माता शैलपुत्री की कथा – Story Of Mata Shailputri

माँ शैलपुत्री माता जगदम्बा का एक स्वरुप है। हर साल नवरात्रि में माता के नव स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है। माता शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है। माता के स्वरुप की बात की जाये तो माता का वाहन श्वेत वर्णिय बैल यानी वृषभ है। माता दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं बांये हाथ में कमल का पुष्प धारण करती है। माता रानी का यह स्वरुप शांत एवं निर्मल है। माता शैलपुत्री का वाहन बैल होने से उन्हें “वृषोंरुढा” के नाम से भी जाना जाता है। माँ शैलपुत्री को इसके अलवा “उमा”, “सती”, “पार्वती”, “हेमवती” और भवानी नाम से भी संबोधित किआ जाता है।

माँ शैलपुत्री का जन्म “शैल” यानी पत्थर से हुआ है इस लिये उनकी उपासना एवं पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है। माना जाता है की माता की आराधना करने से “मुलाधार चक्र” जागृत होता है जोकि वह शुभ माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन जो दम्पति माता शैलपुत्री की विधिवध पूजा अर्चना करता है उनका वैवाहिक जीवन सुखमय व्यथित होता है और घर में भी खुशहाली आती है। यही नहीं जो कोई भक्त माता रानी की पूजा अर्चना सच्चे मन से करता है तो कुंडली में चंद्र से जुड़े सभी विकार दूर होते है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

Mata Shailputri

 

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माता शैलपुत्री की रोचक कथा

ब्रह्मा पुत्र प्रजापति दक्ष को 60 कन्या थी। माता सती भी उनमे से एक थी जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। प्रजापति दक्ष भगवान शिव के विरोधी थे। उनके सामने अगर भगवान शिव की प्रशंसा या महिमा का गान किआ जाये तो वो तुरंत क्रोधित हो जाते थे। कहा जाता है प्रजापति दक्ष सदा से भगवान शिव के विरोधी नहीं थे किन्तु जब भगवान शिव के रूद्र रूप ने ब्रह्मा का पांचवा शिश काटा तब से वह भगवान शिव के विरोधी हो गए थे। वो ये तक भूल गए थे की खुद माता आदि शक्ति ने उन्हें वरदान दिआ था की उनके घर माता जगदम्बा “सती” स्वरुप में जन्म लेंगी और उनका विवाह देवा दी देव महादेव से होगा। वो हमेशा शिव और सती के मिलन की रूकावट बनते रहे। वो भगवान विष्णु के प्रखर अनुयाई थे। वो जितना द्वेष महादेव से किआ करते थे उतना ही स्नेह और आदर वो भगवान नारायण का किआ करते थे। उन्ही के आदेश पर उन्होंने देवी सती का विवाह महादेव से किआ था किन्तु इतना होने के प्रश्चात भी उनका महादेव के प्रति जो द्वेष था वो काम न हो सका। एक बार प्रजापति दक्ष ने अपने निवास स्थान पर एक महायज्ञ का आयोजन किआ। इस महायज्ञ में सभी देवी देवता सहर्ष आमंत्रित थे किन्तु देवा दी देव महादेव और माता सती को उन्होंने आमंत्रित नहीं किआ था। महादेव देवी सती से अथाग प्रेम करते थे, उन्हें भविष्य में घटित होने वाली घटना का भली भाती ज्ञान था। माता सती इस जन्म में पिता मोह से ग्रसित थी उन्हें अपने पिता के लिये अप्रतिम स्नेह था। उन्हें लगता था भले ही पिताश्री ने हमें आमंत्रित नहीं किआ किन्तु वो उनकी पुत्री है और पुत्री को भला कैसा आमंत्रण वो महादेव से कहने लगी की उन्हें महायज्ञ का भाग बनना चाहिये। लेकिन महादेव भली भाति समजते थे की आखिरकार क्या घटित होने जा रहा है वो देवी सती को समजाने लगे की उन्हें नहीं जाना चाहिये किन्तु होनी को कौन टाल सकता है। महादेव के अनगिनत प्रयासों के बाद भी वो नहीं मानी और नाराज़ हो गई और कहने लगी भले ही आप एक जमाता होने के नाते बिना आमंत्रण के वहां नहीं जा सकते तो कोई बात नहीं लेकिन में जरूर जाउंगी में अपने पिताश्री को अच्छी तरह से जानती हु। वो भले ही कितने कठोर क्यों ना हो पुत्री मोह वश वो मुजसे आ कर लिपट जायेंगे और हमें ना बुलाने की भूल पर वो क्षमा भी मांगे गे। देखना आप में उन्हें आपके समक्ष ले आउंगी स्वामी, आप मुझे अनुमति दे की में वहां जाऊ और महायज्ञ का हिस्सा बन सकू। इस बार महादेव देवी के हठ को मना ना कर सके और उन्हें अनुमति दे दी। किन्तु सुरक्षा हेतु उन्होंने शिव गण नंदी को भी आदेह दिआ की वाह माता का ध्यान रखे और उन्हें सह कुशल कैलाश वापस ले आये।

