पौष पुत्रदा एकादशी 2024 कब है? (Pausha Putrada Ekadashi kab hai?)
समर्थ / वैष्णव / इस्कॉन / गौरिया – 21 जनवरी 2024, रविवार (स्थल – मुंबई, महाराष्ट्र)
व्रत तोड़ने(पारण) का समय – 22 जनवरी 2024 सुबह 07.18 मिनट से सुबह 9.30 मिनट तक
पौष पुत्रदा एकादशी तिथि (Pausha Putrada Ekadashi Tithi)
प्रारंभ – 20 जनवरी 2024 शनिवार शाम 07.26 मिनट से
समाप्ति – 21 जनवरी 2024 सोमवार सुबह 07.26 मिनट तक
पौष पुत्रदा एकादशी का महात्मय (Pausha Putrada Ekadashi Ka Mahatmay)
भगवान श्री हरी के श्री मुख से सफला एकादशी की कथा सुन कर धर्मराज युधिष्ठिर बोले –
युधिष्ठिर – “हे कृपासिंधु…!!! आपके श्री मुख से पोष माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली सफला एकादशी की कथा सुन कर में तृप्त हो चूका हुँ। और अब में पोष माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी के बारे में जानने को इच्छुक हुँ। अतः हे केशव इस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है? इस एकादशी व्रत करने का क्या विधान है? इस एकादशी व्रत के पुण्यफ़ल रूप किस फल की प्राप्ति होती है? इस व्रत में किन देवता का पूजन विशेष रूप से किआ जाता है? हमें सह विस्तार बताने की कृपा करें।
श्री कृष्ण – “हे राजन, पोष माह के शुक्लपक्ष को आनेवाली एकादशी को पोष पुत्रदा एकादशी(Pausha Putrada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। इस व्रत में भी भगवान श्री हरी विष्णु की ही पूजा उपासना की जाती है। इस नश्वर संसार में मनुष्य की सभी मनोकामनाओ को सिद्ध करने वाला पुत्रदा एकादशी के अतिरिक्त कोई और दूजा व्रत नहीं है। इस व्रत का अनुष्ठान पूर्ण विधि विधान के साथ किया जाना चाहिये। इस व्रत के पुण्यफ़ल से मनुष्य विद्वान, तपस्वी और धनवान होता है। अब में तुम्हे इस एकादशी व्रत की एक रोचक कथा सुनाने जा रहा हुँ अतः तुम इस पुरे ध्यानपूर्वक सुनना।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीनकाल में भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नामक राजा राज्य करता था। वह संतानसुख से वंचित था। उसकी भार्या का नाम शैव्या था। वह भी संतानसुख की लालसा में अत्यंत चिंतित रहा करती थी। राजा को अब धन-धान्य, स्त्री, बांधव, राज्य, वैभव इन सब में से किसी से भी सुख की अनुभूति प्राप्त नहीं हो रही थी। राजा के पितर भी रो रो कर पिंड का स्वीकार किया करते थे उन्हें भी अब यह चिंता रहती थी की अब इसके बाद हमें कौन पिंड दान करेगा।
राजा अब सदैव यही चिंता में रहता की मेरी मृत्यु के पश्चात कौन मुझे पिंड दान देगा? बगैर पुत्र के देवताओं और पितरो का ऋण कैसे चूका पाउँगा? जिस घर में पुत्र ना हो उस घर में सदैव अंधकार निवास करता है। अतः संतान प्राप्ति हेतु सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिये।
राजा अब पुत्र प्राप्ति हेतु सदैव चिंता में रहने लगे। जिनके घर में पुत्र की प्राप्ति होती है वह धन्य है। उनको इस लोक में यश और परलोक में शांति की प्राप्ति होती है अतः उनको दोनों लोक सुधर जाते है। पूर्व जन्म के कर्म के फल स्वरुप ही मनुष्य इस जन्म में धनवान और पुत्रवान बनता है।
