क्या आप जानते है 64 योगिनियो का क्या महत्त्व है? इनकी उत्पत्ति कैसे हुई? हमारे जीवन पर इन 64 योगिनियो का क्या असर पड़ता है? अगर आप इन सब बातों को विस्तार से जानना चाहते है तो इन लेख में अंत तक बने रहे। इस लेख में हम आपको इन सभी बातों से अवगत करवाएंगे।
64 योगिनियो की उत्पत्ति
अगर हम ६४ योगिनियो की उत्पत्ति के विषय में बात करे तो विविध पुरानो में इनकी उत्पत्ति की जानकारी अलग अलग है तो हम उन सभी जानकारियों को आपके समक्ष साझा करते है।
ब्रह्म वैवर्त पूरण के अनुसार 64 योगिनियो की उत्पति भगवान श्री विष्णु के आठवे अवतार श्री कृष्ण की नासिका से हुई है। यहाँ 64 योगिनियो का सम्बन्ध स्त्री और पुरुष की 32 – 32 कलाओ से दर्शाया गया है। यहाँ स्त्री पुरुष के बिना और एक पुरुष स्त्री के बिना अधूरे है। यहाँ एक सम्पूर्ण स्त्री 32 कलाओ से युक्त होती है और वही एक सम्पूर्ण पुरुष भी 32 कलाओ से युक्त होता है। यहाँ स्त्री और पुरुष के मिलन से बनते है 32 + 32 = 64, तो इनके अनुसार 64 योगोनिया महादेव शिव शम्भू और माता पार्वती के मिलन से प्रगट हुई है।
कुछ मान्यता के अनुसार 64 योगिनिया माता पार्वती की सखिया है, तो कंही इन्हें माता आदिशक्ति माँ काली का अवतार बताया गया है। कहा जाता है की घोर नामक दैत्य का संहार करने के लिए माता ने यह अवतार धारण किये हुए थे।
64 योगिनियो की पूजा
कहा जाता है इन 64 योगिनियो की पूजा समस्त देवियों की पूजा करने के समाना है। यह सभी 64 योगिनिया माँ आदिशक्ति काली के ही विभिन्न अवतार है। इन 64 योगिनियो में दश महाविद्याये और सिद्ध विध्याओ का भी समावेश किया जाता है। लोगो का मानना है की यह सभी योगिनिया मुख्य रूप से माता आदि शक्ति महाकाली के ही कुल से है, और जैसा की माता महाकाली का सम्बन्ध तंत्र और योग विद्या से है, यह भी तंत्र और योग विद्या से घनिष्ट सम्बन्ध रखती है।
चैत्री नवरात्री और आसो नवरात्रि में इन 64 योगिनियो की पूजा अर्चना बहोत हितकारी और फलदायी होती है। जैसा की हमने आगे साझा किया है की यह योगिनियो का सीधा सम्बन्ध तंत्र और योग साधना से जुदा हुआ है तो इनकी पूजा अर्चना किसी जानकार पुरोहित के द्वारा ही की जानी चाहिये ताकि इनकी कृपा हमें पूर्ण रूप से प्राप्त हो।
कहा जाता है हर दिशा में 8 योगिनिया फैली हुई है और हर योगिनी के लिए एक सहायक योगिनी नियुक्त की हुई है, इस हिसाब से हर दिशा में 16 योगिनिया हुई तो 4 दिशा में 16 x 4 = 64 योगिनिया हुई। यहाँ 64 योगिनिया 64 तंत्र की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है जिसके चलते अगर आपको किसी एक देवी की भी कृपा प्राप्त हो जाए तो उससे सम्बंधित तंत्र की सिद्धि मानी जाती है।
यहाँ प्रतेय्क योगिनी अलौकिक सिद्धियो से परिपूर्ण है तथा जादू, इंद्रजाल, वशीकरण, स्तंभन, मारण इत्यादि कर्म इन्ही की कृपा से संपन्न हो पाते है। मुख्य रूप से आठ योगिनिया है जिनके नाम कुछ इस प्रकार है –
1. मनोहरा योगिनी
