चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी कब है? (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Kab Hai?)
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी इस साल 28 मार्च 2024, गुरूवार को है।
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय समय (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Chandroday Samay)
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी चंद्रोदय का समय 28 मार्च 2024, गुरूवार को रात्रि के 09 बजकर 32 मिनट पर है।
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी तिथि (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Tithi)
प्रारंभ – 28 मार्च 2024 गुरूवार को शाम 6 बजकर 56 मिनट से
समाप्त – 29 मार्च 2024 शुक्रवार को शाम 8 बजकर 20 मिनट तक
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी महात्मय (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Mahatmay)
एक समय की बात है जब कैलाश में माता पार्वती और भगवान गणेश विराजमान थे तब बारह माह की गणेश चतुर्थी का प्रसंद चल रहा था। तब माता पार्वती ने कुतुहल वश भगवान गणेश से पूछा –
माता पार्वती – “हे पुत्र, चैत्र माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) को तुम्हारे किस स्वरुप की पूजा की जाती है? और उसका विधान क्या है? वो मुजसे कहो।”
माता पार्वती की जिज्ञासा को शांत करते हुए भगवान गणेश ने कहा – “हे माता, चैत्र माह की कृष्णपक्ष को आनेवाली चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) को मेरे “भालचंद्र” स्वरुप की पूजा करनी चाहिये। इस दीन पुरे दीन व्रत रख कर रात्रि में षोडशोपचार से मेरा पूजन करना चाहिये। इस दीन व्रती को ब्राह्मण भोजन के अनन्तर पंचगव्य पान करके रहना चाहिए। यह पूर्णरूप से सभी संकटो का नाश करता है। इस व्रत के स्मरण मात्र से मनुष्य को सभी सिद्धियों की प्राप्ति सहज़ रूप से हो जाती है।
अब माता में आपको इस(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत से जुडी एक कथा के विषय में अवगत कराने जा रहा हुँ अतः आप इसे ध्यानपूर्वक सुनियेगा।
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी कथा (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Katha)
सतयुग में मकरध्वज नामक एक राजा हुए थे। वे परम प्रजा पालक थे। उनके राज्य में सभी लोग सुखी और समृद्ध जीवन व्यतीत कर रहे थे। सभी वर्ण के लोग आपने धर्म का पूर्ण निष्ठां से पालन किया करते थे। प्रजा निरोगी और स्वस्थ जीवन व्यतीत करती थी। प्रजा में चोर और डाकू आदि का कोई भय नहीं था। नगर में रहने वाले सभी लोग उदार, दानी, धार्मिक, बुद्धिमान और सुन्दर थे। इतना सुन्दर राज्य होने के पश्चात राजा पुत्र सुख से वंचित थे। पुत्ररत्न की प्राप्ति हेतु उन्होंने कई यत्न किये अंतः महर्षि याज्ञवल्क्य की कृपा से उन्हें पुत्रधन की प्राप्ति हुई।
पुत्र रत्न की प्राप्ति होने पर राजा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा था। अब वो अपने राज्य का सम्पूर्ण कार्यभार अपने मंत्री धर्मपाल को सौंप कर, विविध प्रकार के खेल खिलौनो से अपने राजकुमार का पालन पोषण करने लगे।
यहाँ राज्य का शासन अपने हाथो में आ जाने से मंत्री धर्मपाल धन धान्य से संपन्न हो गये। मंत्री महोदय को एक से बढ़कर एक पुत्रो की प्राप्ति हुई। सभी पुत्रो का विधि विधान से पुरे हर्षोल्लास के साथ विवाह संपन्न किया गया। अब सभी मातृ पुत्र धन का उपभोग बड़े जतन से करने लगे। परिवार के सभी सदस्यो में सबसे छोटे पुत्र की पुत्रवधु बहुत धर्मपरायण थी।
