Ganga Chalisa | गंगा चालीसा

“हर हर गंगे” माँ Ganga को शत शत नमन। पतित पावनी माँ गंगा की लीला अपरंपार है। कहा जाता है जो जीवन मे एक बार गंगा स्नान करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है। माँ गंगा को “भागीरथी” के नाम से भी जाना जाता है। पवित्र गंगा नदी का उगम स्थान भारत मे स्थित हिमालय में आया हुए “गंगोत्री” घाम है। हर धार्मिक कार्यो में गंगा जल का विशेष महत्व है। माँ गंगा पर्वतराज हिमालय की जेष्ठ पुत्री है और माँ पार्वती की बड़ी बहन है। माँ गंगा को महादेव शिव ने अपनी जटाओं में स्थान दिया है। कहा जाता है जो भी भक्त सच्चे मन से माँ गंगा की “Shri Ganga Chalisa” का पाठ निरंतर करता है माँ गंगा उसके सारे पाप नष्ट कर देती है। तो आइये आज आप और हम मिल कर पतित पावनी माँ गंगा की “श्री गंगा चालीसा” का पाठ करे, तो बोलिये पतित पावनी माँ गंगा की जय –

Ganga Chalisa

॥ गंगा चालीसा (हिन्दी) ॥

!!दोहा!!
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग,
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ,
जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी ,
जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालिनी विख्याता !!
!! जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग,
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ,
जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी ,
जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालिनी विख्याता !!
!! जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी,
धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई,
वहां मकर विमल शुची सोहें। अमिया कलश कर लखी मन मोहें,
जदिता रत्ना कंचन आभूषण। हिय मणि हर, हरानितम दूषण !!
!! जग पावनी त्रय ताप नासवनी। तरल तरंग तुंग मन भावनी,
जो गणपति अति पूज्य प्रधान। इहूँ ते प्रथम गंगा अस्नाना,
ब्रम्हा कमंडल वासिनी देवी। श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि,
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो। गंगा सागर तीरथ धरयो !!
!! अगम तरंग उठ्यो मन भवन। लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन,
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता। धरयो मातु पुनि काशी करवत,
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी। तरनी अमिता पितु पड़ पिरही,
भागीरथी ताप कियो उपारा। दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा !!
!! जब जग जननी चल्यो हहराई। शम्भु जाता महं रह्यो समाई,
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी। रहीं शम्भू के जाता भुलानी,
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो। तब इक बूंद जटा से,
पायोताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा !!
!! गईं पाताल प्रभावती नामा। मन्दाकिनी गई गगन ललामा,
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी। कलिमल हरनी अगम जग पावनि,
धनि मइया तब महिमा भारी। धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी,
मातु प्रभवति धनि मन्दाकिनी। धनि सुर सरित सकल भयनासिनी !!
!! पन करत निर्मल गंगा जल। पावत मन इच्छित अनंत फल,
पुरव जन्म पुण्य जब जागत। तबहीं ध्यान गंगा महँ लागत,
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही। तई जगि अश्वमेघ फल पावहि,
महा पतित जिन कहू न तारे। तिन तारे इक नाम तिहारे !!
!! शत योजन हूँ से जो ध्यावहिं। निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं,
नाम भजत अगणित अघ नाशै। विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे,
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना। धर्मं मूल गँगाजल पाना,
तब गुन गुणन करत दुःख भाजत। गृह गृह सम्पति सुमति विराजत !!
!! गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। दुर्जनहूँ सज्जन पद पावत,
उद्दिहिन विद्या बल पावै। रोगी रोग मुक्त हवे जावै,
गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखा नंगा कभुहुह न रहहि,
निकसत ही मुख गंगा माई। श्रवण दाबी यम चलहिं पराई !!
!! महँ अघिन अधमन कहं तारे। भए नरका के बंद किवारें,
जो नर जपी गंग शत नामा सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा,
सब सुख भोग परम पद पावहीं। आवागमन रहित ह्वै जावहीं,
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि। धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी !!
!! ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। सुन्दरदास गंगा कर दासा,
जो यह पढ़े गंगा चालीसा। मिली भक्ति अविरल वागीसा !!
दोहा
!! नित नए सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान,
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी विमान !!

