माता कात्यायनी की कथा – Story Of Mata Katyayani

माता कात्यायनी माँ दुर्गा का ही एक स्वरुप है। नवरात्र के छठवे दिन माता कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है। माता कात्यायनी का वर्ण सूर्य के समान चमकिला और प्रकाशवान है। माता कात्यायनी चतुर्थभुजी है। इनकी चार भुजाओं मे दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाली भुजा वर मुद्रा में। मां के बाँयी तरफ की ऊपर वाली भुजा में तलवार है एवं नीचे वाली भुजा में कमल का फूल सुशोभित हो रहा है। माता सिँह की सवारी करती है।

इनकी उपासना करने वाले भक्तो को माता बड़ी सहजता से अर्थ, काम, क्रोध, और मोक्ष चारो फलो की प्राप्ति करवाती है। उनकी निरंतर पूजा अर्चना मात्र से भक्तो के रोग, शोक, संताप और भय जैसे दोष नष्ट हो जाते है। जो मनुष्य इनकी भक्ति करता है उसके जन्मो जन्म के पाप नष्ट हो जाते है। माता की महिमा अपरम्पार है।

कहा जाता है माता कात्यायनी का व्रत अनुष्ठान जिस किसी ने किआ है उसे उसका अमोध फल प्राप्त हुआ है। द्वापर युग मे भगवान श्री कृष्ण को वर रूप मे प्राप्त करने हेतु ब्रज की गोपियों ने माता कात्यायनी की ही पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की थी। माँ ब्रजमंडल की अधिष्टात्रि देवी के रूप मे विराजमान है।

नवरात्री के छठवे दिन जो भी साधक माता “कात्यायनी” की आराधना करता है उसका मन “आज्ञा” चक्र मे स्थित होता है। योगसाधना मे आज्ञा चक्र को विशेष स्थान प्राप्त है। जब भी साधक का मन “आज्ञा” चक्र मे स्थित होता है, इस अवस्था मे साधक अपना सर्वस्व माता “कात्यायनी” को समर्पित कर देता है। इस अवस्था मे माता “कात्यायनी” अपने भक्तो को सहज़ भाव से अपने दर्शन करवाती है। माता कात्यायनी के साधक एक अलौकिक तेज से परिपूर्ण होते है।

महर्षि कात्यायन ने एक बार माँ अध्यशक्ति की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किआ और यह वरदान माँगा की वो पुत्री रूप मे उनके वहाँ अवतरित हो। माता आध्यशक्ति ने महर्षि कात्यायन की इच्छा को स्वीकार कर उनकी पुत्री स्वरुप मे जन्म लेने का वर प्रदान किआ। माता महर्षि कात्यायन के वहां जन्म ले कर माता “कात्यायनी” कहलाई।

कहा जाता है की माता कात्यायनी का प्रमुख गुण शोधकार्य है। इसी कारण वश इस वैज्ञानिक युग मे उनका महत्त्व और अधिक हो जाता है। माता की कृपा मात्र से सारे काम सफल हो जाते है। कहा जाता है उनका प्रागट्य स्थान “वैधनाथ” धाम है, माता यहाँ प्रगट हो कर पूजी गई थी।

माता कात्यायनी की कथा

प्राचीन काल मे कत नामक एक महान ऋषि थे। उनके पुत्र कात्य हुए, वह भी एक प्रसिद्ध ऋषि बने, उन्हीं के नाम से “कात्य” गोत्र की स्थापना हुई थी। ऋषि कात्य के पुत्र “कात्यायन” हुए। वो माता आदिशक्ति पराम्बरा के परम भक्त थे। उन्होंने माता पराम्बरा की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किआ और वर स्वरुप उनके कुल मे अवतरित होने का वर माँगा। माता ने सहज़ भाव से ऋषि “कात्यायन” की इच्छा स्वकारी और उनके कुल मे जन्म लिआ और वो माता “कात्यायनी” कहलाई।

