कितनी माता हैँ तुम्हारी? [Kitani Mata Hai Tumhari? ] | Akbar Aur Birbal Ki Kahaniya

Akbar Aur Birbal Ki Kahaniya – Kitani Mata Hai Tumhari? अकबर और बीरबल की कहानाहियो के पिटारे से निकली एक रोचक कथा है। आज हम आपके लिए उसी रोचंक कहानी को आपके सामने लेकर हाजिर हुए हैँ। वैसे यह कहानी बड़ी ही रोचक और शिक्षा देने वाली हैँ। इस कहानी मे बीरबल ने बड़ी ही चतुराई से शहनशा अकबर को हिन्दू देवी देवता ओ का सन्मान करना सीखा दिआ। लेकिन अफ़सोस की बात यह हैँ की आज कल की युवा पीढ़ी ही कई बार जाने अंजाने मे ही आपने हिन्दू देवी देवता ओ का अदार नहीं किआ करते। मेरी उनसे गुजारिश हैँ आप सब यह कहानी को पढ़े और इसमे सिखाये गए रास्ते का चयन करें। तो आइये कहानी की शुरुआत करते हैँ।

कितनी माता है तुम्हारी? – अकबर बीरबल की कहानी [Kitani Mata Hai Tumhari? – Akbar Birbal Ki Kahani]

