Mata Brahmacharini माता दुर्गा एक स्वरूप है। नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है। माता का यह स्वरूप सौम्य है। माता के इस रूप का वर्णन करे तो माता ने बांये हाथ मे कमंडल और दांये हाथ मे जप माला धारण की है। माता ने श्वेत वस्त्र परिधान किए हुए है।
माता की उपासना करने से मनुष्य में तप, सदाचार, त्याग, संयम और वैराग्य की वृद्धि होती है। नवरात्र के दूसरे दिन माता की Brahmacharini स्वरूप की उपासना का होता है। कहा जाता है कि जो भक्त माता के इस स्वरूप की उपासना और पूजा सच्चे मन से करता है उसे इसका अनंतकाल तक फल प्राप्त होता है।
माँ का यह स्वरुप हमारी आतंरिक शक्तियों को जाग्रत करके स्वयं पर नियंत्रण रखने की समर्थता प्रदान करता है। माता के इस स्वरुप की पूजा करने से साधक का मन “स्वाधिष्ठान चक्र” में स्थित होता है। कहा जाता है जो भी भक्त या योगी माता का भक्ति में लीन हो कर इस अवस्था को प्राप्त कर लेता है उसे माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
माता ब्रह्मचारिणी की कथा
पुराणों के अनुसार माता पार्वती बाल्यकाल से ही देवा दी देव महादेव के बहोत समीप थी। उन्हें महादेव की आराधना और पूजा करना बेहद पसंद था। जैसे जैसे वो बड़ी हुई उनकी महादेव के प्रति आस्था और बढ़ने लगी। एक दिन देवर्षी नारद पर्वतराज हिमालय से भेंट करने उनके राज्य में आये उन्होंने देवी पार्वती को शिव की पूजा एवं अर्चना करते देखा और वो बहोत प्रसन्न हुए किन्तु महाराज हिमालय पार्वती की इसी भक्ति से चिंतित थे। उन्हें लगता था भगवान शिव वैरागी है कही पुत्री पार्वती भी महादेव की भक्ति में लीन हो कर वैराग का मार्ग न चुन लें। तभी देवर्षी नारद ने उनकी चिंता को सर्वथा निर्थक बताया। उन्होंने कहा देवी पार्वती का भविष्य बहोत उज्ज्वल है। अगर वो अपने कर्म पथ पर स्थिर रही तो उन्हें मनोवांछित वर की प्राप्ति अवश्य होगी। देवर्षी नारद देवी पार्वती से भी मिले उन्होंने कहा –
“है देवी में आपके मन की अवस्था जनता हूँ। किन्तु आप जो चाहती है उसे प्राप्त करना बहोत मुश्किल है।”
“मुश्किल, ये आप क्या कह रहे है, देवर्षी।”
“वहीं कह रहा हूँ जो सत्य है, देवी। महादेव को वर रूप में पाने की कामना आसान नहीं। महादेव तो वैरागी है, तप साधना में लीन रहने वाले। उन्हें प्राप्त करना है तो बस एक ही विकल्प है।”
“कोनसा विकल्प देवर्षी..!!”
“तप, तपस्या.. कठोर तपस्या…!!!”
“तपस्या…!!!”
“हा देवी, तपस्या.. महादेव को पाना है तो कठोर तप ही एक मात्र विकल्प है। महादेव को प्रसन्न करना आसान नही है देवी.. सोच लीजिये.…!!”
“मैं तैयार हूँ.. देवर्षी..!! अगर महादेव को प्रसन्न करने हेतु तप ही एक मात्र विकल्प है तो यही सही.. मेने तो बाल्याकाल से ही खुद को महादेव को समर्पित कर दिया है।”
“देवी आप धन्य है। आपकी तपस्या अवश्य सफल होंगी..!!!”
