SHIV KATHA – जब देवो के देव महादेव ने लिया मगरमच्छ का रूप और ली देवी पार्वती की परीक्षा

महाशिवरात्रि का पावन पर्व अब बस चंद दिनों दूर है ऐसे में अगर Shiv Katha का रसपान करने मिल जाये तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। वैसे तो शिव अनंत है और उनकी कथाए भी। आज हम उन्ही अनंत कथाओ में से एक कथा का वर्णन इस लेख में कर रहे है। यह कथा उस समय की है जब माता देवी पार्वती देवो के देव महादेव Shiv को वर स्वरुप में पाने के लिए तप कर रही थी और उनके तप के प्रभाव से पूरा भ्रमांड हचमचा उठा था। सभी देवो का यह मानना था की भोलेनाथ को अभी देवी को दर्शन दे देने चाहिए और उनकी तपस्या के फल स्वरुप उचित वरदान भी देना चाहिए। वैसे तो भोलेनाथ करुना मई है अपने भक्तो पर वो सदैव कृपा रखते है लेकिन वह देवी पार्वती की मनो दशा को भलीभाति समजते थे और उन्होंने देवी सती को पहेले ही खो दिया था वो यह बिलकुल भी नहीं चाहते थे की देवी सती जो इस जन्म में देवी पार्वती बन कर फिर से उनकी अर्धांगिनी बनने आई है वह अपने पूर्व जन्म की तरह भावुक तो नहीं है ना! क्या उनमे एक देवी की भाति करुणा और समर्पण की भावना है के नहीं वह इस बात का पता लगाना चाहते थे। उन्होंने वैसे पहेले भी सप्त ऋषियों  द्वारा उनकी परीक्षा ली थी, सप्त ऋषियों ने परीक्षा के भाग स्वरुप भगवान भोलेनाथ के कई अवगुणों के बारे में देवी को अवगत कराया हुआ था लेकिन देवी ने सप्त ऋषियों को साफ़ स्वरों में यह कह दिया था वो इस जन्म में केवल और केवल महादेव shiv को ही वरेगी और उनकें बारे में कहे जाने वाले ऐसे कटु वचनों को सुनना उन्हें कतय  स्वीकार्य नहीं है अतः आप सर्व ऋषिगन यहाँ से तुरंत अपने मार्ग लौट जांए। देवी की इस बात को सुन कर सप्त ऋषि प्रसन्न हुए और उन्होंने साड़ी बाते महादेव को व्यक्त की। सप्त ऋषियो की बाते सुनकर अब महादेव ने स्वयं एक अंतिम परीक्षा लेने का निश्चय किआ और वो देवी पार्वती की तपस्या स्थली की और प्रस्थान कर गए।

देवी पार्वती इस समय अपनी तपस्या में लीन थी तभी भगवान शिव उनके सामने प्रगट हुए और उन्होंने उनकी तपस्या के फल स्वरुप वरदान मांगने को कहा –

“है देवादि देव, आप तो सर्वेश्वर है, आप से भला इस संसार में क्या छुपा है लेकिन आपकी यही इच्छा है की में अपने मुख से अपनी इच्छा का वर्णन करू तो मुझे स्वीकार है, है महादेव! मैंने यह तप आपको अपने पति रूप में पाने के लिए किआ है अतः मेरी यही इच्छा है की आप मेरी तपस्या के फल स्वरुप मुझे वरदान दे की में आपकी अर्धांगिनी बनू इसके अतिरिक्त मुझे और कोई वर की इच्छा नहीं है। मेरी इस इच्छा को आप पूर्ण करे है महादेव..!!”

देवी पार्वती की इच्छा को सुन महादेव shiv मुस्कुराये और उन्होंने कहा –

 “है देवी में आपकी इच्छा और तपस्या से प्रसन्न हु, और में आपको ये वर देता हु की समय आने पर आप मेरी अर्धांगिनी बनेगी किन्तु एक बात का ध्यान रहे अगर किसी सूरत में आपने अपने ताप के फल को दान कर दिया तो आपको आपकी तपस्या का कोई मोल प्राप्त नहीं होगा।”

महादेव shiv के वचन सुन देवी पार्वती प्रसन्न हुई और कहा –

“मुझे स्वीकार है, हे देवा दी देव..।”

Shiv Katha - When Mahadev take exam of Devi Parvati

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देवी की बात सुन महादेव shiv ने कहा –

“तथास्तु..!!!”

और वंहा से अलोप हो गए।

आज देवी पार्वती महादेव shiv से प्राप्त वर से बेहद संतुष्ट थी की अचानक उन्हें किसी बालक की आवाज़ सुनाई दी। वो बालक बहोत चिल्ला रहा था और मदद की गुहार लगा रहा था। जैसे ही देवी पार्वती आवाज़ की दिशा में नदी तट पर पहुंची तो उनके होश उड़ गए उन्होंने देखा की एक विशालकाय मगरमच्छ एक बालक का पैर पकडे हुए है, और दर्द के मारे बालक चिल्ला रहा है, वो तुरंत बालक के पास पहुंची वह बालक दर्द के मरे कहरा रहा था –

“है देवी, रक्षा करो, मेरी रक्षा करो है देवी! संध्या पूजन हेतु में यहाँ नदी में जल लेने आया था किन्तु अज्ञानता वश में इस मगरमच्छ का शिकार बन गया हु। मेरी रक्षा करे हे देवी मेरा इस संसार में और कोई नहीं है..!!!”

