अचला / अपरा एकादशी व्रत कथा – Achala / Apara Ekadashi Vrat Katha in Hindi

अचला / अपरा एकादशी(Achala/Apara Ekadashi) 2023 कब है?

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 15 मई 2023, सोमवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 16 मई 2023 सुबह 6.03 मिनट से सुबह 8.39 मिनट तक

अचला / अपरा एकादशी तिथि(Achala/Apara Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 15 मई 2023 सुबह 2.46 मिनट से
समाप्ति – 16 मई रात 2023 01.03 मिनट तक

Apara Ekadashi

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अचला / अपरा एकादशी(Achala/Apara Ekadashi) कथा

घर्मराज युधिष्ठिर ने जब भगवान श्रीकृष्ण के श्री मुख से वैशाख माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली मोहनी एकादशी का महात्म्य सुनने के बाद बोले –

युधिष्ठिर – “है केशव, आप धन्य है। आपके द्वारा वैशाख माह के शुक्लपक्ष में आनेवाली मोहिनी एकादशी की कथा सुन में तृप्त हो गया अब प्रभु आप अपने श्री मुख से आनेवाली वैशाख माह की कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में विस्तार से बताइए।”

युधिष्ठिर की बात श्रीकृष्ण कहने लगे –

श्रीकृष्ण – “है युधिष्ठिर, वैशाख माह के कृष्णपक्ष में आनेवाली एकादशी को अपरा या अचला एकादशी(Apara Ekadashi) भी कहा जाता है, क्योंकि यह एकादशी अपार धन और वैभव प्रदान करने वाली एकादशी है। इस एकादशी के व्रत फल से मनुष्य सुप्रसिद्ध हो जाता है।”

अपरा एकादशी के दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा अर्चना की जाती है। यँहा भगवान त्रिविक्रम में भगवान विष्णु, भगवान विठ्ठल और भगवान बालाजी के दर्शन होते है।

है युधिष्ठिर अब में तुम्हे अपरा एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हु तो इसे तुम बड़े ही ध्यान से सुनना।

प्राचीन समय मे महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा हुआ करता था किंतु उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर और पापी था। वह जुआ खेलता, पर स्त्री के संग भोग विलास करता अपने क्रूर मित्रो के संग रह कर निर्दोष प्रजा पर अत्याचार करता और अपने देवता स्वरूप बड़े भाई से द्वेष और ईर्षा रखता था। राजा महीध्वज को अपने छोटे भाई की सभी करतूतों के बारे में पता था किंतु वह अपने छोटे भाई से अथाग प्रेम करते थे इस लिए वह अपने छोटे भाई की सभी गलतियों को निर्बोध बालक जान कर क्षमा कर देते किंतु छोटे भाई को अपने बड़े भाई की इस करुणा का कोई असर नहीं होता था। वह अपने भाई से द्वेष करना नहीं छोड़ सका और एक दिन उस पापी ने रात्रि के अंधकार में अपने पिता समान बड़े भाई की हत्या कर उसे वन ले जा कर जंगली पीपल के वृक्ष के सामने गड्डा खोद कर गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण उसकी आत्मा प्रेत बन कर वंही पीपल के वृक्ष पर निवास करने लगी और आते जाते सभी राह दारी को परेशान करने लगी।

उसी काल मे महर्षि धौम्य नामक एक परम सिद्ध ऋषि भी हुआ करते थे। एक दिन वह ऋषि वन मार्ग से अपने आश्रम जा रहे थे कि उन्हें अपनी दिव्य दृष्टि से पीपल के वृक्ष पर बैठे हुए प्रेत के दर्शन हुए। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से उस प्रेत की मृत्यु किस अवस्था मे हुई उसका भेद जान लिया और उसके उत्पात का असली कारण समजा।

फिर उस दयालु ऋषि ने उस धर्मात्मा राजा को प्रेत योनि से छुड़वाने हेतु खुद ही “अपरा एकादशी”(Apara Ekadashi) का व्रत रखा और उस निरपराध राजा को प्रेत योनि से मुक्त करने हेतु उनके द्वारा की गई अपरा एकादशी का सम्पूर्ण फ़ल राजा की आत्मा को समर्पित कर दिया। राजा को अपरा एकादशी का पुण्यफ़ल प्राप्त होते ही। उनकी आत्मा एक दिव्य प्रकाशपुंज में परिवर्तित हो गई। और विष्णुलोक से आये हुए वैष्णव दूत उन्हें बड़े ही आदर भाव से अपने साथ रथ में बिठा कर विष्णुलोक की ओर प्रयाण कर गये।

अतः है राजन! मेने यह अपरा एकादशी की कथा जनकल्याण हेतु आपसे कही है। इस कथा के पठन या श्रवण मात्रा से पापी मनुष्य के सारे पाप स्वतः ही धूल जाते है और उसे परम धाम की प्राप्ति होती है।

अचला / अपरा एकादशी(Achala/Apara Ekadashi) का महत्व

जो भी मनुष्य या प्राणी श्रद्धपूर्वक अपरा एकादशी का व्रत करता है वह भूत योनि, ब्रह्म हत्या, परनिंदा आदि पापो से मुक्त हो जाता है। यही नहीं इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य झूठ बोलना, परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठे वैध बनाना या झूठे ज्योतिषी बन कर लोगों को ठगने जैसे पापो से मुक्त हो जाता है।

जो भी शिष्य अपने जीवनकाल में अपने गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के बाद अगर वो अपने गुरु की निंदा करते है वो नरक के भागी बनते है किंतु अगर वे अपरा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से करे और अपने पापो की क्षमा मांगे तो उनके यह कठोर अपराध भी नष्ट हो जाते है। यंही नही जो क्षत्रिय युद्ध के दौरान अगर युद्धभूमि छोड़ कर भाग जाए तो वह नरकगामी होता है किंतु अगर वो इस पापनाशिनी अपरा एकादशी का व्रत करे तो वह इस पाप से भी मुक्त हो जाता है।

अगर हम अपरा एकादशी के पुण्यफ़ल की तुलना मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि में बृहस्पति के होने पर गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन से, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से मिलने वाले पुण्यफ़ल से करे तो दोनों में कोई अंतर नही होगा। यंही नही जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है।

यह व्रत पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान, पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान है। अतः मनुष्य को अपने जीवनकाल में पाप से बचते हुए इस व्रत को निश्चित रूप से करना चहिये। अपरा एकादशी के व्रत से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते है और उसे परमधाम की प्राप्ति होती है।

 

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