लोग क्या कहेंगे ये सोचना बंध कर दो..!! – Log Kya Kahenge Yeh Sochana Bandh Kar Do..!!

Motivational Story in Hindi – किसी महापुरुष ने बड़ी अच्छी बात कही है – “फरक इससे कभी नही पड़ता की लोग क्या चाहते है, फरक इससे जरूर पड़ता है की आखिर तुम क्या चाहते हो.!!”

आज इसी बात को सार्थक करते हुए आपके समक्ष एक कहानी ले कर प्रस्तुत हुआ हूं। आशा करता हु आपको इस कहानी से कुछ मजा मिले या ना मिले लेकिन सिख जरूर मिलेगी।

बिहार के एक गांव में दो बच्चे रहा करते थे। सुरेश और रमेश। सुरेश 8 साल का था और रमेश 10 का। दोनो एक ही महोल्ले में रहा करते थे। एक ही पाठशाला में पढ़ा करते थे। धीरे धीरे जब वे एक दूसरे को जानने लगे तब उनकी मित्रता घनिष्ठ होने लगीं।

एक दिन पाठशाला से घर आते वक्त उन्हें रास्ते में एक गेंद दिखी। गेंद को दोनो मित्र खेलते हुए घर जाने के रास्ते से भटक ते हुए एक सुनसान जगा पर आ गए जो गांव के बाहर गिरती थी। खेल खेल में उनकी गेंद एक बहुत गहरे गड्ढे में गिर गई। दोनो में रमेश बड़ा था इसी वजह से उसने गेंद को बाहर निकाल ने का बीड़ा उठाया। रमेश सुरेश से उम्र में बड़ा था उसी के उन्माद में वो लापरवाही से गड्ढे में से गेंद को बाहर निकाल ने की कोशिश करने लगा। गड्ढा तकरीबन 20 फिट गहरा था। रमेश जल्दबाजी में गलती से फिसलन वाली जगा पर अपना पांव रख दिया और धड़ाम से नीचे गड्ढे में गिर गया।

गड्ढे में गिरते ही रमेश के होश उड़ गए कुछ क्षण तक उसे समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या करे उधर सुरेश की चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देने लगी।

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सुरेश – “बचाओ बचाओ…!! कोई हमारी मदद करो..!!! बचाओ बचाओ..!! रमेश…!! रमेश…!! तू ठीक तो है ना..!!”

सुरेश की आवाज सुन कर रमेश भी अंदर से चिल्लाने लगा..!!

रमेश – “बचाओ…!! बचाओ…!! कोई मदद करो…!! में यहां गड्ढे में गिर गया हूं।”

रमेश और सुरेश दोनो गभरा कर जोर जोर से चिल्लाने लगे थे। किंतु उनकी आवाज सुनने वाला वहां कोई न था। दोनो गांव से बाहर किसी बंजर विरान जगा पर आ गए थे। जहां उनके अलावा और कोई न था।

चिल्ला चिल्ला के दोनो के गले सुख गए थे। अब बाहर खड़े 8 साल के सुरेश को चिंता होने लगी की आखिरकार इस मुसीबत से कैसे बचा जाए। उसने आस पास नजर दौड़ाई किंतु उसे कोई नजर नहीं आ रहा था और ना ही कोई पानी का स्त्रोत था जिससे वो अपने सूखे गले की प्यास बुझा सकें।

समय बीतता जा रहा था और सुरेश को नकारात्मक ख्याल आने शुरू हो गए थे। उसे अब डर लगने लगा था। घर जा कर वो क्या कहेगा की इतनी देर तक कहा था? अब तक तो उसके माता पिता ने उसकी खोज शुरू कर दी होगी। अगर रमेश इस गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाया तो? अगर वह मर गया तो? नही नही.. मारे नकारात्मक विचारों से उसका सिर चकराने लगा था।