बालक की गुहार सुन कर देवी पार्वती मगरमच्छ से कहने लगी –

“है ग्राह!, आप इस बालक के प्राण ना ले, आप किसी और को अपना आहार बनाये।”

देवी पार्वती की बात सुन मगरमच्छ ने कहा –

“है देवी, परम पिता भ्रमा जी के कथनों के अनुसार में आपना भोजन पुरे दिन में केवल छट्टे पहर में खोजता हु और अभी मुझे यह बालक डदज छट्टे पहर में ही दिखाई दिया है, आप ही बताइए देवी में इसे अपना आहार क्यों ना बनाऊ? मुझे क्षमा करे देवी मै इसे नहीं जाने दे सकता।”

मगरमच्छ की वाणी सुन देवी पार्वती विचलित हो उठी और कहा –

“हे ग्राह, में आपकी बात समज गई, में आपसे निवेदन करती हु आप इस निर्दोष बालक के प्राण के बदले मुझसे कुछ भी मांग सकते है में आपको वचन देती हु में आपकी इच्छा को पूर्ण करुँगी”

देवी की बात सुन मगरमच्छ ने कहा – 

“हे देवी, आप धन्य है किन्तु आप अपने वचनों पर कृपया एक बार फिर विचार कर ले, कही आप मेरी इच्छा को सुन मुकर न जाये..”

“हे ग्राह, में आपको वचन देती हु में आपकी इच्छा को स्वीकार करुँगी और उससे मुकरुंगी नहीं।”

देवी की बात सुन आस्वथ हो कर मगरमच्छ ने अपनी इच्छा प्रगट की –

मगरमच्छ – “अगर आपकी यही इच्छा है तो सुने, में यह जनता हु आप एक तपस्वीनी हे और अपने महादेव shiv को प्रसन्न करके वर भी प्राप्त किआ है, में आपसे आपकी तपस्या का फल मांग रहा हु, कृपया मुझे आपने तप का फल प्रदान करे में इस बालक के प्राण छोड़ दूंगा।”

मगरमच्छ की बात सुन देवी कुछ समय के लिए स्तब्ध हो गई और उन्होंने कहा –

“हे ग्राह, मुझे आपकी इच्छा स्वीकार्य है। में आपको आपनी तपस्या का सम्पूर्ण फल प्रदान करती हु।”

देवी की बात सुन मगरमच्छ अनहद खुश हुआ और कहा – 

“हे देवी, कृपया एक बार और सोच लीजिये फिर आपको आपकी तपस्या का कोई फल प्राप्त नहीं होगा”

“हे ग्राह, मुझे पता है, में अपनी पूर्ण स्मृति आपको अपनी तपस्या का फल प्रदान करने का संकल्प लेती हु”

देवी के वचन आकाश में गूंजने लगे और कुछ समय में मगरमच्छ का पूरा देह प्रकाशमान होने लगा।

“ये देहिये देवी, आपकी तपस्या के फल से मुझे अपार शक्ति प्राप्त हो रही है” मगरमच्छ ने कहा – 

देवी और बालक मगरमच्छ को बड़े ही विस्मय से देख रहे थे।

कुछ क्षणों में देवी पार्वती ने अपनी आँखे बांध कर ली और महादेव shiv का ध्यान करने लगी और उनसे क्षमा मांगने लगी की उनके कहेने पर भी उन्होंने अपने तप का फल दान कर दिया।

मगरमच्छ अब पूर्ण रूप से प्रकाशमान हो गया था और उसने देवी पार्वती से कहा – 

“हे देवी, आप धन्य है! अपने मुज जैसे जिव को अपनी तपस्या का पूर्ण फल प्रदान कर दिया। किन्तु मुझे आपसे यह जानना है की आपने ऐसा क्यों किआ एक जिव के बदले में इतना बड़ा त्याग करने की आपको क्या आवश्यकता थी!!”

मगरमच्छ की वाणी सुन देवी पार्वती मुस्कुराई और कहा – 

“में जानती हु की मेने जो किआ है वो साफ तौर पर सरल नहीं है, किन्तु तपस्या तो में फिर से भी कर सकती हु लेकिन अगर इस बालक के प्राण अगर चले जाते तो वो वापस आ नहीं सकते थे। इसी वजह से मेने अपने तप के फल का दान करना उचित समजा।”

देवी के वचन सुन मगरमच्छ हर्षित हो उठा और देवी पार्वती पुनः अपनी तपस्या आरंभ करने हेतु अपनी तपस्या स्थली की और चलने लगी।  कुछ क्षणों में देवी को पीछे किसीने पुकारा –

“है देवी..!! रुकिए..!!!”

देवी पार्वती पीछे मुड कर देखा तो वह मगरमच्छ और बालक अलोप हो चुके थे और वहा साक्षात् महादेव shiv प्रगट हुए और कहने लगे –

“है देवी.. यह मेरी ही एक लीला थी, मेने आपकी परीक्षा हेतु यह लीला रची थी, अपने मुझे ही आपने तप फल को दान किआ है आपको अब और तप करने की कोई आवश्कता नहीं है।”

महादेव Shiv की बात सुन देवी पार्वती बहोत हर्षित हुई और वापस अपने नगर की और प्रस्थान कर गई।

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