रमा एकादशी व्रत कथा सम्पूर्ण – Rama Ekadashi Vrat Katha Sampurn In Hindi

रमा एकादशी 2023 कब है? (Rama Ekadashi kab hai?)

समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 09 नवम्बर 2023, गुरुवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 10 नवम्बर 2023 सुबह 6.45 मिनट से सुबह 8.59 मिनट तक

रमा एकादशी तिथि (Rama Ekadashi Tithi)

प्रारंभ – 08 नवम्बर 2023 बुधवार सुबह 8.23 मिनट से
समाप्ति – 09 नवम्बर 2023 गुरुवार सुबह 10.41 मिनट तक

Rama Ekadashi

रमा एकादशी का महात्मय (Rama Ekadashi Ka Mahatmay)

धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री हरि के श्री मुख से अश्विन माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा सुन तृप्त हो गए और कहा –

युधिष्ठिर – “हे कमलनयन..!! में आपके श्री मुख से पापांकुशा एकादशी की कथा और महात्म्य सुन कर तृप्त हो चुका हूं। अब में कार्तिक माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में जानने को इच्छुक हुं। इस एकादशी व्रत को किस नाम से जाना जाता है? इस एकादशी व्रत को करने का क्या विधान है? इस एकादशी व्रत को करने से किस पुण्यफल की प्राप्ति होती है? यह मुझे विस्तार पूर्वक बताने की कृपा करें।”

श्री कृष्ण – “कार्तिक माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली एकादशी को माता लक्ष्मी के नाम रमा एकादशी(Rama Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी दीपावली के चार दिन पूर्व आनेवाली एकादशी है। यह एकादशी ब्रह्महत्या जैसे महापाप से मुक्ति प्राप्त करवाती है। इस एकादशी व्रत के पुण्यफल से बड़े बड़े पापो का नाश सहज हो जाता है। अब में तुम्हे इस एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हूं अतः तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनना।”

रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)

हे धर्मराज.!! प्राचीनकाल में मुचुकुंद नाम के एक धर्मात्मा राजा हुऐ। उनकी मित्रता देवराज इंद्र से थी और यम, विभीषण, चंद्र, कुबेर, और वरुण भी उनके मित्र थे। राजा मुचुकुंद बड़े ही प्रतापी, धर्मनिष्ठ, परम विष्णुभकत और न्याय पूर्वक अपना शासन किया करते थे। राजा को एक गुणवान कन्या भी जिनका नाम “चंद्रभागा” था। जिनका विवाह चंद्रसेन के सुपुत्र शोभन के साथ हुआ था। शोभन कद काठी में बहोत दुर्बल था। एक समय की बात है जब शोभन अपने ससुराल आया हुआ था और कुछ ही दिनों के भीतर एकादशी भी आनेवाली थी।

एकादशी पर्व आने से एक दिन पूर्व पूरे नगर में ढोल बजाए गए और यह घोषणा की गई की इस एकदाशी(Rama Ekadashi) पर्व पर कोई भी प्रजाजन अन्न का आहार नहीं करेगा। यह घोषणा सुन चंद्रभागा बहोत चिंतित हो उठी। उन्हे लगा कि यह व्रत का पालन करना मेरे पति परमेश्वर के लिए बहोत कठिन होगा। कुछ ही क्षण में जमाता शोभन भी वंहा आ पहुंचे और अपनी भार्या चंद्रभागा से कहने लगे –

शोभन – “हे प्रिये..!! में अभी अभी हुई घोषणा से अत्यंत चिंतित हुं। इस एकादशी पर्व पर अगर मुझे खाना नहीं मिला तो कदाचित मेरी मृत्यू निश्चित होगी। अतः तुम कोई ऐसा उपाय निकालो की मेरे प्राण बच सकें।”

अपने प्राणप्रिय स्वामी की बात सुन वह चिंतित स्वर में कहने लगी –

चंद्रभागा – “हे स्वामी…!! मेरे पिता के राज्य में एकादशी पर्व पर सभी प्राणिमात्र का निराहार हो कर व्रत करना ही एक नियम बन चुका है। सभी प्राणी जैसे घोड़ा, बैल, गौ आदि सभी इस व्रत का पूर्ण रूप से पालन करते है तो फिर मनुष्य का तो क्या ही कहना। अतः अगर आप इस व्रत को नहीं करना चाहते तो इसी क्षण इस राज्य को छोड़ कहीं और चले जाइए और अगर आप ऐसा करने में असमर्थ है तो आपको यह व्रत करना ही होगा।”

