षटतिला एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Shattila Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

Shattila Ekadashi Vrat का हिन्दू संस्कृति में एक अलग ही महात्मय है। इस व्रत को करने से जातक को सुख शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। Shattila Ekadashi का व्रत में टिल दान का एक विशेष महत्त्व होता है। कहा जाता है जातक को इस एकादशी पर्व में टिल का छे रूप से दान करना चाहिए, इसी कारन वश इस एकादशी को षट =  छे तिला = तिल एकादशी कहा जाता है। कहा जाता है की Shattila Ekadashi पर्व पर जो जातक जितने स्वरुप में तिल का दान करता है उसे उतने हज़ार वर्ष तक स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है। Shattila Ekadashi Vrat में 6 प्रकार के तिल दान की बात कही है वह इस प्रकार हैं 1. तिल मिश्रित जल से स्नान 2. तिल का उबटन 3. तिल का तिलक 4. तिल मिश्रित जल का सेवन 5. तिल का भोजन 6. तिल से हवन।

षटतिला एकादशी 2024 कब है? (Shattila Ekadashi kab hai?)

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 6 फरवरी 2024, मंगलवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 7 फरवरी 2024 सुबह 07.13 मिनट से सुबह 9.28 मिनट तक

षटतिला एकादशी तिथि (Shattila Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 5 फरवरी 2024 सोमवार शाम 05.24 मिनट से
समाप्ति – 6 फरवरी 2024 मंगलवार शाम 04.07 मिनट तक

Shattila Ekadashi

षटतिला एकादशी का महात्मय (Shattila Ekadashi Ka Mahatmay)

भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से पोष पुत्रदा एकादशी की कथा सुन राजा युधिष्ठिर बोले –
युधिष्ठिर – “हे भगवन..!! आपके श्री मुख से पोष माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली पोष पुत्रदा एकादशी की कथा सुन में तृप्त हो चूका हुँ। अब मुझे आप माघ माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी के विषय में बताये। इस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है? इस एकादशी का क्या महात्मय है? इस एकादशी करने का क्या विधान है? इस एकादशी व्रत को करने से किस पुण्यफ़ल की प्राप्ति होती है? यह मुझे सह विस्तार बताने की कृपा करें हे मधुसूदन।

श्री कृष्ण – “हे राजन, माघ माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को “षटतिला एकादशी” के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के पर्व पर तिल के प्रयोग का विशेष महत्त्व है। इस एकादशी के दिन –

  • तिल स्नान
  • तिल का तर्पण
  • तिल का हवन
  • तिल का उबटन
  • तिल का भोजन और
  • तिल का दान

इन 6 प्रकारो से तिल का प्रयोग करना अति पुण्यकारी होता है। तिल के इन छ प्रकार से प्रयोग करने के कारण इस एकादशी को “षटतिला एकादशी”(Shattila Ekadashi) कहा जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के पापो का नाश होता है।

श्री कृष्ण – “हे युधिष्ठिर, अब में तुम्हे इस पावन एकादशी(Shat Tila Ekadashi) का महात्मय बताता हुँ जो महर्षि पुलस्य ने महर्षि दालभ्य को बताया था।

एक समय की बात है जब महर्षि दालभ्य ने महर्षि पुलस्य से पूछा –

दालभ्य – “हे महर्षि, पृथ्वीलोक में मनुष्य परधन की चोरी करते है, ब्रह्महत्या जैसा महापाप करते है तथा दूसरे मनुष्यों की उनन्ति देख इर्षा करते है। साथ ही साथ अनेक प्रकार के वैसानो में सदैव फसे रहते है फिर भी उन्हें नर्क लोक की प्राप्ति नहीं होती है। इसका क्या कारण है?” वे ऐसा तो कोनसा दान पुण्य करते है जिससे उनके पाप नष्ट हो जाते है। यह आप मुझे कृपा करके बताये।”

महर्षि दालभ्य के वचन सुन महर्षि पुलस्य ने कहा –

पुलस्य – “हे मुनिश्रेष्ठ..!! अपने बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न किया है। इससे संसार के सभी जीवो का कल्याण अवश्य होगा। इस रहस्य को तो स्वयं इंद्रा आदि देवता भी नहीं जान सके किन्तु में आपको यह गुप्त तत्व अवश्य बताऊंगा।

माघ मास में स्नान करने के विशेष महत्त्व है। हर मनुष्य को नित्य स्नान करके खुद को सदैव पवित्र और स्वच्छ रहना चाहिये।

काम, क्रोध, लोभ, मोह, इर्षा, द्वेष और अहंकार आदि का त्याग कर सभी इन्द्रियों को वश में रखते हुए भगवान श्री हरी का स्मरण करना चाहिये।