निःसंतान राजा ने हताशा में एक समय अपना देह त्यागाने का निर्णय ले लिया किन्तु आत्महत्या सबसे बड़ा पाप होने के कारण उन्होंने अपने निर्णय को बदल दिया। एक दिन राजा अपनी इसी चिंता में वन की और शांति की खोज में निकल पड़ा और मार्ग में आनेवाले पेड़, पौधे, पशु, पक्षीओ को देखने लगा। उसने देखा वन में मृग, सिँह, सूअर, सर्प, बन्दर, भालू आदि सब भ्रमण कर रहे है। हाथी अपने शिशु और हाथनी के साथ वन में विचार रहा है।
कंही पर उसे गीदड़ जे कर्कश स्वर सुनाई पड़ रहे थे तो कंही पर उल्लू अपने तीक्ष्ण स्वर में कुछ कह रहे थे। राजा वन में विचरते विचरते यही सब दृश्य देखता हुआ सोच विचार में पड़ गया। देखते ही देखते आधा दिन बीत गया था। वह सोचने लगे मेने पुत्र प्राप्ति हेतु कई यज्ञ किए, ब्रह्मणों को स्वादिस्ट भोजन खिलाकर तृप्त किया किन्तु फिर भी उन्हें संतानसुख की प्राप्ति ना हुई, आखिर क्यों ऐसा उनके साथ हो रहा था वो समझ नहीं पर रहे थे।
वन में विहरते विहरते उन्हें प्यास लगी और अत्यंत दुःख के मारे वो जल की तलाश में यंहा वंहा फिरने लगे। थोड़ी ही दुरी पर राजा को एक सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के पास आने पर राजा ने देखा की सरोवर में मगरमच्छ, सारस, हंस आदि विहार कर रहे थे और सरोवर की चारो और ऋषि मुनि के आश्रम विद्यमान थे। राजा जल स्तोत्र को देख वंहा जल पिने अपने अश्व से निचे उतरा उसी क्षण उसके दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा इसे कोई शुभ संकेत मान वंहा बने आश्रम की और तुरंत दौड़ पड़ा। आश्रम में स्तिथ मुनिओं सादर वंदन करते हुए वंही पर बैठ गया।
राजा को अपने समक्ष पा कर ऋषिगन अत्यंत प्रसन्न हुए और कहा –
ऋषिगन – “हे राजन, हम तुम्हारे अदार भाव से अत्यंत प्रसन्न है अतः तुम हमसे जो मांगना चाहते हो कहो..!!”
राजा – “हे मुनिश्रेष्ठ..!! आप कौन है? और यहाँ किस प्रयोजन से आये हुए है कृपा कर मुझे बताइए..!!”
ऋषिगन – “हे राजन, आज संतान सुख प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी का पर्व है। हम सभी ऋषिगन विश्वदेव है और इस पवन सरोवर में स्नान करने हेतु यंहा आये है।
यह सुनकर राजा अत्यंत हर्षित हो उठे और कहा –
राजा – “हे भूदेव..!! मुझे भी कोई संतान नहीं है। यदि आप मेरे सेवाभाव से प्रसन्न है तो मुझे एक पुत्र प्राप्ति का वरदान दे।”
ऋषिगन – “हे राजन..!! आज संतान सुख प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी(Pausha Putrada Ekadashi) है अतः आप अवश्य इस एकादशी का व्रत रखे। आपको निश्चित रूप से पुत्र प्राप्ति होंगी।”
मुनि के वचनो से प्रभावित हो कर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किआ और अगले दिन द्वादाशी तिथि को व्रत का पारण कर व्रत का समापन किआ। इसके पश्चात सर्व मुनिओं को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करके वह पुनः अपने महल में आ गया। व्रत के प्रभाव से कुछ ही माह में महारानी ने गर्भ धारण किआ और नौ माह की अवधि समाप्त होते ही उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। वह पुत्र बहोत तेजस्वी और शूरवीर होने के साथ ही साथ प्रजापलक भी हुआ।
श्री कृष्ण बोले – “हे धर्मराज..!! हर मनुष्य को पुत्र प्राप्ति हेतु इस पुत्रदा एकादशी(Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत अवश्य रखना चाहिये। जो भी मनुष्य इस व्रत के महात्मय को पढ़ता या सुनता है उसे अंत समय में निश्चित रूप से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।”
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