विजया एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Vijaya Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

विजया एकादशी 2024 कब है? (Vijaya Ekadashi kab hai?)

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 06 मार्च 2024, बुधवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 07 मार्च 2024 दोपहर 01:51 मिनट से दोपहर 04:12 मिनट तक

विजया एकादशी तिथि (Vijaya Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 06 मार्च 2024 बुधवार सुबह 06:30 मिनट से
समाप्ति – 07 मार्च 2024 गुरूवार सुबह 04:13 मिनट तक

विजया एकादशी का महात्मय (Vijaya Ekadashi Ka Mahatmay)

भगवान श्री हरी कृष्ण के श्री मुख से माघ माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली जया एकादशी की व्रत कथा सुन कर युधिष्ठिर बोले –

युधिष्ठिर – “हे केशव..!! आपके श्री मुख से माघ माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली जया एकादशी के व्रत की कथा और महात्मय सुन में भाव विभोर हो गया हुँ। अब में फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में जानने की लिए इच्छुक हुँ। इस एकादशी को किस नाम से जाना आता है? इस एकादशी पर्व का क्या महात्मय है? इस एकादशी व्रत का क्या विधान है? इस एकादशी व्रत को करने से किन पुण्यफ़ल की प्राप्ति होती है? यह सब मुझे विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।

श्री कृष्ण – “हे पाण्डुपुत्र..!! फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को विजया एकादशी(Vijaya Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का व्रत मनुष्य को अपने शत्रुओ पर विजय पाने हेतु करना चाहिये। इस एकादशी का व्रत सभी वृतो में सबसे उत्तम और श्रेष्ठ है। जब मनुष्य भयंकर शत्रुओ से घीरा हो और उसे अपनी पराजय अपने समुक्ख दिखाई दे रही हो इस विकट अवस्था में भी विजय प्राप्त करने क्षमता विजया नामक एकादशी रखती है। जो भी मनुष्य अपनी पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से विजया एकादशी का श्रवण या पठन करता है उसके सारे पापो का नाश सहज़ रूप से हो जाता है।”

श्री कृष्ण बोले – “हे राजन, अब में तुम्हे इस एकादशी की कथा सुनने जा रहा हुँ जो स्वयं ब्रह्माजी ने अपने पुत्र नारद को सुनाई थी। अतः तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनना”

Vijaya-Ekadashi-Vrat-Katha

विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha)

एक समय देवर्षी नारदजी ब्रह्मलोक गये और परम पिता ब्रह्माजी से कहने लगे –

देवर्षी नारद – “हे परम पिता, में आपसे आज फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी के महात्मय को सुनना चाहता हुँ। अतः मेरी इस याचना को पूर्ण करें।

ब्राह्मजी – “हे पुत्र, तुमने आज बड़ा ही उत्तम विचार प्रगट किया है। फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को विजया एकादशी(Vijaya Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। अब में तुम्हे इसकी कथा सुनाने जा रहा हुँ अतः बड़े ध्यान से सुनना।

त्रेता युग में जब भगवान श्री विष्णु के सप्तम अवतार श्री रामचन्द्रजी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ तब वे माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ पंचवटी में निवास करने लगे। वंहा जब लंकापती रावण ने छल से माता सीता का हरण किया तब इस समाचार को प्राप्त करके भ्राता लक्ष्मण और प्रभु श्री रामचंद्रजी बहोत दुखी और व्याकुल हो कर माता सीता की ख़ोज में निकल पड़े।

खोजते खोजते जब वे मरणासन्न पक्षीराज जटायु के समक्ष पहुंचे तब जटायु ने उन्हें सारा वृतांत सुना कर वह स्वर्ग सिधार गये। जटायु के कथनासूर दोनों दक्षिण दिशा की ओर माता सीता की ख़ोज करने आगे बढ़े। आगे चलाते उनकी भेंट पवनपुत्र श्री हनुमानजी से हुई और पवनपुत्र हनुमानजी द्वारा उनकी मित्रता वनारराज सुग्रीव से हुई। सुग्रीव के साथ मित्रता के चलते बाली का वध हुआ। हनुमानजी सीता माता की ख़ोज करते हुए लंकापति रावण की नगरी में आ पहुंचे वंहा माता सीता के दर्शन प्राप्त कर वापस उनका संदेशा ले कर वह श्री राम के पास पहुंचे। प्रभु श्री राम ने विलम्ब ना करते हुए लंका पर चढ़ाई की घोषणा कर दी। अपनी विशाल वानर सेना के संग वह विशाल समुद्र तट पर आ गये। समुद्र इतना विशाल था के उन्हें अब आगे कुच करने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था। घोर चिंता में डूबे हुए प्रभु श्री राम ने जब लक्ष्मण जी से अपनी व्यथा कही तब लक्ष्मण जी ने कहा –

