आमलकी एकादशी 2024 कब है? (Amalaki Ekadashi kab hai?)
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 20 मार्च 2024, बुधवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 21 मार्च 2024 सुबह 01:49 मिनट से सुबह 04:15 मिनट तक
आमलकी एकादशी तिथि (Amalaki Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 20 मार्च 2024 बुधवार रात 12:21 मिनट से
समाप्ति – 21 मार्च 2024 गुरूवार रात 02:22 मिनट तक
आमलकी एकादशी का महात्मय (Amalaki Ekadashi Ka Mahatmay)
भगवान श्री हरी श्री कृष्ण के श्री मुख से विजया एकादशी की कथा एवं महात्मय सुन कर युधिष्ठिर बोले –
युधिष्ठिर – “हे मधुसूदन..!!! आपके श्री मुख से फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली विजया एकादशी का महात्मय और कथा सुन कर में तृप्त हो गया हुँ और अब मुझे फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी तिथि के बारे में जानने को उत्सुक हुँ। अतः हे कृपासिंधु इस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है? इस एकादशी व्रत का क्या विधि और विधान है? इस व्रत में हमें किन भगवान की पूजा करनी चाहिये? इस एकादशी व्रत के फल स्वरुप हमें किन पुण्यफ़ल की प्राप्ति होती हे मुझे विस्तारपूर्वक कहे।
श्री कृष्ण – “हे राजन, फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी को आमलकि एकादशी(Amalaki Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से समस्त पापो का नाश होता है। इस एकादशी करने पर प्राप्त होने वाला पुण्यफ़ल हज़ार गौ दान से मिलते पुण्यफ़ल के समान है।
हे राजन, अब में आपको आमलकी एकादशी(Amalaki Ekadashi) की व्रत कथा सुनने जा रहा हुँ जो ऋषि वशिष्ठ ने राजा मान्धाता को सुनाई थी। अतः इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनना।
आमलकी एकादशी व्रत कथा (Amalaki Ekadashi Vrat Katha)
एक समय की बात है जब राजा मान्धाता ऋषि वशिष्ठ के आश्रम पहुंचे और उनसे निवेदन करने लगे।
राजा मान्धाता – “हे मुनिवर, आप सर्व वेदो के ज्ञाता है। आप मुझ पर कृपा करें और मुझे कोई ऐसी कथा सुनाये की जिससे मेरा कल्याण हो।”
महर्षि वशिष्ठ – “हे राजन, तुमने बड़ा ही उत्तम विचार प्रगट किया है। सर्व कल्याण हेतु आज में तुम्हे एक ऐसी कथा अवश्य सुनाऊंगा। सभी व्रतो में सबसे उत्तम और मनुष्य के अंत समय में उसे मोक्ष प्रदान करने वाली आमलकी एकादशी की कथा आज में तुम्हे सुनाऊंगा अतः इस बड़े ही श्रद्धापूर्वक सुनना।
एक समय की बात है, वैदिश नामक एक नगर हुआ करता था जँहा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी वर्ण के लोग बड़े ही आनंद से अपना जीवन निर्वाह किआ करते थे। वंहा सदैव वेद ध्वनि गुंजा करती थी और इस नगर में पापी दुराचारी और नास्तिक कोई भी न था। उस खुशाल नगर में चैतरथ नामक चंद्रवंशी राजा राज किया करता था। राजा अत्यंत विद्वान और गुणी था। नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र और कंजूस न था। सभी नगरजन परम विष्णु भक्त और आबाल-वृद्ध, स्त्री -पुरुष सभी एकादशी का व्रत किया करते थे।
एक दिन फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की आमलिका एकादशी का पर्व आया। उस दिन सभी प्रजाजनों ने हर्ष पूर्वक इस व्रत का अनुष्ठान किया। राजा अपने प्रजाजनों संग नगर के एक मंदिर में जा कर पूर्ण कुम्भ की स्थापना करते हुए प्रभु को धुप, दीप, नैवेध्य, पंचरत्न आदि से धात्री/अंवाले का पूजन करने लगे और इस प्रकार स्तुति करने लगे।
हे पूज्य धात्री..!! आप परम ब्रह्मास्वरुप हो, स्वयं ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न हुए और सर्व पापो का नाश करने वाले हो, आपको में कोटि कोटि वंदन करता हुँ। अब आप मेरा अर्ध्य स्वीकार करें। आप स्वयं श्री रामचंद्रजी द्वारा पूजनीय हो, मैं आपकी स्तुति करता हुँ, अतः आप मेरे सभी अवगुणो का नाश करो। भगवान धात्री की स्तुति के साथ ही सभी ने उस रात्रि जागरण भी किया।
