श्री विष्णु मत्स्य अवतार पौराणिक कथा (Shri Vishnu Matsyavatar Pauranik Katha)

पौराणिक काल में एक बार ब्रह्माजी के पास से एक बहुत बड़े शक्तिशाली दैत्य हयग्रीव ने वेदों को छुड़ाने का दुस्साहस किया। वेदों के चोरी हो जाने से पूरे संसार में अज्ञानता फैलने लगी और चरो और अंधकार, पाप और अधर्म का बोल बाला होने लगा था। तब भगवान श्री हरि ने मत्स्य रूप धारण कर उस दुराचारी दैत्य का नाश किया और वेदों की रक्षा की थी।

पौराणिक काल में एक पुण्यात्मा राजा कठोर तप कर रहा था। उस राजा का नाम सत्यव्रत था। राजा सत्यव्रत पुण्यात्मा तो थे ही, उनका हृदय भी बहुत विशाल था। एक दिन प्रभात का समय था, सूर्योदय हो चुका था। राजा सत्यव्रत अपने नित्य कर्म के अनुसार कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने अपना स्नान संपन्न करके जब अपनी हाथो की अंजलि में तर्पण करने के लिए जल लिया, तब अंजलि में जाल एक साथ एक छोटी सी मछली भी आ गई।

Shri Vishnu Matsyavatar Pauranik Katha

जैसे ही राजन ने मछली को अपनी हाथों की अंजलि से नदी के जल में छोड़ना  चाहा, मछली तुरंत बोली – “रक्षा करो हे राजन, है राजन मेरी रक्षा करो.. इस विशालकाय महासागर में हम छोटे छोटे जीवों के साथ बड़े जीव भी रहा कराटे है। वो जीव हम जैसे छोटे जीवों को अपना आहार बना लेते है अतः है राजन इन बड़े जीवो से मेरी रक्षा करो।

राजा सत्यव्रत को इस छोटी मछली पर दया आ गई, उसने उस छोटी मछली को जल से भरे हुए अपने कमाल में डाल दिया। केवल रात्रि में उसका शरीर इतना बढ़ गया कि वो कमंडल उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। राजन को यह देख बहुत आश्चर्य हुआ, उन्होंने उस मछली को दूसरे बड़े पत्र में रखा लेकिन वो भी उस मछली के लिए छोटा पड़ने लगा। अब ऐसे ही राजन उस मछली को जिस भी जल पात्र में रखते वो मछली अपना आकर बढ़ा लेती और उसे वो जल पात्र भी छोटा पड़ने लगता था। राजन ने उस मछली को अब अपने राज्य के एक बड़े से सरोवर में रखने का निर्णय लिया। जैसे ही राजन ने उस मछली को सरोवर में छोड़ा उसने फिर से अपना आकार बढ़ा लिया और अब तो उसके लिए वो सरोवर भी छोटा पड़ने लगा था। यह सब इतना जल्दी हो रहा था कि कुछ ही दिनों में जो मछली राजन की हाथो की अंजलि में समा रही थी अब वो राजन के राज्य ने विशालकाय सरोवर में भी नहीं समा पा रही थी। अब राजन ने उस मछली को नदी में और उसके बाद समुद्र में रखा।

आश्चर्य..!! जब राजा ने उस मछली को समुद्र में रखा वहाँ भी उसका आकर बढ़ने लगा और कुछ ही समय में वो समुद्र भी उसके रहने के लिए पर्याप्त नहीं रहा था।

अतः अब उस मछली में फिर से राजन से कहा.. है राजन अब यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है अतः मेरे रहने के लिए कहीं और व्यवस्था कर दीजिए।

मछली के वचन सुनकर राजन विस्मित हो उठा, उसने आज से पहले इतनी विशालकाय मछली कभी नहीं देखी थी।

वो अब मछली के समक्ष हाथ जोड़ कर विस्मितभरे स्वर में बोलने लगा – “मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन है?  आपका शरीर जिस प्रकार से दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए में निसंदेह यह बात कह सकता हूँ की आप अवश्य ही परमात्मा है। अगर मेरा कथन सत्य है तो है प्रभु मुझे यह बतलाने की कृपा करे की आखिरकार आपने इस अवतार को क्यो धरा है?

