अकबर और बीरबल की कहानिया हमेशा से ही रोचक रही है। इस लेख में आप Akbar Aur Birbal Ki Kahaniya में से एक रोचक कथा “दुष्ट काज़ी” के बारे में पढेंगे। इस कहानी को कई पाठ्य पुस्तकों में कही नमो से प्रदर्शित किया जा छुका है। जैसे की “दुष्ट काज़ी” की कहानी, Dust Kazi – Akbar Aur Birbal Ki Kahani, Akbar Birbal Aur Dust Kazi Ki Kartut.
दुष्ट काज़ी – अकबर बीरबल की कहानी [Dust Kazi – Akbar Aur Birbal Ki Kahani]
एक दिन की बात है बादशाह अकबर के दरबार मे एक किसान आया उसका नाम सैफ अली था।
अकबर – बोलो कैसे आना हुआ ?
सैफ अली – जहापनाह ६ माह पहेले मेरी बीवी गुजर गई, जिसके चलते मे अपनि ज़िंदगी मे बेहद अकेला हो गया हूँ। ६ माह पहेले मे आपनि ज़िंदगी खुशी खुशी बसर कर रहा था। लेकिन अचानक मेरी बीवी के चले जाने से मेरी हसती खेलती ज़िंदगी बेजान हो गई है, और मेरी कोई संतान भी नहीं है जिसके सहारे मे अपनि बाकी की ज़िंदगी बसर कर सकु।
अकबर – हमे बहड़ अफसोस हुआ यह सुनके।
सैफ अली – जहा पनाह खेती कर के मे अपना गुजारा कर लेता हूँ, पर अब मेरा किसी काम मे मन नहीं कागता है। इसी दौरान मेरी मुलाक़ात काज़ी अब्दुल्लाह से हुई और उन्होने मेरे हाल चाल पूछे। उनके सामने मे आपने आप को रोक न सका और मेने आपनि सारी दास्तान उन्हे सुना दी।
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मैंने कहा, “मेरी बीवी के गुजर जाने के बाद मे बेहद अकेला हो गया हूँ।”
मेरी बाते वो बड़े गौर से सुन रहे थे। मेरी पूरी बात सुनने के बाद उन्होने मुजसे कहा –
“मिया, आप एक काम करो एक मर्तबा आप अजमेर तशरीफ ले जाए, वह ख्वाजा की दरगाह मे आपको बड़ा सुकून अदा होगा।”
मुजे उनकी बाते सुनकर काफी सुकून मिला और सोचा मे भी अजमेर हो आता हु लेकिन फिर मे सोचने लगा की आपनि ज़िंदगी भर की जामा पूंजी कहा छोड़ कर जाऊ।
फिर मुजे लगा इस काम के लिए काज़ी अब्दुलाह से बेहतर और कोन हो सकता है। फिर मे अगले ही दिन बिना समय गवाये काज़ी अब्दुलाह के घर आपनि सारी जमा पूंजी लेकर पहुंचा और आपनि बात रखी, मेरी बात सुनते ही वो फ़ोरन तैयार हो गए और उन्होने मुजसे कहा –
“मिया, आप इत्तमीनान से अजमेर हो आइये। मैं यहा आपकी जमा पूंजी की पूरी हिफाज़त करूंगा।”
और उन्होने मुजसे पूंजी के थैले पर मोहर लगवाली।
मैं भी उनकी बातों मे हामी भरते हुए पूंजी के थैले पर मोहर लगवाली और थैला उन्हे दे दिया, और इत्तमीनान से अजमेरे शरीफ को रवाना हो गया।
वहा से वापस लौटते वक्त मैं मन ही मन सोचता था की अब से मैं अपनी पूरी ज़िंदगी बच्चो को अच्छी तालिम देने मे गुज़ार दूंगा और अपनी बाकी बची जमा पूंजी से आपना गुजारा कर लूँगा।
सोचते ही सोचते काज़ी अब्दुलाह का नगर आ गया। जब मेने उनके घर दस्तक दी तो उन्होने मुजे मोहर देखने को कहा।
काज़ी – मोहर ठीक तो लगी है ना?