अगर एकादशी पुष्य नक्षत्र में आई हो तो गोबर, तिल और कपास मिलाकर उसके कंडे तैयार करने चाहिये और उस कंडो से 108 बार हवन करना चाहिये।

अगर एकादशी मूल नक्षत्र में आई हो तो अच्छे पुण्य अर्जित करने हेतु सभी नियमो का विधि विधान से पालन करना चाहिये।

एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि नित्य क्रियाओ से निवृत हो कर सभी देवताओं में सर्व श्रेष्ठ ऐसे भगवान श्री हरी विष्णु का पूजन कर एकादशी व्रत को धारण करें। एकादशी को रात्रि जागरण करना अति उत्तम फल देता है।

एकादशी के अगले दिन द्वादाशी तिथि को प्रातः जल्दी उठ कर स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत हो कर भगवान श्री हरी विष्णु का अबिल, ग़ुलाल, अक्षत, धुप, दीप, नैवैध से पूजन करना चाहिये। और उन्हें खिचड़ी का सात्विक भोजन अर्पित करना चाहिये। तत्पश्चात भगवान को नारियल, पेठा, सीताफल या सुपारी का अर्ध्य दे कर उनकी स्तुति करनी चाहिये –

“हे भगवान! आप दीनों को शरण देने वाले हैं, इस संसार सागर में फँसे हुओं का उद्धार करने वाले हैं। हे पुंडरीकाक्ष! हे विश्वभावन! हे सुब्रह्मण्य! हे पूर्वज! हे जगत्पते! आप लक्ष्मीजी सहित इस तुच्छ अर्घ्य को ग्रहण करें।”

इस प्रकार भगवान की स्तुति करने के पश्चात एक कुम्भ (घड़ा) में जल भर कर उसे ब्राह्मण को दान दे। उसके साथ ब्राह्मण को श्यामा गौ और तिल पात्र देना अति शुभ माना जाता है। इस एकादशी(Shat Tila Ekadashi) के पर्व पर तिल से किया जानेवाला स्नान और तिल का भोजन दोनों ही श्रेष्ठ फल प्रदान करते है। इस प्रकार इस एकादशी व्रत में मनुष्य जितने तिलो का दान करता है उठाने हज़ार वर्ष वह स्वर्ग का भागी बनता है। इतना कह कर महर्षि पुलस्य ने कहा –

पुलस्य – “हे मुने, अब में आपको इस एकादशी पर्व की कथा सुनने जा रहा हुँ अतः आप इसे ध्यान पूर्वक सुनएगा।

षटतिला एकादशी व्रत कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha)

एक समय जब देवर्षी नारदजी ने भी भगवान श्री हरी विष्णु से भी यही प्रश्न किया था उस समय श्री हरी विष्णु ने जो षटतिला एकादशी(Shat Tila Ekadashi) का महात्मय देवर्षी नारदजी को कहा था वही आज में तुमसे कहने जा रहा हुँ।भगवान श्री हरी विष्णु ने देवर्षी नारदजी से कहा –

“हे नारद..!!! आज में तुम्हे एक सत्य घटना कहने जा रहा हुँ। सो इस तुम बड़े ध्यानपूर्वक सुनना।”

प्राचीनकाल में पृथ्वीलोक में एक  ब्राह्मण स्त्री रहती थी। वह परम साधवी और सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह निरंतर पुरे एक माह तक व्रत करती रही। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर दुर्बल हो गया था। वह साध्वी ब्राह्मण स्त्री बहुत बुद्धिशाली थी किन्तु उसने अभी तक देवताओं और ब्राह्मणो के निमित्त अन्न और धन का दान नहीं किआ था। इसलिए मैंने सोचा ब्राह्मणी ने व्रत अनुष्ठान से अपना शरीर शुद्ध तो कर लिया था इससे उसे विष्णुलोक की प्राप्ति तो हो जाएगी किन्तु उसने अपने जीवनकाल में कभी भी देवताओं और ब्राह्मणों को अन्न और धन का दान नहीं किया था इसलिए उसकी तृप्ति होना कठिन जान पडता था।

भगवान श्री हरी ने आगे कहा – “ऐसा सोचकर में स्वतः एक भिक्षुक का वेश धारण कर मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उसके द्वार पर खड़ा हो कर भिक्षा की याचना करने लगा।

मेरी पुकार सुन ब्राह्मणी बाहर आई और कहने लगी – “हे महाराज, आप किस कारणवश यंहा आये हुए हो?”