रात्रि के समय वंहा एक बहेलिया आया, वह अत्यंत पापी और अधर्मी था। वाह अपने परिवार का भरण पोषण जीव हत्या करके किया करता था। उस समय भूख प्यास से अति व्याकुल वह बहेलिया मंदिर में हो रहे जागरण को देखने मंदिर के कोने में जा कर बैठ गया और भगवान श्री हरी की एकादशी कथा का महत्मा सुनने लगा। इस तरह वंहा उपस्थित अन्य नगर जनों की भांति उसने भी पूरी रात्रि जागरण करते हुए बिता दी।
प्रातः काल होने पर सभी नगर जन अपने घर को चले गये और वह बहेलिया भी अपने घर को चला गया। घर जाकर उस बहेलिए ने भोजन किया और कुछ समय पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गई।
किन्तु आमलिका एकादशी(Amalaki Ekadashi) व्रत के कारण उसने अगले जन्म में राजा विदुरथ के घर जन्म लिया और वह वसूरथ के नाम से जाना गया। आगे जाके युवा होने पर वह चतुरंगिनी सेना और धन धान्य से परिपूर्ण हो कर 10 हज़ार ग्रामो का पालन करने लगा।
उसकी प्रतिभा तेज में सूर्य के समान, काँटी में चन्द्रमा के समान, वीरता में स्वयं भगवान विष्णु के समान और क्षमा में माता पृथ्वी के समान थी। वह अपने युग में महान धर्मनीष्ठ, सत्यवादी, कर्मवीर और परम विष्णु भक्त था। वह अपनी प्रजा का समान भाव से पालन करता था। वह परम दानवीर था और दान देना उसका नित्य कर्म भी था।
एक दिन राजा आँखेद करने हेतु जंगल में गया। दैवयोग के कारण वह मार्ग भूल गया और दिशा की अज्ञानता के कारण वह एक वृक्ष के तले जा कर सो गया। कुछ ही देर बाद पहाड़ी म्लेच्छ वंहा आ गये, राजा को अकेला देख मारो मारो शब्दों के नारों लगाते हुए राजा की और दौड़े। म्लेच्छ कहने लगे इस दुष्ट राजा ने हमारे सभी सम्बन्धी, माता, पिता, पुत्र, पौत्र की निरापराध हत्या की है और हमें अपने नगर से बाहर निकल दिया है अतः ऐसे दुष्ट राजा को मारना अवश्य चाहिये।
अपना क्रोध राजा के ऊपर निकाल ते हुए वे निशस्त्र राजा की ओर दौड़े और अपने अस्त्र – शस्त्र का प्रहार राजा के ऊपर करने लगे। जितने भी अस्त्र शस्त्र राजा के ऊपर फेके जाते वाह स्वतः ही नष्ट हो जाते और राजा को उन अस्त्रों का वार एक पुष्प के समान प्रतीत हो रहा था। अब उन म्लेच्छों द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र और शस्त्र उल्टा उन्हीं को क्षति पहुंचाने लगे और क्षति के मारे वाह स्वयं ही मूर्छित हो कर निचे गिरने लगे। उसी पल राजा के शरीर से एक दिव्य प्रकाश उत्पन्न हुआ और उसमे से एक बहोत ही सुन्दर स्त्री का आगमन हुआ। वह स्त्री सुन्दर अवश्य थी किन्तु उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, उनके नेत्रों से एक भयावह अग्नि की ज्वाला प्रगट हो रही थी। वह दूसरे काल से समान दिख रही थी।
राजा पर प्रहार हो रहा देख वह उन म्लेच्छों का संहार करने उनके पीछे दौड़ी और कुछी समय में उसने सभी म्लेच्छों का संहार कर दिया। कुछ समय पश्चात जब राजा जागृत अवस्था में आया तो उसने सभी म्लेच्छों को मरा हुआ पाया। सभी म्लेच्छों को मरा हुआ देख वह आश्चर्यचकित हो उठा और सोचने लगा की इन म्लेच्छों को आखिर किसने मारा होगा? इन निर्जन वन में ऐसा कोन हे जो मेरा हितैषी है जिसने मेरे प्राणों की रक्षा की है? की तभी एक आकाशवाणी हुई – “हे राजन..!! इस संसार में भगवान श्री हरी विष्णु के अतिरिक्त और कौन है जो तुम्हरी सहायता कर सकता है?
इस आकाशवाणी को सुन उसने भगवान श्री हरी विष्णु की स्तुति गाते हुए उनको शष्टांग नमन किआ। अब राजा पुनः अपने राज्य को गया और सुख पूर्वक अपना राज्य करने लगा।
अंत में महर्षि वशिष्ठ बोले – “हे राजन..!! यह आमलकी एकादशी(Amalaki Ekadashi) का प्रभाव था। इस एकादशी का व्रत करने वाला हर मनुष्य अपने सभी कार्यों में निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करता है और अपने अंत समय में विष्णुलोक को प्राप्त होते है।
कुछ रोचक जानकारी –
आमलकी एकादशी को भारत के विभिन्न प्रांतो में अलग अलग नामो से जाना जाता है जैसे श्रीनाथद्वारा (श्रीनाथजी) में इसे कुंज एकादशी, ब्रज (वृन्दावन) में रंगभरनी एकादशी तथा खाटू श्याम (खाटू नगरी) में इसे खाटू एकादशी के नाम से जाना जाता है।
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