मैंने कहा – “हाँ, मोहर तो ठीक लग रही है।
और मैं अपना थैला लेके वापस आपने घर आ गया।
वापस घर आकार जब मैं अपना थैला खोल कर देखता हु। तो मुजे वहा सोने की अशरफियो की बजाए पत्थर नजर आए। मेरे तो होश ही उड़ गए। मैं सोच मे पड़ गया आखिर कार ये सोने की अशरफ़ीया पत्थर मे कैसे तब्दील हो गई। मैंने आपना आपा खो दिया और तुरंत काज़ी अब्दुलाह के घर जा घमका।
मैंने उनसे कहा – “जब मैंने आपको सोने की अशरफियो से भरा थैला दिया था, तो फिर ये पत्थरो से भरे हुए थैले मे कैसे तब्दील हो गया??”
काज़ी – “मिया, आपने जैसे ही मुजे अपनी मोहर लगा कर ये थैला दिया, मैंने वैसे ही उसको आपको वापस कर दिया था। ये सोने की अशरफिया पत्थरो मे कैसे तब्दील हो गई मुजे इसके बारे मे कुछ नहीं पता।”
मुजे काज़ी की बातों पर भरोसा नहीं हुआ, और मे उससे बहेस करने लगा। बहस ज्यादा बढ़ते ही काज़ी मुज पर गुस्सा हो गया और बोला –
काज़ी – “मिया, मैं आपको कब से कह रहा हु ये अशराफिया पत्थर मे कैसे तब्दील हुई मुजे नहीं पता, क्या आप मौज पर चोरी का इल्ज़ाम लगा रहे है?”
और उन्होने मुजे तुरंत आपने घर लौट जाने को कहा –
जंहा पनाह अब मे कहा जाऊ? क्या करू? मुजे बस इंसाफ चाहिए –
बदशाह अकबर बड़े ध्यान से सैफ अली की बाते सुन रहे थे। सैफ अली की इन्साफ की गुहार पर बदशाह ने कहा –
अकबर – हम्म..!! तुम्हे क्या लगता है बीरबल?? क्या कहते हो इस बारे मैं??
बीरबल – “गुस्ताखी माफ़ हो जँहा पनाह, लेकिन मुझे इस बारे मैं और अधिक जानकारी चाहिए।”
और वो सैफ अली के हाथो मैं से थैला ले लेते है, और उसे जाँचने लगते है। कुछ देर तक जाँचने के बाद वो थैला वापस सैफ अली को लौटा देते है और कहते है –
बीरबल – “जँहापनाह, मुझे कुछ दिनों की महोलत चाहिये। क्या आप मुझे दो दिन की महोलत दे सकते है क्या??”
अकबर – “हाँ-हाँ क्यों नहीं, तुम वक्त ले सकते हो। और हा सैफ अली “अगर तुम्हारी कही गई बात झूठी साबित हुई तो तुम्हे एक साल की कैदे-बा-मुशक्त की सजा सुनाई जाएगी। और जब तक इसका फैसला नहीं हो जाता तब तक तुम हमारे महेमान बन कर रहोगे।”
बस जँहा पनाह के फरमान सुनाने की देर थी बीरबल सच्चाई का पता लगाने मैं झूट गए। कुछ पल ही बीते थे उन्होंने अपनी ही पोशाक को फाड़ दिआ और सेवको को बुला कर कहा-
बीरबल – “जाओ, नगर के सबसे अच्छे दर्ज़ी के पास जाओ और हमारी इस पोषक को सिलवा कर लाओ।”
सेवक – “जी हुज़ूर..। मैं अभी जाता हु और अच्छे से दर्जी का पता लगता हूँ।”
सेवक तुरंत निकल जाता है और अच्छे दर्जी की तलाश मैं झूट जाता है। कुछ देर मैं सेवक बीरबल की फटी हुई पोशक को सिलवा कर आता है।
बीरबल जब पोशाक को देखता है तो बेहद ख़ुश हो जाता है। उसे दर्जी की कारीगरी बेहद पसंद आई।
बीरबल – “वाह…!! बहोत खूब..!! क्या कारीगरी है। पोशाक कहा से फटी थी मालूम ही नई चल रहा। जरा इस दर्जी को हमारे सामने लेकर तो करना।”
सेवक – “जो हुकुम..!! जनाब वैसे इस दर्जी के बारे मैं बहोत से लोग पहले से जानते थे। इसी वजह से उसे ढूंढ़ना ज्यादा मुश्किल नहीं रहा। उस दर्जी का नाम गोपाल है जनाब।”
बीरबल – “गोपाल.. वाह..!! बहोत खूब…!!! जाओ उस दर्जी को हमारे सामने ले आओ हमें उससे और भी पोशाके सिलवानी हैँ।”
अगले दिन दरबार मे –
अकबर – “क्या दोषी का पता चला? बीरबल..!!”
