श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

श्रावण पुत्रदा एकादशी(Shravana Putrada Ekadashi) 2023 कब है?

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 27 अगस्त 2023, रविवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 28 अगस्त 2023 सुबह 6.17 मिनट से सुबह 8.49 मिनट तक

श्रावण पुत्रदा एकादशी तिथि (Shravana Putrada Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 27 अगस्त 2023 रविवार सुबह 12.08 मिनट से
समाप्ति – 27 अगस्त 2023 रविवार रात्रि 9.32 मिनट तक

Shravana Putrada Ekadashi
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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha)

श्रावण माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली कामिका एकादशी का महात्मय और कथा सुन अब महाराजा युधिष्ठिर को श्रावण शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में जानने की लालसा जगी और वह मधुसूदन केशव से कहने लगे –

युधिष्ठिर – “हे कृपानिधान, श्रावण कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी की कथा सुनने के प्रश्चात मेरा मन श्रवण शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में जानने को व्याकुल है अतः है प्रभु मेरी व्याकुलता को शांत करते हुऐ इस एकादशी का क्या नाम है? इस एकादशी के पूजन और व्रत करने से किस फ़ल की प्राप्ति होती है? और इस एकादशी की कथा के विषय में मुजे विस्तार से बताने की कृपा करें।”

श्रीकृष्ण – “हे राजन, श्रावण माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी को “पुत्रदा एकादशी”(Shravana Putrada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी व्रत के फ़ल स्वरूप मनुष्य को वाजपेयी यज्ञ करने का फल प्रदान होता है। इस एकादशी करने मात्र से मनुष्य के सारे पापों का नाश होता है और वह अंत समय मे मेरे परम धाम को प्राप्त करता है। इस एकादशी को पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी का महात्म्य जितना अलौकिक है उतनी ही उसकी कथा भी है अतः है राजन, अभी में तुम्हे इस एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हु तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनना।”

द्वापरयुग के प्रारंभ में एक महिष्मति नामक नगरी हुआ करती थी, जंहा महीपति नामक एक परम प्रतापी राजा राज करता था। उसके राज में सभी लोग बड़े ही सुखी और समृद्ध थे किंतु राजा स्वतः सभी भौतिक सुख प्राप्त करने के उपरांत दुःखी जीवन व्यतीत कर रहा था। भले ही राजा के पास सभी सुख थे किंतु वह संतानसुख से वंचित था। उसका मानना था जिस मनुष्य को संतान सुख की प्राप्ति नहीं होती उसका लोक और परलोक दोनों दुःख दाई होते है।

पुत्रधन की प्राप्ति हेतु राजा ने कई यज्ञ अनुष्ठान किये किंतु वह सफल नहीं हो पाए।

वृद्धावस्था को समीप आता देख वे बड़े चिंतित रहने लगे और एक दिन उन्होंने एक सभा बुलाई जिस में प्रजा के सभी अग्रणी और प्रतिनिधि उपस्थित थे। सभी सभासदों की उपस्थिति में राजा ने अपनी व्यथा कहनी आरंभ की –

“हे प्रजाजनों, राज खजाने में जामा किआ हुआ धन मैने किसी से नहीं छिना ना ही बेकसूरों पर अन्याय करके कमाया है, ना ही मेने किसी देवता या ब्राह्मणों का धन छिना है। किसी और की धरोहर को छिनने तक की कोशिश नहीं की है मने। प्रजा का सदैव पुत्र की तरह पालन और पोषण करता रहा। अपराधियों तक मेने एक पुत्र और बांधव की भांति दंड दिए है। सज्जनों की सदा पूजा की है, किन्तु न जाने क्यों मुजसे ऐसा कोनसा अपराध हुआ है की मुझे संतानसुख की प्राप्ति ना हो सकी। जैसा की आप सब जानते है यह संसार में जीव नश्वर है और में अभी उसी पथ पर आगे बढ़ रहा हु। में नहीं जानता मेरी मृत्यु के पश्चात मेरी संतान रूपी प्रजा का क्या होगा यही सोच कर में अत्यंत दुःख से भर जाता हु। अतः में इसका मूल कारण जानना चाहता हु।

राजा महिजित की व्यथा को सुन सभी नगरजन और दरबार के मंत्री विचार में पड़ गये और सोचने लगे की आखिर कार इस समस्या का समाधान कैसे ढूंढा जाये। अतः सभी आपस में विचार विमर्श करते हुए वन की और प्रस्थान करते है। वंहा बड़े बड़े ऋषि मुनियों के आश्रम में जा कर उनके दर्शन किये और राजा की उत्तम कमाना की पूर्ति हेतु किसी श्रेठ ऋषि की खोज में फिरते रहे।

फिरते फिरते उन्हें एक आश्रम दिखा वह आश्रम ऋषि के तप के बल से स्वतः ही प्रकाशमान हो रहा था। आश्रम में प्रवेश करते ही उन्होंने एक अति तेजस्वी, वयोवृद्ध, परमात्मा में मन लगाये हुए, निराहार, जितेन्द्रिय, जितक्रोध, धर्म के ज्ञाता, सनातन धर्म के गूढ़ रहस्यों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता ऐसे महात्मा लोमेश मुनि के दर्शन किये।