पत्नी चंद्रभागा के मुंह से निकले वचन को सुन शोभम बोले –

शोभन – “अगर ऐसा ही है तो ठीक है प्रिये.. में इस व्रत का अनुष्ठान अवश्य करूंगा। आगे मेरे प्रभु की जो भी इच्छा होगी वह मान्य होगी।”

एकादशी व्रत के पर्व पर सभी प्राणिजन्य ने व्रत रख कर नियम का पालन किया और जमाता शोभन ने भी व्रत किया किंतु व्रत के दौरान उसकी स्थिति अत्यंत दुखदाई हो गई थी; भूख और प्यास से वह अत्यंत पीड़ा की अनुभूति कर रहे थे। सूर्यास्त होने पर जब रात्रि जागरण का अवसर आया तब सभी वैष्णवो ने पूर्ण हर्ष के साथ उसमे अपनी भागीदारी जताई किंतु शोभन के लिए यह अत्यंत दुखदाई पुरवार हुआ। प्रातः काल होते होते शोभन के प्राण पंखेरू निकल गए। राजा को जब इस घटना के विषय में ज्ञात हुआ तब उन्होंने सुगंधित काष्ट के लकड़ियों से उनका दाह संस्कार किया। पुत्री चंद्रभाग ने अपने पिता की आज्ञा मान कर अपने पति के देह के साथ दग्ध नहीं हुई किंतु शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के पश्चात वह अपने पिता के साथ ही रहने लगीं।

रमा एकादशी के फल स्वरूप शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन -धान्य से परिपूर्ण और अपने शत्रुओं से रहित एक वैभवशाली देवपुर की प्राप्ति हुई थी। वह अत्यंत सुंदर रत्न और वैदुर्यमणि जटित स्वर्ण के खंभों पर निर्मित अनेक प्रकार की स्फटिक मणियों से सुशोभित भवन में बहुमूल्य वस्त्राभूषणों तथा छत्र व चंवर से विभूषित, गंधर्व और अप्सराओं से युक्त सिंहासन पर आरूढ़ ऐसा शोभायमान होता था मानो दूसरा इंद्र विराजमान हो।

एक समय की बात हैँ जब मुचुकुन्द  नगर मे रहने वाले एक ब्राह्मण जिनका नाम सोम शर्मा था वह तीर्थंयात्रा हेतु अपने नगर से दूर भ्रमण करने निकले और अनायास ही घूमते घूमते वो शोभन की नगरी मे आ पहुंचे। जब ब्राह्मण ने राजा के रूप मे शोभन को देखा तो वह कुछ क्षण के लिए विचलित हुए और फिर जब शोभन ने भी ब्राह्मण को पहचान लिए तब उससे भेंट करने हेतु उनके पास पहुँच गए। शोभन ने ब्राह्मण का उचित आदर सत्कार किआ और उन्हें उचित स्थान पर बैठा कर उनके कुशल मंगल पूछे। राजा शोभन के निवेदन पर ब्राह्मण कहने लगा –

ब्राह्मण – “हे राजन, मुचुकुन्द नगर मे सभी लोग स्वस्थ और मंगलमय हैँ। मुचुकुन्द राजा और आपकी पत्नी चंद्रभागा भी सह कुशल हैँ, किन्तु हे राजन आपकी यह नगरी देख मे आश्चर्य चकित हो उठा हूँ की आखिर कार इतना भव्य नगर आपको प्राप्त कैसे हुआ वह आप मुजको बताने की कृपा करें।”

शोभन – “हे ब्राह्मण, यह आप जितना भी वैभव और धन देख रहे हों, वह सब कुछ रमा एकादशी(Rama Ekadashi) के फल स्वरूप प्राप्त हुआ है। किंतु यह सर्वस्व अस्थिर है।”

ब्राह्मण – “अस्थिर है?? ये आप क्या कह रहे है, राजन..!!!”