एक समय की बात हैँ, रोज की तरह शहनशाह अकबर और बीरबल तहलने के लिए निकले हुए थे। रास्ते मैं कई तरह के पेड़ पौधे दिखाई दें रहे थे, अचानक से बीरबल एक पौधे के सामने रुके और अपने जूते निकल कर पौधे को दोनों हाथो से नमस्कार करने लगे। वो पौधा कोई और नहीं बल्कि तुलसी का पौधा था।
बीरबल की इस हरकत पर जँहापना अकबर बड़े विचलित हुए और उन्होंने बीरबल से पूछा –
अकबर – “बीरबल, ये पौधा जिसे आपने अभी नमस्कार किआ कौन हैँ ये..?”
बीरबल – “जँहापनाह, यह मेरी माता हैँ।” (बीरबल ने उत्तर दिआ)
अकबर – (अपने गुरुर मैं आ कर तुलसी के पौधे को उखाड़ कर फेंक देते हैँ और कहते हैँ..) “बीरबल तुम भी… कितनी माता हैँ तुम लोगो की..!!!”
Kitani Mata Hai Tumhari? - Akbar Birbal Ki Kahani
बीरबल को अकबर की इस हरकत पर गुस्सा आया और उन्होंने थान लिए की अकबर की इस हरकत का वो जुरूर जवाब देंगे। कुछ ही देर मैं उन्हें एक तरकीब सूजी.. कुछ ही दूर आगे चलते हुए उन्हें बिच्छूपती नमक एक ख़ुजली का पौधा दिखाई दिआ। बीरबल दुबारा से पौधे के सामने जूते निकले और इस बार नमस्कार ही नहीं दंडवत नमस्कार करने लगे और कहने लगे –
बीरबल – “हमारे परम पूज्य पिताजी को मेरा नमस्कार..”
अकबर को बीरबल की इस हरकत पर बहोत गुस्सा आया, उन्होंने बिना जाने पूछे फिर से उस पौधे को कस कर पकड़ा और उखाड़ फेंका। कुछ ही पल मैं अकबर को बड़ी तेज़ ख़ुजली आने लगी।
अकबर – “या अल्लाह..!! बीरबल ये क्या होने लगा हैँ मुझे… इतनी तेज़ ख़ुजली मेने आज तक कभी महसूस नहीं की हैँ..! देख क्या रहे हो कुछ करो… यह ख़ुजली तो धीरे धीरे बर्दास्त से बाहर हो रही हैँ।”
बीरबल – “गुस्ताखी.. माफ जँहापनाह, ये सब के जिम्मेदार आप ही हैँ। आप ही ने हमारी माता के साथ जो सुलुग किआ उसीका बदला ले रहे हैँ ये। मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता।”
अकबर – “तुम होश मैं तो हो बीरबल, ये क्या कह रहे हो तुम, मज़ाक करना बांध करो और कुछ करो… यहाँ ख़ुजली से जान निकली जा रही हैँ।”
अकबर की इस हालत को देख कर उन्हें एक तरकीब सूजती हैँ –
बीरबल – “जँहापनाह… गुस्ताखी माफ़ आप की यह हालत मुजसे देखि नहीं जाती। जँहापनाह आपको इस ख़ुजली से निजात दिलाने का एक तरीका हैँ मेरे पास।”
अकबर – “क्या..!! तो सोच क्या रहे हो जल्दी से निजात बताओ ना..”
बीरबल – “जँहापनाह, गुस्ताखी माफ़, निजात तो हैँ लेकिन जिसके पास हैँ वो भी हमारी माँ हैँ, उसीके पास जा कर आपको बिनती करनी होंगी।”
अकबर – “क्या..!! जो भी हो.. जल्दी करो हमें इस ख़ुजली से निजात दिलाओ जल्द से जल्द।”
कुछ ही दुरी पर गाय खड़ी हुई थी।
बीरबल – “जँहापनाह लीजिये, माँ खुदबखुद आपके सामने आई हुई हैँ। आप इनसे बिनती कीजिये ये आपकी बात जुरूर सुनेगी।”
अकबर गाय की देख अचंभित हो जाता हैँ।
बीरबल – “हैँ, गाय माता मैं आपसे बिनती करता हूँ आप हमारे जँहापनाह शहनशा अकबर ज़ी की ख़ुजली का निदान करें।”
बीरबल के इतना कहते ही गाय माता ने ढेर सारा गोबर कर दिआ। साथ ही चल रहे सेवको के द्वारा गोबर का लेप बना कर अकबर के पूरी शरीर पर मला गया। गोबर के मलते ही ख़ुजली धीरे धीरे करते हुई चली गई। लेकिन गोबर की बदबू से अकबर बड़े उदास थे। उन्होंने बीरबल से कहा –
अकबर – “अब हम क्या ऐसे ही राज दरबार जायँगे..!!!”
बीरबल – “नहीं जँहापनाह, मैं आपकी समस्या को समझता हूँ, और उसका निदान भी जनता हूँ, आप आइए मेरे साथ..”
बीरबल अकबर को कुछ ही दुरी पर बहुत रही एक नदी के पास ले आये।
बीरबल – “जँहापनाह, ये नदी नहीं हैँ ये भी हमारी माता हैँ, “गंगा माता” आप इस पावन नदी मैं जा कर डुबकी लगाई ये आपकी सारी परेशानिया दूर हो जाएगी। बोलो जय गंगा मैया की… हर हर गंगे… “
शहंशाह अकबर “जय गंगा मैया की ” बोलते हुए नदी मैं डुबकी लगाने लगे और कुछ ही पल मैं अकबर के शरीर पर मला हुआ सारा गोबर निकल गया और वो पुरे तारों ताज़ा हो कर बाहर आये..
अकबर – “बीरबल, हम अपनी ना समजी मैं की गई गलती की माफ़ी चाहते हैँ और कुबूल करते हैँ तुलसीमाता, गौमाता, और गंगामाता तो जगतमाता हैँ। आज से हम आप हिन्दू ओ की धार्मिक भावना ओ का ख्याल रखेंगे।”
तो पाठको कैसी लगी आपको ये कहानी, आशा करता हूँ आपको यह कहानी भी पसंद आई होंगी। अगर आपको हमारी यह कहानी रोचक और मज़ेदार लगी हो तो इसे आपने मित्रो के साथ शेयर करना मत भूले। हम ऐसे ही कहानियाँ आपके समक्ष लाते रहेंगे।

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