माता चंद्रघंटा की कथा – Story of Mata Chandraghanta

माँ चंद्रघंटा माँ दुर्गा का एक स्वरुप है। नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। माता के मस्तिस्क पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्र सुशोभित है। इसीलिए माता को “माँ चंद्रघंटा” कहा जाता है। माता का यह स्वरुप अत्यंत शांतिदायक और कल्याणकारी है। माता चंद्रघंटा का देह स्वर्ण के सामान चमकीला है। माता के दश हाथ है और दशो हाथ अस्त्र और शस्त्र से सुशोभित है। माता का वाहन सिंह है। माता की मुद्रा युद्ध के लिए उध्वत रहनेवाली है।

लोकवेद के अनुसार जहा माता चंद्रघंटा की उपस्थिति होती है वहा अलौकिक वस्तुओ के दर्शन प्राप्त होते है, दिव्य सुगंध का अनुभव प्राप्त होता है और विविध प्रकार की दिव्य ध्वनिया सुनाई पड़ती है। जो भक्त या साधन माता के चंद्रघंटा स्वरुप की उपासना पूजा अर्चना करता है उसका मन “मणिपुर चक्र” में प्रविष्ट हो जाता है।

माता चंद्रघंटा का प्रतिनिधित्व

माँ चंद्रघंटा देवी दुर्गा का एक स्वरूप है। माता का वर्ण चमकीला और तेजस्वी है। माता की दस भुजाएँ है। माँ की चार बांयी भुजाओं में गदा, त्रिशूल, तलवार और एक भुजा मुद्रा बनाती है। वंही दांई भुजाओं में कमल, धनुष, बान और एक भुजा आशीर्वाद मुद्रा बनाती है। वंही अतिरिक्त दो भुजाओं में कमंडल और जप माला है। माता चंद्रघंटा की पूजा उपासना करने से साधक को शक्ति, शांति और विरता की अनुभूति प्राप्त होती है।

माँ चंद्रघंटा कौन है?

माँ चंद्रघंटा का सृजन दानवो का विनास करने हेतु हुआ है। उनकी दश भुजाए और शेर की सवारी इस बात का प्रमाण देती है। माँ चंद्रघंटा की उत्पत्ति त्रिदेवो की मुख ऊर्जा से हुआ है। माँ चंद्रघंटा की उपस्थिति से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। दानव माँ की ध्वनि मात्र से थर थर कांपते है।

 

