अषाढ़ संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Ashad Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)
अषाढ़ संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 25 जून 2024, सोमवार को है।
अषाढ़ संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Ashad Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)
अषाढ़ संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 25 जून 2024, सोमवार को रात्रि के 10 बजकर 57 मिनट (10:57 PM) पर है।
अषाढ़ संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Ashad Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)
प्रारंभ – 25 जून 2024 सोमवार को सुबह 1 बजकर 23 मिनट (01:23 AM) से
समाप्त – 25 जून 2024 मंगलवार को रात 11 बजकर 10 मिनट (11:10 PM) तक
अषाढ़ संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Ashad Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)
एक समय की बात है जब माता पार्वती ने पुत्र गणेश से पूछा – “हे पुत्र! आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को किस गणेश के स्वरुप की पूजा की जाती है और इस व्रत का क्या विधान है वो मुझे बतलाइये।
गणेश जी बोले – “हे माता! अषाढ कृष्ण चतुर्थी (Ashad Sankashti Ganesh Chaturthi) पर कृष्णपिङ्गल नमक गणेश की पूजा करने का विधान है। इसकी कथा कुछ इस प्रकार है जिसे आप ध्यानपूर्वक सुनियेगा –
हे महाराज..!! द्वापर युग में महिष्मति नगरी में एक महिजीत नामक राजा हुआ करता था। वो राजा बढ़ा ही पुण्यशील और प्रतापी था। वो अपने प्रजा का पालन एक पुत्र की भांति किया करता था। किन्तु वो राजा ही अभागी था वो निःसंतान होने के कारण अपने राजमहल में भी वो अपने आप को उदास महसूस करता था, उसे एक राजा की वैभवशाली जीवनी बिलकुल भी भा नहीं रही थी। वेदो में लिखें वचनो के अनुसार एक निःसंतान राजा का जीवन व्यर्थ माना गया है। वेदो में यह भी स्पष्ट लिखा है की एक निःसंतान जब अपने पितरो को जल दान करता है तब उनके पितृ उसे गर्म जल की भाती ग्रहण करते है।
इसी में राजा का बहुत सा अमूल्य समय बीत गया। राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिये बहोत से यज्ञ, दान आदि किये लेकिन उन्हें पुत्र की प्राप्ति ना हुई। उनकी जवानी ढल गई और बुढ़ापा आ गया लेकिन उन्हें संतान प्राप्ति ना हुई। एक दिन राजा ने इसी सन्दर्भ में विद्वान ब्राह्मणों और प्रजाजनों को परामर्श देने के लिये सभा में बुलाया।
भरी सभा में राजा ने अपना वृतांत सुनाना शुरू कर दिया, राजा बोले – “हे विद्वान ब्राह्मणों और मेरे प्रजाजनों, हम तों संतानहीं ही रह गये। अब हमारी गति क्या होंगी? मेने अपने पूर्ण जीवन काल में एक भी पाप कर्म नहीं किया है, मेने सदैव अपनी प्रजा का एक पुत्र की भांति पालन और पोषण किया है कभी भी उन पर अत्याचार कर के धन अर्जित नहीं किया है। मेने चोर और अत्याचारी डाकुओ को दण्डित किया है।
मेने सदैव अपने इष्ट मित्रो की भोजन की व्यवस्था की, गौ और विद्वान ब्राह्मणो एवं शिष्ट पुरुषो का आदर सत्कार किया। फिर भी मुझे संतान प्राप्ति नहीं हुई है में चिंतित हुँ की इसका क्या कारण हो सकता है। चिंतित राजा को सांत्वना देने हेतु ब्राह्मणो ने कहा – “हे महाराज, हम सब भी वो सभी प्रयन्त करेंगे जिससे आपके वंश की वृद्धि हो। इस प्रकार बोल कर सभी विद्वान ब्राह्मण और प्रजाजन कोई युक्ति सूजने लगे। नगर के सभी लोग राजा के वंश की वृद्धि के लिये विद्वान ब्राह्मणों के साथ वन की और प्रस्थान कर गये।
वन में विचरण करते हुए उन्हें एक सिद्ध महात्मा के दर्शन हुए। वह मुनिराज निराहार रहकर अपनी साधना में लीन थे। ब्राह्मजी की भांति वो सिद्धपुरुष आत्मजीत, क्रोधजीत तथा सनातन पुरुष प्रतीत हो रहे थे। उनका पावन नाम लोमश ऋषि था। प्रत्येक कल्पांत में उनके एक एक रोम प्रतीत हो रहे थे। इस लिये उनका नाम लोमश ऋषि पड़ गया था। ऐसे महान त्रिकालदर्शी महात्मा लोमश ऋषि के सभी ने दर्शन किये।