यह योगिनी अत्यंत सुन्दर होती है और इनके शरीर से नित्य सुगंध प्रवाहित होती रहती है। इनकी वेशभूषा विचित्र होती है। साधक अगर एक माह तक इनकी पूर्ण श्रद्धा भाव से साधना करे तो वे प्रसन्न हो जाती है। इनकी सिद्धि प्राप्त करने वाला साधक प्रतिदिन स्वर्ण मुद्राये प्राप्त करता है।
2. कामेश्वरी योगिनी
यह देवी भी अपने नाम की तरह ही भोग और एश्वर्या की वस्तुये प्रदान करती है। यह देवी पुष्पों से सुसस्जित रहती है और जो भी साधक इनका जाप रात्री के समय पुरे एक माह तक करता है उसे यह देवी अपनी कृपा प्रदान करती है।
3. पद्मिनी योगिनी
यह योगिनी देवी श्यामवर्णी है। ये देवी का स्वरुप पूर्ण रूप से अद्भुत है, इस देवी ने वस्त्रालंकार धारण किये हुए है। जो भी साधक पुरे माह इनकी साधना करता है तो वे उन्हें ऐश्वर्य प्रदान करती है।
4. सुर सुंदरी योगिनी
इस देवी का शरीर सौष्ठव अद्भुत और दर्शनीय है। जो भी साधक पूर्ण समर्पण के साथ इनकी साधना पुरे एक माह तक करता है, उसे वे प्रसन्न हो कर स्वर्ण, दिव्या अलंकार, राज्य आदि की प्राप्ति कर सकते है। जब वे प्रसन्न हो कर सामने आती है उन्हें आप माता, बहन नाम से संबोधित कर सकते है।
5. मधुमती योगनी
यह योगिनी विविध अलंकारो से सुसस्जित है और उनका वर्ण शुभ्र है। जो भी साधक इनकी पूर्ण समपर्ण के साथ साधना करता है उन्हें वो दर्शन देती है और साथ ही साधक की इच्छा अनुसार किसी भी लोक की वस्तु उसे वरदान स्वरुप प्रदान करती है। इनकी कृपा प्राप्त करने वाला साधक पूर्ण आयुष्य के साथ साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त करता है। साधक को राज्याधिकार भी प्राप्त होते है।
6. रति सुंदरी योगिनी
यह योगिनी स्वर्णाभूषण से सुसज्जित है। जो भी साधन पूर्ण श्रद्धा से इनकी साधना पुरे माह करता है उस पर वो प्रसन्न हो कर अभीष्ट वरदान देती है साथ ही साथ वे उसे सभी ऐश्वर्य, धन और वस्त्रालंकार भी देती है।
7. नटिनी योगिनी
इस योगनी की महिमा बहोत ही अद्भुत है। जो भी साधक पुरे मन से अशोक वृक्ष के निचे बैठ कर पूरी रात्रि इनकी साधना करता है, प्रसन्न होने पर वो साधक के सभी मनोरथ सिद्ध करती है।
8. कनकवती योगिनी
यह योगिनी रक्त वस्त्रालंकार से सुसोभित रहती है। जो भी साधक इनकी पूर्ण श्रद्धा के साथ साधना करता है वे उन्हें अपनी परिचारिकाओ के साथ दर्शन देती है और मनोवांछित वर प्रदान करती है।
मनोवांछित वर प्रदान करने वाली इन ६४ योगिनियो के नाम कुछ इस प्रकार है –
1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
64 योगिनियो के पुरे भारतवर्ष में कई विशिष्ट मंदिर प्रस्थापित है। जिनमे से दो मंदिर उड़ीसा के भुवनेश्वर के निकट हीरापुर तथा बोलांगीर के निकट रानीपुर में स्तिथ है। इतना ही नहीं मध्यप्रदेश के मुरेन जिले के थाना थाना रिठौराकाला में ग्राम पंचायत मितावली में भी इनका एक मंदिर आया हुआ है, जिसे “इक्तेश्वर महादेव मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा एक दूसरा मंदिर खजुराओ में स्थित है। 875-900 ई. के आसपास बना हुआ यह मंदिर खजुराओ के मंदिरों के पश्चिमी शैली में आता है। इसके अतिरिक्त एक मंदिर मध्यप्रदेश के जबलपुर के निकट भेडाघाट, ग्वालियर के निकट मितावली में स्थित है।