SANT SHRI RAVIDAS KATHA – मन चंगा तो कठौती में गंगा… । MAN CHANGA TO KATHOTI ME GANGA

संत श्री रविदास जयंती ५ फरवरी २०२३ |  SANT SHRI RAVIDAS JAYANTI 5 FEBRUARI 2023

संत श्री Ravidas जी महाराज सिख समुदाय के अनुयाई थे। उनका जन्म माघ महीने की पूर्णिमा के दिन सवंत १३९८ को वाराणसी में हुआ था। उन्हें ‘गुरु रविदास’ या ‘रैदास’ के नाम से भी जाना जाता है। उनका पूरा जीवन जात-पात के भेदभाव को दूर करने में गया था। वो ‘रैदासिया’ या ‘रविदासिया’ पंथ के स्थापक थे। उनके द्वारा रचित भजनों को पवित्र ग्रन्थ ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में भी स्थान दिया गया है। इस साल भी ५ फरवरी २०२३ रविवार को उनका जन्म दिन मनाया जायेगा जिसे ‘संत श्री रविदास जयंती’ के नाम से जाना जाता है। आइये आज उनके जीवन चरित्र से जुडी एक कथा का रसपान हम करते है।

संत श्री रविदास अपने जीवन काल में जूते बनाने का व्यवसाय करते थे। एक समय की बात है जब श्री रविदास जूते बनाने के अपने काज में व्यस्त थे तभी उनके पास एक पंडित जी अपना जूता सिलवाने आये। श्री रविदास जी ने बड़े ही आदर से कहा – 

रविदास – “है महात्मा पंडित जी… आप इस और कहा जा रहे है?”

पंडित जी – “हे रवि दास, मै यहाँ गंगा स्नान के हेतु से आया हुआ हूँ।”

पंडित जी की बात सुनकर संत रविदास बेहद प्रसन्न हुए। उन्होंने पंडित जी को अपनी झोली मेसे एक कोडी निकाल कर दी और कहा – 

“यह मेरी और से माँ गंगा को अर्पण कर दीजिये गा।”

पंडित जी ने मुस्कुराते हुए रवि दास जी की भेंट को स्वीकार कर लिया और गंगा स्नान के लिए प्रस्थान कर गए। 

कुछ ही समय में पंडित जी गंगा के तट पर आ पहुंचे और उन्होंने गंगा स्नान आरंभ किआ, गंगा स्नान करते समय उनको रविदास द्वारा दी गई कोडी का स्मरण हुआ और उन्होंने वो कोडी निकाल कर गंगा मैया को वंदना करते हुए कहा – 

“है पतित पावनी गंगा मैया, आपके परम भक्त रविदास द्वारा दी गई इस मुद्रा को आप स्वीकार करे। “

जैसे ही पंडित जी ने मुद्रा को गंगा नदी में प्रवाहित की, गंगा नदी में एक अजीब सी हलचल होने लगी। पंडित जी उसे अनुभव करके बड़े ही विचलित हुए। वो कुछ सोचते उससे पहेले ही गंगा नदी में से एक हाथ बहार आया और एक आकाशवाणी हुई –

“हे पंडित, यह कंगन ले जाओ और इसे मेरी और से मेरे परम भक्त रविदास को भेंट कर देना और कहना उनकी दी गई मुद्रा को हमने स्वीकार कर लिया है।”

इतना बोल वो हाथ फिर से नदी में समाहित हो गया। यह सारी घटना को देख पंडित जी बड़े ही विचलित हो गए, उन्होंने आज से पहेले ना तो कभी ऐसा चमत्कार देखा था ना तो कभी सुना हुआ था। वो भेंट स्वरुप मिले कंगन को अपनी पोटली में भर कर बहार निकल आये। वो कंगन ले कर श्री रविदास जी को देने के लिए आ ही रहे थे की रास्ते में उनको एक विचार आया-

Sant Shri Ravi Das Katha - Man Chnaga to Kathauti Me Ganga

 

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“क्यों ना में इस अमूल्य कंगन को नगर सम्राट को भेंट कर दू! शायद सम्राट इसे स्वीकार करके बदले में मुझे अमूल्य आभूषण और मुद्रा भेंट स्वरुप दे दे!! और वैसे भी रविदास को इस घटना के बारे में कहा पता चलने वाला है।”

