Shri Ram Navami का पर्व पुरे भारतवर्ष में पुरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह त्यौहार पुरे हिन्दू समुदाय के प्रमुख त्योहारों में से एक है। राम नवमी का पर्व भगवान मर्यादा पुरषोत्तम राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। राम नवमी पर्व पर जगा जगा बड़े पंडाल बनाये जाते है और वंहा राम लीला का आयोजन किआ जाता है। राम नवमी का पर्व सबसे अधिक अयोध्या क्षेत्र में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। Shri Ram Navami 2023 के दिन पूरी अयोध्या राम मय बन जाती है।
रामनवमी हर साल चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि को मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व नवमीं तिथि को मनाया जाने के कारण इसे रामनवमीं के नाम से जाना जाता है।
दक्षिण भारत क्षेत्र में रामनवमीं का पर्व भगवान राम और माता सीता के लग्नोत्सव के रूप में मनाया जाता है। उस दिन वँहा बड़े बड़े पंडाल लगते है और जगा जगा भगवान राम, माता सीता, भाई लक्ष्मण और भक्त हनुमानजी की।प्रतिमाओं के साथ पूरे नगर में झांखीया निकलती है। उस दिन पूरा नगर, पूरा देश राम मय बन जाता है। भक्तगण पूरे जोश और उत्साह से इस पर्व को मनाते है।
भगवान श्री राम भगवान विष्णु के सप्तम अवतार थे। त्रेता युग मे राक्षश राज रावण के संहार के लिए प्रभु श्री राम ने मनुष्य अवतार में अयोध्या के राजा दशरथ के कुल में जन्म लिया था।
भगवान राम का जन्मोत्सव चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन पर मनाया जाता है। कई जगह भक्तगण पूरे नवरात्र बड़े बड़े पंडाल बना कर व्रत रख कर श्री रामचरितमानस का पाठ करवाते है। पूरे नवरात्र पंडाल में रामचरितमानस का पाठ, श्री राम के भजन, हवन आदि का आयोजन किया जाता है। सभी राम भक्त पूरे हर्षोल्लास से राम जन्मोत्सव के पर्व को मनाते है।
श्री राम नवमी २०२३
इस साल पुरे भारतवर्ष में रामनवमी का पर्व पुरे हर्षौल्लास से ३० मार्च को मनाया जायेगा।
श्री रामनवमी पूजा मुहूर्त २०२३ – पूजा का मुहूर्त सूबे 11 बजकर 18 मिनट से शुरू हो कर दोपहर 1 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
पूजा विधि का कार्यकाल – पूजा विधि का कार्यकाल पुरे 2 घंटे 28 मिनट तक का रहेगा।
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भगवान श्री राम का जन्म
प्राचीन ग्रंथो के अनुसार त्रेता युग में राजा दशरथ अयोध्या क्षेत्र में आपना राज किआ करते थे। वे बड़े ही पराक्रमी और वचनबद्द राजा थे। उनके कुल का नाम रधुकुल था। उसी के चलते भगवान राम को रधुकुल शिरोमणि भी कहा जाता है। रघुकुल वंश में बड़े ही तेजस्वी और परम प्रतापी राजा हुए थे। राजा भगीरथ उनमे से एक है जिन्होंने माता गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किआ था।
एक समय की बात है जब राजा दशरथ अपनी बढ़ती हुई आयु के चलते बड़े ही चिंता में थे, क्योकि उनकी प्रमुख तिन रानिओ में से किसी को भी संतान नहीं थी। राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति हेतु बड़े जतन किये किन्तु उन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पाई। एक दिन रघुकुल ने कुल गुरु महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ से भेंट करने उनके राज महल में आये। राज दशरथ ने बड़े ही आदरभाव से उनका स्वागत किआ और उन्हें अपने राज कक्ष में आमंत्रित किआ। महर्षि वशिष्ट वंहा पहुंचे और राजा दशरथ को अपने यहाँ आने का कारण बताने लगे। महर्षि वशिष्ट ने कहा “राजन, में जानता हूँ की आपकी चिंता का कारण क्या है। आपकी इसी चिंता का समाधान लेके में आपको “पुत्रकामेष्टि यज्ञ” करने का परामर्ष ले कर आया हु।”
