योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) 2023 कब है?
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 14 जून 2023, बुधवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 15 जून 2023 सुबह 5.51 मिनट से सुबह 8.32 मिनट तक
योगिनी एकादशी तिथि (Yogini Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 13 जून 2023 मंगलवार सुबह 9.28 मिनट से
समाप्ति – 14 जून 2023 बुधवार सुबह 8.48 मिनट तक
आगे पढ़े – निर्जला एकादशी व्रत कथा – Nirjala Ekadashi Vrat Katha In Hindi
योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) व्रत कथा
हिन्दू धर्म मे व्रत और उपवास पर्व का एक विशष्ट महत्व है। हर हिन्दू परिवार धार्मिक अनुष्ठान या उत्सव के पर्व पर उपवास या व्रत अवश्य रखा करते है। उसी तरह व्रत में सबसे सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी व्रत को माना जाता है। एकादशी का व्रत साल में कुल 24 बार आता है यानी हर माह में 2 एकादशियां होती है, शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष में।
पद्मपुराण के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर जनकल्याण हेतु भगवान श्रीकृष्ण से एकादशी व्रत के महात्मय के बारे में विस्तार से चर्चा कर रहे है और हर माह में आती एकादशी तिथि का क्या महत्व है और उसी एकादशी तिथि को किस नाम से जाना जाता है और उसकी विशेष कथा के बारे में पूछ रहे है।
युधिष्ठिर – “है मधुसूदन, आपके श्री मुख से एकादशी व्रत का महात्मय सुनने के बाद अब मुज़े कृपा करके आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष में आनेवाली एकादशी तिथि के बारे में विस्तार से बताने की कृपा करें। इस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है एवं इस एकादशी की कथा का वर्णन आप अपने श्री मुख से सुनाने की कृपा करें…!!”
राजा युधिष्ठिर के वचन सुन भगवान श्रीकृष्ण ने कहा –
श्रीकृष्ण – “है कुंतीपुत्र, आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष में आनेवाली एकादशी को योगिनी एकादशी(Yogini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। योगिनी एकादशी का व्रत सर्वपाप नाशक है। इस एकादशी व्रत के फल स्वरूप मनुष्य इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति प्रदान होती है। अब में तुम्हे इस व्रत से जुड़ी कथा सुनाने जा रहा हु तो इसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना।
प्राचीनकाल में स्वर्गलोक की नगरी अलकापुरी में कुबेर नामक एक राजा राज करता था। वह परम शिवभक्त था। उसे हिममाली नामक एक यक्ष सेवक भी था वह प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा के लिए मानसरोवर से फूल लेकर आया करता था। उसे विशालाक्षी नामक एक सुंदर भार्या भी थी।
एक दिन की बात है हेममाली अपनी दिनचर्या के अनुसार मानसरोवर जा कर पुष्प एकत्रित कर वापस आया किन्तु आज उसकी वृति कामासक्त हो गई थी। इसी कारण से वह पुष्प को अपने पास ही रख अपनी सुंदर भार्या के संग रतिक्रीड़ा में मग्न हो गया। वो इतना मग्न था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब दुपहर हो गई।
हेममाली की राह तकते तकते जब राजा कुबेर ने देखा कि दुपहर हो गई है तो उन्होंने क्रोध में आकर आपने सेवको को एकत्रित किया और आज्ञा दी कि जाओ और देख कर आओ यह हेममाली अभी तक पुष्प लेके क्यों नही आया। सेवक राजा की आज्ञा पा कर तुरंत हेममाली की खोज में निकल पड़े। कुछ समय प्रश्चात उन्होंने पता लगाया कि हेममाली तो वापस अपने नगर कब का आ पहुंचा है और अपने स्त्री के साथ रतिक्रीड़ा में मग्न है। सभी भजे हुए सेवक वापस दरबार मे आकर राजा कुबेर को सारा वृतांत सुनाते है।
