पापांकुशा एकादशी 2023 कब है? (Papankusha Ekadashi kab hai?)
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 25 अक्तूबर 2023, बुधवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 26 अक्तूबर 2023 सुबह 6.37 मिनट से सुबह 8.54 मिनट तक
पापांकुशा एकादशी तिथि (Papankusha Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 24 अक्तूबर 2023 मंगलवार दोपहर 3.14 मिनट से
समाप्ति – 25 अक्तूबर 2023 बुधवार दोपहर 12.32 मिनट तक
पापांकुशा एकादशी का महात्मय (Papankusha Ekadashi Ka Mahatmay)
भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से धर्मराज युधिष्ठिर ने अश्विन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली इंदिरा एकादशी व्रत की कथा सुनकर कहा –
युधिष्ठिर – “हे मधुसूदन..!! आपके श्री मुख से अश्विन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली इंदिरा एकादशी के महात्म्य और कथा सुन कर में तृप्त हो गया हूं अब में आपसे अश्विन माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी की कथा और महात्म्य सुनाने का इच्छुक हुं। इस एकादशी व्रत का क्या नाम है? इस एकादशी व्रत से किन पुण्यफल की प्राप्ति होती है? इस व्रत को करने का क्या विधान है? यह आप मुझे विस्तार पूर्वक बताने की कृपा करें।”
श्री कृष्ण – “हे कुंटीनंदन..!! अश्विन माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी को पापांकुषा एकादशी(Papankusha Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी के व्रत से मनुष्य के सभी पापो का नाश होता है। इस एकादशी व्रत के फल स्वरूप मनुष्य को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।”
अश्विन माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के दिन सुयोग्य फ़ल की प्राप्ति हेतु मनुष्य को भगवान श्री विष्णु की पूजा उपासना करनी चाहिए। पूर्ण विधि विधान से भगवान श्री विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस पूजन से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होते है और मनुष्य को इच्छित वर की प्राप्ति सहज रूप से प्राप्त होती है। हे धर्मराज, जो फ़ल प्रभु की कठोर तपस्या करने पर प्राप्त होता है वही फल इस एकादशी के दिन व्रत अनुष्ठान से सहज रूप से मनुष्य को प्राप्त हो जाता है। इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा से करने वाले मनुष्य को कभी यम दंड का भय नहीं रहता।
मनुष्य को अपने जीवनकाल में सदैव पाप कर्म करने से बचना चाहिए। भगवान श्री हरि विष्णु का किसी भी स्वरूप में पूजन और स्मरण हमेशा सुखदाई और पापनाशक रहता है, किंतु पापांकुशा एकादशी(Papankusha Ekadashi) के दिन किया जानेवाला भगवान श्री हरि का पूजन और कीर्तन मनुष्य के सभी कष्टों का निवारण करता है। इस व्रत के फ़ल स्वरूप मनुष्य को स्वर्गलोक की प्राप्ति सहज रूप से प्राप्त होती है।
हे राजन.!! अब में तुम्हें इस एकादशी व्रत की कथा सुनने जा रहा हु अतः तुम इसे बड़े ध्यान से सुनना…!!
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा (Papankusha Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीन काल में विंध्य पर्वत माला में क्रोधन नामक एक बहेलिया निवास करता था। वह अपने स्वभाव से बड़ा ही क्रूर और अत्याचारी था। उसने अपना सम्पूर्ण जीवन लूटपाट, मधपान, पर स्त्री गमन, और पाप कर्मियो की संगति में ही व्यतीत किया हुआ था।
एक दिन जब उस बहिलिए का अंतिम समय आया तब यमराज ने अपने यमदूतों को भेज कर उसे संदेशा पहुंचाया।
यमदूत – “हे क्रूर..!!! तुम्हारे जीवन का अब अंतिम समय आ गया है। कल तुम्हारा अंतिम दिन है कल हम तुम्हे लेने आ रहे है।”
बहलिये ने जब यह बात सुनी तो उसके होश उड़ गए थे और वह भय का मारा व्याकुल हो गया था। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था की वह इस अवस्था में क्या करें। अतः वह वन वन भटकता ऋषि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा। आश्रम में ऋषि को अपने सम्मुख पा कर उनके श्री चरणों ने नतमस्तक हो कर प्रार्थना करने लगा –
क्रोधन – “हे मुनिश्रेठ…!! मेने अपने जीवनकाल में सदैव पाप कर्म ही किए है। मेरा अंतिम समय अब निकट आ गया है और में भय के मारे व्याकुल हो गया हुं। हे शरणागत वत्सल..!! आप अपनी शरण में आएं इस पापी दुराचारी का उद्धार करें मुझे इस पाप कर्म से मुक्ति दिलाने का कोई उपाय बताएं।”
अपनी शरण में आए मनुष्य का उद्धार करना एक ऋषि का परम कर्तव्य होता है इसी कर्तव्य के अनुसार ऋषि अंगिरा ने कहा –
ऋषि अंगिरा – “हे दुराचारी..!! तुमने सत्य कहा…!! तुमने अपने जीवनकाल में कोई पुण्य कर्म नहीं किया है। किंतु यह प्रभु की ही दिव्य लीला है की जो तुम्हे अपने अंतिम समय में सद बुद्धि प्रदान कर मुझ समक्ष प्रस्तुत किया है। अतः हे क्रोधन..!! अपनी इस पाप मुक्ति का उपाय बड़े ही ध्यानपूर्वक सुनना…!! अब से अश्विन माह के शुक्लपक्ष की आनेवाली एकादशी तिथि जिसे पापांकुशा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है उसका विधि विधान से व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सभी पाप कर्मों का नाश हो जायेगा और तुम स्वर्ग के भागी बनोगे।
महर्षि अंगिरा के कथानानुसार उस बहलिए क्रोधन ने पूर्ण श्रद्धा और विधि विधान से पापांकुशा व्रत(Papankusha Ekadashi) का अनुष्ठान किया और स्वयं को पूर्ण रूप से श्री हरि विष्णु को समर्पित करते हुए व्रत का समापन भी किया। व्रत और भगवान श्री हरि विष्णु के पूजन फ़ल स्वरूप बहालिए के सारे पापो का नाश हो गया और वह भगवान श्री हरि विष्णु के भेजे गए गरुड़ पर सवार हो कर अपने परम धाम विष्णुलोक को प्राप्त हो गया। यमराज के भेजे गए यमदूत बड़े ही कुतुहल से इस संपूर्ण लीला को देखते रहे और बहलिए को साथ लिए बिना ही पुनः यमलोक प्रस्थान कर गए।
हे युधिष्ठिर..!! इस कथा का श्रवण करने से मनुष्य के सर्व पापो का नाश होता है। मनुष्य की कुमति सुमति में परिवर्तित हो जाती है। इस एकादशी व्रत में भगवान श्री हरि विष्णु का किया हुआ पूजन अनंत फ़ल प्राप्ति करवाता है। अपने पाप कर्मों से हमेशा भयभीत रहने वाले मनुष्यों को सदा इस एकादशी का व्रत अनुष्ठान पूर्ण श्रद्धा और समर्पण भाव से करना चाहिए। व्रत की समाप्ति में निमंत्रित ब्राह्मणों को उचित दक्षिणा दे कर संतुष्ट मन से विदा करना चाहिए।
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