राजा दशरथ कुलगुरु वशिष्ठ के परामर्ष को ध्यान में रखते हुए अपने जमाता महर्षि ऋष्यश्रृंग के पास पहुंचे। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने सारा वृतांत सुना और एक उत्तम तिथि और मुहूर्त पर “पुत्रकामेष्टि यज्ञ” का अनुष्ठान किआ। यज्ञ में सभी प्रमुख रानियां एवं दरबारी उपस्थित थे और पूरी अयोध्या इस यज्ञ का एक उत्सव मना रही थीं। यज्ञ संपन्न होने पर हवनकुंड मेसे एक दिव्य पुरुष अपने हाथों में एक स्वर्ण कटोरा ले कर प्रगट हुए। उसे स्वर्ण कटोरे में ख़िर थीं। दिव्य पुरुष ने वह कटोरा राजा दशरथ को सौंप पर अंतर्ध्यान हो गये। राजा दशरथ के हाथों में ख़िर से लदा हुआ दिव्य कटोरा देख सभी उपस्थित जन अत्यंत प्रसन्न हुए और महर्षि ऋष्यश्रृंग ने महाराजा दशरथ को कटोरे में लदी ख़िर को तीनों रानीयों में बांटने को कहा। कटोरे में उपलब्ध ख़िर बहोत ही कम मात्रा में थी तो राजा दशरथ ने वह ख़िर रानी कौशल्या और रानी कैकेई में बांट दी। किन्तु वह तीन रानियों में अपार स्नेह और प्रेम की भावना थी इसी कारण वश रानी कौशल्या और कैकई ने अपने हिस्से की आधी ख़िर निकल कर रानी सुमित्रा को अर्पित कर दी। कुछ ही समय के अंतराल में तीनों रानियां गर्भवती हुई और पूरे नव माह के अंतराल के बाद चैत्र माह शुक्ल पक्ष की नवमीं तिथि पर रानी कौशल्या को एक पुत्र, रानी कैकई को एक पुत्र और रानी सुमित्रा जिन्होंने रानी कौशल्या और रानी कैकई के हिस्से का प्रसाद ग्रहण किया था उन्हें दो तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुए। यहाँ माता कौशल्या के पुत्र श्री राम हुए, माता कैकई के पुत्र भरत और माता सुमित्रा के पुत्र लक्षमण और शत्रुघ्न हुए। चारों ही पुत्र के मुख पर सूर्यवंश का तेज छलक रहा था।
श्री राम की पूजा विधि
• यजमान को प्रातः जल्दी उठ कर सूर्योदय से पहले स्नान कर लेना चाहिये।
• यहाँ भगवान श्री राम सूर्य के वंशज है इसी लिए स्नान कर ने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान सूर्य को गंगाजल अर्पित करना चाहिये।
• भगवान सूर्य को गंगाजल अर्पित करने के बाद, घर के प्रमुख मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिये।
• घी का दीपक प्रज्वलित करने के बाद, मंदिर में स्थापित सभी देवी देवताओं गंगाजल से स्नान करवाना चाहिए और उन्हें स्वच्छ परिधान अर्पित करने चाहिये।
• सभी देवी और देवताओं को स्नान करवाने के बाद एक चौकी पर भगवान श्री राम की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
• उसके बाद भगवान श्री राम को गंगाजल से स्नान करवा कर उन्हें स्वच्छ परिधान अर्पण करने चाहिए।
• उसके बाद भगवान श्री राम का श्रृंगार करना चाहिए। भगवान को अबिल, गुलाल, रोली, चंदन, अक्षत, हल्दी, धूप, इत्र एवं पुष्प अर्पित करने चाहिये।
• श्रृंगार के बाद भगवान श्री राम की आरती उतारनी चाहिये। आरती उतारने के लिए घी और कपूर का प्रयोग करना अति शुभ होता है।
• भगवान श्री राम की आरती उतारने के बाद उन्हें भोग अर्पित करना चाहिये।
• भगवान श्री राम को भोग में सात्विक आहार अर्पित कर सकते है।
• भगवान श्री राम को भोग अर्पित करने के बाद भोग को भक्तों एवं स्वजनों में बांट देना चाहिये।
• भोग को बांटने के बाद भगवान श्री राम के समक्ष बैठ कर श्री रामचरितमानस, श्री राम स्तुति एवं रामरक्षास्तोत्र का पाठ करना अति शुभ माना जाता है।
• यजमान और हो सके तो घर के प्रमुख सदस्यों को आज के दिन व्रत रखना चाहिये।
• घर की सुख शांति बनाए रखने के लिए राम घुन का जप करना अति शुभ होता है। इससे घर मे कभी नकारात्मक ऊर्जा वास नहीं रहता। “श्री राम जय राम जय जय राम” या “सिया राम जय राम जय जय राम” की घुन का पाठ कर सकते है।
रामनवमी का महत्व
