Jaya Ekadashi Vrat Katha का महात्मय हिन्दू संस्कृति में विशेष माना जाता है। कहा जाता है जो भी जातक अगर पुरे श्रद्धा भाव से इस व्रत का अनुष्ठान एवं पालन करता है उसके सभी कष्ट भगवान श्री हरी हर लेते है। यहाँ जातक को पूर्ण रूप से समर्प्रित हो कर Jaya Ekadashi Vrat को रखना होता है। Jaya Ekadashi Vrat के रखने से जातक के जीवन में सुख समृद्धि सदैव निवास करते है और अंत समय में उसे वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। तो आइये हम इस पावन Jaya Ekadashi Vrat ki Katha का पठन करे और भगवान श्री हरी के सानिध्य को प्राप्त करे।
जया एकादशी 2024 कब है? (Jaya Ekadashi kab hai?)
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 20 फरवरी 2024, मंगलवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 21 फरवरी 2024 सुबह 7.04 मिनट से सुबह 9.23 मिनट तक
जया एकादशी तिथि (Jaya Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 19 फरवरी 2024 सोमवार सुबह 08.49 मिनट से
समाप्ति – 20 फरवरी 2024 मंगलवार सुबह 09.55 मिनट तक
जया एकादशी का महात्मय (Jaya Ekadashi Ka Mahatmay)
भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से माघ माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली षटतिला एकादशी की कथा सुनने के पश्चात युधिष्ठिर बोले –
युधिष्ठिर – “हे मधुसूदन, आपके श्री मुख से माघ मास के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी व्रत की कथा सुनकर में तृप्त हो गया हुँ। हे मधुसूदन, आप स्वदेज, अंडज, उद्भिज और जरायुज चारों प्रकार के जीवों के उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले हैं। अब आप मुझे माघ माह जे शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में बताने की कृपा करें। इस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है? इस एकादशी व्रत का क्या महात्मय है? इस एकादशी व्रत का क्या विधि विधान है? इस एकादशी व्रत के फल स्वरुप हमें किन पुण्यफ़ल की प्राप्ति होती है? यह आप मुझे विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।
श्री कृष्ण – “हे धर्मराज, माघ माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी को जया एकादशी(Jaya Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। इस व्रत का अनुष्ठान करने से ब्रह्महत्या जैसे महा पापो से मनुष्य छूट कर अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता है। यही नहीं इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य भुत, पिशाच आदि योनियो से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा एवं विधि विधान से करने से मनुष्य मेरे परम धाम को प्राप्त करता है। हे राजन, अब में तुम्हे पद्मपुराण में वर्णित इस एकादशी महात्मय की एक कथा सुनाता हुँ अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना।
जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha)
देवराज इंद्र जब स्वर्ग में राज करते थे और सभी देवगन स्वर्ग में सुख पूर्वक रहा करते थे। एक समय की बात है जब देवराज इंद्र अपनी अप्सराओ के साथ नंदनवन में विहार कर रहे थे और गन्धर्व उनके मनोरंजन हेतु गान कर रहे थे। उन गंधर्व में मुख्य पुष्पदंत और उनकी सुन्दर कन्या पुष्पवाती तथा चित्रसेन और उनकी भार्या मालिनी भी उपस्थित थी। उनके साथ मालिनी के पुत्र पुष्पवान और उनके पुत्र माल्यावान भी उपस्थित थे।
गन्धर्व कन्या पुष्पवती माल्यवान को देख कर उस पर मोहित हो गई। और माल्यवान को अपने मोह जाल में फ़साने उस पर काम बान चलाने लगी। उसने अपने रूप, हाव-भाव और लावण्य से माल्यवान को मोहित कर लिया था। अब वे देवराज इंद्र को प्रसन्न करने हेतु गान करने लगे किन्तु परस्पर एक दूसरे पर मोहित होने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था।
उनके सुर अब ठीक नहीं लग रहे थे और वह अपना गान तक भूलने लगे थे जब देवराज इंद्र को इस विषय में ज्ञात हुआ तब उन्होंने इसमे अपना अपमान देखा और उन्होंने उन दोनों को शाप दे दिया और कहा –
इंद्र – “हे मूर्खो, तुमने मेरी आज्ञा का उलंधन किया है अतः में तुम्हारा धिक्कार करता हुँ। अब तुम दोनों पृथ्वीलोक में जन्म लोगे और पिशाच योनि में अपने इस पाप कर्म को भोगो गे।”
देवराज इंद्र का ऐसा शाप सुन दोनों बहोत दुखी हुए और हिमालय पर्वत पर अत्यंत दुःख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। शाप के प्रभाव स्वरुप उन्हें गंध, रस और स्पर्श आदि का कोई ज्ञान न था। पिशाच योनि में जन्म ले कर वह महान दुःख भोग रहे थे और इस कारणवश उन्हें एक क्षण के लिए भी निंद्रा नहीं आती थी।