वो भगवान गणेश की परम भक्त थी। चैत्र माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी आने पर उसने भगवान गणेश की पूर्ण श्रद्धा से आराधना और पूजा की और उनका व्रत अनुष्ठान भी किया। पूजन और व्रत से विचलित हो कर सास अपनी पुत्रवधु से कहने लगी – “अरी..!! क्या तंत्र मंत्र द्वारा मेरे पुत्र को अपने वश में कराने के उपाय कर रही है।”
अपनी सास द्वारा बारम्बार निषेध किये जाने पर भी अपनी पुत्रवधु में कोई बदलाव आता न देख सास पुनः बोली – “अरी दुष्टा..!! मेरे बार बार कहने पर भी तू मेरी बात को अनदेखा कर रही है, में तुझे पीटकर ठीक कर दूंगी। मुझे यह सब तांत्रिक अभिचार पसंद नहीं है।”
अपनी सास की बात सुन पुत्रवधु ने विनम्रता से कहा – “हे सासु माँ, में संकटनाशक भगवान गणेश का व्रत कर रही हुँ। यह व्रत अनुष्ठान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है” अपनी पुत्रवधु की बात सुन क्रोधवश सासु ने अपने पुत्र से कहा – “हे पुत्र, तुम्हारी वधु जादू टोने पर उतारू हो गई है। मेरे बार बार समजाने पर भी उसने मेरी एक ना सुनी अब तुम ही इसे मर कर उसकी अकल को ठिकाने ले कर आओ।
में किसी गणेशजी को नहीं मानती, वे कौन है और उसका व्रत कैसे होता है। हम लोग तो राजकुल से है हमारी भला किस विपत्ति को वो नष्ट करेंगे।”
माता की आज्ञा को मानते हुए उसके पति ने उसे मारा और पिता। इतनी पीड़ा को सहन करते हुए भी उस पुत्रवधु ने व्रत को पूर्ण किया। व्रत के अंत में वो भगवान गणेश जी का स्मरण करते हुए प्रार्थना कराने लगी और कहने लगी – “हे विघ्नेश्वर..!!! हे गणपति..!! आप हमारे सास ससुर को अपना परचम दिखलाइये ताकि वो आपकी महिमा को समझ पाए और उनके मन में आपके प्रति श्रद्धाभाव जागृत हो।”
अपने भक्त की करुण पुकार सुन भगवान गणेश जी ने देखते ही देखते राजा के पुत्र का अपहरण कर उसे धर्मपाल के महल में कही छुपा दिया। उसके बाद राजकुमार के सभी वस्त्रलंकारों को उतार कर राजमहल में फेंक दिए और खुद अंतर्ध्यान हो गये। इधर राजा ने प्रेम पूर्वक अपने पुत्र को पुकारा किन्तु उन्हें कोई प्रति उत्तर नहीं मिला। प्रति उत्तर ना मिलने पर उन्होंने शीघ्रता से पुत्र की ख़ोज शुरू कर दी। राजा को अपने महल में पुत्र की पुष्टि ना होने पर वो शीघ्रता से मंत्री धर्मपाल के महल में गये और वहाँ जा कर अपने पुत्र को खोजने लगे। उन्होंने सब से पूछा “मेरा राजकुमार कहा है? यहाँ उसके सभी वस्त्र और आभूषण मिल गये है किन्तु मेरा राजकुमार कहा चला गया है? किसने ऐसा निंदनीय कार्य किया है। हाय मेरा राजकुमार कहा है?”
राजा की व्याकुलता धीरे धीरे अब बढ़ने लगी थी। राजा की दशा को देख मंत्री धर्मपाल ने कहा – ” हे राजन, आपका चंचल पुत्र कहा है उसका मुझे कोई पता नहीं है। किन्तु में अभी पुरे राज्य में बाग़ बगीचे आदि स्थानों पर उसकी ख़ोज आरम्भ करता हुँ।”
उसके बाद व्याकुल राजा नौकारों, सेवको आदि से कहने लगे। “हे अंगरक्षकों, सेवको मेरे पुत्र का शीघ्र पता लगाइये। राजा का आदेश मिलाने मात्र से राजा के पुत्र की ख़ोज जोरो शोरो से शुरू हो गई किन्तु राजा के पुत्र का कोई पता नहीं चला। जब राजा के पुत्र का कही भी पता ना चला तब वो राजमहल में आके राजा के समक्ष डरते डरते यह निवेदन करने लगे – “हे राजन, हमें क्षमा करें अभी तक अपहरणकारियों का कोई पता नहीं चला है। राजकुमार को पुरे नगर में किसी ने आते जाते नहीं देखा है।”