आगे जाके पृथ्वी पर राक्षस राज महिसासुर का आतंक बहोत बढ़ गया था। ब्रह्मा जी के वरदान से उसे कोई भी पुरुष शक्ति परास्त नहीं कर सकती थी, इसी कारण वश त्रिदेवो ने अपनी ऊर्जा से माता शक्ति को उत्पन्न किआ तभी महर्षि कात्यायन ने उनकी पूजा और आराधना की थी। महर्षि कात्यायन की पूजा अर्चना करने से माता को “कात्यायनी” नाम से जाने जानी लगी। माता कात्यायनी अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के बाद शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने इनकी पूजा की, पूजा ग्रहण कर दशमी को माता कात्यायनी ने राक्षश महिषासुर का वध किया।

Mata Katyayani

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माता कात्यायनी की पूजा विधि

• यजमान को प्रातः जल्दी उठ कर स्नान आदि कर के स्वच्छ हो कर माता की पूजा विधि में बैठना चाइये।
• सर्व प्रथम माता के स्थानक पर धी का एक दीपक जलाना चहिये।
• माता की चौकी बिठा कर उस पर माँ स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर रखनी चाहिए।
• माता के स्थानक पर गौमूत्र या गंगाजल का छिड़काव कर उसे पवित्र करना चाहिए।
• माता को मंत्रोच्चार से स्नान करवाना चाहिए। सबसे पहले गंगाजल से और उसके बाद पंचामृत से स्नान करवाना चाहिये।
• स्नान के बाद माता का श्रृंगार करना चाहिए माता को अबिल, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करने चाहिए।
• माता को पुष्प अर्पित करने चाहिये।
• माता को धूप और इत्र अर्पित करने चाहिए।
• माता का श्रृंगार करने के बाद माता की आरती उतारनी चाहिए।
• माता की आरती के लिए घी और कपूर का उपयोग करना चाहिये।
• माता की आरती उतारने के बाद माता को भोग प्रशाद अर्पण करना चाहिए।
• माता को भोग में लौकी, मीठे पान और शहद अर्पित करना चाहिए।
• माता को भोग अर्पित करने के बाद माता के भोग को प्रसाद के रूप में भक्तो में बाँट देना चाहिये।
• माता का प्रसाद बांटने के बाद घर की सुख शांति बनाए रखने के लीये माता के
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इस मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है।
• अपने सामर्थ्य के अनुरूप अगर कोई यजमान ब्राह्मणों द्वारा माता की चौकी के सामने बैठ कर दुर्गा सप्तमी का पाठ करे तो घर मे कभी भी नकारात्मक ऊर्जा वास नहीं रहता।
• इसके अलावा अगर जिन कन्याओ के विवाह मे बाधा आ रही हो या उनके विवाह मे विलम्ब उत्पन्न हो रहा हो वैसी कन्याओ को इस दिन माता कात्यायनी की विशेष पूजा करनी चाहिए। माता की उपासना करने से कन्याओ को मनोवांचित वर की प्राप्ति अवश्य होती है। विवाह शीघ्र हो उसके लिए कन्याओ को इस मन्त्र का जाप करना अति शुभ माना गया है।
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥
इस तरह माता कात्यायनी की पूजा विधि विधान से की जाती है।

माता कात्यायनी का मंत्र

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

माता कात्यायनी की आरती

जय जय अंबे जय कात्यायनी ।
जय जगमाता जग की महारानी ।।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा ।।

कई नाम हैं कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।।

हर जगह उत्सव होते रहते ।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते ।।
कात्यायनी रक्षक काया की ।
ग्रंथि काटे मोह माया की ।।

झूठे मोह से छुड़ानेवाली ।
अपना नाम जपानेवाली ।।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो ।
ध्यान कात्यायनी का धरियो ।।

हर संकट को दूर करेगी ।
भंडारे भरपूर करेगी ।।

जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।

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