भारत के उत्तरप्रदेश मे स्थित वाराणसी नगरी मे विश्वनाथ महादेव का ज्योतिर्लिंग आया हुआ है। भगवान महादेव का यह ज्योतिर्लिंग विश्विख्यात है। वाराणसी को काशी नाम से भी सम्बोधित किया जाता है इस वजह से इस ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Kashi Vishwanath Jyotirlinga) के नाम से भी लोग जानते है। वाराणसी नगरी पवित्र गंगा नदी के तट पर आई हुई है। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का समावेश भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो मे किया जाता है। महादेव के इस मंदिर को लोग विश्वेश्वर महादेव के नाम से भी जानते है। यहाँ विश्वेश्वर का मतलब ब्रह्मांड का शासक होता है। कहा जाता है की इस नगरी का प्रलयकाल मे भी लोप नहीं होता। उस समय भगवान अपनी निवासभूमि इस पवित्र नगरी को अपने त्रिशूल पर बिराजित कर लेते है और सृष्टीकाल आने पर पुनः अपने स्थान पर वापस स्थापित कर देते है। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार सृष्टी की आदि स्थली भी इसी नगरी को बताया गया है।

भगवान शिव शंभु का इस नगरी को एक वरदान है की जो कोई भी मनुष्य इस नगरी मे आके अपने प्राण त्यागता है फिर वो। चाहे कितना भी दुराचारी या पापी क्यों ना हो उसके सारे पाप नष्ट होके उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह नगरी इतनी पवित्र है की स्वयं भगवान विष्णु ने भी सुष्टि की कामना हेतु भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया था। महामुनी अगत्स्य ने भी इसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की तपस्या कर के उन्हें प्रसन्न किया था। मान्यता है की जो भी मनुष्य यहाँ अपने प्राण त्यागता है उसके कानो मे भगवान शिव “तारक” मंत्र का उपदेश देते है जिसके चलते पापी से पापी मनुष्य भी सहज़ भवसागर की बाधाओं से तर जाता है।
विषयासक्तचित्तोऽपि त्यक्तधर्मरतिर्नरः।
इह क्षेत्रे मृतः सोऽपि संसारे न पुनर्भवेत्॥
पौराणिक ग्रंथो के अनुसार “विषयो मे आसक्त, अधर्मी व्यक्ति मे अगर इस पावन काशी क्षेत्र मे मृत्यु को प्राप्त हो तो उसे भी पुनः इस संसार मे दुबारा नहीं आना पडता। श्री मद मत्स्य पुराण मे भी इस नगरी का महत्त्व दर्शाते हुए कहा है “जप, ध्यान और ज्ञानरहित तथा दुखो से पीड़ित मनुष्यों के उद्धार के लिए एक मात्र स्थान यह काशी नगरी ही है। कहा जाता है की श्री विश्वनाथ के आनंद कानन मे लोलार्क, बिंदुमाधव, केशव, दशाश्वमेघ और मणिकर्णीका यह पांच प्रश्न तीर्थ है। इसी कारणवश इस क्षेत्र को “अविमुक्त क्षेत्र” कहा जाता है।
जपध्यानविहीनानां ज्ञानवर्जितचेतसाम्।
ततो दुःखाहतानां च गतिर्वाराणसी नृणाम्॥तीर्थानां पञ्चकं सारं विश्वेशानंदकानने।
दशाश्वमेधं लोलार्कः केशवो बिंदुमाधवः॥पञ्चमी तु महाश्रेष्ठा प्रोच्यते मणिकर्णिका।
एभिस्तु तीर्थवर्यैश्च वर्ण्यते ह्यविमुक्तकम्॥
इस परम पवित्र नगरी कुल तीन खंडो मे विभाजित है जँहा उतर मे ओंकारखंड, दक्षिण मे केदारखंड और मध्य मे विश्वेश्वरखंड स्थापित है। प्रसिद्ध विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग इसी खंड मे बिराजमान है। पुरानो मे इस ज्योतिर्लिंग के बारे मे यह एक कथा दी गई है –
भगवान शंकर विवाह के पश्चात माता पार्वती संग कैलाश पर्वत पर निवास कर रहे थे किन्तु सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र माता पार्वती के पिता के घर के सामान है इसी कारणवश उन्हें अपने पिता के घर मे जीवन व्यतीत करना अच्छा नहीं लगता था। एक दीन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा – “है नाथ! आप मुझे कंही और ले चलिए। यहाँ मुझे अच्छा नहीं लगता है। विवाह के पश्चात सभी लड़किया अपने पिता का घर त्याग कर अपने पति के घर जाती है किन्तु यह जगा मेरे पिता के घर के समान ही है। अतः आप कृपा कर के मुझे किसी और स्थान पर ले जाइये।” माता पार्वती की बात महादेव ने स्वीकार करली और माता पार्वती को अपनी नगरी यहाँ काशी मे ले आ गए। यहाँ आकर वे विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप मे स्थापित हो गए।
कहा जाता है जो मनुष्य भगवान श्री काशी विश्वनाथ का दर्शन एवं पूजन करता है वो सर्व पापो से मुक्त हो जाता है। मान्यता यह भी है की प्रतिदिन जो भी भक्त नियम से भगवान विश्वनाथ के दर्शन करता है उसके योगक्षेम का समस्त भार भगवान शिव अपने ऊपर उठा लेते है। ऐसा भक्त उनके परम धाम का अधिकारी बन जाता है। भगवान शिव की कृपा उस पर सदैव बानी रहती है।