देवी सती शिव गण नंदी के साथ दक्ष राज्य पहुंचती है और वहां द्वारपाल केवल माता सती को जाने की अनुमति देते है और शिव गण नंदी का अपमान कर उन्हें भीतर प्रवेश नहीं करने देते। देवी सती महायज्ञ के पंडाल में प्रवेश करती है। देवी सती को देख सभी आमंत्रित अतिथि चौंक जाते है। महायज्ञ में परमपिता ब्रह्मा, देवी सरस्वती, नारायण, देवी लक्ष्मी, सभी देवता गण और नारद मुनि उपस्थित थे। यज्ञ की विधि शुरू हो चुकी थी। देवी सती को देख माता “प्रसूति” उन्हें देखने आ पहुंची किन्तु पिता दक्ष ने उनको देख कर भी अनदेखा कर दिआ। पिता के भय से देवी सती की अन्य बहने भी उन्हें ना मिल सकी। देवी सती पिता दक्ष को उन्हें ना आमंत्रित करने का कारण पूछने लगी। किन्तु अपने अंहंकार में चूर राजा दक्ष ने देवी सती का अपमान किआ और साथ ही साथ वो देवो के देव महादेव का भी अपमान करने लगे। देवी सती अभी भी पिता मोह में लीन हो कर अपने पिता को ऐसा ना करने की बिनती करने लगी। किन्तु राजा दक्ष ने एक भी ना सुनी। वो बस अपने अहंकार में चूर होकर महादेव को अपमानित करते गये। देवी सती यह सब स्तब्ध हो कर सुनती रही और वो यह भी देख रही थी की वहां उपस्थित नारायण, परम पिता ब्रह्मा जो दक्ष को रोकने में सक्षम थे उन्होंने भी दक्ष को रोकने का प्रयास मात्र भी नहीं किआ। अंत तः देवी सती क्रोधित हुई और उन्होंने माँ आदि शक्ति का रूप धारण कर लिया। उन्होंने दक्ष से कहा की उनके इस अपराध का उन्हें भयंकर दंड भुगतना होगा। वो स्वयं का अपमान सेह सकती है किन्तु अपने स्वामी का नहीं। पुत्री की मर्यादा में रह कर वो स्वयं राजा दक्ष को दंड नहीं दे सकती अतः वो स्वयं से उत्पन्न हई क्रोधगनी में भस्म होने जा रही है। ऐसा कह कर उन्होंने ने स्वयं को भस्म कर लिया। यह देख सभी उपस्थित देवी देवता भय प्रद हो कर वहां से चले गये और फिर महादेव ने क्रोध में आकर अपने रूद्र स्वरुप का आवाहन किया और राजा दक्ष का मस्तिष्क धड़ से अलग कर उनका वध कर दिया। किन्तु फिर देवी प्रसूति एवं राजा दक्ष ने क्षमा मांग कर उन्हें शांत होने की याचना की, फिर देवो के देव महादेव ने दक्ष को क्षमा दान देते हुए कटे हुए मस्तिष्क की जगा वृषभ का मस्तिष्क लगा कर जीवन दान दिया। वही देवी सती का दुबारा जन्म हुआ। वो इस जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री स्वरूप में अवतरित हुई थी। फिर उन्होंने महादेव की कठोर तपस्या कर उन्हें अपने वर स्वरूप में पाने का वर मांगा। महादेव ने देवी पार्वती की इच्छा को स्वीकारते हुए उनके साथ विवाह के बंधन में बंध गये। यहाँ देवी पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री है और पर्वत को “शैल” से भी संबोधित किया जाता है। इस प्रकार से माता पार्वती को “शैलपुत्री” भी कहते है।

नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा और उपासना की जाती है। यजमान को सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि कर स्वच्छ परिधान धारण कर माता की स्थापना जिस स्थान पर की जानी है उस स्थान को स्वच्छ करना चाहिये। माता की स्थापना के लिए माता की मूर्ति या प्रतिकृति (फ़ोटो) का उपयोग करना चाहिये। माता की स्थापना के साथ कलश की भी स्थापना करनी चाहिये। माता को श्वेत पुष्प अर्पित करने चाहिये। माता शैलपुत्री को श्वेत पुष्प अतिप्रिय है। माता की श्वेत पुष्पो से पूजा करने के बाद उनकी कथा सुननी चाहिये। कथा का पाठ करने के बाद माता की आरती उतारनी चाहिये और फिर माता का प्रसाद स्वयं ग्रहण करने के बाद भक्तो में बनता चाहिये। प्रसाद भी अगर श्वेत वर्णीय हो तो अति उत्तम रहता है।

माता शैलपुत्री की पूजन विधि

• यजमान को प्रातः जल्दी उठ कर स्नान आदि कर के स्वच्छ हो कर माता की पूजा विधि में बैठना चाइये।
• सर्व प्रथम माता के स्थानक पर धी का एक दीपक जलाना चहिये।
• माता की चौकी बिठा कर उस पर माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर रखनी चाहिए।
• माता के स्थानक पर गौमूत्र या गंगाजल का छिड़काव कर उसे पवित्र करना चाहिए।
• माता को मंत्रोच्चार से स्नान करवाना चाहिए। सबसे पहले गंगाजल से और उसके बाद पंचामृत से स्नान करवाना चाहिये।
• स्नान के बाद माता का श्रृंगार करना चाहिए माता को अबिल, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करने चाहिए।
• माता को श्वेत रंग के पुष्प अर्पित करने चाहिये।
• माता को धूप और इत्र अर्पित करने चाहिए।
• माता का श्रृंगार करने के बाद माता की आरती उतारनी चाहिए।
• माता की आरती के लिए घी और कपूर का उपयोग करना चाहिये।
• माता की आरती उतारने के बाद माता को भोग प्रशाद अर्पण करना चाहिए।
• माता को भोग में गाय के घी से बनी मिठाई अर्पित करनी चाहिए।
• माता को भोग अर्पित करने के बाद माता के भोग को प्रसाद के रूप में भक्तो में बाँट देना चाहिये।
• माता का प्रसाद बांटने के बाद घर की सुख शांति बनाए रखने के लीये माता के
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ- हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ शैलपुत्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
इस मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है।
• अपने सामर्थ्य के अनुरूप अगर कोई यजमान ब्राह्मणों द्वारा माता की चौकी के सामने बैठ कर दुर्गा सप्तमी का पाठ करे तो घर मे कभी भी नकारात्मक ऊर्जा वास नहीं रहता।
इस तरह शैलपुत्री की पूजा विधि विधान से की जाती है।

माता शैलपुत्री का मंत्र

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

माता शैलपुत्री की आरती

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

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