मैंने कहा – “में तुम्हारे द्वार भिक्षा मांगने आया हुँ। मुझे भिक्षा चाहिये।”

मेरी याचना पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में रख दिया और में वापस अपने धाम लौट आया। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी का भी अंत समय आ गया था और अपने पुण्य फल के प्रताप से वह स्वर्गलोक में आ गई। उसने भिक्षा में मिट्टी का ढेला दिया था उसी के परिणाम स्वरुप उसे स्वर्गलोक में  एक भव्य महल मिला किन्तु उसने अपने महल को अन्न और अन्य सामग्रीयो से शून्य पाया।

भयप्रद हो कर वह तुरंत मेरे पास आई और याचना करने लगी उसने कहा – “हे प्रभु, मैंने अपने जीवनकाल में अनेक व्रत अनुष्ठान किये और पूर्ण श्रद्धा से आपका पूजन किया है किन्तु मेरा महल अन्न आदि वस्तुओ से शून्य है इसका क्या कारण है?”

उत्तर में मैंने कहा – “हे देवी, तुम पहले अपने महल को जाओ। कुछ देवस्त्रियां तुम्हे देखने के लिए आएँगी। अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी का महात्मय और विधि विधान सुन लेना तत्पश्चात अपना द्वार खोलना।”

भगवान श्री हरी विष्णु के कथननुसार ब्राह्मणी अपने महल को चली गई। कुछ क्षण बाद जब देवस्त्रियां ब्राह्मणी को देखने उसके द्वार आई तो ब्राह्मणी ने कहा – “हे देवस्त्रियों यदि आप मुझे देखने आई है तो आप पहले मुछे षटतिला एकादशी का महात्मय और विधि विधान बताये तत्पश्चात में अपने द्वार खोलूंगीI”

ब्राह्मणी की बात सुन उन देवस्त्रियों में से एक ने कहा की में तुम्हे षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) व्रत का महात्मय कहूँगी। सम्पूर्ण महात्मय और विधि विधान सुनने के पश्चात ब्राह्मणी ने अपने द्वार खोले। जब देवांगनाओ ने उसे देखा तो वो चकित रह गये। न तो वो गंधार्वी   थी नहीं आसुरी थी वह तो एक मानुषी थी।

ब्राह्मणी ने अब देवस्त्रियों के कथननुसार षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से वह और भी सुन्दर एवं रुपवाती हो गई। उसके महल के भंडार अन्नादी सभी सामग्रीयो से युक्त हो गये।

अतः सभी मनुष्यों को अपने जीवनकल में परम धाम की प्राप्ति पाने के लिए मूर्खता छोड़ कर षटतिला एकादशी(Shattila Ekadashi) व्रत निश्चित रूप से करना चाहिये और लालच ना करते हुए तिल आदि का दान करना चाहिये। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

षटतिला एकादशी व्रत कथा विडियो (Shattila Ekadashi Vrat Katha Video)

(Credit – VratParvaTyohar)

 

षटतिला एकादशी व्रत FAQ (Shattila Ekadashi Vrat FAQ)

  1. षटतिला एकादशी व्रत कब है?
    – षटतिला एकादशी व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 जनवरी 2023 को शाम 6 बजकर 5 मिनट से लेकर अगले दिन 18 जनवरी 2023 को शाम 4 बजकर 3 मिनट तक रहेगी. उदिया तिथि के चलते 18 जनवरी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा.
  2. षटतिला एकादशी व्रत करने से क्या होता है?
    – षटतिला एकादशी व्रत पर तिल का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यता है कि षटतिला एकादशी का व्रत करने से हजारों वर्ष तपस्या करने के अधिक फल मिलता है साथ ही जो इस दिन तिल का छह तरह से उपयोग करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती, आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है. व्यक्ति को हजारों वर्ष स्वर्ग में रहने का पुण्य प्राप्त होता है.
  3. क्या हम पीरियड्स में एकादशी का व्रत रख सकते हैं?
    – एकादशी पर्व पर अगर कोई महिला मासिक धर्म से गुजर रही हो तो भी उसे एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए ।
  4. एकादशी का व्रत कौन रख सकता है?
    – एकादशी का व्रत कोई भी रख सकता है. इससे मानसिक, शारीरिक और आत्मिक स्थिति अच्छी बनी रहती है.
  5. एकादशी के बाद व्रत कैसे तोड़ें?
    – एकादशी व्रत पारण के समय तोड़ा जाता है, जो द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद होता है। व्रत तोड़ने का सबसे अच्छा समय प्रातःकाल या मध्याह्न के बाद का होता है। अनुष्ठानों में पवित्र स्नान करना, मूर्तियों की पूजा करना, मंत्र पढ़ना, क्षमा मांगना, आरती करना और ब्राह्मणों को भोजन दान करना शामिल है।

और पढ़े –

Leave a Comment