वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा सम्पूर्ण – Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Sampurn In Hindi

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 27 अप्रेल 2024, शनिवार को है।

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 27 अप्रेल 2024, शनिवार को रात्रि के 10 बजकर 21 मिनट पर है।

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)

प्रारंभ – 27 अप्रेल 2024 शनिवार को सुबह 8 बजकर 17 मिनट से
समाप्त – 28 अप्रेल 2024 रविवार को सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक

Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी महात्मय (Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Mahatmay)

एक बार माँ पार्वती ने भगवान गणेश से पूछा वैशाख माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली संकट चतुर्थी(Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi) को किस नाम से जाना जाता है। इस चतुर्थी में तुम्हारे कौन से स्वरुप का पूजन किया जाता है? उसका क्या विधान है और उस दीन भोजन में क्या ग्रहण करना चाहिये?

गणेश जी ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया –

गणेशजी – “हे माता..!! आपने बड़ा उत्तम प्रश्न पूछा है। वैशाख माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली संकट चतुर्थी(Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi) को “विकट संकट चतुर्थी” के नाम से जाना जाता है। इस चतुर्थी पर मेरे “विकट” स्वरुप की पूजा की जाती है तथा व्रत के पश्चात रात्रि में कमलगट्टे का हलवा भोज के स्वरुप में ग्रहण किया जाता है। हे माते..!!! द्वापर युग में राजा युधिष्ठिर ने भी यही प्रश्न भगवान श्री कृष्ण से पूछा था, और उत्तर में जो भगवान श्री हरी कृष्ण ने कहा था वही में अपने शब्दों में आपसे कह रहा हुँ अतः आप इसे ध्यानपूर्वक सुनिए गा।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा – “हे राजन, इस कल्याण कारी व्रत का जिस किसी ने अनुष्ठान किया है और इस व्रत को करने से जिस पुण्यफ़ल की प्राप्ति होती है वही में तुम्हे एक कथा के माध्यम से कह रहा हुँ। अतः तुम इसे अब ध्यानपूर्वक सुनना।

वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)

प्राचीन काल में रंतिदेव नामक एक परम प्रतापी राजा हुए थे। जैसे अग्नि तृण को जला कर राख कर देती है वैसे ही वो अपने शत्रुओ का विनाश कर देते थे। उनकी मित्रता यम, कुबेर और इंद्रादी देवताओं से थी। उन्हीं के राज्य में धर्मकेतु नामक एक श्रेठ ब्राह्मण रहा करते थे। उनकी दो पत्नियां थी, उन में से एक का नाम था सुशीला और दूसरी का नाम चंचला था। सुशीला शुरू से ही धर्मकाज में अंग्रेसर थी और नित्य कोई ना कोई व्रत अनुष्ठान किया करती थी। व्रत के फलतः उसका शरीर दीन प्रति दीन दुर्बल होता जा रहा था। उसके बिलकुल विपरीत चंचला का मन धर्मकाज में कभी नहीं लगता था और वो कोई व्रत और उपवास किया नहीं करती थी और हर पल भरपेट भोजन किया करती थी।

कुछ समय पश्चात दोनों ने गर्भ धारण किया और सुशीला को सुन्दर लक्षणों वाली एक कन्या की प्राप्ति हुई और वही चंचला को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्ररत्न की प्राप्ति होने पर चंचला का अभिमान उसके सर चढ़ कर बोलने लगा। वो अब बारम्बार सुशीला को ताने मारने लगी थी।

“अरे सुशीला, तूने अपने जीवनकाल में कितने व्रत उपवास किये और अपने शरीर को दुर्बल बना डाला और बदले में तुझे क्या मिला एक कृशकाय कन्या..!! यहाँ मुझे देख में कभी व्रत उपवास के चक्कर में नहीं पड़ी और हमेंशा भरपेट भोजन करके ह्रष्ट-पृष्ट ही रही और मुझे मेरी ही तरह ह्रष्ट-पृष्ट एक पुत्र का जन्म भी हुआ है।

अपनी सौत के व्यंग्य बान सुशीला के ह्रदय को आहात करने लगे। वो परम पतीव्रता स्त्री अब विधिवत गणेशजी की उपासना करने लगी थी। अब सुशीला ने संकटनाशक गणेशजी(Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi) का व्रत किया उसकी श्रद्धा और व्रत अनुष्ठान से प्रसन्न हो कर गणेशजी ने उसे रात्रि को स्वप्न में आकर दर्शन दिए।

श्री गणेशजी ने कहा – “हे पुत्री, में तुम्हारी निस्वार्थ आराधना से अत्यधिक प्रसन्न हुँ। तुम्हारे व्रत अनुष्ठान से प्रसन्न हो कर में तुम्हे वरदान देता हुँ की तुम्हारी कन्या के मुख से सदैव मोती और मूंगा  ही प्रवाहित होंगे। हे सुशीले, इससे तू सदैव प्रसन्नचित रहेगी। इतना ही नहीं तुझे वेद शास्त्र वेत्ता एक पुत्र की प्राप्ति भी होंगी। इस प्रकार वरदान दे कर श्री गणेशजी अंतर्ध्यान हो गये।