भगवान राम भगवान श्री विष्णु के दशावतारों में से सांतवे अवतार माने जाते है। भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम है। भगवान श्री राम ने अपने जीवनकाल में एक आदर्श पुत्र, पति, पिता और राजा कैसे होते है वो दर्शाया है। आज के इस कलयुग में ऐसा जीवन जीना एक आम मनुष्य के लिए कठिन है किन्तु असंभव नही। कलयुग में हर पुरुष को प्रभु श्री राम से और हर स्त्री को माता सीता से यह सिख लेनी चाहिये कि एक आदर्श जीवन कैसे जिया जाता है। यँहा रामनवमीं का महत्व यह है कि हमे उन मर्यादा पुरूषोत्तम का जन्मोत्सव मनाना चाहिए जो हमे जीवन में हर मुश्किल से मुश्किल समय मे संयम रख कर अपने कर्तव्य पथ पर कैसे आगे बढ़ा जाये यह सिखलाते है। श्री रामचरितमानस एक आदर्श जीवनशैली का प्रतीक है। एक आदर्श परिवार क्या होता है वह श्री रामचरितमानस में बताया गया है।
राम जन्मोत्सव के दिन माता जगदम्बा के नवरात्र का भी अंतिम दिन होता है। इस दिन सभी भक्त माता का जगराता करते है। राम जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में अयोध्या और अयोध्या के निकटतं क्षेत्र के लोग सरयू नदी में स्नान करने जाते है।
यहीं नही साईबाबा की नगरी शिर्डी में भी रामनवमीं के उपलक्ष्य में विशाल पंडाल सजाए जाते है और वँहा हवन का आयोजन भी किआ जाता है। साईबाबा ने अपने जीवनकाल में इस प्रथा की शुरुआत की थीं जो अब तक चली आ रही है।
निम्न लिखित स्थानों पर भगवान श्री राम जी के भव्य मंदिर स्थापित किये गए है। इन मेसे कुछ क्षेत्रो में भगवान श्री राम स्वयं अपने जीवनकाल में एक बार आये हुए थे। और इस वज़ह से आज इन स्थानों पर राम जन्मोत्सव अति विशेष रूप से मनाया जाता है यह स्थान है –
• अयोध्या – श्री राम की जन्मभूमि (उत्तरप्रदेश)
• सीतामढ़ी – माता सीता की जन्मस्थली (बिहार)
• जनकपुर धाम – राजा जनक का साम्राज्य (नेपाल)
• भद्रचलम – यहाँ भगवान राम और सीता माता का एक भव्य मंदिर स्थापित किया गया है। (तेलंगाना)
• कोदंडाराम मंदिर – यँहा वाविलकोलानु सुब्बा राव, जिन्हें “आंध्रा वाल्मीकि” के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने यहाँ रामायण की रचना की थी। (वोंटीमिट्टा)
• रामेश्वरम – यँहा भगवान राम ने राम सेतु बाँधने से पूर्व भगवान महदेव की प्राणप्रतिष्ठा की थीं। (तमिलनाडु)
श्री रामचंद्रजी की आरती
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥
पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥
श्री रामचंद्रजी की स्तुति
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं |
नव कंजलोचन, कंज – मुख, कर – कंज, पद कंजारुणं ||
कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील – नीरद सुन्दरं |
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं ||
भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन |
रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं ||
सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां |
आजानुभुज शर – चाप – धर सग्राम – जित – खरदूषणमं ||
इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन रंजनं |
मम हृदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं ||
मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो |
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो ||
एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली |
तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली ||
II दोहा II
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि |
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ||
श्री रामाष्टकम
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव ।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते ।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् ।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् ।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।