बीरबल – “जी जँहापनाह..!!! दोषी का पता चल चूका हैँ। ”
बीरबल की बात पूरी होते ही जँहापनाह सैफ अली और काज़ी अब्दुल्लाह को दरबार मे पेश करने का हुक्म देते हैँ। दरबान दोनों दरबार मे ले कर आता हैँ।
बीरबल – “सैफ अली, क्या ये थैला तुम्हारा हैँ?”
सैफ अली – “जी हा हुज़ूर, यह थैला मेरा हैँ।”
बीरबल – “काज़ी अब्दुल्लाह, क्या तुम इस थैले को पहचान ते हो?”
काज़ी अब्दुल्लाह – “जी मेरे ख्याल से ये थैला मेने देखा हुआ हैँ, ज़ी हा, यह थैला सैफ अली का दिखाई पडता हैँ, गौर से देखने पर उसने लगाई हुई मोहर भी दिखाई पड़ती हैँ। जँहापनाह, यह थैला जब सैफ अली मेरे घर रखने के लिए आया था तब हमने थैले को खोल कर नहीं देखा था, मुझे क्या पता इस थैले मे वो सोने की अशरफिया लाया था या पत्थर..!! जँहापनाह मुझे बेवजह इस झमेले मे फसाया जा रहा हैँ। मैंने कोई चोरी नहीं की हैँ मे तो खुदा के रहेमो करम पर चलाने वाला एक काज़ी हूँ। चोरी करके मुझे क्या जहन्नुम मैं जाना हैँ! मुझे पक्का यकीन हैँ यह सैफ अली आपको गुमराह कर रहा हैँ। यह सैफ अली झूठ बोल रहा हैँ।”
बीरबल काज़ी अब्दुल्लाह की बाते सुनकर चौंक जाता हैँ।
बीरबल – “हम्म..!!! जँहापनाह, काज़ी अब्दुल्लाह की बाते सुनकर मैं बड़े ही असमंजस मैं पड़ गया हूँ। और आपसे दर्जी गोपाल को दरबार मे बुलाने की इज़ाज़त मांगता हूँ।”
अकबर – “पूरी इज़ाज़त हैँ।”
दरबार मे दर्जी गोपाल को बुलाया जाता हैँ।
दर्जी गोपाल का नाम सुनकर काज़ी अब्दुल्लाह के चहेरे से हवाइया उड़ जाती हैँ।
बीरबल – “गोपाल, क्या तुम हमें बता सकते हो की हाल ही मे तुमने काज़ी अब्दुल्लाह की किसी चीज को सिला हो!”
दर्जी गोपाल – “ज़ी हुज़ूर..!!! अभी कुछ दिन पहले ही काज़ी अब्दुल्लाह मेरी दूकान पर आये थे, वो काफी परेशान दिखाई पढ़ रहे थे, मैंने देखा उनका एक पैसो से भरा थैला फट गया था। उनकी गुज़ारिश पर मैंने उनका थैला सील कर वापस उन्हें दे दिआ था।”
बीरबल – (थैले को दिखाते हुए..) “जरा इस थैले को देखो और हमें बताओ क्या यह वही थैला तो नहीं जो तुमने सिला था!”