॥ Ganga Chalisa (English) ॥

॥ Doha ॥
!! Jai jai jai jag pavni ,jayati devsari Gang,
Jai Shiv jata nivasini, anupam tung tarang,
Jai jai janani harana agh khani, anand karni Ganga Maharani ,
Jai Bhagirathi sursuri mata, kalimal mul daalhni Vikhata !!

!! Jai Jai jahanu suta agh hanani, Bhishm ki mata jaga janani,
Dhaval kamal dal mam tanu sje, lakhi shat shard chandra chhavi lajai,
Vaha makar vimal shuchi sohe, amia kalash kar lakhi mann mohe,
Jadita ratna kanchan abhushan, hiye mani har, haranitam dushan !!

!! Jag pavni trae tap nasvani, taral tarang tung mana bhavni,
Jo Ganapati ati puje pardhan, Duhun te pratham Ganga asnana,
Brahma kmandal vasini devi, Shee Prabhu pad pankaj sukh sevi,
Sathi sehstra Sagar sut tareo, Ganga sagar tirth dhareo !!

!! Agam tarang utho mann bhavan, lakhi tirth Haridvar suhavan,
Tirth raj preyag Ashaiveta, dhareo matu puni kashi karvat,
Dhani dhani sursari swarg ki sidhi, tarani amita pitu pad pirhi,
Bhagirathi tap kiyo upara, diyo Brahm tav surasari dhara !!

!! Jab jag janani chaleo hahraee, Shambhu jata maho raheo samai,
Varsha paryant Ganga Maharani, rahi shambhu ke jata bhulani,
Puni Bhagirathi shambhuhi dheao, tab ik bundh jata se paeo,
Tate matu bhe trae dhara, mriteu lok, nabha, aru patara !!

!! Gayi patal Prabhavati, nama, Mandakini gayi gagan lalama,
Mriteu lok jahnavi suhavani, kamimal harni agam jug pavni,
Dhani maiya tab mahima bhari, dharma dhuri kai kaush kuthari,
Matu Prabhavati Dhani Mandakini, dhani kali sur sarith sakal bhainasini !!

!! Pan karat nirmal Ganga jal, pavat mann ichchhit anant phal,
Purv janm punye jab jagat, tabhi dhyan Ganga maha lagat,
Jai pagu sursari hetu uthavahi, tai jagi ashvmegh phal pave,
Maha patit jin kahu na tare, tin tare ik nam tihare !!

!! Shat yojan hu se jo dhyavahi, nishchai vishnu lok pad pavi,
Naam bhjat angnit agh nashe, vimal gyan bal budhi parkashe,
Jimi dhan mul dharm aru dana, dharm mul Ganga jal pana,
Tab gunn gunan krat dukh bhajat, greh greh sampati sumati virajat !!

!! Ganghi neim sahit nitt dhyavat, duraj nahu sajjan pad pavat,
uddihin vidhya bal pave, rogi rog mukt hve jave,
Ganga Ganga jo nar kahei, bhukha nanga kabhuhuh na rahhi,
Niksat hi mukh Ganga mahi, shrvan dabi Yum chalhi parai !!

!! Mah aghin adhman kahan tare, bhaye narka ke band kivare,
Jo nar japi Ganga shat nama, sakal siddhi puran hve kama,
Sab sukh bhog pram pad pavhi, avagaman rahit hve javhi,
Dhani maiya sursari such daini, dhani dhani tirath raaj Triveni !!

!! Kakra gram rishi Durvasa, Sundardas Ganga kar daasa,
Jo yeh padhe Ganga chalisa, mili bhagati aviral vagisa !!

॥ Doha ॥
!! Nit naye sukh sampati lhe, dhare ganga ka dhyan,
Ant samai sur pur basal, sadar baithi viman !!

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