Saphala Ekadashi का महात्मय हिन्दू संस्कृति बहोत माना जाता है। इस व्रत को विधि विधान से करने से जातक पुण्यफल को प्राप्त करता है। Saphala Ekadashi व्रत करने से जातक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत का अनुष्ठान करने वाला जातक भगवान विष्णु की विशेष कृपा का भागी बनता है। इस व्रत में भगवान विष्णु की आराधना करने के साथ ही साथ रात्रि जागरण का भी विशेष महत्त्व है। पद्मपुराण में Saphala Ekadashi व्रत कथा का भगवान श्री कृष्ण में वर्णन किया हुआ है।
सफला एकादशी 2024 कब है? (Saphala Ekadashi kab hai?)
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 7 जनवरी 2024, रविवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 8 जनवरी 2024 सुबह 07.18 मिनट से सुबह 9.28 मिनट तक
सफला एकादशी तिथि (Saphala Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 7 जनवरी 2024 रविवार सुबह 12.41 मिनट से
समाप्ति – 8 जनवरी 2024 सोमवार सुबह 12.46 मिनट तक
सफला एकादशी का महात्मय (Saphala Ekadashi Ka Mahatmay)
भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा सुन कर राजा युधिष्ठिर बोले –
युधिष्ठिर – “हे केशव…!!! आपके श्री मुख से मागशीर्ष माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली मोक्षदा एकादशी की कथा और महात्मय सुन में तृप्त हो गया हुँ और अब में आपसे पोश माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी पर्व के विषय में जानने को इच्छुक हुँ। अतः आप मुझे इस एकादशी को किस नाम से सम्बोधित किया जाता है? इस एकादशी व्रत का क्या महात्मय है? इस व्रत के पुण्यफ़ल स्वरुप हमें किस फल की प्राप्ति होती है? यह हमें विस्तार पूर्वक बताने की कृपा करें।”
श्री कृष्ण – “हे पाण्डुपुत्र..!! पोष माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को सफला एकादशी(Saphala Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी के देवता स्वयं श्री नारायण है। अतः इस एकादशी को विधि विधान पूर्वक करने से सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है। जैसे नागो में शेषनाग, सभी ग्रहो में चंद्रमां, पक्षियों में गरुड़, यज्ञों में अश्वमेघ और सभी देवताओं में भगवान श्री विष्णु श्रेष्ठ है उसी प्रकार से सभी प्रकार के वृतो में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ माना गया है। जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धा से एकादशी व्रत का अनुष्ठान करता है वह सदैव मेरे निकट रहता है। एकादशी व्रत के अतिरिक्त अगर अधिक से अधिक दक्षिणा या दान प्राप्त होने वाले यज्ञ से भी में प्रसन्न नहीं होता हुँ। अतः इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और विधि विधान से करना चाहिये। हे धर्मराज अब में तुम्हे इस व्रत की कथा सुनने जा रहा हुँ अतः इसे ध्यानपूर्वक सुनना।
सफला एकादशी व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीनकाल में चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक राजा राज किआ करता था। भगवान श्री हरी की कृपा से उसे चार पुत्र थे। किन्तु उन सभी पुत्रो में लुम्पक नाम का सबसे ज्येष्ठ पुत्र महापापी और दुराचारी था। वह अधर्म के मार्ग पर चलते हुए परस्त्री गमन, जुआ, मदिरापान, वैश्यागमन जैसे कुकर्मो में अपने पिता का पुण्य से अर्जित किआ हुआ धन नष्ट कर रहा था। वह सदैव ब्राह्मण, देवता, वैष्णव, ऋषि, संतो की निंदा करता रहता था। उसे किस भी धर्म काज में रूचि नहीं थी। एक समय जब उसके परम धर्मात्मा पिता को उसके कुकर्मो के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसी क्षण उसे अपने नगर से बाहर धकेल दिया। नगर से दूर होते ही लुम्पक की बुद्धि ने उसका साथ देना छोड़ दिया। उसे अब कुछ भी नहीं सुज़ रहा था की इस अवस्था में वह क्या करें और क्या ना करें।