गोपाल थैले को जाँचते हुए…
दर्जी गोपाल – “ज़ी हुज़ूर, यक़ीनन यह वही थैला हैँ जो काज़ी अब्दुल्लाह मेरी दुकान पर ले कर आये थे..।”
बीरबल – “शुक्रिया.. गोपाल.. अब तुम जा सकते हो। जँहापनाह जैसा की आपने देखा दर्जी गोपाल के बयान से ये साफ हो जाता हैँ की काज़ी अब्दुल्लाह दरबार को गुमराह कर रहे थे, उन्होंने सैफ अली को धोखा दिआ हैँ और उनकी ज़िन्दगी की जमा पूंजी, सोने की अशरफिया जो सैफ अली के बाकि की ज़िन्दगी का एक मात्र सहारा थी, जो सैफ अली ने बतौर हिफाज़त काज़ी अब्दुल्लाह को दी थी, उसे काज़ी अब्दुल्लाह ने धोखे से चुराया हैँ, लिहाज़ा मैं आपसे दरख्वास्त करता हूँ, काज़ी अब्दुल्लाह को उसके यह घिनोने अपराध की कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिये।”
बीरबल की दलिलो से काज़ी अब्दुल्लाह बोखला उठा और अकबर के सामने गिड़गिड़ाने लगा।
काज़ी अब्दुल्लाह – “जँहापनाह, रेहम… रेहम जँहापनाह…!!! जँहापनाह, मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी मैं इतनी दौलत पहले कभी नहीं देखि थी, मैं भटक गया था, सोने की उन चमचमाती अशरफियों की चमक के आगे मेरा ईमान डोलने लगा था। जानता था यह गलत हैँ, लेकिन लालच के गहेरे समुन्दर मे मैं डूब गया और यह गुनाह कर बैठा। आपके सामने खड़ा यह बूढा काज़ी रेहम की भीख मांगता हैँ, और यह वादा करता हैँ की आज के बाद ऐसी कोई गलती नहीं दोहराएगा..!!! बस मेरा यह आखरी गुनाह आप माफ़ करें।”
अकबर – “मैं अभी भी बीरबल और दर्जी गोपाल की बातो को अपने जहन मे संजोये हुए हूँ.. यकीन नहीं हो रहा आप जैसा शख्श इतनी घिनौनी हरकत कर सकता हैँ। आपको यह गुनाह करते वक्त अपने औदें का ज़रा भी लिहाज नहीं हुआ, आपका गुनाह किसी भी सूरत मे माफ़ी के काबिल नहीं हैँ। हम आपको एक साल कैदे बामुशक्त की सज़ा सुनते हैँ। सिपाहियों काज़ी अब्दुल्लाह को गिरफ्तार किआ जाये और कारावास मे डाल दिआ जाये।
सैफ अली तुम फ़िक्र मत करो, हम आप जैसे नेक ख्वाहिश रखने वाले बन्दों की कद्र करते हैँ। हम आपकी जमा पूंजी आपके हवाले करेंगे और आपकी नेक ख्वाहिश को अंजाम देने के लिए नगर मे एक मद्रेसा भी बनवाएंगे जहाँ आप बच्चो को इल्म की तामिल भी दिआ कीजिएगा।”
सैफ अली – “शुक्रिया..!!! जँहापनाह… शुक्रिया बीरबल…!!! आपका इन्साफ बुलंद हो। आमीन…”
अकबर – “सुभानअल्लाह… शाबाश… बीरबल…!!! हम कभी सोच भी नहीं सकते थे की काज़ी ही असली दोषी होगा। हम बेसब्र हैँ ये जानने के लिए की आखिर कार तुमने कैसे पता चला की दोषी काज़ी हैँ और सैफ अली नहीं।”
बीरबल – “शुक्रिया जँहापनाह…!!! आपके इस भरोसे और शाबाशगी के लिए..!!! जब मैंने सैफ अली से पूरी कहानी सुनी मुझे तब से ही काज़ी अब्दुल्लाह पर शक था। जैसा की सैफ अली ने अपनी बात मे बताया की काज़ी अब्दुल्लाह ने सामने चलके सैफ अली से थैले पर मोहर लगवाई थी। मैंने सोचा काज़ी ने मोहर के हिस्से को छुए बिना ही किसी और हिस्से को काट कर थैले मेसे सोने की अशरफिया चुराई होंगी और बड़ी सफाई के साथ फिर उसे सील दिआ होगा। जँहापनाह मे तब से ही दर्जी की तलाश मे था। और आखिर कार वो मुझे मिल गया..।
बीरबल की बात सुनकर अकबर बेहद ख़ुश हुए…
अकबर – “वाह… बीरबल… वाह.. आज तुमने फिर अपनी मिसाल कायम कर दी…।”
तो पाठको यह थी Akbar Birbal Ki Kahani आशा करता हूँ आप सभी को यह कहानी बेहद पसंद आई होंगी। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इसे आपने दोस्तों के साथ बाँटना मत भूलिए गा। हम दुबारा एक नहीं कहानी के साथ आपके समक्ष हाजिर होंगे। तब तक आपका प्यार हम पर यूँही बनाये रखे..