राजा सारा वृतांत सुन कर अत्यंत क्रोध में आकर तुरंत अपने सेवको को आज्ञा देता है कि जाओ और जा कर हेममाली को दरबार में ले कर आओ। राजा की आज्ञा पा कर सेवक हेममाली को अपने संग दरबार मे ले कर आते है। हेममाली डर से थर थर कांपता हुआ अपने राजा के समक्ष दरबार मे आता है। राजा के समक्ष आते ही राजा के क्रोध से भरे हाव भाव देख कर हेममाली के होंठ फड़फड़ाते ने लगते है। हेममाली की दशा देख राजा और क्रोध में आये और उन्होंने कहा –
राजा कुबेर – “हे अधमी..!!! मैंने तुजे अपने परमपूज्य देवो के देव महादेव के पूजन के लिए पुष्प लाने भेजा था किंतु तू अपना कार्य भूल अपनी भार्या के साथ रतिक्रीड़ा में मग्न हो गया। तुज जैसे नाराधमी को इस लोक में रहने का कोई अधिकार नहीं है। जा में तुजे श्राप देता हूं जिस पत्नि के संग तू रतिक्रीड़ा में मग्न था उसी पत्नी से तेरा वियोग हो जाये। तू उसके विरह में तड़पे और अभी इसी क्षण मृत्युलोक में जा कर एक कोढ़ी का जीवन व्यतीत करें।”
एक धर्मपरायण राजा के श्राप के कारण वह यक्ष तुरंत मृत्युलोक में जा पहुँचा और अपने प्राणप्रिय पत्नी के वियोग में दुःख सहता हुआ एक कोढ़ी का जीवन व्यतीत करने लगा। मृत्युलोक में उसने भयंकर कष्ट सहे किन्तु महादेव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे अपने पूर्व जन्म की सभी सुध रही। वह अब महादेव की शरण में जाने की लिए अपने सर्व कष्टों को सहता हुआ और अपने पूर्व जन्म के कुकर्मों को याद करता हुआ कैलास की और चल पड़ा।
गिरते संभलते अपने पथ पर चलते हुए वह महर्षि मार्कण्डेय के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि मार्कण्डेय परम पिता ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे। वह परम वृद्ध और उनका आश्रम ब्रह्मा के दरबार के समान दिखाई पड़ रहा था। हेममाली ऋषि के समीप आकर उनके चरणों मे गिर पड़ा।
हेममाली की दुर्दशा देख ऋषि मार्कण्डेय उससे वार्तालाप करने लगे और कहा – “हे कुष्ठरोगी..!! तूने अपने जीवनकाल में ऐसे कोनसे कुकर्म किये है जिससे तुजे इस तरह कोढ़ी की भांति जीवन व्यत्तित करना पड़ रहा है।”
महर्षि मार्कण्डेय की बात सुन हेममाली अपनी व्यथा व्यक्त करने लगा – “है मुनिश्रेष्ठ…!!! में स्वर्गलोक में स्तिथ अलकापुरी नगरी के राजा कुबेर का एक तुच्छ सेवक हूं। मेरा नाम हेममाली है। मेरा कार्य प्रतिदिन मानसरोवर जा कर पुष्प एकत्रित कर महाराज केबुर को शिव पूजा के समय देना था। किंतु एक दिन कामासक्त हो कर पत्नी सहवास की इच्छा में फंस के में समय पर महाराज को पुष्प पहुंचा न सका। इस कारणवश महाराज ने मुजे कुपित हो कर श्राप दिया कि में अपनी प्राणप्रिय पत्नी से दूर हो जाऊं और मृत्युलोक जा कर एक कोढ़ी की दशा में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करूँ। महाराज के इसी श्राप की वज़ह से मेरी यह दशा हुई है। में कोढ़ी बन गया हूं और पृथ्विलोक में आकर अपार दुःख भुगत रहा हूँ अतः हे मुनिश्रेठ मेरी इस दशा से मुक्ति का कोई उपाय मुजे बताये।
मार्कण्डेय ऋषि ने हेममाली के करुण वचन सुन कर कहा –
महर्षि मार्कण्डेय – “हे हेममाली..!! मेने तुम्हारी सम्पूर्ण वाणी सुनी तुमने मुजसे सत्य वचन कहे है, इसीलिए में तुम्हे इस बाधा से निकल ने का एक उपाय तुम्हें बताता हूँ। यदि तुम आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली योगिनी नामक एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धपूर्वक करो तो तुम्हें तुम्हारे सर्व पापो से मुक्ति मिल सकती है।
महर्षि के दिव्य वचन सुन हेममाली ने पूर्ण श्रद्धा से विधिविधान पूर्वक योगिनी एकादशी(Yogini Ekadashi) का व्रत रखा और इस व्रत के प्रभाव से वह फिर से अपने यक्ष स्वरूप में आ गया और अपनी प्राणप्रिय पत्नी के साथ भोग विलास से रहने लगा।
भगवान श्रीकृष्ण इस व्रत का महात्मय समजाते युधिष्ठिर को कहते है –
श्रीकृष्ण – “है राजन, इस योगिनी एकादशी की कथा आपने सुनी और इसी योगिनी एकादशी व्रत का पुण्यफ़ल पूरे 88000 ब्राह्मण भोज के बराबर होता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो कर अंत समय मे मोक्ष का भागी बनाता है और स्वर्गलोक को जाता है।”