वैकुण्ठ के द्वारपाल जय और विजय पूर्व जन्म में कौन थे?
एक समय की बात है, जब क्षीरसागर में एक त्रिकूट नामक प्रसिद्ध और विशाल पर्वत हुआ करता था। उसकी ऊंचाई आसमान को छूती थी और उसकी लंबाई और चौड़ाई भी काफी विस्तृत थी। उसके मुख्य रूप से तीन शिखर थे, एक सोने का, दूजा चांदी का और तीसरा लोहे का। इन शिखरों की चमक से पूरा ब्रह्मांड जगमगा रहा था।
इन तीन शिखरों के अतिरिक्त इस पर्वत की कई और छोटी छोटी चोटीया भी थी जो रत्नों और कीमती धातुओं से भरी पड़ी थी। चारों और से समुद्र की लहरें इस पर्वत के निचले सिरे से टकरा रही थी मानो जैसे इस पर्वत के चरण पखार रही हो।
यह पर्वत रत्नों और धातुओं के अतिरिक्त कई जंगली जानवरों का बसेरा भी था इस पर्वत की तलहटी पर कई जानवर अपना बेसरा बनाए हुए थे साथ ही साथ इस पर्वत पर कई नदियां और सरोवर भी स्थित थे जो इस पर्वत की शोभा बढ़ा रहे थे।

इस पर्वत की तराई में एक बहुत तेजस्वी और धर्मात्मा साधु भी रहते थे जिनका नाम वरुण था। महात्मा वरुण ने एक बहुत ही सुंदर उद्यान में अपनी पर्ण कुटी बनाई हुई थी। इस सुंदर उद्यान का नाम ऋतुमान था। इस उद्यान में कई वृक्ष शोभा पा रहे थे जो सदैव फलों और फूलों से लदे रहते थे।
इस उद्यान में एक बहुत ही मनमोहक और दिव्य सरोवर भी था जो सुनहरे कमल और विविध जाती के उत्पल, कुमुद , शायदल कमल से महकता रहता था। इस सरोवर में सारस, चक्रवाक और हंस आदि पक्षी अपने झुंड में बसा करते थे। सरोवर में तैरती मछलियां और कछुओं के खिलवाड़ से जब कमल के परागरज सरोवर के पानी मे गिरा करते थे तब सरोवर का जल अत्यंत सुगन्धित कर देता था।
इतना ही नहीं यह सरोवर कदम्ब, बैत, बेन नरकुल आदि वृक्ष से हमेशा घिरा रहता था। हरिसिंहार, वंमल्लिका, सिरस, अशोक, कुंद कुरबक, नाग, सोनजूही, मल्लिका शतपत्र, माधवी और मोगरा आदि सुन्दर सुन्दर पुष्पों की महक से महात्मा वरुण का यह सरोवर सदैव शोभायमान रहता था।
अभी तक क्षिरसागर से त्रिकुट पर्वत पर सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था की एक दिन एक दर्दनाक घटना घटित हो गई। इस पर्वत पर स्तिथ घोर जंगल मे एक विशाल और मतवाला गज रहता था। वह कई शक्तिशाली गजो का सरदार था। इस गज के पीछे पीछे बड़े बड़े हथिओं के झुण्ड के झुण्ड चला करते थे।
इस गजराज से, उसके महान बल के कारण बड़े से बड़े हिंसक जनवार भी डरा करते थे जिसके चलते छोटे जानवर जैसे के खरगोश, लंगूर, भैंस, भेड़िये, हिरण, नैवले, रिंछ, वनैले कुत्ते आदि निर्भय हो कर जंगल मे विहार किया करते थे क्योंकि उसके रहते कोई भी हिंसक जानवर उन पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया करते थे। गजराज मदमस्त था। उसके सर से तपकते मद का पान करने के लिये भंवरे मंडराया करते थे।
एक दिन की बात है कड़कती धूप में वो प्यास से व्याकुल हो पड़ा और जल पीने हेतु वो अपने झुण्ड के साथ उसी विशाल सरोवर में उतर पड़ा जो त्रिकुट पर्वत की तराई में स्थित था। उस समय सरोवर का जल बहोत ही शीतल और अमृत के समान मधुर था। सरोवर में उतरने के पश्चात सबसे पहले तो उसने अपनी सूँड़ से उठा उठा के जी भरकर उस अमृत मय जल का पान किया और अपनी प्यास को तृप्त किया। उसके बाद वो उसी सरोवर के जल में स्नान कर के अपनी थकान को मिटाया।
उसके पश्चात उसका ध्यान जलक्रीड़ा में मग्न हो गया। वो अपनी सूँड़ से जल भर भर के अन्य हाथिओं पर फेकने लगा और अन्य हाथी भी उसी तरह जल को एक दूसरे पर फेंकने लगे। मदमस्त गजराज सब कुछ भूल कर अपनी जलक्रीड़ा में मग्न हो कर आंनद माना रहा था उसे पता ही नहीं था की उस सरोवर में एक बहोत ही बालावन ग्राह भी रहता है।
गजराज अपनी जलक्रीड़ा में मग्न था की ग्राह अचानक से उसके करीब आया और उसका पैर जोर से पकड़ कर सरोवर के भीतर खिंच कर ले जाने लगा। ग्राह के पैने दांतो के गड़ने से गजराज के पैर से रक्त का प्रवाह बहने लगा जिसके चलते सरोवर का जल लाल हो गया था।
गजराज के साथी हाथीओ और हथनिओ को गजराज की यह दशा देख बहोत चिंतातुर हो गए। सभी ने अब गजराज को ग्राह से छुड़वाने के प्रयास शुरू कर दिए और सभी लोग एक साथ जोर लगा कर गजराज को सरोवर के बहार खींचने लगे किन्तु ग्राह की पकड़ इतनी मजबूत थी की उससे गजराज को छुड़वाना जैसे असंभव सा प्रतीत हो रहा था। सभी साथी अपने प्रयासों में अंतः विफल रहे। अपने असफल प्रयास से सभी हाथी घभराकर जोर जोर से चिंघाडने लगे। हथिओं के चिंघाड़ने के आवाज़ सुन कर दूर दूर से अन्य हाथिओं के झुण्ड भी वो आ पहुंचे और अब सभी मिल कर गज को खिंच कर सरोवर से बाहर निकालने का प्रयास करने लगे। किन्तु उस ग्राह की पकड़ कुछ इतनी मजबूत थी की हाथिओं का यह सम्मलित प्रयास भी विफल हो ता हुआ नज़र आ रहा था।