शोभन – “हा.. में सर्वथा उचित कह रहा हूं।”

ब्राह्मण – “यदि यह सत्य है..!! तो यह क्या माया है। यह क्यों अस्थिर है और अगर इसे स्थिर किया जा सकता है तो उसका उपाय मुझे बताने की कृपा करें। में मेरे सामर्थ्य के अनुरूप जो भी बन पड़ता होगा वह में अवश्य करूंगा। आप मुझ पर निसंदेह हो कर विश्वास कर सकते है।”

शोभन – “मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है। यह जो भी वैभव मेने प्राप्त किया है वह निसंदेश रमा एकादशी(Rama Ekadashi) व्रत की प्रभाव से ही है किंतु यह व्रत मेने श्रद्धापूर्वक नहीं किया था। अतः यह अस्थिर है। यदि कोई मेरी भार्या को यह सारा वृतांत बताए तो निसंदेह यह सारा वैभव स्थिर हो सकता है।”

शोभन की बात सुन ब्राह्मण सोम शर्मा वहां से विदाय लेते है। और अपनी नगरी लौट कर चंद्रभागा को सारा वृतांत बताते है।

चंद्रभागा सारा वृतांत सुन भाव विभोर हो जाती है और कहती है –

चंद्रभागा – “हे विप्र, यह जो भी वृतांत आप मुझे सुना रहे है यह आपके स्वप्न में रचित घटना तो नहीं है ना??”

ब्राह्मण – “हे पुत्री..!! यह वृतांत सर्वथा सत्य है और कोई स्वप्न नही है।”

चंद्रभागा – “यदि यह सत्य है तो आप कृपा कर मुझे उनके नगर को ले चलिए में अवश्य ही उनकी इस समस्या का समाधान करूंगी।”

चंद्रभागा के कहते ही, ब्राह्मण उन्हे शोभन के धाम उनकी वैभव से परिपूर्ण नगरी में ले जाते है। वहा जब चंद्रभागा अपने पति परमेश्वर को देखती है तो भाव विभोर हो जाती है। न जाने कितने समय पश्चात उसे अपने स्वामी के दर्शन प्राप्त हुए होंगे। वंही राजा शोभन भी अपनी प्राणप्रीय भार्या को अपने सम्मुख पा कर हर्ष से फूला नहीं समा रहा होता। वह अपनी पत्नी का आदर सत्कार कर उसे अपने निकल अपने सिंहासन पर अपने साथ बाई ओर बिठाया है और कहता है –

“हे प्रिये, तुम्हारे बगैर यह सारा वैभव एक छल समान प्रतीत होता हैं। और वैसे भी यह सारा वैभव अस्थिर है..!!”

चंद्रभागा – “हे प्राणनाथ..!! निसंदेह आप सत्य वचन बोल रहे है। और में आपके समक्ष यह वचन देती हु की आपका संपूर्ण वैभव अवश्य ही स्थिर होगा। हे स्वामी, में जब आठ वर्ष की थी तब से ही मेरे परम पिता की आज्ञा अनुसार एकादशी व्रत पूर्ण विधि विधान से किया करती थी। इस व्रत से मेने अनुकूल पुण्य अर्जित किया हुआ है। में आज यह संपूर्ण पुण्य आपको समर्पित करती हूं। उसे पुण्य फल के प्रभाव से निश्चित रूप से आपका राज्य स्थिर हो जायेगा और यह कालांतर तक इसी अवस्था में रहेगा।”

चंद्रभागा उसके पश्चात हाथों में पवित्र जल लेकर अपना सम्पूर्ण पुण्यफल आपने स्वामी को समर्पित कर देती है। इस पुण्यफल के प्रभाव से शोभन का राज्य अब वैभवशाली के साथ साथ स्थिर हो जाता है। और अब चंद्रभागा नवीन वस्त्र परिधान और आभूषणों से सुसज्जित हो कर अपने स्वामी के साथ अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करती है।

हे राजन, इसी प्रकार मेने आज तुम्हें रमा एकादशी(Rama Ekadashi) का महात्म्य और कथा सुनाई है। इस व्रत का विधिवत अनुष्ठान करने मात्र से ब्रह्महत्या जैसे कठोर पाप से भी मुक्ति मिल जाती है। जो भी मनुष्य इस एकादशी पर्व पर श्रद्धापूर्वक इस व्रत का अनुष्ठान और मेरी विष्णुरूपी प्रतिमा का पूजन और स्मरण करता है उसे निसंदेह विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। जो भी मनुष्य इस व्रत की कथा का श्रवण या पठन श्रद्धापूर्वक करता है उसके सारे पाप नष्ट हो कर उसे वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।

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