जिस जगा वह अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे वंहा अत्यंत शीत रहा करती थी। शीत के मारे उनका पूर्ण शरीर जाम जाया करता था उनके दाँत कपकपाने लगते थे। एक दिन पिशाच योनि से ग्रस्त माल्यवान ने अपनी भार्या से कहा – “न जाने हमने अपने पूर्व जन्म में क्या पाप किये थे तो इस पिशाच योनि में हमें जन्म लेना पड़ा। इस पिशाच योनि से तो अच्छा है हम नर्क के दुःख भोग लेते। इस योनि में मिल रहे अत्यंत दुःख के कारण अब हमें पाप कर्म करने से सदैव बचना चाहिये।” इस प्रकार वो दोनों प्रतिदिन विचार करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।
एक बार दैव्ययोग से तभी माघ मास के शुक्लपक्ष की जया एकादशी(Jaya Ekadashi) आई। उस दिन उन्होंने कोई भोजन नहीं किया और पुण्य कर्म कर पुण्य अर्जित किये। केवल फल और फूल खां कर उन्होंने अपना दिन पूर्ण किया और संद्यावेला पर दुखी मन से एक पीपल के वृक्ष के निचे जा कर बैठ गये। वह समय सूर्यास्त का था। रात्रि में भी अत्यंत शीत थी, शीत से बचाने के लिए वह दोनों दुखी हो कर एक मृतक की भांति एक दूसरे से लिपट कर पड़े रहे। उस रात्रि भी उन्हें निंद्रा नहीं आई थी।
जया एकादशी(Jaya Ekadashi) के व्रत और रति जागरण के प्रभाव से दूसरे दिन प्रातः जब वो जगे तब उन्हें इस पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हुई।खुद को पिशाच योनि से मुक्त हुआ देख दोनों बड़े ही प्रसन्न हुए। दोनों ने अब अपना मूल गन्धर्व और अप्सरा रूप धारण कर लिया था। दोनों अब सुन्दर वस्त्र अलंकारों से सुसज्ज हो कर स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान करते है। एकादशी की यह महा लीला देख अवकाश से देव उन दोनों की स्तुति और उन पर पुष्पवर्षा करने लगते है। स्वर्गलोक पहुंचते ही दोनों सर्व प्रथम देवराज इंद्र को प्रणाम करते है और अपने कुकर्मो की क्षमा मांगते है। दोनों को पुनः गन्धर्व और अप्सरा वेश में देख देवराज इंद्र चकित हो जाते है और क़ुतुहल वश उनसे पूछते है, तुम दोनों ने अपनी पिशाच योनि से कैसे मुक्ति प्राप्त की? में यह जानने को इच्छुक हुँ। तब उत्तर में माल्यवान बोले –
माल्यवान – “हे देवराज, यह सब सर्व शक्तिशाली और परम कृपलु भगवान श्री हरी की कृपा और जया एकादशी(Jaya Ekadashi) के व्रत से ही संभव हो पाया है। जया एकादशी के व्रत अनुष्ठान से हमें अपनी पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हुई है।”
वृतांत जानकर इंद्र बोले –
इंद्र – “हे माल्यावन..!! तुमने सत्य कहा यह सब भगवान श्री हरी और जया एकादशी(Jaya Ekadashi) के व्रत से ही संभव हो पाया है। जया एकादशी के फल स्वरुप तुम्हे अपनी पिशाच योनि से मुक्ति ही नहीं मिली अपितु तुम देवो के समक्ष भी वंदनीय बन गये हो। भगवान शिव और श्री हरी विष्णु के भक्त सदैव हमारे लिए वंदनीय है। अतः आप दोनों धन्य है। हे माल्यवान..!! अब तुम अपनी भार्या पुष्पवती संग विहार करो।”
श्री कृष्ण कहने लगे –
श्री कृष्ण – “हे युधिष्ठिर..!!! जया एकादशी(Jaya Ekadashi) के व्रत से मनुष्य के सारे पापो का नाश सहज हो जाता है। मनुष्य कितनी भी बुरी योनि में अपने कर्मो का फल क्यों ना भोग रहा हो जया एकादशी(Jaya Ekadashi) के व्रत से उसे उस योनि से मुक्ति अवश्य प्राप्त होती है। जो भी मानुष अपने जीवनकाल में जया एकादशी(Jaya Ekadashi) ना व्रत करता है उसे यज्ञ, जप और तप तीनो का फल प्राप्त हो जाता है। जया एकादशी(Jaya Ekadashi) के व्रत से मनुष्य सहस्त्र वर्षो तक स्वर्ग में अपना स्थान प्राप्त कर लेता है।
जया एकादशी व्रत कथा विडियो (Jaya Ekadashi Vrat Katha Video)
(Credit – Vrat Parva Tyohar)
जया एकादशी व्रत कथा FAQ (Jaya Ekadashi Vrat Katha FAQ)
- जया एकादशी का व्रत कब है?
– जया एकादशी का व्रत हिन्दू पंचांग के अनुसार 31 जनवरी 2023 को रात 11 बजकर 53 मिनट पर प्रारंभ होगा जिसका समापन 01 फरवरी 2023 को दोपहर 02 बजकर 01 मिनट पर होगा। - जया एकादशी का क्या महत्व है?
-जया एकादशी व्रत का महत्त्व हिन्दू सस्कृति में बड़ा ही विशेष बताया गया है। जाया एकादशी के व्रत को करने वाले की भगवान लक्ष्मी नारायण सभी मनोकामना पूर्ण करते है और उसे दीर्ध आयुष्य की प्राप्ति होती है, साथ ही मनुष्य को पृथ्वी लोक के सभी सुख-सुविधाओं को भोगकर अंत में बैकुंठ धाम की प्राप्त करता है। - जया एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए?
– जया एकादशी व्रत के अवसर पर यजमान को कुटू और सिंघाड़े का आटा, रामदाना, खोए से बनी मिठाईयां, दूध-दही और फलों का प्रयोग करना उतम माना जाता है और दान भी इन्हीं वस्तुओं का किया जाता है। - जया एकादशी में क्या दान करें?
– जया एकादशी व्रत के अवसर पर पानी में तिल मिलाकर नहाने और तिल का दान करने की परंपरा है, ऐसा मन जाता है की इससे अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति मिलाती है। - जया एकादशी का व्रत कैसे रखें?
– जया एकादशी व्रत करने के लिए उपासक को व्रत से एक दिन पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए. प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करें।
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