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देवर्षी नारद जी के कथनानुसार देवी पार्वती पिता पर्वतराज हिमालय से आज्ञा लेकर तपस्या करने चल पड़ी। देवी पार्वती ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। वो तपस्या के पहले चरण में केवल फल और फूल का सेवन ही करती थी। फिर वो तपस्या में लीन होने लगी और अब वो केवल बेलपत्र खा कर ही निर्वाह करने लगी। एक समय ऐसा आया कि उन्होंने अब बेलपत्र का सेवन भी करना छोड़ दिया था। इसी वज़ह से उन्हें “अपर्णा” की संज्ञा प्राप्त हुई। देवी पार्वती ने सहस्त्र वर्षो तक महादेव की तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी कठोर अवस्था मे पहुँच गई थी कि अन्न और जल का त्याग करने से उनका शरीर अब स्थूल होने लगा था। महादेव उनकी इस तपस्या से प्रसन्न हुए किन्तु उन्हें एक बार उनकी परीक्षा लेनी सूजी। वो अपना रूप बदल कर देवी पार्वती के समक्ष पहुंचे और खुद की ही बुराई करने लगे। वो कहने लगे –
“महादेव तो वैरागी है, उन्हें सांसारिक जीवनशैली में कोई रुचि नहीं है। अतः है देवी आप अपना हठ त्याग दे और वापस अपने प्रदेश लौट जाये। यहाँ आप अपना समय व्यर्थ कर रही है। महादेव सहस्त्र वर्षो तक साधना में लीन रहते है उनके पास कहा समय है आपको देखने का वो पता नहीं अब कब अपनी साधना से जगे। मुजे आपकी बहोत चिंता हो रही है आप खुद ही देखिये यह कोमल शरीर कैसे खुश्क बन गया है। आप व्यर्थ ही इतना कष्ट भोग रही है। कहा आप महलो में विरह ने वाली राजकुमारी और कहा वो वन में विचरण करने वाले जोगी। वो कभी भी आपकी भावना को नहीं समज पायेंगे। कृपया आप वापस लौट जाये और अपनी माता और पिता के साथ अपना शेष जीवन व्यतीत करें।”
महादेव के समजाने बाद भी देवी पार्वती अपने कर्मपथ से नहीं डिगी और उनकी यहीं कर्मनिष्ठा से महादेव प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक रूप में आकर उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। वर में माता पार्वती ने महादेव को अपने पति रूप में प्राप्त करने को इच्छा व्यक्त की जो कि महादेव ने स्वीकारी भी। माता का “ब्रह्मचारिणी” रूप इसी कथा की और निर्देश करता है, यहाँ माता द्वारा किये जाने वाले तप को “ब्रह्म” की संज्ञा दी गई है और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करना इस तरह ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है “तप का आचरण करने वाली”। माता की इस कथा से हमे यह सिख मिलती है कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो मनुष्य को अपने कर्तव्य पथ से नहीं डिगना चाहिये, विजय निश्चित रूप से उनकी ही होती है। नवरात्रि के दूसरे दिन जो भी भक्त माता की सच्चे मन से पूजा और अर्चना करता है माता उसकी सभी मनोकामनाएं सिद्ध करती है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि
• यजमान को प्रातः जल्दी उठ कर स्नान आदि कर के स्वच्छ हो कर माता की पूजा विधि में बैठना चाइये।
• सर्व प्रथम माता के स्थानक पर धी का एक दीपक जलाना चहिये।
• माता की चौकी बिठा कर उस पर माँ ब्रह्मचारिणी प्रतिमा या तस्वीर रखनी चाहिए।
• माता के स्थानक पर गौमूत्र या गंगाजल का छिड़काव कर उसे पवित्र करना चाहिए।
• माता को मंत्रोच्चार से स्नान करवाना चाहिए। सबसे पहले गंगाजल से और उसके बाद पंचामृत से स्नान करवाना चाहिये।
• स्नान के बाद माता का श्रृंगार करना चाहिए माता को अबिल, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करने चाहिए।
• माता को श्वेत रंग के पुष्प अर्पित करने चाहिये।
• माता को धूप और इत्र अर्पित करने चाहिए।
• माता का श्रृंगार करने के बाद माता की आरती उतारनी चाहिए।
• माता की आरती के लिए घी और कपूर का उपयोग करना चाहिये।
• माता की आरती उतारने के बाद माता को भोग प्रशाद अर्पण करना चाहिए।
• माता को भोग में शक्कर और पंचामृत का भोग लगाना चाहिये।
• माता को भोग अर्पित करने के बाद माता के भोग को प्रसाद के रूप में भक्तो में बाँट देना चाहिये।
• माता का प्रसाद बांटने के बाद घर की सुख शांति बनाए रखने के लीये माता के
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इस मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है।
• अपने सामर्थ्य के अनुरूप अगर कोई यजमान ब्राह्मणों द्वारा माता की चौकी के सामने बैठ कर दुर्गा सप्तमी का पाठ करे तो घर मे कभी भी नकारात्मक ऊर्जा वास नहीं रहता।
इस तरह ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि विधान से की जाती है।
माता ब्रह्मचारिणी का मंत्र
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।