सत्य में वो भगवान श्री हरि ही थे। मत्स्य रूपधारी भगवान श्री हरि ने अपने भगवत स्वरूप में आ कर राजन को उत्तर दिया – “है राजन..!!! एक दैत्य ने चारो वेदों को चुरा लिया है…!!! वेदों को अन-उपस्थिति में जगत में चारो ओर अज्ञान और अधर्म फैला हुआ है। मैंने दैत्य हाईग्रीव को मारने के लिए भी यह मत्स्य अवतार धरा है। आज से सातवे दिन यह समस्त पृथ्वी पानी में विलीन हो जाएगी। चारो और जल के अतिरिक्त और कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। उस समय आपके पास एक नाव पहुंचेगी। आप सभी अनजो और औषधियों के बीजो और सप्तऋषियों को अपने साथ लेके उस नाव पर बैठ जाइएगा। में उस समय आपको फिर से दिखाई पड़ूँगा और आपको आत्मतत्व का ज्ञान प्रदान करूँगा।

प्रभु श्री हरि के कथनों को स्मरण कराटे हुए राजा सत्यव्रत उस दिन से ही प्रलय की प्रतीक्षा करने लगा। उसने भगवान के कथन अनुसार सभी अनाजों, औषधियों के बीजो को एकत्रित कर लिया था। ठीक सात दिन बाद प्रलय का दृश्य राजन के सामने था। जल अपनी सीमा लांघ कर बहने लगा था। चारो और वृष्टि दिखाई दे रही थी। थोड़ी ही देर में चारो और जल ही जल नज़र आने लगा था। समस्त पृथ्वी जलमग्न हो चुकी थी। जैसे भगवान श्री हरि ने कहा था वैसे एक नाव उनके सामने दृष्टि गोचर हुई। राजन सभी सामग्री और सप्तऋषियों के साथ उस नाव पर सवार हो गए।

नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी थी। चारों और अंधकार ही अंधकार दिख रहा था। इस विशाल सागर में उस नाव के अतिरिक्त दूर दूर तक कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। साहस भगवान श्री हरि फिर से अपने मत्स्य अवतार में वहाँ दिखाई पड़े।

मत्स्यरूपी भगवान श्री हरि को अपने समक्ष देख सभी सप्तर्षि और राजा सत्यव्रत भगवान की प्रार्थना करने लगे। “है प्रभु…!!! आप ही इस सृष्टि के आदि, आपही रक्षक और आप ही पालक है। दया करके आप हमे अपनी शरण में लीजिए और हमारी रक्षा कीजिए।

राजा सत्यव्रत और सभी सप्तऋषियों की प्रार्थना से भगवान श्री हरि प्रसन्न हो उठे।

भगवान श्री हरि ने अपने वचन के अनुसार राजा सत्यव्रत की रक्षा की और उन्हें आत्मज्ञान प्रदान किया और बताया “इस संसार के सभी प्राणियों में मैं ही विद्यमान हूँ। ना कोई ऊंच है और ना ही कोई नीच है सभी प्राणी एक समान है और यह चराचर सृष्टि नश्वर है। इस नश्वर जगत में मेरे अतिरिक्त कभी और कुछ भी नहीं है। जो भी प्राणी मुझे सबके देखता हुआ अपना जीवन व्यतीत करता है वो अंत में मुज में ही मिल जाता है।

मत्स्य रूपी भगवान श्री हरि से आत्मज्ञान प्राप्त करके राजा सत्यव्रत धन्य हो गया। वो जीते जी ही इस जीवन से मुक्त हो चुका। प्रलय शांत होने पर भगवान ने उस दैत्य को मार कर उससे सारे वेद पुनः प्राप्त कर लिए और वापस से परम पिता ब्रह्मा को दे दिए।

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