‘हे प्रभु आप सर्वग्य है। संसार में आपसे कोई बात छुपी नहीं है। फिर भी आप मुझे अपना दास समज मुझ पर कृपा करते हुए मुजसे इस समस्या का समाधान पूछ रहे है तो सुने – “यहाँ से आधा जोजन दूर कुमारी द्वीप में महर्षि वकदाल्भ्य नामक ऋषि निवास करते हे। वह परम तपस्वी और ज्ञानी है उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे है। अतः वह हमारी इस समस्या का समाधान अवश्य निकल सकते है। लक्ष्मणजी की बात सुन प्रभु श्री रामचंद्रजी बिना विलम्ब किये ऋषि श्री वकदाल्भ्य जी के आश्रम आ पहुंचे।

वंहा उन्होंने ऋषि को सादर नमन करते हुए उनके सम्मुह आसान लगा कर बैठ गये। तब ऋषि अपनी साधना में लीन थे जब वह जागृत अवस्था में आये तब अपने सम्मुख प्रभु श्री राम को पाते वह हर्षित हो उठे। किन्तु प्रभु के मनुष्य अवतार की मर्यादा को जान उन्होंने प्रभु श्री राम से वंहा आने का प्रयोजन पूछा। प्रभु श्री राम ने कहा – “हे मुनिश्रेष्ठ..!! में मेरी भार्या सीता की ख़ोज में निकला हुँ जिसका छल से अपहरण कर दुष्ट रावण अपनी लंकापुरी ले गया है। में वनारराज की वानर सेना के साथ इस विशाल समुद्र के सम्मुख खड़ा हुँ और आपसे निवेदन करता हुँ की इस विशाल समुद्र को सेना सहित पार करने का कोई संभव उपाय मुझे कहे।

श्री रामचंद्रजी से सारा वृतांत सुन महर्षि बोले – “हे राम, इस विशाल समुद्र को लाँगना अत्यंत जटिल है किन्तु फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी(Vijaya Ekadashi) व्रत के माध्यम से ये जटिल कार्य भी अति सरलरूप से संभव हो सकता है। में अपनी दिव्य दृष्टी से देख रहा हुँ आप इस एकादशी का व्रत कर निश्चित रूप से विजय प्राप्त करेंगे। अब हे राम में तुम्हे इस व्रत की विधि सुनने जा रहा हुँ अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना। फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के दिन स्वर्ण, चांदी, ताम्र या फिर मिट्टी का एक घड़ा बनाये। उस घड़े को जल से भरकर पांच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के निचे सतनजा और ऊपर जौ रखे और प्रभु श्री नारायण की स्वर्ण की प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्वच्छ गंगा जल से स्नान कर बाकि नित्य क्रिया को पूर्ण करते हुए धुप, दीप, नैवेध्य, श्रीफल आदि से भगवान का श्रद्धांपूर्वक पूजन करें।

उसके पश्चात उस घड़े के सम्मुख बैठ कर भगवान श्री हरी का ध्यान धरते हुए अपना दिन व्यतीत करें और रात्रि को भी उस घड़े के सम्मुख बैठ कर भगवान श्री हरी का जयकारा लगाते हुए जागरण करें। अगले दिन द्वादशी तिथि के दिन अपने नित्य नियम से निवृत हो कर उस घड़े को योग्य ब्राह्मण को दान कर दे।

हे राम!! अगर तुम भी इस व्रत का अनुष्ठान अपने सेनापतियों सहित करोगे तो निश्चित रूप से तुम्हारी विजय होंगी। प्रभु श्री रामचंद्रजी ने मुनिश्रेष्ठ के कथननुसार इस व्रत का अनुष्ठान किआ और रावण जैसे दुष्ट दैत्य पर अपनी विजय प्राप्त की।

अतः हे कुंतीनंदन..!! जो भी मनुष्य इस व्रत को पूर्ण विधि विधान से मन में पूर्ण श्रद्धा रखते हुए करता है उसे निश्चित रूप से दोनों लोको पर विजत प्राप्त होती है। ब्रह्माजी ने नारद से यह कहा है की जो भी मनुष्य इस(Vijaya Ekadashi) व्रत का पठन या श्रवण करता है उसे वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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