Mata Chandraghanta

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माँ चंद्रघंटा की कथा

एक समय की बात है, पृथ्वी पर एक महिसासुर नामक दानव राज किआ करता था। यहाँ “महि” का अर्थ “भैंसा” होता है उसी प्रकार से “महिसासुर” का अर्थ जिसका वर्ण भैंसे जैसा है वैसा असुर। वो बड़ा ही शक्तिशाली और बलवान था। उसके शाशन में एक भी ऐसा असुर या देवता नहीं था जो उसका मुकाबला कर सके। एक दिन जब असुरगुरु शुक्राचार्य के परामर्श पर दानव सम्राट “महिसासुर” ने परम पिता ब्रह्मा की तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न हो कर ब्रह्मा जी प्रगट हुए और मनोवांछित वर मांगने को कहा। वंही महिसासुर ने ब्रह्मा जी से अजय अमर होने का वर मांगा ज्योक़ी पृथ्वी पर जन्म लेने वाले हर जीव की मृत्यु निश्चित होती है ब्रह्मा जी ने उसे कोई और वर मांगने को कहा। महिसासुर ने बड़ी चतुराई से ब्रह्मा जी यह वर मांगा की उसकी मृत्यु किसी भी पुरुष से ना हो वो यह समजता था कि स्त्री प्रजाति पृथ्वी की सबसे कमजोर प्रजाति है। ब्रह्माजी ने उसकी ईच्छा को स्वीकारते हुए उसे उसका वर प्रदान किया। वर प्राप्त करते हुए उसने तीनो लोक में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। उसने पाताल और पृथ्वी लोक पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था। अब उसने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर सभी देवताओ को परास्त कर दिया। ब्रह्माजी के वरदान से उसकी मृत्यु किसी भी पुरुष से नही होनी थी इसी वज़ह से त्रिदेव भी उसे मारने में असमर्थ थे। सभी देवता त्राहि होंकर त्रिदेव के पास इस समस्या का समाधान लेने पहुँचे। सभी देवताओं ने सारा वृतांत त्रिदेवो को सुनाया। वृतांत सुन त्रिदेव बहोत क्रोधित हुए और उनके मुख से एक तीव्र ऊर्जा बाहर आने लगीं और कुछ समय प्रश्चात एक देवी प्रगट हुई। उनकी दश भुजाएँ थी और मस्तिष्क पर अर्ध चंद्र धंटे के आकार से सुशोभित हो रहा था। सभी देवता माता के इस स्वरूप को देख चकित हो गये। महादेव ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र उन्हें प्रदान किया। और इसीके चलते देवराज इंद्र ने अपना वज्र देवी को प्रदान किया और बारी बारी सभी देवताओं ने अपने अस्त्र शस्त्र देवी को प्रदान किये। देखते ही देखते माता का स्वरूप विकराल बनाता गया और माता “महिसासुर” का वध करने निकल पड़ी। “महिसासुर” और माता के बीच एक घमासान युद्ध हुआ। आकाश और पाताल हर जगा त्राहि त्राहि मच गई थी। एक के बाद एक सारे बड़े असुर मारे गए और अतः माता चंद्रघंटा ने विकराल असुर “महिसासुर” का वध भी कर दिया।
इस तरह माता ने देवताओं और मनुष्यों की रक्षा की और उन्हें महिसासुर जैसे दानव से बचाया।

माता चंद्रघंटा की पूजन विधि

• यजमान को प्रातः जल्दी उठ कर स्नान आदि कर के स्वच्छ हो कर माता की पूजा विधि में बैठना चाइये।
• सर्व प्रथम माता के स्थानक पर धी का एक दीपक जलाना चहिये।
• माता की चौकी बिठा कर उस पर माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर रखनी चाहिए।
• माता के स्थानक पर गौमूत्र या गंगाजल का छिड़काव कर उसे पवित्र करना चाहिए।
• माता को मंत्रोच्चार से स्नान करवाना चाहिए। सबसे पहले गंगाजल से और उसके बाद पंचामृत से स्नान करवाना चाहिये।
• स्नान के बाद माता का श्रृंगार करना चाहिए माता को अबिल, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करने चाहिए।
• माता को पुष्प अर्पित करने चाहिये।
• माता को धूप और इत्र अर्पित करने चाहिए।
• माता का श्रृंगार करने के बाद माता की आरती उतारनी चाहिए।
• माता की आरती के लिए घी और कपूर का उपयोग करना चाहिये।
• माता की आरती उतारने के बाद माता को भोग प्रशाद अर्पण करना चाहिए।
• माता को भोग में दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाना चाहियें।
• माता को भोग अर्पित करने के बाद माता के भोग को प्रसाद के रूप में भक्तो में बाँट देना चाहिये।
• माता का प्रसाद बांटने के बाद घर की सुख शांति बनाए रखने के लीये माता के
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएँ। भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए।
इस मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है।
• अपने सामर्थ्य के अनुरूप अगर कोई यजमान ब्राह्मणों द्वारा माता की चौकी के सामने बैठ कर दुर्गा सप्तमी का पाठ करे तो घर मे कभी भी नकारात्मक ऊर्जा वास नहीं रहता।
इस तरह चंद्रघंटा की पूजा विधि विधान से की जाती है।

Mata Mahisasurmardini

माता चंद्रघंटा का मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

माता चंद्रघंटा की आरती

जय मां चन्द्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समांती॥

क्रोध को शांत बनाने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली॥
मन की मालक मन भाती हो। चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥

सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित तो विनय सुनाए॥

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बाता॥
पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥

कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी। जय मां चंद्रघंटा ।

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