सभी नगवासियो ने ऋषि लोमेश को सादर प्रणाम अर्पित किआ। नगरजनो को इतनी भारी मात्रा में देख ऋषि लोमेश ने उनका यंहा आनेका प्रयोजन पूंछा। ऋषि लोमेश के प्रश्न से सभी नगरजन एक दुसरे को ताकने लगे लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई की आपनी बात वह निसंकोच ऋषि के समक्ष रख सके। अतः ऋषि लोमेश ने कहा – “आप सभी नगरजन भयभिंत ना हो आप निसंकोच हो कर मुझे अपने आने का प्रयोजन बता सकते है। मेरा जन्म ही जन कल्याण हेतु हुआ है। में आपको आस्वस्थ करता हु में आपका हित की करूँगा।

ऋषि लोमेश के वचन सुन सभी नगरजन निश्चिंत हो कर अपनी बात रखते हुए बोले – “हे महर्षि, आप स्वयं ब्रह्मा के समान हमारी मन की बात जानने में समर्थ है। फिर भी आप हमसे हमारी व्यथा का कारण पूछना चाहते हे तो सुने और हमारा मार्गदर्शन करे। हमारी नगरी का नाम महिष्मति है और हमारे राजा महिजित परम प्रतापी धर्मात्मा और प्रजावत्सल है। उन्होंने हमारा एक पुत्र की भांति लालन और पोषण किआ हुआ है किन्तु वह स्वतः पुत्रसुख से वन्चिंत है अतः वे बहोत दुखी है। हम उस परम परतापी राजा की प्रजा है, जो राजा की व्यथा देख हम में इन्ही के दुःख में दु:खी है। हमें आपके दर्शन मात्र से यह विश्वास उमड़ आया है की हमारे इस संकट का समाधान आप अवश्य देंगे क्योकि आप जैसे महर्षि के दर्शन मात्र से कई कष्ट स्वतः ही दूर हो जाते है। अतः हे मुनिश्रेष्ठ आप हमारी इस समस्या का समाधान देने की कृपा करे।

नगरजनो का वृतांत सुनकर महर्षि ने कुछ क्षण के लिए अपने नेत्र बांध किये और राजा के पूर्वजन्म के कर्म देखने लगे। कुछ क्षण बाद उन्होंने अपनी आखे खोली और नगरजनो समक्ष राजा के पूर्व जन्म का वृतांत सुनाने लगे –

महर्षि – यह राजा अपने पूर्वजन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने की वज़ह से इसने अपने जीवनकाल में अनेको बुरे कर्म किये। यह राजा वेपार करने हेतु एक नगर से दुसरे नगर भ्रमण किआ करता था।

एक समय की बात है जब ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन मध्याहन के समय राजा जो दो दिन से भूखा प्यासा था वह एक जलाशय को देख तुरंत जल पिने वंहा पहुंचा और जल पान करने लगा। संजोगवश उसी जलाशय पर एक तत्काल ब्याही गौ भी जल पान कर रही थी।

राजा ने उस गौ को जल पान करते हुए देख उसे जल नहीं करने दिया और वंहा से भगा दिया, अतः राजन इसी पाप कर्म का फ़ल भुगत रहा है। एकादशी के पर्व पर अन्न ना ग्रहण करने की वज़ह से वह राजा हुआ और गौ माता को जल पीने से रोक कर उसे वंहा से भगाने के फल स्वरुप उसे यह पुत्र प्राप्ति सुख से वंचित हो ना पड़ा है। वंहा उपस्थित सभी नगरजन ऋषि का कथन बड़े ही ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। कथन समाप्ति पर वह तुरंत बोले – “हे महर्षि..!!! जैसे हर शास्त्र में प्राश्चित का भी एक विधान होता है। अतः आप हमें एक कोई उपाय बताये जिससे हमारे राजा इस पाप कर्म का प्राश्चित कर सके और अपना इच्छित वर प्राप्त कर सके।

लोमेश मुनि ने नगरजनो के कथन सुने और कहा – “अवश्य है..!!! इस समस्या का समाधान यह है की श्रावन माह के शुक्पक्ष को आनेवाली एकादशी जिसे हम पुत्रदा एकादशी(Shravana Putrada Ekadashi) के नाम से भी जानते है। आप सभी नगरजन अपने प्रिय राजा की मनोकामना को सिद्ध करने हेतु इस पवित्र एकादशी(Shravana Putrada Ekadashi) का व्रत और रात्रि जागरण कीजिये। इस व्रत के फल स्वरुप निश्चितरूप से आपके राजा के पूर्व जन्म के पाप धुल जायेंगे और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।

महर्षि लोमेश के परामर्ष से सभी नगरजनो और मंत्रियो अपने नगर वापस लौट गए और श्रद्धापूर्वक श्रावण माह के शुकलपक्ष को आनेवाली एकादशी(Shravana Putrada Ekadashi) का व्रत रखा और रात्रि जागरण भी किआ। उसके पश्चात द्वादशी तिथि के दिन हाथ में जल ग्रहण कर ब्रह्मणों की उपस्तिथि में संकल्प कर इस व्रत का सम्पूर्ण फल आपने राजा को दे दिया। अतः इस पुण्यकर्म के प्रभाव से महारानी गर्भवती हुई और प्रसवकाल के समाप्त होने पर उन्होंने एक बड़े ही तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।

इसलिए हे राजन! इस श्रावण माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी व्रत का नाम पुत्रदा एकादशी(Shravana Putrada Ekadashi) हुआ। अतः जो भी मनुष्य संतानसुख की प्राप्ति रखता है उसे यह व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस व्रत के श्रवण मात्र से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोग कर परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति करता है।

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