श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पादुर्भाव कथा (Shri Somnath Jyotirling Padurbhav Katha)

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (Shri Somnath Jyotirling) भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रथम ज्योतिर्लिंग कहा गया है। इस ज्योतिर्लिंग के उत्पति (पादुर्भाव) की कथा रोचक है। ये ज्योतिर्लिंग गुजरात के प्रभास क्षेत्र में बिराजमान है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कथा (Shri Somnath Jyotirling Katha)

भारत के गुजरात राज्य में स्थित कठियावाड़ में अरबी समुद्र के तट पर यह विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बिराजमान है। यह क्षेत्र पूर्वकाल में प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। ये वही क्षेत्र है जँहा जरा नाम के पारधी के द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला का संकलन किया था। यहाँ प्रस्थापित ज्योतिर्लिंग की कहा कुछ इस प्रकार है।

दक्ष प्रजापति की कई कन्या ऐ थी जिन मेसे सत्ताइस कन्याओ का विवाह चन्द्रदेव से हुआ था। किन्तु चन्द्रमा का समस्त ध्यान और प्रेम केवल रोहिणी के प्रति अधिक था। चन्द्रमा के इस बर्ताव से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्या बहोत रुष्ट और अप्रसन्न रहती थी। उन्होंने अपनी ये व्यथा अपने पिताश्री से जाके सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिये चन्द्रदेव को अनेको प्रकार से समजाने की कोशिश की थी।

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किन्तु चन्द्रदेव पूर्णरूप से अपनी भार्या रोहोणी के प्रेम में वशीभुत हो गये थे इस लिये प्रजापति दक्ष की बात का उन पर कोई प्रभाव नहीं गिरा। दक्ष के बार बार समजाने पर भी चन्द्रमा ने उनकी बात की अवग्या की अतः प्रजापति दक्ष ने क्रोध में आके चन्द्रमा को क्षयग्रस्त होने का श्राप दे दिया। इस कारण से चन्द्रमा तुरंत क्षयग्रस्त हो गये। चन्द्रमा के क्षयग्रस्त होने से पृथ्वी पर सुधा शीतलता वर्षण उनका सारा कार्य रुक गया। चारो तरफ त्राहि त्राहि मैच गई थी और चन्द्रमा भी अपने क्षयरोग से बहोत दुखी और पीड़ित थे।

चन्द्रमा की प्रार्थना को सुनते हुए इंद्रादी देवताओं ने इस समस्या का समाधान निकाल ने हेतु परम पिता ब्रह्माजी के पास गये। परम पिता ब्राह्मजी ने सबकी बात को सुना और उपाय के उपलक्ष में चन्द्रमा को प्रभासक्षेत्र में जाके महादेव शिवशम्भू की आराधना करने को कहा। उन्होंने चन्द्रमा को आश्वासन देते हुए कहा की भगवान शिव ने चाहा तो आपकी पीड़ा का अवश्य ही निदान हो जायेगा और आप प्रजापति दक्ष के श्राप से भी मुक्त हो जायेंगे।

अब परम पिता ब्रह्मा के कथननुसार चन्द्रमा ने भगवान मृत्युंजय की आराधना करनी शुरू कर दी। चन्द्रमा की आराधना से प्रसन्न हो कर भगवान मृत्युंजय शिव ने उन्हें दर्शन दिए और मनोवांछित वर के रूप में अमरत्व का वरदान दिया और कहा – “हे! चंद्रदेव आप निराश न होइए मेरे वर से आपके श्राप का मोचन होगा ही और साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की भी मर्यादा रह जाएगी।

जब भी कृष्ण पक्ष की तिथि आएगी तब से प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण होती जाएगी किन्तु पुनः जैसे ही शुक्ल पक्ष की तिथियाँ शुरू होगी तुम्हारी एक एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार से तुम्हे प्रतेक पूर्णिमा को पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।” चन्द्रमा को मिलाने वाले इस वरदान से सभी प्राणीओ में ख़ुशी की लहर उमड़ पड़ी। सुधाकर चंद्रदेव पुन्हा दशो दिशाओ में अपनी सुधा-वर्षण का कार्य पुनः पुर्ववत करने लगे।

श्राप मुक्त हो कर चन्द्र देवता देवी रोहिणी के साथ प्रसन्नचित हो कर भगवान शिव को प्रणाम किया और सभी देवताओ के साथ मिल कर भगवान शिव से ये प्रार्थना की वे अपने प्राणों के उद्धार के उपलक्ष में माता पारवती संग यही प्रभास क्षेत्र में निवास करे। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकारते हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में माता पार्वती संग यही निवास करने लगे।

भगवान शिव ने यहाँ चंद्रदेव का उद्धार किया था और चन्द्र देव को “सोम” नाम से भी संबोधित किया जाता हे इस लिए यहाँ बसे भगवान शिव “सोमनाथ” कहलाये।

भगवान शिव के पदार्पण से यह प्रभास क्षेत्र पावन हो गया था और इस पावन क्षेत्र में बसे “सोमनाथ ज्योतिर्लिंग” की महिमा का वर्णन महाभारत, स्कन्दपुराण और श्री मद भागवत जैसे ग्रंथो में विस्तार पूर्वक गया है।

भगवान सोमनाथ का यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की सूचि में प्रथम क्रमक पर आता है। एसा कहा जाता है जो शिव भक्त इस पावन प्रभास क्षेत्र में बसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसके जीवन में चन्द्र जैसे शीतलता और शांति का वास रहता है। जो भी भक्त पवित्र मन से भगवान सोमनाथ के दर्शन और पूजन कर के उनके पादुर्भाव की यह कथा पढ़ता है उसके जन्म जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते है। वे भगवान शिव और माँ भवानी की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते है। उनके लिए मोक्ष का मार्ग अत्यंत सहज और सुलभ हो जाता है और उनके लौकिक एवं परलौकिक सभी काज सफल हो जाते है।

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