Shri Lakshmi Chalisa | श्री लक्ष्मी चालीसा

संसार में रहने वाले हर मनुष्य को अपना जीवन निर्वाह करने हेतु “Shi Lakshmi Mata” की कृपा की आवश्कता होती है। संसार में हर मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमेशा घन पर ही आश्रित रहा है। जिस मनुष्य के पास घन नहीं उसे दरिद्र कहा जाता है और कई बातो में दरिद्र होना किसी पाप कर्म के भुगतान जैसा माना जाता है। देवी श्री लक्ष्मी घन की देवी है। संसार का हर घनी और वैभवी जीवनशैली जीने वाला मनुष्य माँ देवी लक्ष्मी का अनन्य भक्त होता है। घन अगर पर्याप्त मात्र में मनुष्य के पास हो तो बहुत शुभ फल देता है और अगर आवश्कता से अधिक हो तो वो मनुष्य में लालच/लोभ को जन्म देता है। कई किस्सों में अधिक घनी मनुष्य अभिमानी बन जाता है और न चाहते हुए भी पापकर्म के रस्ते बढ़ जाता है; जिसके उसको बड़े ही भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते है। मनुष्य को अधिक घन संचय करने की जगा उसे धार्मिक एवं सत्त कार्यो में लगाना चाहिए। जिससे समाज और धर्म की उनंती हो। और हर मनुष्य के जीवन में खुशहाली आये। देवी लक्ष्मी माँ की महिमा अनंत है, जो कोई मनुष्य सच्चे मन से उनकी “श्री लक्ष्मी चालीसा” का पाठ करता है उसके भंडार घन घान्य से भरे रहते है। तो आइये आप और हम मिल कर इस पवित्र “Shri Lakshmi Chalisa” का पाठ करे और माँ लक्ष्मी हम सभ पर आपने आशीर्वाद रूपी घन की वर्षा सदैव करती रहे। तो बोलिए माँ लक्ष्मी जी की जय..!!!

Shri Lakshmi Chalisa

॥ श्री लक्ष्मी चालीसा (हिन्दी) ॥

 

दोहा
!! मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास,
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस !!


 सोरठा
!! सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही,
तुम समान नहिं को‌ई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी !!


 चौपाई
!! जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा,
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी,
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी,
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी !!

 

!! केहि विधि स्तुति करौं तिहारी।सुधि लीजै अपराध बिसारी,
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी,
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता,
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो !!

 

!! चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी,
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा,
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हे‌उ अवधपुरी अवतारा,
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं !!

 

!! अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी,
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी,
मन क्रम वचन करै सेवका‌ई।मन इच्छित वांछित फल पा‌ई,
तजि छल कपट और चतुरा‌ई l पूजहिं विविध भांति मनला‌ई !!

 

!! और हाल मैं कहौं बुझा‌ई l जो यह पाठ करै मन ला‌ई,
ताको को‌ई कष्ट न मन l इच्छित पावै फल सो‌ई,
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिनित्रिविध l ताप भव बंधन हारिणी,
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै !!

 

!! ताकौ को‌ई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै,
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना,
विप्र बोलाय कै पाठ करावै।शंका दिल में कभी न लावै,
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा !!

 

!! सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै,
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा,
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम को‌इ जग में कहुं नाहीं,
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ा‌ई। लेय परीक्षा ध्यान लगा‌ई !!

 

!! करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा,
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी,
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम को‌उ दयालु कहुं नाहिं,
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै !!

 

!! भूल चूक करि क्षमा हमारी।दर्शन दजै दशा निहारी,
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी,
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में,
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण,
केहि प्रकार मैं करौं बड़ा‌ई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिका‌ई !!

 

 दोहा
!! त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास,
 जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश,
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर,
 मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर !!

और पढ़े – श्री कृष्ण चालीसा

॥ Shri Laxmi Chalisa (English) ॥

 

II Doha II
!! Matu Lakshmi Kari Kripa Karahu Hridae Mein Vaas,
Manokamana Siddh Kari Purvahu kii Aas !!