प्रातः काल होने पर जब सुशीला ने देखा तो वरदान के फलस्वरुप  उसकी पुत्री के मुख से मोती और मूंगा झड़ने लगे। कुछ समय पश्चात सुशीला को एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई और उसके कुछ समय पश्चात धर्मकेतु का स्वर्गवास हो गया। अपने पति की मृत्यु के पश्चात चंचला घर का सारा धन समेत कर दूसरे नये घर जा कर रहने लगी। वहाँ सुशीला पतिगृह में रह कर अपने पुत्र और पुत्री का भरण पोषण करने लगी थी।

गणेशजी द्वारा मिले हुए वरदान स्वरुप अपनी पुत्री के मुख से सदैव प्रवाहित होते रहते मोती और मूंगा के कारण वो अल्प समय में ही बहुत सारा धन एकत्रित करने में सफल है गई थी। सुशीला की सुख और समृद्धि को देख चंचला दीन प्रतिदिन उस पर इर्षा करने लगी। उसी इर्षा के चलाते एक दीन हत्या करने के मन से चंचला ने सुशीला की पुत्री को कुवे में धकेल दिया। उस कुवे में प्रभु श्री गणेशजी ने उसकी रक्षा की और उसे सह कुशल अपनी माता के पास वापस पहुंचा दिया। उस बालाकी को जीवित देख कर चंचला का मन आश्चर्य से भर गया। वह सोचने लगी जिसकी रक्षा स्वयं ईश्वर करते हे उसे कौन मार सकता है भला। उधर सुशीला अपनी पुत्री को पुनः सहकुशल पाकर बहुत प्रसन्न हुई और कहने लगी – “यह सब भगवान श्री गणेशजी की ही लीला है, उन्होंने ही तुझे जीवन दान दिया है। अनथो के नाथ है श्री गणेशजी।” वहाँ चंचला सब सुन रही थी, अपनी कर्मो से ग्लानि की अनुभूति पा कर वो तुरंत जाकर सुशीला के चरणों में गिर कर नतमस्तक हो गई। उसे देख सुशीला के आश्चर्य  का ठिकाना नहीं रहा।

चंचला अपने कर्मो को माफ़ी मांगते हुए कहने लगी – “हे बहन सुशीले..!! मेने अपने जीवन में बहुत कुकर्म किये है। मेने आपका बहुत अहित और अपमान किया है। आप मेरे इन अपराधों को क्षमा कीजिये। आप दयावती है, आपने ही अपने सत्कार्मो द्वारा दोनों कुलो का उद्धार किया है। जिनके रक्षक स्वयं भगवान होते है उनके इंसान भला क्या बिगाड़ सकते है। जो लोग संतो और सतपुरुषों में सदैव दोष देखा करते है वो स्वतः ही अपनी करनी के फल स्वरुप नाश को प्राप्त होते है।

इसके पश्चात चंचला ने भी संकट नाशक कष्ट निवारक पुण्यकारी भगवान श्री गणेशजी के(Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत का अनुष्ठान किया। श्री गणेशजी के व्रत के फल स्वरुप दोनों स्त्रियों में अब परस्पर प्रेमभाव स्थापित हो गया था। जो मनुष्य अपनी पूर्ण श्रद्धा से गणेशजी की पूजा आराधना करते है उसके शत्रु भी मित्र में परिवर्तित हो जाते है। यहाँ सुशीला द्वारा किये गये संकटनाशक श्री गणेशजी के व्रत अनुष्ठान से चंचला का ह्रदय परिवर्तन हुआ था।

भगवान श्री हरी कृष्ण कहते है – “हे धर्मराज, आप भी विधि विधान से इस संकट नाशक कष्ट निवारक श्री गणेशजी का व्रत अनुष्ठान करें। इसके चलाते अपाको अष्टसिद्धियो एवं नवनिधियों की प्राप्ति होंगी। हे कुन्तिनन्दन..!! आप इस व्रत का अनुष्ठान अपनी माता, धर्मपत्नी, सभी भ्राताओ के साथ कीजिये। इस व्रत के पुण्यप्रभाव से आपको पुनः आपके राज्य की प्राप्ति कुछ ही समय में हो जाएगी।”

श्री गणेशजी माता पार्वती से कहते है – “हे माते..!! मेने पूर्वकाल का सारा वृतांत आपको सुना दिया। इस युग में भी इस(Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत से श्रेठ और कोई विघ्नविनाशक व्रत नहीं है।”

 

और पढ़े –

 

Leave a Comment