उधर गांव में दोनो बच्चो की खोज शुरू हो चुकी थी। दोनो बच्चो के मां बाप बड़ी दुविधा में थे की आखिर ये दोनो कहा रह गए। क्या हुआ होगा? कही इन्हे कोई ले तो नही गया। कन्ही उनके साथ कोई हादसा तो नहिं हो गया होगा। वहीं अब जो कुछ भी करना था बाहर खड़े हुए सुरेश को ही करना था और अब वो यह बात बखूबी समझ गया था। उसने इधर उधर नजर दौड़ानी शुरू कर दी। कुछ देर बाद उसे एक रस्सी दिखाई दी। वो तुरंत जा कर उस रस्सी को ले कर आया और बिना समय गवाए उसने रस्सी वहां जमीन में गड़े हुए एक बड़े से पत्थर पर कस के बांध दी और रस्सी का दूसरा सिरा गड्ढे में फेंक दिया और रमेश से कहा –

सुरेश – “रमेश, जल्दी से ये रस्सी पकड़ो में तुम्हे अब ऊपर खींचने वाला हु।”

रमेश – “क्या..!! सुरेश तुम यह नहीं कर पाओगे..!! मेरा वजन तुमसे कही ज्यादा है और जहा तक में जनता हूं तुमने तो आज तक एक पानी की बाल्टी भी नही खींची तो मुझे खींचना तुम्हारे बस में नहीं है।”

सुरेश – “हां, में जानता हुं, की मेने आज तक एक बाल्टी भी नही उठाई है लेकिन आज मेरे पास खुद पर भरोसा करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं है। रमेश तुम मेरा विश्वास करो अब में ही हूं यहां जो तुम्हे इस मुसीबत से बाहर निकाल सकता हुं। तो ये रस्सी कस कर पकड़लो में तुम्हे ऊपर खींचता हुं।”

सुरेश की बात सुन अब रमेश भी उसकी बात मान गया था। क्योंकि अब उसे भी पता था की अब यही एक कोशिश बची है इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए। रमेश ने रस्सी को कस के पकड़ लिया। जैसे ही रमेश ने रस्सी को कस से पकड़ा तभी सुरेश ने अपना पूरा दम लगाते हुए रस्सी को खींचना शुरू किया। सुरेश ने रमेश को खींचने में अपने शरीर का पूरा दम लगा दिया और आखिर में उसकी मेहनत रंग लाई और रमेश उस गड्ढे से बाहर आ गया। सुरेश पसीने से तरबतर हो गया था उसकी सांसे फूलने लगी थी लेकिन जब उसने रमेश को अपने सामने पाया उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। दोनो दोस्तो ने एक दूसरे को कस के गले लगाया और वापस अपने घर की और चल दिए। रास्ते में दोनो सोच रहे थे की आखिर घर जा कर क्या कहेंगे। हम कहा थे? हमे क्यों इतनी देर हो गई? दोनो के पास इस बात का कोई जवाब न था। देखते ही देखते वो अपने घर पहुंच गए। जैसे उन्होंने अपने महोल्ले में कदम रखा सभी महोल्ले वासियों ने उनको देख चैन की सांस ली और बोले –

“अरे देखो..!! आ गए ये दोनों…!! चलो शुक्र है..!! बच्चे मिल गए है..!!”

लोगो की आवाज सुन कर उनके मां बाप तुरंत वहां दौड़ कर आ गए। देखा तो सुरेश पसीने से तरबतर हुआ रखा था और रमेश के कपड़े फटे हुए थे। कोई समझ नहीं पा रहा था की आखिर इन दोनो के साथ हुआ क्या था। तभी किसी ने उन दोनों से पूछ ही लिया –

“अरे, रमेश और सुरेश कहा रह गए थे दोनों अब तक.. तुम्हे पता भी है यहां तुम्हारे मां बाप कितने चिंता में थे।”

यहां दोनो को अब कुछ सूझ नहीं रहा था अब उन्हें लग रहा था की अगर हमने सच कहा तो हमारी पिटाई होनी तय है और अगर कोई बहाना बना दे लेकिन बहाना बनाये भी तो क्या..?? उनकी सोच ने उनका साथ देना छोड़ दिया था। कुछ देर तक मौन रहने के बाद सुरेश ने हिम्मत जुटाते हुए कहा –