भूख से तरबतर हो कर वो वन्य जीवो को मार कर खाने लगा। और धन की लालसा में रात्रि को अपने ही नगर में जा कर चोरी करता और निर्दोष नगर जनो को परेशान कर उन्हें मारने का महापाप करने लगा। कुछ समय पश्चात सारी नगरी उससे भयभीत होने लगी। निर्दोष वन्य जीवो को मार कर उसकी बुद्धि कुपित हो गई थी। कई बार राजसी सेवको और नगर जनों ने उसे पकड़ा किन्तु राजा के भय से वह उसे छोड़ देते।
वन के मध्य में एक अतिप्राचीन और विशाल पीपल का वृक्ष था। वह इतना प्राचीन था की कई नगर जन उसे भगवान की ही तरह पूजा करते थे। वंही लुम्पक को इस विशाल वृक्ष की छाया अति आनंद प्रदान करती थी इसी कारणवश वह भी इसी वृक्ष की छाया में जीवन व्यतीत करने लगा। इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली भी मानते थे। कुछ समय बीतने पर आनेवाली पोष माह के कृष्णपक्ष की दसवीं तिथि की रात्रि को लुम्पक वस्त्रहीन होने के कारण शीत ऋतु के चलते वो पूरी रात्रि सो ना सका। उसके शरीर के अंग जकड गये थे।
सूर्योदय होते होते वह मूर्छित हो गया। अगले दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गरमी से उसकी मूर्छा दूर हुई। रात्रि जागरण और कई दिन से आहार ना करने की वजह से वो बहोत अशक्त हो गया था। गिरता संभालता आज वाह फिर भोजन की खोज में वन को निकल पड़ा। अशक्त होने के कारण वह आज इस स्तिथि में नहीं था की किसी पशु का आँखेद कर सके इस लिए वृक्ष के निचे गिरे हुए फलो को एकत्रित करते हुए वह पुनः वही विशाल पीपल के वृक्ष के निचे आ बैठा तब तक सूर्यास्त होने को था। एकदशी के महापर्व पर आज उससे अनजाने में व्रत हो चूका था। अत्यंत दुःख के कारण वह अपने आप को प्रभु श्री हरी को समर्पित करते हुए कहने लगा –
“हे प्रभु..!! अब आपके ही है यह फल। आपको ही समर्पित करता हुँ। आप भी तृप्त हो जाइये।”
उस दिन भी अत्यंत दुःख के चलते वो पूरी रात्रि सो नहीं पाया। उसके इस व्रत (उपवास) से भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए। प्रातः होने पर एक अत्यंत सुन्दर अश्व, सुन्दर परिधानो से सुसज्ज, उसके सामने आके खड़ा हो गया। उसी क्षण एक आकाशवाणी हुई –
“हे राजपुत्र, श्री नारायण की कृपा से तुम्हारे सर्व पापो का नाश हो चूका है। अब तुम अपने राज्य अपने पिता के पास लौट कर उनसे राज्य ग्रहण करोI”
आकाशवाणी से सुन प्रसन्न चित हो कर सुन्दर परिधान धारण कर भगवान श्री हरी का जय करा लगते हुए वह अपने राज्य को प्रस्थान कर गया। वंहा राज्य में राजा को भी इस बात की पुष्टि हो गई थी। अपने पापी पुत्र के पाप नष्ट होने पर राजा ने भी उसे सहर्ष स्वीकाराते हुए अपना राजपाठ उसे सौप दिया और खुद वन की और चले गये।
अब लुम्पक भी शास्त्रनुसार राजपाठ चलाने लगा था और उसका सारा परिवार पुत्र, स्त्री सहित भगवान श्री हरी के परम भक्त बन चुके थे। वृद्धावस्था आने पर वह भी अपने सुयोग्य पुत्र को अपने राज्य का कारभार सौपते हुए वन की ओर तपस्या करने चला गया और अपने अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।
अतः हे धर्मराज, जो भी मनुष्य अपने जीवनकाल में इस एकादशी(Saphala Ekadashi) का व्रत करता है उसे अपने अंत समय भी निसंदेह मुक्ति की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य इस पतित पावानी एकादशी का व्रत नहीं करता है वो सींग और पूँछ रहित पशु के समान है। इस सफला एकादशी(Saphala Ekadashi) की कथा का जो भी मनुष्य श्रवण या पठन करता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
सफला एकादशी व्रत कथा विडियो (Saphala Ekadashi Vrat Video)
(Credit – VratParvaTyohar)
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