अभी सभी प्रजाजन महात्मा के पास जा पहुचे। मुनि उस समय ध्यानाधीन थे, सभी ने उन्हें प्रणाम किया और विस्मय से उनकी और देखने लगे और आपस में चर्चा करने लगे। महत्मा के दर्शन से अभिभूत हो कर सभी लोग आपस में बात करने लगे की ऐसे महात्मा के दर्शन तों पुण्यकर्मो से ही प्राप्त होते है। निश्चित ही उनके निर्मल वचनो से हम सबका कल्याण ही होगा ऐसा सोच कर सभी मुनिराज के समक्ष याचना करने लगे। “हे मुनिश्रेष्ठ, हम सभी आपके समक्ष एक यचक की भांति उपस्थित हुए है कृपा करके हमारे दुःख का कारण सुनिए। हम सब अपने संदेह के निवारण हेतु आपके पास आये हुए है। कृपया हमारी समस्या का हमें कोई उपाय बताइये हे महात्मा।
महर्षि लोमेश सचेत अवस्था में आये और उनसे कहा – “हे सज्जनो..!!! आप सबके यहाँ उपस्थित होने का क्या कारण है। आप किस प्रयोजन से मेरी समक्ष उपस्थित हुए है वो मुजसे कहे। में आपके सभी संदेहो का निवारण करूँगा।
तब सभी प्रजाजनों ने उच्च स्वर में अपना वृतांत सुनाना शुरू किया – “हे भगवन..!! हम सभी महिष्मति नगर के निवासी है। हमारे राजा का नाम महिजीत है। हमारे राजा धर्मात्मा, शूरवीर, दानवीर और मधुरभाषि है। ऐसे पुण्यत्मा राजा ने हम सभी का पालन पोषण किया है लेकिन ऐसे राजा को अभी तक एक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है।
हे महात्मा..!! इस चरचार सृष्टी में माता और पिता तों केवल जन्मदाता होते है, एक राजा ही है जो पोषक और संवर्धक होता है। उसी राजा के निमित्त से हम इस गहन वन में आये हुए है। हे महर्षि..!! कृपा करके आप हमें कोई ऐसी युक्ति बतलाइये जिससे राजा की समस्या का निवारण हो सके। क्योंकि ऐसे गुणवान राजा का निःसंतान होना बड़े ही दुर्भाग्य की बात है।
हम सभी आपस में विचार विमर्श करके इस गहन वन में अपने राजा के उद्धार हेतु आये हुए है और उन्ही के पुण्यफल से हम आप जैसे महात्मा के दर्शन प्राप्त हुए है। अतः है मुनिश्रेष्ठ कृपा कर के आप हमें किस व्रत, पूजन, दान अनुष्ठान से हमारे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो सकती है वो हमें बताने की कृपा करें।
प्रजाजन की बात सुनकर महर्षि लोमेश ने सभी को सांत्वना देते हुए कहा – “है सज्जनो, मेने आप सभी की बात सुनी अभी आप मेरी बात को ध्यानपूर्वक सुनिए। में अभी आप सभी को एक संकट नाशक व्रत के विषय में बताने जा रहा हुँ। इस व्रत के अनुष्ठान से निःसंतान को संतान और निर्धानों को धन की प्राप्ति होती है। आषाढ़ माह की कृष्ण चतुर्थी को एकदन्त गजानन नामक गणेश की पूजा करनी बहोत ही शुभ मानी गई हैं।
राजा को श्रद्धांपूर्वक इस संकट नाशक व्रत (Ashad Sankashti Ganesh Chaturthi) का अनुष्ठान करना चाहिये साथ ही साथ विद्वान ब्राह्मणो को सुरुचि भोजन करवाके उन्हें वस्त्र अलंकार दान देने चाहिये। गणेश जी की कृपा से निश्चित रूप से उन्हें संतान प्राप्ति होंगी। महर्षि की बात सुनकर सभी लोग कर बद्ध हो कर वहां से उठ खड़े हुए। महात्मा को दंडवत नमस्कार कर के सभी लोग अपने नगर को लौट आये।
नगर में लौटते ही सभी प्रजाजनों ने राजा के समक्ष जाके वन में घटित सभी घटना का वृतांत सुनाया। प्रजाजनों की बात सुनकर राजा बहोत ही हर्षित हुए और उन्होंने सभी नगरजनो के साथ गणेश जी का संकट नाशक व्रत का श्रद्धांपूर्वक अनुष्ठान किया और ब्राह्मणो को भोजन और वस्त्रलंकार दान दिया।
व्रत के प्रभाव से रानी सुदक्षिणा को सुन्दर और सुलक्षण पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। जो भी मनुष्य इस व्रत का श्रद्धापूर्वस्क अनुष्ठान करता है वो सभी सांसारिक सुख को प्राप्त करता है।
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