“हम दोनो एक गेंद खेल रहे थे.. खेलते खेलते हमे पता ही नही चला हम कहा आ गए थे। खेल खेल में हमारी गेंद एक बड़े से गड्ढे में जा गिरी। रमेश ने कहा की वो गेंद निकल कर आयेगा किंतु उसका पैर फिसलने से वो भी गड्ढे में गिर गया और आखिरकार में उसे उस गड्ढे में से बाहर निकाल कर लाया हूं।”

सबने दोनो की बात बड़े ध्यान से सुनी और सब एक साथ हस पड़े और दोनो के मां बाप उन्हे गुस्से से देख रहे थें। किसी ने बोला –

“वाह वाह..!! क्या कहानी घड़ी है..!!! क्या हम तुम्हे बेवकूफ नज़र आ रहे है। सुरेश, तुम..!! जो एक पानी की बाल्टी तक ठीक से नहीं उठा सकता वो अपने से दो साल बड़े लड़के को एक बड़े और गहरे गड्ढे में से बाहर निकल कर आ गया। अरे कोई बहाना ही बनाना था तो अच्छा सोच के बनाते..!! ये तो तुम आसानी से पकड़ में आ गए।”

सबकी बातो को नकारते हुए सुरेश ने दबाव देके कहा –

सुरेश – “नहीं, में सच कह रहा हूं। मेने ही रमेश को बाहर निकाला है..!!”

उसके इतना बोलने पर भी किसी ने भी उसकी बात पर भरोसा नहीं किया यहां तक उनके मां बाप तक को उन पर भरोसा न था।

तभी सबसे पीछे खड़े हुए एक बुजुर्ग आदमी जो गांव के सरपंच भी थे उन्होंने कहा –

“यह बच्चा सच कह रहा है..!! मेरा तजुर्बा कह रहा है यह सच बोल रहा है। उसकी आंखों में मुझे डर नहीं दिख रहा जो अक्सर झूठ बोलने वालो की आंखों में नजर आता है। मुझे उनके हाव भाव में कप कपाहट महेसुस नहीं हो रही जो एक झूठे आदमी में दिखाई पड़ती है। उनके कपड़े और पसीने से तरबतर सुरेश का शरीर ये गवाही दे रहा है की उसने ही बड़े परिश्रम से रमेश को गड्ढे से बाहर निकाला है।”

सरपंच जी की बातो को चुनौती देने की किसी में हिम्मत नही थी। आखिर कार सबने मान लिया की सुरेश ने सच में रमेश की जान बचाई है।

लेकिन अब भी सब सोच में थे की आखिरकार इस लड़के से ये कार्य मुमकिन कैसे हुआ? वहा सरपंच जी ने सबके चहेरे पढ़ लिए थे। उन्होंने सब का शक दूर करते हुए कहा –

“यहां सुरेश के पास कोई रास्ता नहीं था क्योंकि जैसा उसने कहा वहा आस पास में कोई इंसान मौजूद नहीं था और रमेश ऐसे हालात में ज्यादा देर तक जिंदा ना रह पाता इसलिए उसने ही खुद से हिम्मत जुटाई और ये कारनामा जो की असंभव जान पड़ता है वो कर के दिखा दिया और साथ ही साथ उस वक्त उसे कोई ये कहने वाला नहीं था की ये कार्य तुजसे नहीं हो पायेगा। इस वजह से उसकी हिम्मत ना टूटी और खुद पर भरोसा करते हुए उसने यह कार्य करके दिखा दिया।”

शीर्षक – “हमारी निजी जिंदगी में भी कई बार ऐसे ही हालात बन जाते है  उन परिस्थितियों से बाहर निकल ने के लिए खुद पर भरोसा होना बहुत जरूरी होता है सोचो की यह काम तुम्हारे अलावा और कोई नही कर सकता और दूसरो की बातो पर ध्यान ना देते हुए हमेशा खुद के काम पर ही ध्यान केंद्रित रखना चाहिए तभी हमे जीवन में सफलता (success) हासिल हो सकती है।”

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