 

II Soratha II
!! Sindhu suta Mein Sumiro Tohi geyan Budhi Vidya Do Mohi,  
Tum Samaan Nahi Koi Upkari Sab Vidhi Purbhu Aaas Hamari !!

 

II Chaupaai II

!! Jai Jai Jagat Janani Jagdamba l Sab Kii Tum hi Ho Avlamba,
Tum hi Ho sab Ghat Ghat Ki Vasi l Binti Yahi Hamarii Khasi,
Jagjanani Jai Sindhu Kumari l Dinan Ki Tum Ho Hitkari,
Binvo Nitya Tumhi Maharani l Kripa Karo Jag Janani Bhavani !!

 

!! Kehi Vidhi stuthi Karo Tehari l Sudhi lejai Apradh Bisari,
Kripa dristi Chitbahu Mum Ori l Jag Janani Binati Sunn Mori,
Gyan Budhi Jai Sukh Ki Data l Sankat Haro Hamare Mata,
shir Sindhu Jab Vishnu matheyo l Chauda Ratn Sindhu mein payeo !!

 

!! Chouda Ratn Mein Tum Sukhrasi l Seva Kiyo Prabhu Bani dasi,
Jab Jab Janam Jahan Prabhu Linha l Roop Badal Tahe Seva Kina,
Svyam Vishnu Jab Nar Tanu Dhara l Lino Avadapuri Avtara,
Tab Tum Pragat Janakpur Mahi l Seva Kiyo Hride Pulkahi !!

 

!! Apnaea Tohe Antryami l Vishva vidit Tribhuvan Ki Swami,
Tum Sab prabal Shakti Nahi Aani l Keh Lo Mahima Kaho Bakhani,
Mann Kram Bachan Kare Sevakai l Man vanchint Phal Payi,
Taji Chhal Kapat Aur Chaturai l Puje Vividh Bhanti Manlayi !!

 

!! Aur Haal Main Kahu Bujhai l Jo Yeh Path Kare Man Layi,
Tako Koi Kast Na mann l ichhit pawe Phal Soyi,
Trahi trahi Jai Dukh Nivarini Vividh Tap Bhav Bandhan Harini,
Jo chalisa Pade Aur Padawe l Dhyan Laga kar Sune Sunave !!

 

!! Tako Koi Na Rog Satave l Putr Aadi Dhan Sampati Pave,
Putra heen aru Dhan Sampati Heena l Andh Vadhir Korhi Ati Deena,
Vipr Bulae Ke Path Karave l Shanka dil Mein kabhi Na Lave,
Path Krave Din Chalisa l Taa par Kripa Kare gorisa !!

 

!! Sukh Sampati Bahut Sii Pave l Kamii Nanhi Kahu Kii Aave,
Barah Mash Karen Jo Puja l Ta Sam Dhani Aur Nahi Duja,
Prati din Path Karhi Man Mani l Tasam Jagat Katahu Koi Nahi,
Bahuvidhi Ka Men Karahu Barai l Lehu Pariksha Dhyan Lagai !!

 

!! Kari Vishvas Kare Vrat Nema l Hoi Sidh Upje Ati Prema,
Jai Jai Jai Lakshmi bhwani l Sab Mein Veapit ho Tum Gunn khani,
Tumro Tej Praval Jag Mahi l Tum Sam Kou Deyalu Kahu Nahi,
Moh Anath Ki Sudhi Ab Lije l Sankat Koti Bhagati mohe Dije !!

 

!! Bhul chuk Karu chma Hamari l Darasan Dije Dasha Nihari,
Bin Darshan Beyakul Adikari l Tumhi Ashat  Dukh sehte Bhari,
Nahi Mohi gyan Budhi Hai Tann Mein l Sab Janat ho Apne Mann Mein,
Roop Chaturbhuj Karke Dharan l Kasht Morr Ab Karhu Nivaran !!

 

II Doha II
!! Trehi Trehi Dukh Harini l Harhu Beg Sab Traas,
Jayati Jayati Jai Lakshmi l Karhu Shatru Ko Nash,
Ramdas Dhari Dhyan Nit l Vinae Krat Kar Jor,
Matu Lakshmi daas Par l Karhu deya Ki Kor !!

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