उनकी बाते सुनकर क्रोधवश हो कर राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और कहा – “हे धर्मपाल..!! मेरा राजकुमार कहा है? मुझे साफ साफ बता दे की मेरा राजकुमार कहा है? उसके सभी वस्त्र आभूषण मुझे दिखाई दे रहे है केवल वही नहीं है। अरे नीच! मुझे बता दे की मेरा राजकुमार कहा है अन्यथा में तुझे और तेरे पुरे कुल का नाश कर दूंगा। इसमे जरा भी संदेह मत रखना। राजा द्वारा डांट पड़ने के कारण मंत्री विचलित हो गये।
मंत्री धर्मपाल ने राजा के समक्ष नात्मस्तक हो कर कहा – “हे भूपाल! मेरा विश्वाश की जिए, में अभी पता लगता हुँ। इस नगर में बालक अपहरणकर्ताओ का कोई गिरोह भी नहीं है ना की कोई डाकू आदि यहाँ वास करते है। किन्तु पता नहीं किस नाराधमी ने ऐसा नीच कर्म किया है और न जाने कहा गायब हो गया है? धर्मपाल अब अपने महल आ कर अपनी पत्नी एवं पुत्रो से पूछने लगा। उसने अपनी सभी पुत्रवधुओ को बुला कर पूछा की यह नीच कर्म किसने किया है? यदि राजकुमार का पता नहीं चला तो राजन मुझे और मेरे पुरे वंश का विनाश कर देंगे।
अपने ससुर की बात को सुन सबसे छोटी पुत्रवधु ने कहा – “हे पिताश्री..!!, आप इतने चिंतित क्यों हो रहे है। यह सब भगवान श्री गणेश की लीला है उन्हीं के ही कोप का परिणाम आप भुगत रहे है। अतः आप भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना करें। अगर राजा से ले कर नगर के सभी प्रजा जन पूर्ण श्रद्धा के साथ गणेश जी की चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) का व्रत करें तो व्रत के फल स्वरुप भगवान गणेश जी राजकुमार को अवश्य लौटा देंगे, मेरा वचन कभी मिथ्या नहीं होता।
छोटी पुत्रवधु के बात सुन कर ससुर ने कहा – “हे पुत्री, तुम सत्य कह रही हो। तुम धन्य हो..! हमारे कुल में एक तुम ही हो जो मेरा और मेरे कुल का उद्धार कर दोगी। भगवान गणेश जी की पूजा कैसे की जाती है वो तुम मुझे बताओ। हे सुलक्षनी, में मंद बुद्धि होने के कारण भगवान गणेश के व्रत का महिमा नहीं जनता हुँ। अतः मुझ पर और मेरे परिवार को उनके किये गये अपराध की क्षमा दे कर राजकुमार का पता लगावा दो। तब सभी लोगो ने भगवान श्री गणेशजी का कष्टनाशक चतुर्थी(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) के व्रत अनुष्ठान किया।
राजा सहित सभी नगरजनों ने गणेश जी को प्रसन्न करने हेतु व्रत का अनुष्ठान किया। सभी के व्रत अनुष्ठान के प्रभाव से गणेश जी प्रसन्न हो गये। और देखते ही देखते सभी लोगो के सामने उन्होंने राजकुमार को प्रगट किया। राजकुमार को अपने समक्ष देख राजा सहित सभी नगर वासियो की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा। वो बस राजकुमार को आश्चर्यचकित हो कर देखने लगे। राज अपने पुत्र को पुनः प्राप्त कर के ख़ुशी से फुले नहीं समय रहे थे। भगवान गणेश की लीला को देख वो नतमस्तक हो कर कहने लगे – “भगवान गणेश जी आप धन्य हो और धर्मपाल तुम्हारी छोटी पुत्रवधु भी धन्य है। जिसकी कृपा से आज मेरा पुत्र यमराज के वंहा जा कर भी दुबारा लौट आया। अतः आप सभी नगरजन इस संतानदायक(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत को विधिवत करते रहे।
श्री गणेश जी बोले – “हे माता, इस(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) व्रत से बढ़कर इस लोक तथा सभी अन्य लोको में और कोई व्रत नहीं है। इस(Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi) कथा का श्रवण युधिष्ठिर ने भगवान श्री हरी कृष्ण से सुना था और इसी चैत्र माह के कृष्णपक्ष को आनेवाली चतुर्थी का व्रत करके उन्होंने अपने खोये हुए राज्य को फिर से प्राप्त किया था।
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