माता कुष्मांडा माँ दुर्गा का ही एक स्वरूप है। कहा जाता है जब सृष्टि का सृजन नही हुआ था तब चारो तरफ अंधकार ही अंधकार था। तब माता प्रगट हुई थीं, और उनके एक स्मित मात्र से सृष्टि की संरचना हुई थीं। अपने स्मित से “अंड” यानी “ब्रह्मांड” की उत्पत्ति करने के कारण माता को “कुष्मांडा” नाम से संबोधित किया जाता है। माता सृष्टि की सृजन करता है इस लिए इन्हें आदिशक्ति या आदिस्वरूपा भी कहा जाता है। माता का यह स्वरूप बहोत ही सौम्य और निर्मल है। माता इस स्वरूप में अपने भक्तों का मंगल और कल्याण करती है।
माता का यह स्वरूप अष्ट भुजाओं से सुसर्जित है। इस लिए माँ को अष्टभुजा माँ भी कहते है। माता की अष्ट भुजाओं में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र और गदा है। अष्टम भुजा सभी सिद्धियों और निधियों को संजोने वाली जपमाला निहित है। माता का वाहन “सिंह” है। प्राचीनकाल में इन्हें “कुम्हड़े” की बली दी जाती थी, यहाँ “कुम्हड़े” को संस्कृत में “कुष्मांड” कहा जाता है इसी व्याख्या के चलते माता को “कुष्मांडा” नाम से जाना जाने लगा।
माता की आभा सूर्य की भांति दैदीप्यमान है। माता सुरमंडल के भीतर निवास करती है। चराचर सृष्टि के हर प्राणी में माता निवास करती है। सूर्यलोक में रहने की क्षमता मात्र इन्हीं में है।
माता की महिमा अपरंपार है। जो भक्त सच्चे मन से माता की विधि विधान पूर्वक पूजा और आराधना नियमित रूप से करता है तो उसे उसका फल बहोत जल्द अनुभव होने लगता है। हर मनुष्य को पवित्र और अचंचल मन से नवरात्र के चौथे दिन माता “कुष्मांडा” की पूजा अर्चना करनी चाहिये। माता की उपासना करने से हर रोग और विकार का नाश होता है, माता यश, बल, आयु और आरोग्य प्रदान करती है। माता की निरंतर भक्ति भक्तो की सारी आधी व्याधि हर लेती है और उन्हें सुखी और समृद्ध बनाती है। जो भक्त माता की भक्ति में सदैव लीन रहता है इसके सारे काज माँ सफल बनाती है और उसे मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
और पढ़े – माता चंद्रघंटा की कथा – Story of Mata Chandraghanta
माता कुष्मांडा की कथा
नवरात्र के चौथे दिन माता “कुष्मांडा” की पूजा अर्चना की जाती है। जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति नही हुई थी तब हर जगा अंधकार ही अंधकार था। तब माता सूर्य मंडल के भीतर से प्रगट हुई और अपने एक हल्के स्मित से सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की। ततप्रश्चात माता ने ब्रह्मा , विष्णु और महेश का सृजन किया और फिर माता काली, लक्ष्मी और सरस्वती का। माता स्वयं सूर्यमंडल से प्रगट हुई है इस लिए माता के मुखमंडल पर सूर्य या तेज हमेशा दिव्यमान रहता है। माता का यह स्वरूप अष्ट भुजाओं से विद्यमान है। इस लिए माता को अष्टभुजा भी कहा जाता है। माता ने अपनी मुश्कान से सृष्टि की रचना की थी इस लिए माता को आदि स्वरूपा या आदि शक्ति के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है माँ पार्वती स्वरूप में थी उसके बाद जब भगवान कार्तिकेय के जन्म से पहले माता “कुष्मांडा” स्वरूप में विद्यमान थी।
जो भक्त सच्चे मन से माता की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करता है माता उसके सारे दुख दर्द हर लेती है। नवरात्र के चौथे दिन जो भी भक्त माता कुष्मांडा की आराधना करता है उसका मन “अनाहत” चक्र में अवस्थित होता है।
माता सौर मंडल के भीतर निवास करती है इसी वजह से दशो दिशाओ में उनका तेज प्रकाशमान है। एक वही है जो सौर मंडल में निवास कर सकती है। सूर्य का तेज सदैव उनकी आभा में छलकता रहता है।
जो भी विवाहित जोड़ा माता की पूजा अर्चना श्रद्धा पूर्वक करता है उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख शांति और समृद्धि का निवास सदैव रहता है।
माता कुष्मांडा की पूजन विधि
• यजमान को प्रातः जल्दी उठ कर स्नान आदि कर के स्वच्छ हो कर माता की पूजा विधि में बैठना चाइये।
• सर्व प्रथम माता के स्थानक पर धी का एक दीपक जलाना चहिये।
• माता के स्थानक पर गौमूत्र या गंगाजल का छिड़काव कर उसे पवित्र करना चाहिए।
• माता को मंत्रोच्चार से स्नान करवाना चाहिए। सबसे पहले गंगाजल से और उसके बाद पंचामृत से स्नान करवाना चाहिये।
• स्नान के बाद माता का श्रृंगार करना चाहिए माता को अबिल, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करने चाहिए।
• माता को श्वेत रंग के पुष्प अर्पित करने चाहिये।
• माता को धूप और इत्र अर्पित करने चाहिए।
• माता का श्रृंगार करने के बाद माता की आरती उतारनी चाहिए।
• माता की आरती के लिए घी और कपूर का उपयोग करना चाहिये।
• माता की आरती उतारने के बाद माता को भोग प्रशाद अर्पण करना चाहिए।
• माता को भोग में श्वेत वर्ण की मिठाई अत्यंत प्रिय है। माता को मालपूवा भी कई मंदिरों में भोग स्वरूप अर्पित किया जाता है।
• माता को भोग अर्पित करने के बाद माता के भोग को प्रसाद के रूप में भक्तो में बंट देना चाहिये।
• माता को भोग अर्पित करने के बाद माता के
“या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।”
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
मंत्र की एक माला करनी बहोत ही शुभ मानी जाती है।
• अपने सामर्थ्य के अनुसार अगर हो सके तो ब्राह्मणों द्वारा माँ दुर्गा की “दुर्गा सप्तमी” का पाठ घर मे करवाने से सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है।
इस तरह माता कुष्मांडा की पूजा विधि सम्पन्न की जाती है।
माता कूष्माण्डा का मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥
माता कूष्माण्डा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