यही सोच कर उन्होंने अपने कदम राजा के महल की और बढ़ा लिए और राजा के दरबार में पहुँच कर उन्होंने उस कंगन को राजा को भेंट स्वरुप प्रस्तुत किआ। राजा कंगन को बड़े ही गौर से देखने लगे, वो कंगन इतना अमूल्य था की उसमे जड़े हीरे जवाहरात से पता चल रहा था। राजा कंगन को परख कर बड़े ही खुश हुए और उन्होंने उसी समय अपनी रानी को वही कंगन भेंट कर दिया। रानी उस कंगन को पा कर बेहद खुश हो गई और बगैर समय बिगाड़े उसे अपने हाथो में पहन लिया और दूसरा कंगन यहाँ वहा ढूंढने लगी। कुछ समय ढूंढने पर उन्हें पता चला की महाराज ने उन्हें केवल एक कंगन ही भेंट दिया है।  उन्होंने तुरंत राजा से कहा – 

“हमें बस एक ही कंगन क्यों भेंट दिया हमें दूसरा कंगन भी चाहिए।”

 रानी की बात सुनकर राजा भी असमंजस में पड़ गए उन्होंने अपने दरबान को बुलाया और कहा-

“यह कंगन जिस पंडित ने हमें भेंट किआ है उसे इसी वक्त हमारे सामने लाया जाये।”

राजा हुकम सुनते ही दरबान उस पंडित को राजा के सामने ले कर आ गए। पंडित जी बड़े ही विचलित हुए पड़े  थे उन्होंने तुरंत राजा से कहा –

पंडित – “हे राजन, मुझे वापस क्यों बुलाया गया है। क्या मुजसे कोई गलती हो गई है क्या?”

राजा – “आपने हमें जो कंगन भेंट किआ है वो हमें और रानी को बेहद पसंद आया है। लेकिन हमें अब ऐसा ही दूसरा कंगन चाहिए जो रानी अपने दुसरे हाथ में पहन सके।”

पंडित जी राजा की इस मांग को सुन कर बड़े ही विचलित हो उठे, उन्हें अब पता नहीं चल रहा था की वो राजा को इसका क्या जवाब दे वो बस एक तुक राजा को देखने लगे और कहा – 

पंडित – “है राजन, आपकी बात का में स्वीकार करता हु लेकिन मेरे पास दूसरा कंगन नहीं है। में आपको दूसरा कंगन नहीं दे सकता।”

पंडित की बात सुन राज बोखला गए और पंडित को गुस्से में बोले – 

“देखिये पंडित जी आपकी बात हमें कुछ समज में नहीं आ रही है। कंगन जैसी चीज़ हमेशा जोड़ी में आती है और आप कह रहे है आपके पास दूसरा कंगन नहीं है, इसका हम क्या मतलब निकाले कही आपने यह कंगन किसी गलत तरीके से तो नहीं हासिल किआ है ना..!!! और अगर यह सच है तो हम आपको इसका दंड देंगे, आप हमें पूरा सच अभी इसी वक्त बता दीजिये वरना हमें आपको कारावास में भेजना होगा।”

राजा की बात सुन कर पंडित जी के होश उड़ गए। अब उनको लगा की अगर मैंने अभी राजा को पूरी बात नहीं बताई तो वो बड़ी मुसीबत में पड जायेंगे, उन्होंने ने बगैर समय गवाए राजा को पूरी बात बात दी। राजा पूरी बात सुनकर वो अपने आप को श्री रवि दास के पास जाने से नहीं रोक सके, उन्होंने तुरंत पंडित जी से कहा की हमें इसी वक्त श्री रवि दास के पास ले चलिए। पंडित जी ने राजा की बात मानते हुए उन्ही के साथ श्री रवि दास जी के घर पहुंचे और श्री रवि दास जी को पूरी बात सुनाई। पूरी बात सुन श्री रविदास जी मुस्कुराये और कहा –

“हे राजन, मुझे बेहद ख़ुशी होगी अगर में आपके कुछ काम आ सका।”

उन्होंने तुरंत अपनी कठोती उठाई जिसमे वो चमडा गलाने के लिए पानी भरा करते थे और गंगा नदी में प्रवेश करते हुए कहा – 

“अगर महारानी जी को ऐसा दूसरा कंगन चाहिए तो में अभी गंगा मैया का आवाहन करता हु और उनसे प्रार्थना का करता हु की वो हमें ऐसा ही दूसरा कंगन प्रदान करे।”

अपनी बात पूरी करने के साथ ही रविदास जी ने गंगा मैया का आवाहन किआ और उनसे प्रार्थना करते हुए दूसरा कंगन माँगा। कुछ ही समय में गंगा मैया वहा प्रगट हुए और रविदास जी को दूसरा कंगन प्रदान किआ। कंगन को प्राप्त करते ही श्री रविदास जी बेहद खुश हुए और उन्होंने वो कंगन राजा को सोंप दिया।

इस घटना के बाद से ही एक मशहूर कहावत प्रचलित हो गई – 

“मन चंगा तो कठौती में गंगा…।”

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