रातः होते ही उसने अपनी सखी चित्रलेखा को तुरंत बुलवाया और अपने स्वप्न की बात उससे कही और उसने त्रिभुवन के समस्त प्राणियों के चित्र उससे बनवा डाले।
उषा व्याकुल अवस्था में सभी चित्र को देख रही थी तब अचानक से उसके नेत्र अनिरुद्ध के चित्र पर जाके ठहर गये, उसने तुरंत कहा – “अरे, मेने इसी व्यक्ति को अपने स्वप्न में देखा था। इसीके साथ मेरा पानीग्रहण हुआ था। हे मेरी प्रिय सखी, जाओ और यह व्यक्ति जंहा कंही भी मिल सके इसे ढूंढ़ के लाओ अन्यथा इसके वियोग में मेरे प्राण पखेरू उड़ जाने है।”
अपनी सखी के यह दशा देख कर चित्रलेखा तुरंत अनिरुद्ध की खोज में वहां से निकल पड़ी। सभी नगर और लोक को भ्रमण करते हुए वो द्वारिका नगरी जा पहुंची। उसने वहां अनिरुद्ध को निंद्राहीं देखा। वो बिना समय गवाए अनिरुद्ध को उसके पलंग समेत उठा कर बाणासुर की नगरी की और प्रस्थान कर गई। गोधूलि वेळा में उसने अनिरुद्ध समेत बाणासुर की नगरी में प्रवेश किया। यहाँ प्रधुम्न का अपने पुत्र वियोग में हाल बेहाल हो गया था और उसको एक असाध्य रोग ने ग्रसित कर लिया था।
यहाँ अपने पुत्र प्रधुम्न और पौत्र अनिरुद्ध की घटना से भगवान श्री कृष्ण भी व्याकुल हो उठे थे। वही रुक्मणि जी में अपने पौत्र की अन उपस्थिति में दुखी मन से बिलखने लगी थी और खिन्न मन से श्री कृष्ण से कहने लगी “हे नाथ, क्या हमारे पौत्र अनिरुद्ध का किसी ने अपहरण किया है? या वो खुद अपनी इच्छा से कंही चला गया है? में अत्यंत शौकग्रस्त हुँ कंही में अपने प्राण ना त्याग दू।” रुक्मणि जी की ऐसी दशा देख श्री कृष्ण जी ने तुरंत यादवो की सभा भुलावाई। वंहा उन्हें महर्षि लोमेश के दर्शन हुए। उन्होंने महर्षि लोमेश को प्रणाम किया और आदर सत्कार से स्थान दिया और उन्हें वहां घटित हुई पूरी घटना विस्तार से कह सुनाई।
श्री कृष्ण जी व्याकुल मन से महर्षि लोमेश से कहने लगे – “हे मुनिश्रेष्ठ, हमारा पौत्र अनिरुद्ध कहा चला गया? कंही उसका अपहरण तों नहीं हो गया? या कंही वो स्वयं ही तों कही नहीं चला गया? आखिर कौन उसे ले कर चला गया है? यह में नहीं जनता हुँ। यहाँ पूरी द्वारिका नगरी में शोक की आंधी छायी हुई है। उसकी माता अपने पुत्र वियोग में अंत्यंत दुखी है। श्री कृष्ण जी का विलाप सुन कर तुरंत महर्षि लोमेश बोले – “हे कृष्ण, बाणासुर की कन्या उषा की सखी चित्रलेखा ने ही आपके पौत्र अनिरुद्ध का अपहरण किया हुआ है और उसने अनिरुद्ध को बाणासुर के महल में छुपा के रखा हुआ है। यह सारी बात मुझे स्वयं नारदजी ने आके बताई हुई है।
अतः हे कृष्ण आप अश्विन माह के कृष्ण पक्ष को आनेवाली संकटा चतुर्थी (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi) का अनुष्ठान कीजिये। इसे करने मात्र से अवश्य ही आपका पौत्र लौट कर वापस आ जायेगा। इतना कह कर महर्षि वन की और प्रस्थान कर गये। श्री कृष्ण ने महर्षि लोमेश के कथनुसार आने वाली संकट चतुर्थी व्रत का अनुष्ठान किया। इस व्रत के फल स्वरुप उन्होंने अपने परम शत्रु बाणासुर पर विजय प्राप्त की। यद्यपि महादेव शिव शंकर ने भी श्री कृष्ण बाणासुर युद्ध में बाणासुर के पक्ष में रह कर उसकी सहायता की थी फिर भी बाणासुर युद्ध में परास्त हो गया था।
युद्ध में भगवान श्री हरी कृष्ण ने बाणासुर पर कुपित होते हुए उसकी सहस्त्र भुजाओं को काट डाला था। यह भगवान श्री कृष्ण द्वारा किये हुए संकटा व्रत का ही प्रभाव था। भगवान श्री गणेश जी को प्रसन्न करने और अपने जीवन के सम्पूर्ण विघ्नों को हरने के लिये इस व्रत के समान और कोई दूसरा व्रत नहीं है।
भगवान श्री कृष्ण कहते है – “हे कुंती नंदन, आपके मार्ग में आने वाली समग्र विप्पतीओ के नाश के लिये अश्विन माह के कृष्ण पक्ष को आनेवाली संकष्टी चतुर्थी व्रत (Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi) के पर्यायी और कोई व्रत नहीं है अतः इस व्रत को हर कोई मनुष्य को अवश्य करना चाहिये। इसके प्रभाव मात्र से आप अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करेंगे एवं राज्यधिकारी भी बनेगे। इस व्रत की महिमा का गान बड़े बड़े विद्धान भी करने में असमर्थ है। हे राजन, मेने इस व्रत का अनुभव स्वयं किया है इस लिये में आपसे कह रहा हुँ।”
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